अगले भाग मै हमें देखा की आरव 5 वीं कक्षा मैं अव्वल आये थे फिर तो उनके माता पिता को लगा की उनका बेटा एक ना एक दिन ज़रूर बड़ा बनेगा | ऐसा गर्व था फिर आरव भी दिन भर पुरे पढ़ाई मैं ही व्यस्त रहता था और आरव को वही बहुत पसंद था | वो कोई दूसरे क्लास मैं या कही और जाना नहीं चाहता था बस उसे ध्यान से और एकाग्रता से ही उनका काम करता था | क्यूंकि उन्हों ने 5 वीं कक्षा मैं ही ठान लिया था की मैं भी ऐसा कुछ करूंगा | फिर फिर तो वो पुरे दिन ऐसे ही पढ़ाई के बारे मैं सोचता था | ऐसे ही दिन बीत गए फिर वक़्त के साथ साथ आरव ने एक एक कक्षा मैं अच्छी तरह से पढ़ाई की और वो भी पुरे लगन के साथ.. आरव को पढ़ाई मैं दिलचस्पी थी | फिर आरव 9 वीं कक्षा तक पहुँच गया और तब तो वो समजदार भी थोड़ा बन गया और घर मैं उनकी सारी परिस्थितियाँ कैसी है वो भी अच्छी तरह से पहचान लेता था | फिर भी उसने काफ़ी चीज के बिना भी उन्होने हर स्थान को पार करके आगे ही आगे बढ़ता जा रहा था | उन्हों ने 9 वीं कक्षा मैं प्रवेश किया तब उनके मास्टर जी ने कहा की आरव तुम्हे ऐसे ही मेहनत करनी होगी और पहले जिस तरह को अपने काम किया था ठीक इसी तरह आगे भी तुम्हारा विश्वास मत डगाना और आरव को भी ये बात सही तरीके से दिमाग़ मे ले ली | आरव अच्छा भी था और उसने पहले से ही इज्जत करना ही सीखा था |फिर तो वक़्त बीतता गया और आरव ने 9वीं कक्षा मे भी 70% के साथ वो उत्तीर्ण हुआ |
3 महीने बाद.....,,
9 वीं कक्षा के बाद आरव 10 वीं कक्षा की और बढ़ चूका था | सभी उनके आसपास के जितने भी लोग रहते थे | वो भी कहते थे अब तो बोर्ड की परीक्षा भी होगी और ऐसे ही बेवजह बाते बनाने लगते थे क्यूंकि उन्हें पता लग गया था आरव के माता पिता के बारे मैं की उन्हों ने 10 तक ही पढ़ाई नहीं की | और ऐसी बाते हो रही थी तब आरव भी वहा मौजूद था तब उनके मित्र की माँ ने कहा की आरव की 10 वीं कक्षा है फिर आरव ने ये सुनकर कहा की अगर पढ़ना ही है तो 10 वीं और 12 वीं कक्षा ही क्यों ना हो? हमें मेहनत ऐसी बनानी चाहिए की लोग भी सोचे की इनको डराना बहुत मुश्किल है... | ऐसे करके सभी आरव की माँ को सुनाते रहते थे | पर यहाँ मेरे हिसाब से कहु तो माँ - बाप के पढ़ने या ना पढ़ने मैं कोई चीज मायने नहीं रखती पर उनके लिए तो सिर्फ और सिर्फ उनका बच्चा आगे बढे और उनकी इज्जत करे और सम्मान करे | वही देखने का मन करता है और ऐसे ही अपेक्षा रखते है | वो भी ऐक उनके बेटे के लिए सम्मान की बात है अगर जो उनका बेटा समजे तब !!
आरव की माँ ने तो सिर्फ बोलना और सहनशीलता ही सीखी थी | उनको पढ़ना लिखना नहीं आता था फिर भी उन्हों ने आरव को पूरी तरह से हिम्मत और साहस करने का हर वक़्त मैं साथ दिया | आरव को भी उनके सभी गुण सिखाती थी की कब कैसे रहना चाहिए | किस तरह की बात लोगो के सामने बोलनी चाहिए? वही सब कुछ सिखाया था |
फिर ऐसे ही वक़्त बीतता गया और आरव का पढ़ना भी शुरू होने वाला था | कुछ दिन की छुट्टी मिली हुई थी पर आरव को छुट्टी पसंद नहीं थी वो कुछ ना कुछ पढ़ाई के बारे मैं ही सोचता रहता था | ज़ब रविवार की छुट्टी होती थी तब वो अपने मित्र के साथ पढ़ाई करता था और उसमे उनका लक्ष्य को ध्यान मैं रखकर ही आगे बढ़ना चाहता था | आरव की पढ़ाई मैं शुरू होने का 4 दिन शेष था | ऐसे मैं आरव ka जन्मदिन आने वाला था | उनके जन्मदिन की बहुत ख़ुशी होती थी और इंतज़ार भी ऐसे करता था की वो अपने जन्मदिन की दिनांक ऐक के बाद ऐक गिनते ही रहते थे |
2 दिन बाद... |
आरव का जन्मदिन आ गया और उसे खुशी बहुत थी और सबसे पहले उनके माँ और पिता के चरणों मैं वंदन किया और आशीर्वाद ले कर उनके जन्मदिन की शुरुआत हुई | बहुत ख़ुशी से उनका जन्मदिन की शुरुआत हुई और माँ पापा के चरण छू कर बोला उनसे बड़ी मेरे लिए अमूल्य भेट क्या हो शक्त्ति है मेरे लिए आपका आशीर्वाद ही एक भेट से भी कही ज़्यादा है |
आरव के जन्मदिन के पूरा होने मैं बहुत वक़्त था सोचो ऐसा क्या हुआ होगा की आरव के जीवन मैं इतनी खुशियाँ वापस आयी ?
वो देखने के लिए मिलेंगे भाग : 3 के साथ....
- Honey Lakhlani