Ghar ki Murgi - Prasthavna in Hindi Women Focused by AKANKSHA SRIVASTAVA books and stories PDF | घर की मुर्गी - प्रस्तावना

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घर की मुर्गी - प्रस्तावना

अक्सर ससुराल में नई बहू के आते ही उसे जिम्मेदारी के नाम पर अकेले ही हजारों कामो के लिए सौप दिया जाता हैं। बिना यह सोचें कि वह अभी इस घर मे नयी है। हर लड़की को मायके की आजादी से निकल ससुराल के शिकंजे में एक ना एक दिन तो बंधना ही होता हैं। लेकिन इन सब के लिए उसे ही खुद को एडजस्ट भी होना पड़ता हैं।......और इन सब के बीच तो समय लगता ही हैं।

सबके साथ घुलने- मिलने में थोड़ा समय,बात -व्यवहार में थोड़ी परेशानी, अच्छाई-बुराई, पसंद-नापसंद सबको समझने में एक माह तो लग ही जाता हैं। लेकिन इस तरह उसकी खामोशी का फायदा उठाना शायद ही ठीक हो,क्योंकि कोई भी लड़की जब अपना घर परिवार छोड़ आपके नए घर मे प्रवेश करती है तब वो हजारों सपनो को बुनकर आती हैं। लेकिन ससुराल और स्वप्न में जमीन आसमान का अंतर है। बेटी-बेटी ही रहती है, और बहू -बहू ही लेकिन उसके साथ नौकरानी की तरह व्यवहार करना कहा तक ठीक माना जा सकता हैं। यदि उसके साथ भी ना बेटी की तरह बहू ही समझ दो लफ्ज़ प्रेम से बात की जाए तो बहू भी खुद को जल्द ही अपने इस नए घर मे खुद को सेट कर ही लेगी।

इन्ही सब बातों के बीच मुझे एक मुहावरा याद आ रहा,"घर की मुर्गी,दाल बराबर" आज हमारे समाज मे ऐसे अनेको घर है। जहाँ औरतो को महज "घर की मुर्गी"के बराबर ही समझा जाता है। जहां उसका नाता सिर्फ़ रसोई घर से लेकर परिवार के पेट पूजा का ख्याल रखना ही मुख्य भूमिका होती है। लेकिन शायद यह पूरी तरह गलत धारणा है। क्योंकि जहां जिस देश मे पुरुष प्रधान को सदियों से यही शिक्षा दी गयी है,कि उन्हें घर के काम में हाथ बंटाने की जरूरत नही।तो मैं उन पुरषों को ये याद दिलाना चाहूँगी;जब सब काम में आज महिलाएं कदम से कदम मिलाए आपका साथ दे रही है, तो आप क्यों महिलाओं के ही मत्थे सारे काम थोप रहें।

माना पुरूष कमा कर लाते है मगर आज औरते भी कहा किसी से कम है। घर के काम से लेकर ऑफिस हो या निजी बिजनेस सम्भालना,परिवार बच्चों को सम्भालना,उनकी हर छोटी-छोटी खुशियों में खुद की खुशी को अनदेखा करना इतना त्याग कौन सा पुरूष प्रधान करता है,लेकिन फिर भी वे कभी ना ही उफ्फ्फ करती है ;ना ही कोई उनके बारे में सोचता हैं। पूरे घर की जिम्मेदारी सम्भालते - संभालते एक औरत मानसिक और शारीरिक रूप से अक्सर बीमार हो जाया करती है। इस हालत में भी कोई उन्हें दवा के लिए पूछ ही ले यही बहुत बड़ी बात! तंज और उहा-पोह में जीवन कैसे व्यतीत होता है ,वो कोई नारी से पूछे। नारी शब्द भले ही छोटा है मगर उसके पहलू उसके मायने में कोई टक्कर नही दे सकता। प्यार, सम्मान, आदर,त्याग,तिरस्कार,शांत मायावी,अनन्त नाम इसी नारी से ही तों उपजे है। तिरस्कार, आदर की मूरत ही हर घर को स्वर्ग ना सही लेकिन घर बनाने में अपना पूरा जीवन समर्पण कर देती है। हर चीज में प्यार की अभिभूत उतारने वाली वो नारी ही तो है।