chhinal in Hindi Moral Stories by Kumar Gourav books and stories PDF | छिनाल

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छिनाल



टोले के बीचोंबीच था उसका घर । उसका घर मतलब छिनाल का घर । खौफ इतना कि नई पीढ़ी ने उसका चेहरा तक न देखा था ।
कहते हैं पहले ये रामनाथ मिश्र का मकान था और ये उनकी पतोहु थी । इसके बाप ने दहेज में नहीं दिया था स्कूटर , कहता था पढ़ी लिखी बेटी दी है कलेजे का टुकड़ा अब पैसे क्यों खर्चूं । सामाजिक दबाब में शादी तो हो गई लेकिन एक रोज रामनाथ बाबू ने चोटी पकड़कर घसीटते हुए बाहर कर दिया जा बिना स्कूटर आना मत ।

बाल छुड़ाकर भागी थी वो सबने सूूंघा था उसके कपड़ों में केरोसिन की महक ।
छिनाल ने एकबार भी बाप को खबर नहीं किया । दो घंटे बाद ही खुद स्कूटर चलाते हुए वापस आ गई । रामनाथ बाबू का हाथ मूंछों पर चला गया ,लातों के भूत बातों से कहां मानते हैं ।

बिसेसर ने पहचाना वो वीडियो रामप्रसाद का स्कूटर था। जाने छिनाल की कहां कहां पहचान है । पीछे से पहुंची दो दर्जन पुलिस और रामनाथ दोनों प्राणी गये लंबे टाइम के लिए भीतर । फोटू छपा था अखबार मेें और अपना स्कूटर दे दिए थे वीडियोसाहब इनाम में ।
तब से न कभी वो मायके गई और न उसका पति घर आया ।
उसके घर गाँव के बहू बेटियों का जाना मना है छिनाल की संगत ठीक नहीं है ।
अब वो कस्बे के कॉलेज में जियोलॉजी पढ़ाती है । गाँव में अघोषित रूप से उसका हुक्का पानी बंद हैं । वो स्कूटर पर कस्बे से ही राशन पानी लाद लाती है ।

गर्मी की छुट्टी है तो आजकल घर में ही है । आज उसके दरवाजे से कसौझीं की हंडिया चुरा लाया बिसेसर का पोता । बहुत बदमाश है पूरा गाँव परेशान है इससे ।
आधे गाँव में बांटता हुआ हांडी लेकर घर पहुंचा । बिसेसर की जनानी से दरवाजे पर खड़ी थी उसने हांडी छिनकर भुसकार में छुपा दिया बाप देखेगा तो मारेगा ।
घंटा भर न बीता होगा कि बिसेसर घर की कसौझीं की खबर गांव भर की जबान पर थी । जिनको मिला था वो रेसिपी पूछने और जिनको न मिला था वो उलाहना देने दुआरी पर चढ़े आ रहे थे ।
भीड़ जुटने पर बिसेसर बो ने भूसकार से हांडी निकाली और सबको थोड़ा थोड़ा प्रसाद की तरह बांट दिया । रेसिपी पूछनेवालों को कल आने का कह जान छुड़ाई ।
बिसेसर खटिया पर लेटे लेटे कसौंझी के दम पर मुखिया बनने का सपना देखने लगे । जब वो मुखिया बनेंगे तो सबसे पहले इस छिनाल को गाँव से भगाएंगे । बीच टोला में रहती है एकदम शर्म का बात है । ये शरीफों की बस्ती है ।

अंधेरा फैलना शुरू ही हुआ था कि बिसेसरा बो मुँह ढांपे उस घर की तरफ चल दी । बिसेसर ने टोका तो झिड़क दिया " इतना लोग को कहे हैं कल कसौंझी बनाना है जा रहे हैं उससे बनाना सीखने । "
" उससे काहे ! बुढ़ा गई हो तुमको नहीं आता है क्या ? "
" खा तो रहे हो तीस साल से कभी स्वाद आया है । इज्जत मिल रहा है तो संभालने के लिए कुछ करना पड़ता है । ऐसे ही नहीं हो जाता है बैठे बैठे । "

बिसेसर बो छिनाल के घर की सांकल बजा रही है और बिसेसर मुंह घुमाके सोच रहे हैं एकबार मुखिया बन गये तो ये कंटक हमेशा के लिए हटा देंगे गाँव से ।

Kumar Gourav