Badi Pratima - 10 - last part in Hindi Moral Stories by Sudha Trivedi books and stories PDF | बडी प्रतिमा - 10 - अंतिम भाग

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बडी प्रतिमा - 10 - अंतिम भाग

बडी प्रतिमा

(10.)

अगली शाम विभा पिछवाडे की नल पर बैठी कपडे धो रही थी। उसी समय गीतू बागीचों की ओर जाती दिखी। फजली सर या किसी ने भी किसी को यह नहीं बताया था कि असली चोर पकडा गया है। पर फिर भी गीतू कल से ही उतरा मुंह लिए इधर उधर घूम रही थी। उसे आज सुबह आॅफिस में भी बुलाया गया था। विभा ने आवाज देकर गीतू को बुलाया – “गीतू ! इधर आना जरा । चादर निचोडने में मेरी मदद कर दो प्लीज ।”

गीतू धीरे धीरे उसके पास आई । कुछ सर की बातों से और कुछ अपनी समझ से अब तक वह समझ चुकी थी कि विभा ने ही उसे ट्रैप में लिया था। फिर भी इस समय विभा के सिवा उसे और ऐसा कोई नहीं दिख रहा था, जो उसकी मदद कर पाए। वह जान-बूझकर ही इस ओर आई थी। चादर को एक सिरे से पकडकर निचोडने में मदद करती हुई वह बोली – “ विभा दीदी ! आप सर से बात कीजिए न ! मुझे घर से क्लास करने आने दें। अब और दो ही महीने रह गए हैं । मुझे ट्रेनिंग पूरी करने दें। और मेरे रिकाॅर्ड में भी न लिखें। मैं धीरे-धीरे करके अंजना के पैसे सब वापस कर दूंगी।”

विभा उसके चेहरे की मासूमियत को देख रही थी। इतना सब हो जाने के बाद भी उसके चेहरे को देखकर यह विश्वास करना कठिन हो रहा था कि वह चोर है। आज सुबह विभा को बुलाकर फजली सर ने सारी बात बताई थी। उसी समय जयलक्ष्मी जी टुप्प से बोल पडी थीं – “इसके पिता भी इसकी मां को सपोर्ट नहीं करते न ! पूरी दुनिया को अपनी हेडमास्टरी दिखाती है, और अपनी लडकी को चोर बना दिया। मैं पूछती हूं, जब यह दो हजार रुपए खर्च कर रही थी, तब उसने पूछा क्यों नहीं कि पैसे कहां से आए ? ”

जयलक्ष्मी जी के अपने इतने किस्से थे, मगर दूसरी औरतों पर कीचड उछालने की उनकी तत्परता मौके की तलाश में ही रहती थी ! उन्होंने गीतू की मां को बुलाकर अच्छी सुनाई भी थी और टीसी लेकर जाने को कह दिया था। फजली सर ने ही उन्हें रविवार को आने को कहा। उनका मानना था कि यदि अभी तुरंत भेज दिया तो उसके चोर होने की बात तुरंत उजागर हो जाएगी। कैरियर तो उसका यूं ही तबाह हो रहा था, अब यदि चोरी की बात फैल गई तो उस कुंवारी लडकी के ब्याह में भी दिक्कतें आएंगी।

अभी विभा ने सुबह की वही सब बातें सोचते हुए गीतू से पूछा – “ क्या सर ने टी सी लेने को कहा है? गीतू ने हां में सिर हिलाया। उसके चेहरे पर तो कोई विकृति नहीं आई, पर उसकी बडी बडी आंखों से आंसू ढर ढर बहने लगे।”

“अच्छा, मैं बात करूंगी। तुम चुप हो जाओ।”

उसके हाथ से निचुडी हुई चादर लेकर विभा बोली ।

गीतू धीरे धीरे वहां से चली गई। उसी शाम फजली सर से उनके घर जाकर मिलकर विभा ने नीतू को डे बाॅर्डर के रूप में प्रशिक्षण पूरी करने देने की प्रार्थना की । सर ने उसे क्लास करने की अनुमति तो नहीं दी, हां, टी सी नहीं देने की बात मान गए । इम्तिहान को केवल एक महीने रह गए थे। उससे अपनी सारी परियोजना रिपोर्ट आदि जमा करने को कहकर उसे इम्तिहान लिखने की अनुमति दे दी।

गीतू की मां ने अपने एक भाई को भेजकर गीतू को बुलवा लिया। वह यह कहकर सबसे गले मिलकर चली गई कि उसकी मां की तबीयत बहुत खराब हो जाने के कारण वह सीधा परीक्षा देने आएगी । इम्तिहान देने की अनुमति मिलने और बदनामी न होने के बाद से गीतू की वही सहज मुस्कान वापस लौट आई थी। मगर अपनी बेतरह तलाशी होने के दिन से ही बडी प्रतिमा अब बेहद गुमसुम रहने लगी थीं।

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