The character - 4 in Hindi Biography by sk hajee books and stories PDF | किर_दार - 4

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किर_दार - 4


प्रोफेसर सहाब और मै

कुछ ऐसे नगिनो के किरदार के बारे मे जानने की कोशिश करते जो है सदियों से महिलाओं को प्रताड़ित करने का काम करते आए है । और यह मनुष्य समुह हमेशा अपने आप को श्रेष्ठ और महिला को दुय्यम दर्जे का स्थान देकर अपना जिवन बसर कर रहा है । ऐसा नही के महिलाओं का भी ऐसा वर्ग नही है लेकिन पुरुषों के मामले इनकी संख्या बहोत कम देखने को मिलेगी ।

पता नही स्त्री को हमारे समाज मे दुय्यम दर्जे का स्थान कैसे प्राप्त हुआ । तब की स्थिति अनुसार पुरूषों की जाती ने अपना दबाव बनाकर स्त्री को कमजोर और घर तक ही सिमित रखने का काम किया और यह भी हो सकता है खुद स्त्री ने ही इस को अपना कर, घर तक ही सिमित रख लिया । यह विषय बहोत खोल है अब इसमे ना पड़े तो ही बेहतर है ! आज जो स्थिति है उसका ही निराकरण/ बात करने कि कोशिश करते है ।

आला दर्जे के बहोत बडे प्रोफेसर सहाब थे, शुरवात मे उनके स्त्री विषयक विचार सुनके अपने विचार उस राह मे लाने का प्रयास कर रहा था । ऐसे मे उनसे अच्छे संवाद की शुरूआत हुई । दिन ब दिन उनसे संवाद बढ़ने लगा फिर एक-दूसरे हम अच्छी तरह से पहचानने लगे मेरे मन मे जो भी सवाल होते उसका जवाब देने की प्रोफेसर साहब खुब कोशिश करते ।

जब पहचान मैत्री मे बदल गई तब उनके घर को आने-जाने का सिलसिला भी शुरू हो गया । तब उनकी धर्मपत्नी जो की एक हाउस वाइफ थी, उनके प्रति प्रोफेसर साहब का किरदार, विचारों को टटोलने की कोशिश की, तब प्रोफेसर साहब का एक अलग ही किरदार मेरे नजरों के सामने अवतरित हुआ । फिर भाभीजी से इस बारें मे बात और प्रोफेसर साहब को पुरे तरिके से जान सका । शायद प्रोफेसर साहब ने अपने यह विचार कभी अपने धर्मपत्नी को बताए नही थे । अगर भाभीजी को प्रोफेसर सहाब के विचार मै उन्हे कुछ थोडे-बहोत तौर पर भी बता देता तब वह आंदोलन ही छेड़ देती !!!

फिर उनके सब वह स्त्री के सम्मान, सशक्तिकरण जैसे अनके विचार बस अपना चरित्र हम जैसों के सामने सुशोभित करने की क्रिया दिखी

बहोत हसे लोग कुछ ऐसे ही अपना जिवन बसर करते है, समाज के सामने एक किरदार और जहाँ अपने विचारों को प्रक्टिकल स्वरूप मे खगांलने की जरूरत होती है तब वहाँ इनके यह सब आदर्श जिसके कारण समाज मे इन्हें इतनी इज्जत, रुतबा मिला होता है उसे अपने घर पर आकर उतार फेक देते है ।

किसी विचार को समाज मे मान रहे हो तो उसे अपने घर मे लागु/मानने मे दिक्कत क्या है ? हर विचार बस हमारी मानवीय जिंदगी को सुखी रखने का प्रयास करता है । अगर हमारी ही जिंदगी का हिसाब विचारों मे भी किरदार निभाने का हो तो भला हो ऐसे लोगों का ।

जब प्रोफेसर साहब को इन सब बातों से जकड़ ने की कोशिश की तो उनके पास आज मेरे किसी भी सवाल का कोई भी जवाब नहीं था, उनकी निगाहें आज पहली बार मुझसे झुकी हुई थी और कुछ देर के बाद वह इस बला को हंसने मे टाल रहे थे ...




ऐसा ही एक करीबी मित्र की कुछ दिनों पहले शादी हो गई, कुछ दिनों बाद उसे उसके गृहस्थी जीवन का हाल पुछा तो बताने लगा के वह घर से अपनी पत्नी को गुस्सा करकर बाहर आया है । वजह जानकर मुझे हैरानी हुई, अपना डर उसपर बिठाने के लिए यह अभी से ऐसे प्रयास कर रहा है पर उसे क्या पता उसने उसके जिंदगी के कुछ हसीन लम्हे युंही बेकार मे गँवा दिए ...
जब और उसके मन मे अंदर झांका तो लगा के उसके बगेर तो यह रह ही नही सकता और ऐसे ही हुआ !

शादी की छुट्टियों के खत्म होते ही उसे अपनी नौकरी को फिरसे जाना पडा जो की उसके यहाँ से तक़रीबन 300 KM दुरी पर थी । जबर्दस्ती चार दिन रहकर, अपने बाॅस के पैर पकड़कर और छुट्टियाँ लेकर वह पत्नि के पास दौडा चला आया ...


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