middlebirth - 2 in Hindi Love Stories by Ajay Kumar Awasthi books and stories PDF | मिडिल बर्थ - 2

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मिडिल बर्थ - 2

मिडिल बर्थ पार्ट - 2


जमशेदपुर जाना मेरे लिए मुश्किल नही था । लेकिन मैं वहाँ जा नहीं पा रहा था कारण मेरी अपनी रोजगार के सम्बंध में व्यस्तता थी पर एक जवां दिल प्यार के लिए किस कदर तड़फने को मजबूर हो जाता है मुझे शैल से मिलने के बाद महसूस हुआ ।
उससे मिलने की बेताबी मुझे वर्तमान में रहने नही देती थी । मैं नित नई कल्पनाओं में खोया रहता, उससे प्यार के रंग बिरंगे सपने देखा करता और उसके ख्यालों में डूबा रहता । और एक दिन आखिरकार अपना बेताब दिल लिए मैं जमशेदपुर के लिए निकल पड़ा । घर मे ऑफिस के काम का बहाना बनाकर मैंने रात वाली ट्रेन में अपना रिजर्वेशन करा लिया । जब उसे मैंने अपने आने की बात बताई तो उसकी बेइन्तहा खुशी उसकी बातों से झलक रही थी ।
मैंने उसे बताया कि मैंने वहाँ एक होटल का कमरा बुक करा लिया है और आगे या तो हम होटल में मिल सकते थे या वो जहाँ चाहे ।
सारी रात ट्रेन में सफर करने के बाद मैं अपने महबूब के शहर में था । प्लेटफार्म में उतरते ही वहाँ की हर चीज में शैल के प्यार की महक मिल रही थी । ऐसा लगता था कि शैल यहाँ भी आई होगी,यहाँ भी बैठी होगी,,यहाँ भी आती होगी,,,,
हसीन ख्वाबों में डूबा मै होटल के अपने कमरे में आ गया और नहाने चला गया । अपनी दिनचर्या निबटाकर मैंने चाय और नाश्ते का ऑर्डर दे दिया । और तभी शैल का फोन आ गया मेरी छाती धड़क गई । अपने शहर में था तो दूर से बातचीत करते हुए मुझे कभी ऐसा नही लगता था ,लेकिन अब साक्षात मिलन की घड़ी पास थी तो उसके फोन से ही मुझे एक तरह की कंपकपी महसूस हुई । मैं संयत होकर उसे बताया कि मैं चाय नाश्ते के बाद एकदम खाली हूँ । उसने कहा कि यहां का एक बड़ा प्रसिद्ध मंदिर है और उसके पास ही बहुत बड़ा उद्यान है हम वहीं 12 बजे के आसपास मिल रहे हैं, मैं आपको मंदिर के द्वार के पास मिलूंगी । हम पहले भगवान का दर्शन करेंगे फिर पास के गार्डन में बैठेंगे ।

मैं नाश्ता करने के बाद अपने कमरे में आ गया । वहाँ का स्थानीय अखबार पढ़ते हुए और कमरे में लगे टेलीविजन देखकर समय बिताने लगा पर शैल से मिलने की उत्तेजना के कारण वे सब आंखों के सामने से गुजर रहे थे पर कोई भी बात दिमाग मे असर नही डाल रही थी । बस शैल का वो सुंदर चेहरा ही दिल दिमाग मे छाया हुआ था। यही आशिकी थी ,यही आशिकी की आग थी जो लग जाये तो बुझाए न बने ।

ठीक साढ़े दस बजे मैं होटल से टैक्सी लेकर उस मंदिर की ओर रवानगी डाल दी । दिल मे गाने की एक लाइन गूंज रही थी, आज उनसे पहली मुलाकात होगी ,,,फिर होगा क्या क्या पता क्या ख़बर,,,
मंदिर बहुत विशाल था । सामने एक बड़ा मुख्य द्वार था मैं किनारे पर टेक्सी से उतर कर मंदिर के मुख्यद्वार पर आ गया । मेरी नजरें उसे तलाश रही थी पर वो कहीँ नही दिख रही थी ।
मैं बेचैन था, मेरी नजर कभी कभी भगवान के द्वार की सीढ़ियों पर चली जाती मैं मन ही मन भगवान को प्रणाम भी करता जा रहा था कि सब ठीक हो ।

और फिर लंबे इंतज़ार के बाद वो मुझे दिखाई देने लगी । वो पैदल एक बैग लेकर मंदिर की ओर बढ़ रही थी । मेरी धड़कन तेज हो गई, वो हल्के पीले रंग के सूट में बहुत सुंदर लग रही थी। उसके बाल खुले हुए उसका कंधों पर यहाँ वहाँ बिखर हुए थे । उसके माथे पर एक बिंदी थी और भौहें बारीक थी,उसकी पुतलियां बड़ी ओर आकर्षक थीं । वो मेरे दिल की धड़कन बन गई थी । ट्रेन में सफर की वो रात और वो मुलाकात मेरे प्यार की आग बन गई थी इस आग की चिंगारी तो उस नॉवेल से शैल ने लगाई थी पर ये आग भड़कने को शायद पहले से तैयार थी । और इस आग में अब मैं जल रहा था, जिसके असहनीय ताप को यदि ठंडक कोई दे सकता था तो वो शैल ही थी । उसके चेहरे के सामने मुझे दुनिया की हर रौनक फीकी लगती ।
वो मेरे पास आ गई थी मैं उसे बस देखता रहा वो भी खामोशी से बस मुझे ही देख रही थी । हम एक दूसरे की आँखों में खो गए थे । कुछ देर के बाद ही दुनियादारी की याद आई कि यहाँ और भी लोग आ जा रहे हैं ,,,
मैंने उसे कहा हाय,, कैसी हो,,,
उसने कहा ,ठीक हूँ पर मुझे यकीन ही नही हो रहा है कि क्या ये सब सच है ,,,? आपको सामने देख कर मुझे जो खुशी मिल रही है उसे मैं शब्दों में बयां नही कर सकती ।
मैंने उससे कहा कि चलो पहले मंदिर में दर्शन करने चलें ।
हम सीढ़ियों से चलते हुए उस विशाल प्रांगण में पहुँचे । भीड़ थी, पर भगवान के दर्शन सबको आराम से हो रहे थे । हम भी लाइन में लग गए। धीरे धीरे हम दोनों आगे बढ़ते जा रहे थे । बीच बीच मे उसके हाथों का स्पर्श मेरे हाथों से हो जाता था और मुझे लगता कि मैं इन्हें अभी इसी वक्त अपने हाथों में लेकर देरतक चूमता रहूँ,,,
इन्ही ख्यालों के बीच मंदिर के उस सुंदर गर्भगृह में भगवान श्री कॄष्ण और श्री राधा जी की युगल मूर्ति देखकर मन भावुक हो गया ।
कैसी प्रेम की मूर्ति थी । करुणा,प्रेम और दया से भरी हुई उन आँखों से अपने भक्तों को निहार रही थी । देखकर लग रहा था कि प्रेम की सच्ची परिभाषा तो राधा जी और श्री कृष्ण के ह्रदय से प्रकट हुई थी । कितना अदभुद प्रेम था अपने लिए कुछ नही बस अपने प्रियतम और प्रिया लाल के लिए ही है,,,,

हम दोनो प्रार्थना करते हुए अपने प्यार की सफलता की कामना कर रहे थे,,,,