karm path par - 55 in Hindi Fiction Stories by Ashish Kumar Trivedi books and stories PDF | कर्म पथ पर - 55

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कर्म पथ पर - 55




कर्म पथ पर
Chapter 55


रात के नौ बज रहे थे। स्टीफन और माधुरी डिनर करने के बाद अपने घर के छोटे से बगीचे में टहल रहे थे। स्टीफन ने पूँछा,
"अपनी पढ़ाई कर रही हो ना ? अब तुम्हें डॉक्टर बनने के हिसाब से पढ़ाई करनी है। मैंने तुम्हें बायोलॉजी की किताब लाकर दी थी। पढ़ा उसे ?"
"हाँ पढ़ा... कुछ नोट्स भी बनाए हैं।"
"गुड.... अगर कोई मदद चाहिए तो बताना।"
"बिल्कुल...आप ही तो मेरे टीचर हैं।"
"तो फिर याद रखना... मैं बहुत सख्त टीचर हूँ।"
स्टीफन की बात सुनकर माधुरी हंसने लगी। तभी रामरती दूध का गिलास लेकर आई। उसे देखते ही माधुरी ने उसे इशारा कर जाने को कहा। रामरती समझ गई कि दूध पीना नहीं चाहती है। इधर दो एक दिन से माधुरी ऐसा ही कर रही थी। रामरती उसके इशारे को अनदेखा कर स्टीफन के सामने जाकर खड़ी हो गई। गिलास उसकी तरफ बढ़ा कर बोली,
"आप इन्हें दूध पिलाओ। आजकल बड़ी आनाकानी कर रही हैं।"
स्टीफन ने माधुरी की तरफ देखा। वह मुंह बनाए खड़ी थी। माधुरी बोली,
"दूध पीना अच्छा नहीं लग रहा है।"
"दूध पीना तुम्हारे लिए ज़रूरी है।"
रामरती ने समझाते हुए कहा,
"आजकल अपने साथ बच्चे के लिए भी खाना है।"
स्टीफन ने गिलास माधुरी को पकड़ाते हुए कहा,
"यस...अब इसे चुपचाप पी जाओ।"
कोई चारा ना देख कर माधुरी बगीचे में लगे झूले पर बैठ गई। उसने जैसे तैसे मुंह बनाते हुए दूध का गिलास खत्म किया। रामरती गिलास लेकर अंदर चली गई। स्टीफन माधुरी के बगल में बैठ गया।
"रिमेंबर.... तुम्हें एक अच्छी माँ और एक अच्छी डॉक्टर बनना है।"
माधुरी अभी भी मुंह बनाए हुए थी। स्टीफन ने कहा,
"क्या बात है ? ऐसे मुंह क्यों बनाए हो ?"
माधुरी को अचानक उल्टी जैसी महसूस हो रही थी। उसने स्टीफन को बताया। स्टीफन उसे बागीचे में बनी नाली के पास ले गया। माधुरी ने उल्टी की। उसे कुछ हल्का महसूस हुआ। स्टीफन पानी लेकर आया। उसे कुल्ला करा कर झूले में बैठा दिया। रामरती पानी लेकर आई और नाली में डाल कर सफाई कर दी।
कुछ मिनटों में माधुरी पूरी तरह से ठीक हो गई। उसने स्टीफन से कहा,
"इसलिए ही दूध पीने से मना कर रही थी। मेरा पेट भरा हुआ था।"
स्टीफन ने कान पकड़ कर कहा,
"सॉरी... गलती हो गई। चलो अब अंदर चल कर आराम करो। वैसे भी यहाँ ठंड सी लग रही है।"
माधुरी रामरती के साथ अंदर चली गई। स्टीफन बगीचे की बत्ती बुझाकर और मेन डोर बंद करने के बाद अंदर गया।
जब वह कमरे में पहुँचा तो माधुरी बिस्तर पर लेटी थी। स्टीफन ने प्यार से हाथ फेर कर पूँछा,
"अब तबीयत ठीक है ?"
"हाँ ठीक है।"
"मैं बैठक में कुछ देर पढूँगा। तुम सो जाओ।"
स्टीफन ने बत्ती बुझाई। दरवाज़ा बंद कर बैठक में जाकर बैठ गया। इन दिनों ‌वह रामायण का अंग्रेज़ी अनुवाद पढ़ रहा था। वह पुस्तक लेकर बैठने जा रहा था कि रामरती ने आकर पूँछा,
"साहब... कुछ चाहिए ?"
"नहीं मुझे कुछ नहीं चाहिए।"
रामरती भी अपने कमरे में जाकर सो गई।

चादर ओढ़े एक आदमी स्टीफन के घर के पास चक्कर लगा रहा था। वह चारदीवारी के किनारे किनारे चल रहा था। उसे ऐसी जगह की तलाश थी जहाँ से भीतर घुसा जा सके। वह मकान के पिछले हिस्से में पहुँचा। एक स्थान पर खड़े होकर वह ध्यान से देखने लगा। दीवार के पास एक नीम का पेड़ था।
उस आदमी ने अपनी चादर उतार कर वहीं रख दी। वह नीम के पेड़ पर चढ़ने लगा। ऊपर पहुँच कर उसने अंदर झांक कर देखा। यहाँ एक दो पौधे लगे थे। बाकी खाली था। उसने थोड़ा और आगे झुक कर झांका। दीवार के पास कुछ नहीं था। वह दीवार से कूद कर भीतर जा सकता था।
वह किशोर अवस्था से ही चोरी के धंधे में था। उसके लिए दीवार कूदना कोई बड़ी बात नहीं थी। पर जो हथियार उसकी कमर में बंधा था। उसे चलाने का उसके पास अधिक अनुभव नहीं था। कुछ क्षणों तक वह पेड़ पर बैठा रहा। फिर मन पक्का कर वह पेड़ से दीवार पर चढ़ा। नीचे देखा और अंदर कूद गया।‌
स्टीफन को पढ़ते हुए ऐसा लगा कि जैसे उसने कोई आवाज़ सुनी हो। जैसे कोई ऊपर से कूदा हो। वह इस आवाज़ को नज़रंदाज़ नहीं कर सकता था। बनारस में उसने एक आदमी को अपना पीछा करते हुए देखा था। इसलिए वह गोरखपुर आ गया था। यहाँ आने के बाद से उसे ऐसा कुछ लगा तो नहीं था। लेकिन एक डर उसके मन में था। इस आवाज़ ने उसे बढ़ा दिया था।
चोर धीरे से उठा। दबे पांव वह आगे बढ़ा। मकान के पिछले हिस्से में कोई बात्ती नहीं जल रही थी। उसे लगा कि सब सो रहे हैं। वह ध्यान से देख रहा था कि शायद कोई खिड़की खुली हो। जिसके ज़रिए वह अंदर जा सके। पर ठंड शुरू हो गई थी। इसलिए सारी खिड़कियां बंद थीं। वह सावधानी से आगे बढ़ रहा था। आगे के हिस्से में एक कमरे में बत्ती जल रही थी।
चोर सावधान हो गया। तभी उसे ऐसा लगा कि जैसे कोई दरवाज़ा खोल रहा है। वह दीवार से एकदम चिपक कर खड़ा हो गया। उसने अपनी कमर में बंधे फेंटे में से पिस्तौल निकाल ली। उसे खबर थी कि घर में केवल तीन जन हैं। उनमें सिर्फ एक मर्द है। दो औरतों में एक वृद्ध नौकरानी है। दूसरी जवान है।
स्टीफन ने दरवाज़ा खोल कर धीरे से बाहर झांका। उसने बगीचे की बत्ती जलाई। फिर सावधानी से मकान के पिछले हिस्से की तरफ बढ़ा। वह जानता था कि आवाज़ पिछले हिस्से से ही आई है।‌ इसलिए सधे कदमों से पूरा एहतियात बरतते हुए आगे बढ़ रहा था।
चोर पिस्तौल निकाल कर पूरी तरह तैयार था। वह जानता था कि घर से बाहर मर्द ही आया होगा। उसे निपटा देने का मतलब उसका आधा काम हो जाएगा। उसे आगे बढ़ते हुए पुरुष की आकृति दिखाई पड़ी।
स्टीफन को भी लगा कि जैसे कोई दीवार से चिपक कर खड़ा है। वह चिल्लाया,
"कौन है वहाँ ?"
चोर तैयार या। उसने सामने से पिस्तौल चलाई। लेकिन निशाना चूक गया। गोली स्टीफन की बांह में घुस गई। स्टीफन लड़खड़ा गया। पर खतरे को भांप कर वह अपनी परवाह किए बिना अंदर की तरफ भागा।
चोर भी उसकी तरफ लपका। स्टीफन जल्दी से अंदर घुस गया और दरवाज़ा बंद कर लिया। स्टीफन को बहुत दर्द हो रहा था। खून बह रहा था पर किसी चीज़ की परवाह किए बिना वह माधुरी के पास भागा।
गोली की आवाज़ से माधुरी की नींद‌ टूट गई। वह उठकर बैठ गई। उसका दिल तेज़ी से धड़क रहा था। स्टीफन का खयाल आते ही वह दरवाज़ा खोल कर बाहर आई। उसने स्टीफन को अपनी ओर आते देखा। वह भाग कर उसके पास गई। पर उसकी चीख निकल गई। स्टीफन ने उसे चुप कराया। माधुरी घबराई हुई थी। समझ नहीं पा रही थी कि क्या हुआ।
"स्टीफन ये खून कैसे निकल रहा है। गोली की आवाज़ सुनाई पड़ी मुझे।"
रामरती भी अपने कमरे से भागती हुई आई और स्टीफन की हालत देखकर डर गई‌। स्टीफन ने दोनों से शांत रहने को कहा। उसने बताया कि खतरा है। माधुरी पुलिस को फोन करे।
माधुरी बैठक में गई। उसने रिसीवर उठाया। पर लाइन डेड थी। वह भाग कर स्टीफन के पास आई और उसे बताया। स्टीफन समझ गया कि एक योजना के तहत उसकी लाइन काट दी गई है। उसे भयंकर खतरे का एहसास हो गया था।
माधुरी फर्स्ट एड बॉक्स के लिए जाने लगी। स्टीफन का खून बह रहा था। उसे बेहोशी सी लग रही थी। अपने आप पर नियंत्रण ‌रखना कठिन हो रहा था। उसने उसका हाथ पकड़ लिया। वह बोला,
"हम पर बड़ा खतरा है। मैं बेहोश हो रहा हूँ। पर तुमको अपने आप को बचाना होगा।"
स्टीफन ने रामरती से कहा,
"अम्मा माधुरी और बच्चे की ज़िम्मेदारी तुम पर है।‌ इन दोनों को बचा लेना।"
स्टीफन की बात सुनकर माधुरी रोने लगी। रामरती ने उसे समझाया कि यह वक्त रोने का नहीं है। उसे हिम्मत से काम लेना होगा।
स्टीफन ने एक बार माधुरी की तरफ देखा। उसकी आँखों में कुछ ना कर पाने की लाचारी थी। उसने टूटती हुई आवाज़ में कहा,
"ब.. बच्चे...को...ब..चा...लेना।"
यह कह कर स्टीफन बेहोश हो गया।