Yun hi raah chalte chalte - 24 in Hindi Travel stories by Alka Pramod books and stories PDF | यूँ ही राह चलते चलते - 24

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यूँ ही राह चलते चलते - 24

यूँ ही राह चलते चलते

-24-

सब टावर के सिक्योरिटी गेट तक पहुँच गये थे। सिक्योरिटी चेक के बाद लोग लिफ्ट से ऊपर गये टावर के केवल दो तल तक ही जाना संभव था । पर वही इतना ऊँचा था कि वहाँ से सम्पूर्ण पेरिस का दृश्यावलोकन किया जा सकता था। अद्भुत मनोरम दृश्य था।

टावर से उतर कर सब लोग टावर के एक ओर दूर तक फैले मैदान में दूर जा कर फोटो लेने लगे जिससे उस विशाल टावर की पूरी ऊपर तक फोटो ले सकें । अनुभा और रजत भी काफी दूर तक आ गये थे। दो नों एक दूसरे की टावर के साथ फोटो ले रहे थे। तभी अनुभा की दृष्टि एक कोने में एक दूसरे में आबद्ध एक जोड़े पर पड़ी, इससे पूर्व कि वह उधर से दृष्टि हटाती वह चैांक पड़ी, यह तो अर्चिता और यशील थे। यशील अर्चिता की पीठ पर हाथ फेर रहा था और अर्चिता उसके वक्ष पर सिर रखे आँखें मूँदे प्रेम से ओतप्रोत आत्मलीन थी।

उदारमना होने के पश्चात भी अनुभा को अर्चिता और यशील इतनी सामीप्य भाया नहीं, उसका वश चलता तो वह इसी समय जा कर उन दोनों को फटकार लगाती। उसने रजत से कहा ’’यह आज के बच्चों को अपनी सीमा का आभास ही नहीं है, अभी तो यह भी निश्चित नहीं कि इनके रिश्ता भविष्य में क्या होगा और समर्पण की दिशा में आगे बढ़ रहे हैं ।’’

‘‘ आज की जनरेशन स्वालम्बी और आत्मविश्वास से परिपूर्ण है, उसे पता है कि उसे क्या चाहिये, तुम बिना बात के ही शहर की काजी बनी हुई हो’’ रजत ने कहा।

‘‘ मुझे क्या लेना - दे ना पर बच्चों को गलत कदम उठाते देख कर चिन्ता होती है। ’’

‘‘जिसे तुम चिन्ता का नाम दे रही हो वो उनकी दृष्टि में इन्टरफेयरेन्स है। ’’

‘‘ सच कह रहे हैं आप आज तो हरेक को स्पेस चाहिये इसीलिये तो जब ये असफल होते हैं इन्हें इनका लक्ष्य नहीं मिलता तो इतना अकेला अनुभव करते हैं और कोई कंधा नहीं होता सिर रखने के लिये, तब मानसिक अवसाद, आत्महत्या के शिकार होते हैं’’ अनुभा को सच में उनकी विशेषकर अर्चिता की चिन्ता सी होने लगी।

‘‘उहूँ तुम कहाँ की कहाँ ले उड़ी, ये उनका संसार है उन्हें अपने अनुसार जीने दो अपने ढँग से राह की बाधाओं का सामना करने दो। चलो तुम इधर खड़ी हो और पोज दो। ’’

अनुभा घास पर बैठ कर पोज बना ही रही थी कि एक नीग्रो कुछ सामान ले कर बेचने हेतु आ गया । उसके पास धातु का बना एफिल टावर लगा चाभी लगाने का छल्ला, छोटे छोटे पेन डायरी आदि सामान थे। वह अनुभा से लेने का आग्रह करने लगा। निमिषा भी वहीं आ गयी । वह उस नीग्रो से मोल भाव करने लगी उसी मोलभाव में नीग्रो बिगड़ गया । यह सुन कर उसके कई साथी नीग्रो भी वहाँ आ गये। तब सुमित ने सभी यात्रियों को कोच में बैठने को कहा और सावधान किया कि ये लोग खतरनाक होते हैं इनसे बोलने या उलझने से बचें ।

चलते-चलते मीना ने लता जी से कहा ‘‘ ताई बुरा न मानो तो एक बात कहूँ ।’’

‘‘ अरे नहीं बुरा क्यों मानूँगी।’’

‘‘ आप वान्या के लिये यशील के चक्कर में मत पड़ो, मुझे तो संकेत अच्छा लगा आप इसी के बारे में सोचिये ।’’

‘‘हाँ अब तो मुझे भी यही लग रहा है श्री मातोंडकर तो पहले ही यही चाहते थे पर मुझे लगा कि यशील अच्छी जाब में है वान्या को पसंद है अच्छा है ’’ फिर बोलीं वैसे यशील अच्छा तो है ही पर हाँ अब लगता है कि संकेत भी कोई कम नहीं सबसे बड़ी बात यह है कि मैं तो उसकी अहसान मंद हूँ आज वह न होता तो पता नहीं क्या होता? ’’

मीना बोलीं ‘‘ वैसे भी हमारी इतनी योग्य लड़की हम अपने समाज में दें तो ठीक है। ’’

‘‘ हाँ बस मुझे यही लग रहा था कि संकेत का परिवार संकीर्ण विचारों का है पता नहीं मेरी बेटी वहाँ सुखी रह पाएगी कि नहीं ’’लता जी ने अपना असमंजस बताया।

पीछे से आती वान्या ने उनका अन्तिम वार्तालाप सुन लिया था, उसने आ कर लता जी से कहा ‘‘ मम्मा माना संकेत ने मेरी जान बचायी, आय एक ग्रेटफुल टु हिम पर इसका मतलब यह नहीं कि मैं यशील को उस अर्चिता के लिये छोड़ दूँगी, मैं उससे हार मानने वाली नही हूँ ।’’

लता जी बोलीं ‘‘ पर बेटा एक बार सोच ले यशील तो तुम्हे देख कर आगे भी नहीं आया और वैसे भी अर्चिता से जीत के चक्कर में तू अपना लाइफ पार्टनर चुनने जैसा निर्णय कैसे ले सकती है।’’

‘‘नहीं मम्मा मैं केवल अर्चिता से जीतने के लिये ऐसा नहीं कह रही हूँ ।सच तो यह है कि मैं चाह कर भी उससे अपने को दूर नहीं रख पा रही हूँ ’’ वान्या ने कहा ‘‘ उसने कहा ‘‘ मैंने भरसक कोशिश की कि मैं संकेत के बारे में सोचूँ पर क्या करूँ मुझे वह अपील ही नहीं करता है, सच तो यह जब वह मुझसे जादा ही पास आने की कोशिश करता है तो मुझे इरीटेशन होने लगता है। ’’

‘‘ बेटी उसे हर्ट मत करना उसने तुम्हारी जान अपनी जान पर खेल कर बचायी है ’’लता जी ने कहा।

‘‘ आई नो मम्मा इसीलिये मैं उसका इतना ध्यान रखती हूँ पर मैं क्या करूँ अगर यशील मेरी पसंद है तो’’ वान्या ने विवशता जतायी। फिर यशील का पक्ष लेते हुए उसने कहा‘‘मम्मा सच तो यह है कि वह मुझे रोक रहा था मैं ही उसे आगे बुला रही थी और हो सकता है कि संकेत न आता तो वह मुझे बचाता ।’’

लताजी चुप ही रहीं वह स्वयं असमंजस में थी।उन्हें भी यशील अच्छा लगा था तभी तो उन्होने प्रारम्भ से वान्या का साथ दिया था पर संकेत ने उनकी बेटी के लिये जो भी किया था उसने उनका दृष्टिकोण बदल दिया था, उन्हे यह विश्वास होने लगा था कि संकेत उनकी बेटी के लिये कुछ भी कर सकता है, पर फिर भी यदि यशील उनकी बेटी की पहली पसंद होगा तो वह उसका साथ देंगी उन्होंने मन ही मन सोचा।................................

वान्या के मन और मस्तिष्क में जंग छिड़ी हुई थी जंगफ्रो में संकेत द्वारा अपनी जान पर खेल कर वान्या को बचाने से वह उसके हृदय की गहराइयों से कृतज्ञ थी इसीलिये संकेत को अपने समीप आने से रोक नहीं पा रही थी परन्तु हठी मन अभी भी यशील के आस पास ही भटक रहा था उस पर अर्चिता और यशील की दिन पर दिन बढ़ता सामीप्य उसकी भावनाओं को भड़काने में आग में घी का काम कर रहा था।उसने ठान लिया कि वह यशील और अपने बीच आ गयी दूरी मिटा कर रहेगी।

पेरिस फैशन, इत्र और परफ्यूम बनाने के लिये भी प्रसिद्ध है। अगले दिन सब लोग फ्रैगोरेन्ट नामक परफयूम की फैक्टरी में गये जहाँ 100 तत्वों से विभिन्न विशेषज्ञ लोग विभिन्न तरह के परफयूम बनाते हैं । उन्होने यात्रियों को सुगन्ध बनाने की पूरी प्रक्रिया दिखाई, और तरह-तरह की सुगन्धो के सैम्पल दिये। रजत ने अनुभा से कहा ’’ क्या बात है इतनी तरह की परफ्यूम है और तुम खरीद नहीं रही हो तुम तो क्रेजी हो परफ्यूम्स की ।‘‘

’’ अरे इतने सारे सैम्पल एक साथ सूंघ कर कनफ्यूज हो गई हूँ, आप ही बताइये कौन सी लूँ।‘‘

’’ ये जैस्मीन लेा‘‘ रजत ने कहा ।अनुभा ने सूँघा, सच में जैस्मीन की भीनी सुगंध ताजगी से भरपूर थी ।उसने एक जैस्मीन सुगंध खरीदी।

’’ आंटी इतना सारा परफ्यूम्स लग रहा है हम फूलों की वादी में आ गये हैं।मेरा तो मन कर रहा है कि मै सब ले लूँ ‘‘संजना ने अनुभा के पास आ कर कहा।

सब लोग परफ्यूम देख रहे थे यशील भी चंदन के साथ देख रहा था तभी पीछे से आ कर वान्या ने पूछा ‘‘ कौन सी परफ्यूम ले रहे हो? ’’

यशील ने कहा ‘‘अरे यार मुझे समझ नहीं आ रहा है कि कौन सी लूँ इतनी सारी हैं कि मैं कन्फ्यूज हो रहा हूँ ’’फिर बोला ‘‘ एक तुम पसंद करके मेरी तरफ से ले लो ।’’वान्या के अपनी ओर से पहल करने पर यशील का हदय बल्लियों उछलने लगा इतने दिनो से वह एक अजब कशमकश में फंसा था वान्या की उपेक्षा उसे उसकी ओर और तीव्रता से खींच रही थी वह चाहता था कि वान्या से उस दिन के लिये क्षमा माँग ले पर अर्चिता का आसपास होना और उधर संकेत का वान्या का साया बने रहना उसे अवसर नहीं दे रहा था, आज जब वान्या स्वयं ही आगे बढ़ कर उससे बोली तो तुरंत उसे एक पर परफ्यूम उपहार देने का निर्णय ले लिया।

वान्या को अच्छा लगा उसने प्रसन्न हो कर पूछा ‘‘ मुझ पर यह मेहरबानी क्यों? ’’

‘‘ वान्या आय एम रियली सारी उस दिन मैं तुम्हें बचा नही पाया। ’’

‘‘अच्छा तो उसकी भरपायी कर रहे हो ’’वान्या ने आँख दिखाते हुए कहा।

फिर बोली ‘‘वैसे मैं तुमसे नाराज नहीं हूँ, मैं खुद ही तो आगे गयी थी पर हाँ संकेत की थैंकफुल जरूर हूँ अगर वह न होता तो पता नहीं क्या होता ।’’

यशील को संकेत का नाम सुनना अच्छा तो नहीं लगा पर प्रत्यक्ष में बोला ‘‘ मैं भी उसका शुक्रगुजार हूँ उसने तुम्हें बचाया इसलिये मैं पहले की बातों के लिये सारी बोलने को तैयार हूँ ।’’

‘‘ अरे नहीं संकेत ऐसा नहीं है वह सब भूल चुका है ‘‘वान्या ने आश्वस्त किया। उसका यह आश्वासन यशील को और भी बुरा लगा अतः उसकी भरपायी के लिये उसने तय किया कि वह वान्या को परफ्यूम अवश्य दे कर अपने मध्य आयी दूरियाँ मिटा कर रहेगा।जब कोई चीज किसी से दूर जाने लगती है तो वह अधिक प्रिय और मूल्यवान लगने लगती है यह मानव स्वभाव है।

अर्चिता चंदन के पास गयी और बोली ‘‘ चंदन तुम्हारे फ्रेंड को कौन सी परफ्यूम पसंद है ?’’

चंदन ने कहा ‘‘ मुझे क्या पता उसी से पूछो न मैं कोई उसका पीए तो हूं नहीं । ’’

‘‘ मैं उसे सरप्राइज देना चाहती हूँ, चलो एक तुम्हे भी गिफ्ट दे दूँगी, तुम भी क्या याद करोगे ’’ अर्चिता ने सदाशयता दिखाते हुए कहा।

चंदन ने कहा ‘‘ वैसे उसे तुम जो भी दोगी पसंद आ ही जाएगी ।’’

‘‘ उसे मैं पसंद आ जाऊँ यही बहुत है ’’ उसने धीरे से कहा । चंदन ने पूछा ‘‘ क्या कहा?’’

‘‘ कुछ नहीं ’’कह कर अर्चिता ने टाल दिया।

तभी निमिषा आई और उत्साह से बोली ’’अरे देखो यशील ने लेडीज परफ्यूम्स ली है ।देखें वान्या को देता है कि अर्चिता को। इसी से डिसाइड हो जाएगा कि वो दोनो में से किसको चाहता है और किससे फ्लर्ट कर रहा है।‘‘

अनुभा ने कहा ’’ तुम भी निमिषा तुम्हें तो जासूस होना चाहिये ‘‘।

संजना ने कहा ‘‘ तुम्हें पता कैसे चलेगा कि उसने किसको दिया ‘‘?

’’कहते हैं इश्क और मुश्क छिपाये नहीं छिपता‘‘ निमिषा ने नाटकीय अंदाज में कहा, फिर बोली ’’तुम क्या समझती हो कि जिसे भी वो गिफ्ट मिलेगा वो उसे तुरंत लगाये बिना रह पाएगी। और जब वो लगाएगी तो उसकी सुगंध हम सबको आएगी अवश्य। ‘‘

‘‘हो सकता है कि उसने खुद खरीद कर लगायी हो‘‘ संजना ने बहस की।

’’ पर मैं जानती हूँ कि यशील ने कौन सी परफ्यूम खरीदी है‘‘ निमिषा ने राज खोला।

क्रमशः---------

अलका प्रमोद

pandeyalka@rediffmail.com