Udaan, prem sangharsh aur safalta ki kahaani - 11 in Hindi Love Stories by Bhupendra Kuldeep books and stories PDF | उड़ान, प्रेम संघर्ष और सफलता की कहानी - अध्याय -11

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उड़ान, प्रेम संघर्ष और सफलता की कहानी - अध्याय -11

पिता का देहावसन -

क्यों जी आप घर खरीदने का क्यों नहीं सोचते। एकात छोटा मोटा घर खरीद लेते। कब तक किराए के घर में रहेंगे ?
तुम ठीक कहती हो अनु खोजते है जब मिल जाएगा तो खरीद लेंगे। अभी तो तुम घर पर ही रहती हो तुम क्यों पढ़ाई नहीं करती ? तुम पी.एस.सी. की तैयारी करो ना ? अब तो बेटा भी पाँच साल का हो गया है। अब क्या दिक्कत है ? इतनी पढ़ी लिखी हो अनपढ़ जैसे घर में क्यों घुसी रहती हो। प्रथम बोला।
देखो जी, मुझे पढ़ने-वढ़ने का कोई मन नहीं है और आपको मेरे साथ जबरदस्ती करने की कोई जरूरत नहीं है। मै पीएससी के लायक तैयारी नहीं कर पाऊँगी।
अच्छा तुम कम से कम बी.एड के लिए तो अप्लाई कर दो।
देखो जी रेगुलर तो कर नहीं सकती, अगर डिस्टेंस से हो जाता है तो भले कर लूँगी।
वैसे तो ठीक बोल रही हो तुम। मैं पता करता हूँ अगर सुंदर लाल शर्मा से या इग्नू से आवेदन हो रहा होगा तो भर दूंगा।
प्रथम ने पता किया तो इग्नू का आवेदन चालू था। प्रथम ने वो अनु के लिए भर दिया। और आते वक्त थोड़ी किताबें खरीद लाया।
देखो मैंने तुम्हारा पहदवन का फार्म भर दिया है थोड़ी पढ़ाई कर लो तो आराम से निकल जाएगा।
पर आप नही पढ़ोगे ? अनु ने कहा।
अरे नही यार, मुझे मत बोलो तुम। मैने एक बार कह दिया ना कि मै नहीं कर पाऊँगा। हाँ तुम चेब की तैयारी करना चाहती हो तो बताओ। मैं किताबें लाकर दे देता हूँ। अच्छा सुनो शिक्षाकर्मी का आवेदन भी निकला है। तुम्हारा फार्म भर दूँ क्या ? इसी जिले का है अगर जॉब लगा तो कम से कम इसी जिले में मिलेगा। परिवार डिस्टर्ब नहीं होगा।
तो आप भी भर दो ना। अनु ने कहा।
हाँ ये तुम ठीक कह रही हो। शिक्षाकर्मी के लायक तो पढ़ सकते है। मै कल ही दोनो का फार्म भर देता हूँ।
ठीक है बाबू को घूमा कर ले आओ जाओ। अनु ने कहा
आ जा बेटा तुमको घुमा कर लाता हूँ। ये रोज रोज इसको घुमाने की आदत क्यों डलवा दी हो ? प्रथम बोला
ताकि मैं आराम से काम कर सकूं। अनु बोली ।
तो मुझे बलि का बकरा क्यों बनाती हो रोज इसको एक छोटा भाई या बहन क्यों नही दे देती।
यहीं से बेलन फेक कर मारूंगी। या तो बच्चा ले लो या तो पढ़ा लो। दोनो काम एक साथ कैसे करुँगी।
ठीक है आता हूँ फिर डिसकस करतें है।
वापस आने पर अनु ने पूछा कितनी तनख्वा होती है शिक्षाकर्मी की ?
यही कोई 6-7 हजार।
इतनी कम और ये शासकीय नौकरी है।
हाॅ जी ये शासकीय नौकरी है। थोड़ा सा भी पढ़ लोगी ना तो आराम से लग जाएगा। मुझे तो लग भी जाए तो ज्वाइन करने का कोई मतलब नहीं होगा क्योंकि उससे ज्यादा तनख्वा मिलती है।
परन्तु तुम्हारे लिए तो ठीक ही है कुछ नहीं से कुछ सही।
आप मेरी तैयारी कराओगे ?
बिलकुल करा दूँगा।
चलो ठीक है मै दिलाती हूँ कब है परीक्षा ?
आज से ठीक 2 महीने बाद। दो महीने मे क्या तैयारी कर पाऊँगी ?
अरे दो महीने बहुुत हैं अच्छे से पढ़ोगी तो अच्छी तैयारी हो जाएगी।
ठीक है कोशिश करती हूँ।
कोशिश क्या तुम्हारा तो हो ही जाएगा पहले भी तो तैयारी की हो तुम।
वो तो ऐसे ही पढ़ती थी कुछ मालूम भी नहीं था।
एक बार और ऐसे ही पढ़ लो शायद हो जाए। प्रथम बोला
ठीक है। अनु ने उत्तर दिया।
दूसरे दिन प्रथम ने ऑफिस से ही दोनो का फार्म भर दिया और शाम को आते वक्त कुछ और किताबें ले आया।
दो महीने की हल्की फुल्की तैयारी के बाद दोनो ने अपने-अपने विषय में शिक्षाकर्मी वर्ग 1 का एग्जाम दिलाया। दोनों का पेपर ठीक गया था।
दो महीने बाद रिजल्ट आया तो अनु का जिले में 18वा रैंक था तथा प्रथम का चैथा रैंक था।
प्रथम को काउॅसिलिंग के समय इतनी दूर में पोस्टिंग मिली तो उसका जाना लगभग असंभव था क्यों कि अनु को शहर के नजदीक ही पोस्टिंग मिली।
चलो तुम्हारा स्कूल देख आते हैं अनु फिर उसी के हिसाब से तुम्हारे गाड़ी देखेंगे। अगर बस रूट में हो तो अच्छा हो जाए टू व्हीलर खरीदने की जरूरत नहीं पड़गी।
मैं तो स्कूटी चलाती थी घर में इसलिए कोई दिक्कत नहीं है।
दोनों स्कूल गए और अनु को ज्वाइन करा कर आ गए। पर वो बस रूट में नहीं था इसलिए प्रथम ने एक सेकेण्ड हैंड स्कूटी खरीद ली।
अनु रोज स्कूटी से स्कूल जाती और प्रथम घर पर थोड़ा ज्यादा ध्यान देने लगा था।
अभी करीब छह महीने बीते थे कि एक दिन घर से फोन आया।
हेलो हाँ बेटा। प्रथम की माँ ने कहा।
हाँ माँ क्या हुआ ?
बेटा तुम्हारे पिता जी का एक्सीडेंट हो गया है।
कहाँ पर माँ ?
शहर के बाहर पेट्रोल पंप के पास एक कार ने पीछे से ठोकर मार दी है ।
तो पिता जी कैसे हैं ?
वो तो अचेत हैं ?
अभी कहाँ है?
मुझे तो कुछ समझ नही आया इसलिए जिला चिकित्सालय लेकर आई हूँ ।
अच्छा ठीक है कहां चोट लगी है ?
सिर में लगी है चोट ।
तो उसको रायपुर ले आओ। मैं भैया को फोन कर देता हूँ। वो हाॅस्पीटल में बात कर लेगें।
ठीक है माँ बोली।
तुम जिला चिकित्सालय के ऐबुलेंस से ही ले आना।
ठीक है बेटा।
प्रथम के पिता को रायपुर लाया गया। तत्काल सिर का आपरेशन करना पड़ा पर उनको होश नहीं आया। डॉ. ने बताया कि आपके पिता कोमा में चले गए हैं।
ये पूरे परिवार कि लिए शॉकिंग न्यूज थी।
कोई यकीन ही नहीं कर पा रहा था कि अब कितनी उम्मीद बची है।
सबने फिर भी उम्मीद लगाकर रखी थी कि शायद वो कोमा से बाहर आ जाए। सभी तरीके से आर्थिक, मानसिक, शारीरिक सब लोग टूट गए थे क्योंकि प्रथम के पिता करीब डेढ़ महीने तक कोमा में पड़े रहे।
अंततः उनका देहांत हो गया। प्रथम को इस बात का बेहद दुख था कि वो अंतिम समय में पिता से बात भी नहीं कर पाया था।
इस घटना ने उसके जीवन पर बहुत असर डाला। क्योंकि पिता उसको हमेशा संघर्षो के लिए प्रेरित करते थे वो जानते थे कि ये बच्चा अगर मेहनत करे तो जीवन में बड़ी सफलता अर्जित कर सकता है परन्तु अब भी प्रथम नही जाग पा रहा था।



मित्र का आगमन:-

हैलो, प्रथम
कौन ? प्रथम ने पूछा
हाॅ भाई मै जितेन्द्र बोल रहा हूँ।
ओ जितेन्द्र कैसा है भाई ?
यहाँ खड़ा हूँ बस स्टैंड के पास, दुर्ग आया हूँ।
तू कहाँ है ?
अरे तू दुर्ग आया है क्या, वहीं रूक मैं 10 मिनट के अंदर आ जाऊँगा।
अच्छा ठीक है मै रूकता हूँ तू आ जा।
प्रथम कॉलेज से निकला और बस स्टैंण्ड पहुँच गया।
आजा यार गले मिल ले, इतने साल बाद मिले हैं ?
कैसा है प्रथम ?
बढ़िया हूँ भाई तुम तो बड़े आदमी हो गए हो, यहाँ कैसे ?
बस यहीं पोस्टिंग मिली है दुर्ग एसडीएम।
अरे वाह ये तो बहुत अच्छी बात है। चल घर तुझे तेरी भाभी और बच्चे से मिलाता हूँ।
चलो पर ज्यादा देर नहीे रूक पाऊँगा भाई।
ठीक है अभी तो चल।
दोनों घर पहुंच गए।
नमस्ते भाभी। जितेन्द्र बोला।
नमस्ते भैया।
अनु ये मेरा बचपन का मित्र है जितेन्द्र। पीएससी 2005 बैच का डिप्टी कलेक्टर है। अभी दुर्ग एसडीएम बन के आ रहा है।
अरे वाह, बैठिए भैया। अनु बोली।
आप पीएससी टॉपर है भैया ? अनु पूछी
टॉपर तो नहीं हूँ भाभी सेकेण्ड नम्बर आया था। हाँ पर डिप्टी कलेक्टर का पोस्ट मिल गया था।
मैं तो इनको भी बोलती हूँ भैया तैयारी करने के लिए पर ये तो ध्यान ही नहीं देते।
ये ध्यान नहीं देता तो आप ही तैयारी कर लो भाभी। मेरे यहाँ मैडम भी तो तैयारी कर रही है। आप महिलाओं को तो प्रशासन में आना ही चाहिए। आप लोग ज्यादा बेहतर ढंग से शासन कर पाऐंगे। जितेन्द्र बोला।
आप मुझे भाभी से मिलाईएगा भैया अगर वो तैयारी कर रही होंगी तो मैं भी उन्हीं के साथ पढ़ लूंगी।
ठीक है भाभी मैं मिला दूंगा। मै एक दो दिन में यहाँ शिफ्ट हो जाऊँगा।
आप लोग बैठिए मै खाना परोसती हूँ।
चलो जितेन्द्र कम से कम तुम्हारे बोलने से अनु के ऊपर असर तो पड़ा। मैं उसके लिए फालतू आदमी हूँ मेरी बात को तो वो कभी सीरियसली नहीं लेती ।
ऐसी बात नहीं है प्रथम। तुमको भी साथ में तैयारी करनी चाहिए। याद करो मेरा परसेंट कभी भी तुमसे ज्यादा नहीं आया। मै तो हमेशा से एक ऐवरेज विद्यार्थी रहा हूँ उल्टा तुम तो बहुत बुद्धिमान हो। जितेन्द्र बोला।
क्या करूं जितेन्द्र। मेरे हालात बहुत मुश्किल से संभले है। इन पाँच सात सालों को मैंने सिर्फ संघर्ष में निकाल दिया।
अब कर लो तैयारी। देख भाई सरकारी नौकरी में तुझे स्थाईत्व मिलेगा समाज में स्थान मिलेगा और तेरा भविष्य भी सुरक्षित रहेगा। प्राईवेट नौकरी की क्या गारंटी है कब छुट जाए पता नहीं।
पर मेरी उम्र अब सरकारी नौकरी के लायक बची है क्या ?
यार विज्ञापन देखा कर। सभी सरकारी नौकरियों के लिए छ.ग. सरकार ने आयु सीमा चालीस कर दी है।
ये अच्छी बात है जितेन्द्र पर यार मेरी तो पढ़ने की हिम्मत नहीं होती।
एक बार पढ़ना चालू करेगा ना तो अपने आप इंटरेस्ट आ जाएगा भाई। अच्छा ठीक है तू मत पढ़ तू सिर्फ भाभी को पढ़ा। तू सारी तैयारी भाभी को करा और बाॅकी ऐसे ही अपने लिए भी फार्म भर दिया कर। मै सिर्फ पीएससी की बात नहीं कर रहा हूँ। छोटे से छोटे एक्जाम दिलाओ। जितेन्द्र बोला।
तभी अनु खाना ले आई।
भाभी आप बैठो। ये तो पता नहीं किस मूड में है मैं कितना समझा रहा हूँ पर पढ़ना ही नहीं चाहता। कम से कम आप तैयारी करो।
भैया मेरे पास भी बहुत कम समय बचता है ऐसे में कैसे करूँ तैयारी ? अनु बोली।
भाभी इसको बोलो ना, ये पढ़कर सुनाएगा आपको। आप खाना बनाते रहो, आप काम करते रहो, ये सुना देगा आपको पढ़कर।
ऐसे में हो पायेगा भैया तैयारी ? अनु पूछी।
बिल्कुल होगा। क्यों नहीं होगा। आप चालू तो करो।
बुक्स का क्या करूँ भैया?
कुछ नहीं किसी बड़े कोचिंग इस्टीट्यूट के नोट्स मंगा लो और उसी को पढ़ो।
ठीक है भैया एक बार कोशिश कर के देखती हूँ, हुआ तो ठीक नहीं तो मेरा क्या जा रहा है। नुकसान तो कुछ होना नहीं है। प्रथम जी, आप बड़े कोचिंग इस्टीट्यूट के नोट्स अरेंज करो। मैं धीरे-धीरे तैयारी करूँगी।
बिल्कुल प्रिये। तुम सलेक्ट हो जाओगी तब तो आनंद आ जाएगा।
क्या पता क्या लिखा है भाग्य में। अनु बोली।
ठीक है भाभी आप लोग और विचार कर लीजिए। मैं चलता हूँ। जितेन्द्र बोला।
ठीक है भैया आप लोग शिफ्ट हो जाइये फिर भाभी से आकर बात करूँगी। अनु बोली।
जितेन्द्र चला गया परन्तु एक गहरा विचार और आवेग छोड़ गया। प्रथम ने सोचा कि क्यों न अपने सपने को अपनी पत्नि से पूरा करें। उसके मन में उसने थोड़ी उत्कंठा भी देखी।
अनु तुम आराम से पी.एस.सी. निकाल लोगी अगर कोशिश करोगी।
चने के झाड़ पर चढ़ा रहे हो। अनु बोली।
अरे नहीं बाबा, मैं सच बोल रहा हूँ तुम्हारी याददास्त बहुत स्ट्रांग है। मुझसे भी ज्यादा। एक्चुअली मुझे याद रखने के लिए बार-बार पढ़ना पढ़ता है परन्तु तुम एक बार पढ़ लेती हो तो उसे याद रखती हो। मैं तुम्हारी तैयारी अवश्य करा दूँगा। बस एक शर्त है।
क्या ? अनु पूछी।
बड़ी अधिकरी बन जाओगी तो हमको भूल मत जाना।
इधर आओं जरा, नजदीक आओ न बताती हूँ आपको।
नहीं मैं दूर में ही ठीक हूँ। मुझे मालूम है नजदीक आने पर खतरा है। नहीं आऊँगा।
हाँ तो बोल क्यों रहे हो। चुपचाप मेरे साथ आप भी पढ़ना। समझ आया।
जी मैडम। समझ आ गया।
ठीक है जहाँ से भी हो बुक्स का अरेंजमैंट तुरंत करो। अनु बोली।
कुछ दिन बाद प्रथम रायपुर के एक बड़े कोचिंग संस्थान पाथ आई.ए.एस. अकाडेमी से नोट्स लेकर आ गया।
पाथ आई.ए.एस. कोचिंग के संचालक हामिद प्रथम के स्कूल के जूनियर थे और उनके साथ बिल्कुल परिवार जैसे संबंध थे। इसलिए वहाँ से सभी प्रकार के नोट्स मिल गए।
उन्होंने फोन करके कहा भी - भाभी आप तैयारी करिए और किसी भी प्रकार के सहयोग के लिए निश्चित रहिए।
अनु और उत्साहित हो गई। उसने तैयारी चालू की।
हाँ तो मैडम कहाँ से शुरूआत करनी है ?
इतिहास और क्या ?
इतिहास से चालू करो। अच्छा ठीक है मैं देखता हूँ पिछले पेपर में इतिहास से कितने प्रश्न आये थे। यार आठ से दस प्रश्न आये हैं।
अच्छा सिलेबस निकाल के देख लो क्या-क्या है और कहाँ-कहाँ से कितना आया है।
ठीक है सिंधु घाटी सभ्यता से एक ही प्रश्न आया है। मुगल काल से ज्यादा लगभग चार प्रश्न।
हाँ तो बस इसी तरीके से छाँट लो, क्या-क्या पढ़ना है। अनु बोली।
मुझे नहीं पढ़ना है मैडम आपको पढ़ाना है। मैं अकेले ही पढ़ते रहा तो तुम कैसे करोगी।
आ जाओ यही किचन में पढ़-पढ़ के सुनाना।
चलो। पढ़कर सुनाता हूँ।
दोनो किचन में चले गए। प्रथम जोर-जोर से पढ़ता था और अनु सुनते रहती थी। धीरे-धीरे करके प्रथम को भी इंटरेस्ट आने लगा और वह सोचने लगा, सही तो है सरकारी नौकरी प्राइवेट नौकरी से ज्यादा स्थाई समाधान है और वैसे भी मेरे पिता हमेशा चाहते थे कि मैं किसी अच्छे सरकारी नौकरी में जाऊँ। दोनो का अगर अच्छा जॉब लग जाय तो कम से कम अस्थाई जिंदगी से छुटकारा मिलेगा।
इस तरह से दोनो जोर-शोर से तैयारी करने लगे। प्रथम ने पी.एस.सी. का फार्म भरा और अनु के साथ तैयारी करने में जुट गया।
दोनो एक साथ पी.एस.सी. - प्रारंभिक की परीक्षा दिलाए। दोनो खुश थे कि प्रारंभिक परीक्षा में उन्होंने अच्छा परफार्म किया है। दो महीने पश्चात एक दिन प्रारंभिक परीक्षा का परिणाम आया प्रथम ने चेक किया उसमें दोनो के रोल नम्बर नहीं थे।
दोनो निराश हो गए।
क्या हुआ अनु तुम चुप हो ? प्रथम ने पूछा।
कुछ नहीं इतनी मेहनत किये, कहाँ चूक हुई कुछ समझ में नहीं आया।
चलता है अनु जीवन में उतार चढ़ाव तो लगा रहता है इससे भी घोर निराशाओं का तुमने सामना किया है।
नहीं पढूंगी जाओं अब मैं। हटा दो सब किताबों को अब मेरे सामने से। मुझे इनको देखना भी नहीं है।
ऐसा क्यॅू बोलती हो। एक बार में सफलता नहीं मिली तो क्या हुआ फिर पढ़ना, फिर दिलाना, हो सकता है अगली बार निकल जाए, और तुमको निराश होने की तो और जरूरत नहीं है तुम तो पहले से ही शासकीय नौकरी में हो। आज नहीं तो कल तुम्हारा संविलियन होगा तो वैसे भी राजपत्रित अधिकारी बन जाओगी।
अरे यार मैं नहीं निकाल सकती बोली ना। आप मुझे मत बोलो अब तैयारी करने के लिए। अच्छा मेरा सोचो तुम। मैं कॉलेज में सबको बता डाला हूँ कि मै पीएससी की तैयारी कर रहा हूँ अब क्या मुँह दिखाऊँगा ?
हाँ तो क्यों होशियारी मारे हो आप । अब जाओ बताओ सबको ।
जितेन्द्र को बता देता हूँ वो बेचारा कितना मनोबल बढ़ाता है हमारा। प्रथम बोला।
हेलो जितेन्द्र ।
हाँ भाई क्या हुआ ? जितेन्द्र पूछां ।
कुछ नहीं यार दोनो का नहीं हुआ ।
अरे कैसे ?
समझ में नहीं आया यार।
देखो एक बार बैठ कर एनालईज करो कि तुमने ज्यादा सवाल अटेम्प्ट तो नहीं कर दिए हैं क्योंकि गलत होने पर माइनस मार्केटिंग होती है और कट ऑफ तक नहीं पहुंच सकते। बनाओ उतना ही जितना कट ऑफ के आस पास हो और सवाल कम गलत हो। तब थोड़ी संभावना बनती है।
भाई इसी को पहले नहीं बता सकता था। प्रथम बोला ।
मैने 65 बना दिया था और अनु ने 70।
देखो यार इंसान अपनी गलतियों से ही सीखता है। जितेन्द्र बोला
और कुछ बता ?
और ये कि मै तुम लोगो को बोलता था छोटे छोटे एक्जाम दिलाओ । ओर उसमे पहले सफलता अर्जित करना सीखों। उससे क्या होगा कि तुम लोग माइनस मार्केटिंग से कैसे संभलना है सीख जाओगे।
हाँ तुम सही बोल रहे हो भाई सिर्फ पढ़ लेने से कुछ नही होने वाला। सही योजना और सही तकनीक से परीक्षा की तैयारी करनी होगी। प्रथम बोला
सिर्फ तैयारी नहीं प्रथम। एक्जाम हॉल के अंदर भी पेपर दिलाते समय तकनीक का ज्ञान आवश्यक है ।
मतलब ?
मतलब थ्योरी ऑफ़ रिजेक्शन। जितेन्द्र बोला
ये क्या होता है भाई ?
इसका मतलब ये है कि जब तू सही आप्शन चुनने की कोशिश करता है तो उसमें कौन सा उत्तर सही नहीं हो सकता पहले ये निकालने आना चाहिए। अगर ये निकालने आ गया तो उत्तर के सही होने की प्रत्याशा (संभावना) बढ़ जाएगी।
अच्छा ये तो भारी तकनीक का खेल है भाई। प्रथम बोला
हाँ, परीक्षा का एक निश्चित पैटर्न होता है भाई ,और बनाने का एक सिस्टेमैटिक तरीका। अगर ये दोनो तुम्हारे समझ में आ गया तो परीक्षा आसानी से निकाल लोगे। याद रखना परीक्षा निकालने के लिए बुद्धिमान होना उतना आवश्यक नही है जितना सही तकनीक से सही दिशा मे मेहनत करना।
थोड़ा थोड़ा समझ में आ रहा है। प्रथम बोला
हाँ तो सबसे पहले ये कर कि पिछले सालों के प्रश्न पत्र से प्रश्न निकाल ले कहाँ से कितना आया। उसी हिसाब से फिर किताबें खरीद और वही वही पढ़ जिसके आने की संभावना है।
ठीक बात है ये सब मै अनु को भी समझाता हूँ।
थैंक्स भाई तुमने बहुत मद्द की।
थैंक्स की काई बात नही प्रथम। तुम दोनो सक्षम हो एक्जाम निकालने लिए बस सही दिशा मे मेहनत करो। याद करो कि मैं जीवन भर एक ऐवरेज सामान्य रहा हूँ और तुम हमेशा टाॅपर रहे हो। इसलिए तुम तो मुझसे बेहतर कर सकते हो।
जितेन्द्र ने कहा।
प्रथम थोड़े जोश में आ गया और अनु को समझाने की कोशिश किया। पर अनु उल्टा और गुस्से मे आ गई और बोली।
आज ही फेल हुई हूँ मैं और फिर पढ़ने बोल रहे हो।
प्रिये मै पढ़ने नहीं बोल रहा हूँ सिर्फ तकनीक बता रहा हूँ।
मुझे नही सुनना है कुछ, आप जाओ यहाँ से।
अनु अभी सामान्य नही हो पा रही थी क्योंकि मेहनत तो बहुत की थी उसने पर ज्ञान नहीं था कि मेहनत करनी कैसे है। प्रथम ने सोचा कि दो चार दिन में उसे सामान्य होने देता हूँ फिर बात करूंगा।
दो तीन दिन बीत जाने के बाद प्रथम ने उससे बात की तो वो फिर से परीक्षा देने के लिए तैयार हो गई।