Chunni - 5 in Hindi Fiction Stories by Krishna Chaturvedi books and stories PDF | चुन्नी - अध्याय पाँच

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चुन्नी - अध्याय पाँच



कॉलेज का पहला दिन। चुन्नी हर तरफ संसा के नजरो से देख था। हर चीज नई थी वहाँ, हर लोग नये थे। उपर से पहले कभी अकेले वो कही गया नही ना ही कभी अकेले रहा। माँ पापा हमेशा साथ होते थे।वहाँ अब वो अकेला था, जो बाजी करना था, जो भी अनुभव होना था सब अकेले।
चुन्नी धीरे धीरे पीठ पर पिट्ठू झोला टाँगे आगे बढ़ रहा था। वो अपने कक्ष की तलाश कर रहा आगे बढ़ रहा था।
एक गार्ड चुन्नी को ससंकित देख पूछा
"कहाँ जाना है? "
"फर्स्ट ईयर मे"चुन्नी घबराते हुए बोला।
" तीसरे माले पर है चले जाओ। "गार्ड बोला।
" थैंक्स यू सर "चुन्नी बोलकर तीसरे माले की तरफ देखने लगा।

फिर वो आगे बढ़ गया। सीढ़िया चढ़ते हुए वो घबरा भी रहा था की पता नही क्या होगा। कही सब अंग्रेजी नही बोलने लगे। मुझे तो आती नही कैसे बोलूँगा। यही सोचते सोचते वो उपर पहुँच गया। पर अब क्या वहाँ भी कम से कम दस कमरे थे,कहाँ जाए अब। सामने से ऑफिस बॉय हाथ मे ट्रे लिए हुये आ रहा था। चुन्नी ने रोक कर पूछा।
"सर फर्स्ट ईयर सी किस तरफ है? "
"वो सामने कोने वाला। " वो बोलकर निकल गया।

चुन्नी अपना बैग संभालते हुए आगे बढ़ा। हाथ पैर काँप रहे थे। हिम्मत कर के आगे बढ़ा और दरवाजे पर दस्तक दी।
"सर क्या मै अंदर आ सकता हूँ? "
"यस प्लिज़। " अंदर से आवाज आई।

चुन्नी धीरे धीरे आगे बढ़ा और सबसे अंत मे लगे खाली बेंच पर बैठ गया। बीस पचीस के करीब उसी के उम्र के और बैठे थे वहाँ। सबने अपना अपना ग्रुप बना लिया था। चुन्नी पर किसी ने ज्यादा ध्यान नही दिया।


थोड़ी देर बाद एक और लड़का आया मोटा सा थोड़ा काला। कंधे पर बैग टाँगे और पूरे विश्वास से चलता हुआ, ऐसा लगा की कई सालों से है वहाँ। डर और घबराहट का कीई नामों निशान नही। वो आगे बढ़ा और थोड़ा इधर थोड़ा उधर देखा फिर सीधे चुन्नी के बेंच पर आकर बैठ गया। चुन्नी की तरफ देखते हुए बोला
"पहला दिन? "
"हाँ" चुन्नी बोला।
"कहाँ से हो? " उसने पूछा।
"उत्तर प्रदेश"- चुन्नी बोला।
" मै दीपक"उसने हाथ आगे बढ़ाते हुए बोला।
"चुन्नी" चुन्नी भी हाथ मिलाते हुए बोला।

चुन्नी थोड़ा अब वातावरण से घुलने मिलने लगा। अब अच्छा लग रहा था उसे। कीई साथ मे बैठने वाला मिल गया था।

"कहाँ रहते हो? होस्टल मे क्या? " दीपक ने पूछा।
"नही बाहर रहता हूँ। होस्टल मे फीस ज्यादा मांग रहे। " चुन्नी बोला।
"अच्छा किया भाई, यहाँ लूट है होस्टल मे। और ऊपर से दुनिया भर के बंधन भी है। इस वक़्त आओ इस वक़्त जाओ, मेस का खाना और दुनिया भर की बंदिशे। मै भी बाहर ही रहता हूँ। " दीपक बोला।

"आप कहाँ रहते हो? " चुन्नी ने पूछा।
"मै लंका के पास मे ही एक कॉलोनी है वही रहता हूँ। मेरे साथ मेरे ही यहाँ का एक मित्र है वो भी रहता है, वो ए सेक्शन मे है।" दीपक बोला।

"मै भी उधर ही रहता हूँ।शायद आस पास मे ही है। अभी ज्यादा पता नही दो चार दिन ही हुए है। " चुन्नी बोला।

"ठीक है फिर साथ मे ही आया जाया करेंगे। कोई परेशानी हो तो भी बताना क्योकि मेरी बिल्डिंग मे ही अपने सुपर सीनियर है जिनसे खूब बनती है मेरी। कीई रैगिंग करेगा तो भी बताना उनकी तोड़ दी जाएगी। डरना नही भाई है अब साथ मे तुम्हारे। " दीपक बोला।

"धन्यबाद भाई। " चुन्नी बोला।

घंटा बजा और सब बाहर निकलने लगे। उस दिन का लेक्चर खतम हो चुका था।पहला दिन था इसलिए प्रोफेसर ने एक ही घंटा पढाया। सब अपना बैग टांग निकलने लगे।

चुन्नी दीपक के संग हो लिया।
वो खुश था कि उसका सफर अब इतना कठिन नही होगा, अब उसके पास एक मित्र था।