Jo Ghar Funke Apna - 50 in Hindi Comedy stories by Arunendra Nath Verma books and stories PDF | जो घर फूंके अपना - 50 - ज़िंदगी भर नहीं भूलेगी वो

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जो घर फूंके अपना - 50 - ज़िंदगी भर नहीं भूलेगी वो

जो घर फूंके अपना

50

ज़िंदगी भर नहीं भूलेगी वो ---

शाम को ठीक सात बजे मैं वोल्गा रेस्तरां में दाखिल हुआ तो एक नीची टेबुल के सामने सोफे में धंसे हुए अशोक सक्सेना दिखे. पर वे अकेले नहीं थे. उनके साथ एक महिला और एक बीस बाईस वर्षीया लडकी भी थी. महिला अधेड़ थीं, संभ्रांत परिवार की, सौम्य मुखमुद्रा वाली. चेहरे से सुनहले फ्रेम का चश्मा उतारकर रुमाल से साफ़ कर रही थीं. लडकी पहली नज़र में मुझे बहुत सुन्दर लगी पर ये कबूल करता हूँ कि आज की तरह ही उन दिनों भी मुझे हर जवान लडकी बहुत सुन्दर लगा करती थी. रूसी सुन्दरी लीना के अतिरिक्त कम दूरी से सिर्फ एक और लडकी को देखा था. पर वो तो लडकी नहीं, गणितज्ञ निकली थी. रही बात उन सब लड़कियों की जिनकी फ़ोटोज़ मेरे पास पसंद करने के लिए भेजी गयी थीं. अब उनमे से किसकी शकल याद रहती. जिस गाँव जाना ही न हो उसका रास्ता याद रखने से क्या फायदा. पर वोल्गा रेस्तरां में सक्सेना की बगल में बैठी ये लडकी सुन्दर थी इसमें कोई शक नहीं था. आश्चर्य इस बात का था कि उसने साडी पहन रखी थी. मुझे दाल में कुछ काला लगा. अगर सक्सेना के साथ उसकी बहन या जो भी कुछ वह लगती हो सिर्फ संयोगवश आई थी तो उसका साडी पहन कर आना असाधारण अवश्य था वरना उसे शलवार सूट या अन्य किसी अनौपचारिक परिधान में होना चाहिए था. उसकी शोख लाल रंग की सारी पर सफ़ेद और पीली, गोल गोल,रूपये के सिक्के की साइज़ की बिंदियाँ बनी हुई थीं. घने बाल चुटिया में गुंथे हुए थे जो उसके कन्धों से सामने की ओर लटक रही थी. दुबली तो थी पर मरियल नहीं, तन्वंगी थी. आँखों में चमक थी और चेहरे पर एक शरारत भरी हुई मुस्कान.

सक्सेना ने सोफे से आधा उठते हुए मुझसे हाथ मिलाया और अपने साथ आई महिला का परिचय कराया. वे उसकी मौसी जी थीं और साथ में थी उनकी बेटी रत्ना. वे दोनों इलाहाबाद से आई थीं किसी रिश्तेदार के यहाँ शादी में सम्मिलित होने के लिए. मैंने हाथ जोड़ कर दोनों को नमस्ते की और उसके बाद लगातार कोशिश करता रहा कि नज़र सिर्फ सक्सेना पर जमाये रखूँ. पर नज़र थी कि फिसल फिसल कर रत्ना के ऊपर आ जाती थी. लडकियां इस स्थिति को तुरंत भांप लेती हैं. ये लडकी भी अपवाद नहीं थी. उसने मेरी नमस्ते के उत्तर में बेहद प्यारी सी मुस्कान देते हुए हाथ जोड़ दिए थे पर उसकी आँखों में जो चमक थी उसने मुझे बता दिया था कि उसने मेरे मन को एक क्षण में पढ़ लिया था.

अशोक ने कहा “भाई वर्मा साहेब, आपसे हैदराबाद में बड़ी अजीब सी स्थिति में मुलाक़ात हुई थी. बाद में एक पार्टी में आपके भाई साहेब से भी मुलाक़ात हो गयी. मैंने उस दिन की घटना बतायी तो खूब हंसी हुई. फिर उन्हें बताया कि मेरा सरकारी काम से दिल्ली आना रहता है तो उन्होंने आपका पता दिया. इसी लिए इस बार आना हुआ तो सोचा आपसे भी मिल लूं. मैं यहाँ सिर्फ दो दिनों के लिए आया हूँ. आपके साथ आज शाम का प्रोग्राम बन जाने के बाद पता चला कि मौसी जी और रत्ना भी संयोग से यहाँ आये हुए थे. ये लोग डिफेन्स कोलोनी में रत्ना के चाचाजी के यहाँ ठहरे हैं. मैंने इनको भी यहीं बुला लिया. दोनों जगह अलग अलग जाना तो संभव नहीं हो पाता. ” मेरे अन्दर से आवाज़ आई “ किसको बेवकूफ बना रहे हो पुलिस कप्तान साहेब. क्या मैं इतना भी नहीं समझता कि ये सब रत्ना और उनकी मम्मी जी से मिलवाने के बहाने हैं”

ये संभव था कि मेरी इस सोच के पीछे बिल्ली को ख्वाब में भी छीछड़े ही दिखने वाली बात हो पर जैसे ही मैंने अपने अन्दर से आती ये आवाज़ सुनी मैं खुशी से फूला नहीं समाया. कम से कम इसका ख़तरा तो दूर हुआ कि ये सज्जन उस दिन राष्ट्रपति महोदय की फ्लाईट से सम्बंधित गड़बड़ी की तहकीकात कर रहे थे. मन से एक भारी बोझ हट गया. उस पर से बोनस के रूप में इतनी सुन्दर खुशमिजाज़ लडकी से मुलाक़ात हो गयी.

फिर तो मैं खुश होकर, चहक चहक कर, उन लोगों के साथ गप्पें मारने लगा. रत्ना इलाहाबाद विश्वविद्यालय से राजनीतिशास्त्र में एम ए कर रही थी. उसकी आँखों में वह संकोच और शर्मीलापन था जो मुझे दिल्ली की लड़कियों में कम ही दिखता था पर वह एक अच्छी यूनिवर्सिटी में पढ़ रही थी और संकुचित मानसिकता का शिकार नहीं थी. उसके पूरे व्यक्तित्व में सहजता थी. वायुसेना के बारे में बहुत से सवाल उसके पास थे. उन दिनों बाक्स ऑफिस पर “आराधना” फिल्म की सफलता ने तहलका मचा रखा था. फिल्म में राजेश खन्ना वायुसेना के पाइलट का किरदार निभाता है. मेरे लिए इससे ज़्यादा खुशी की बात क्या हो सकती थी कि फिल्म में उसका नाम था फ्लाईट लेफ्टिनेंट अरुण वर्मा. आराधना फिल्म देखने के बाद मैं अक्सर शीशे के सामने खड़े होकर बजाय अपनी शकल देखने के, इस कल्पना में खो जाता था कि शर्मिला टैगोर से मिलती जुलती शकल वाली कोई सुन्दरी मेरे कन्धों पर सर टिकाये खडी है और मैं उससे पूछ रहा हूँ “ बागों में बहार है? आज इत्तवार है?” तभी बाथरूम के बाहर खड़े मेरे अर्दली की बेसुरी आवाज़ आती थी ‘’ सर जी, आज सोमवार है, आपको देर हो रही है. ” और मेरा सपना भंग हो जाता था. पर इस समय तो मेरे सामने बैठी वह ताज़े फूल सी खिली हुई लडकी बहुत सारे सवाल कर रही थी.

बातो बातों में सक्सेना ने ये भी बताया कि रत्ना बहुत अच्छा गाती थी. ज़रूर गाती होगी. आवाज़ जो इतनी मीठी थी. पर उस रेस्तरां में ये आग्रह किया नहीं जा सकता था कि कोई गीत गुनगुना डाले. संगीत की बात चली तो बड़े स्वाभाविक ढंग से बात आराधना फिल्म पर आ गयी जिसका संगीत भी ज़बरदस्त हिट हो रहा था. उसके सवालों से ज़ाहिर था कि आराधना फिल्म ने और कुछ किया चाहे न किया पर इतनी सुन्दर सुन्दर लड़कियों में एयर फ़ोर्स अफसरों के प्रति कुछ आकर्षण तो पैदा कर ही दिया था. अपनी चाय के कप में चीनी डालकर उसे चम्मच से घोलते हुए, कुछ शर्माते हुए, रत्ना ने कहा “ एयर फ़ोर्स अफसर की वर्दी में राजेश खन्ना कितना हेंडसम और स्मार्ट लगता है न?” मैं सोच ही रहा था कि उत्तर में राजेश खन्ना जैसी पलकें झुका लेने वाली अदा दिखाऊँ कि उसने बड़ी मासूमियत से अगला सवाल पूछ डाला “क्या एयर फ़ोर्स में सेलेक्शन के लिए मेडिकली फिट होने के अतिरिक्त हैण्डसम होना भी ज़रूरी है?”

मैं चौंका. लगा कि शायद ऐसे सवाल पूछ कर मेरी टांग खींच रही थी. उसका खटमिट्ठा चुलबुलापन कितना आकर्षक था. तभी उसने चुटकी लेते हुए एक जुमला और जड़ दिया “फिल्मो में पुलिस वाले सारी दुनिया को सिर्फ सताते हुए दीखते हैं, पर फौज वालों को हमेशा पोजिटिव रोल्स में ही देखा है मैंने. देखें किसी फिल्म में फ़ौजी अफसर को विलेन का रोल कब मिलता है”

“अरे भाई, विलेन की बात क्यूँ कर रही हो. वायुसेना के अफसर के आगे तो फ़िल्मी हीरो भी पानी भरते हैं. ” अशोक ने हंसते हुए कहा, फिर शिकायत की “बड़े खुशकिस्मत होते हैं ये फौजवाले. फिल्मो में कहाँ हम पुलिसवालों की इमेज और कहाँ इन फौजी अफसरों की”

मैंने रत्ना का दिल टटोलने के इरादे से पूछा “आपका क्या ख्याल है रत्ना जी?”पर वह बड़ी चतुर निकली. बोली “फ़िल्मी इमेज की क्या बात करें. फिल्मवाले तो जिसे चाहें तीसमार खान बना दें. ”

मुझे उसकी हर बात में समझदारी की झलक मिल रही थी. सक्सेना ने इस खूबसूरत क्षण को तभी एक हथौड़ा छाप बात कह कर चकनाचूर कर दिया. बोला “ भाई, अपनी रत्ना को तो सबसे ज़्यादा बड़े तीसमार खान लोग आई ए एस में दीखते हैं. ” और इस बात पर एक तरफ जहां मौसीजी हंस पडीं और अशोक ने ठहाका लगाया तो दूसरी तरफ रत्ना के गाल शर्म से लाल हो गए.

अशोक की तरफ देखकर प्रतिरोध में उसने कहा “ क्या, भाई साहेब, आप भी न!”

उसने बात पूरी नहीं की पर मेरे लिए तुषारापात, भूचाल, दुर्घटना, सब आ गए. संकेत स्पष्ट था कि रत्ना की या तो किसी आई ए एस लड़के से दोस्ती थी या शादी तय हो चुकी थी. मेरा उत्साह एकदम से ठंढा पड गया. पहले तो अशोक सक्सेना पर गुस्सा आया कि जब उसे ये बात मालूम थी तो अपनी इस बहन और मौसी जी को यहाँ बुलाने की क्या ज़रुरत थी. पर तुरंत ध्यान आया कि उसने तो पहले ही बता दिया था कि सिर्फ समय की कमी के कारण उसने मुझसे और इन दोनों से एक साथ मिलने का प्रोग्राम बना लिया था. अब हर अविवाहित लडकी के संपर्क में आते ही मुझे इश्क और शादी के ख्वाब आने लग जाएँ तो उसमे बेचारे सक्सेना का क्या दोष. बहरहाल जब गाडी एक बार पटरी से उतर गयी तो दुबारा वापस पटरी पर आकर भी उसमे वह चाल नहीं आ पायी. हम लोग थोड़ी देर ही और वहाँ बैठे. कुछ पेस्ट्री वगैरह और आयी. मैंने रत्ना से ज्यादा बातें नहीं कीं. सक्सेना से ही कुछ और औपचारिक बातें करता रहा. इतनी चोट पहुंचाने के बाद वह शाम अधिक लम्बी नहीं खिंच सकी. बाद में पालम लौटते हुए मैंने चैन की सांस ली कि कम से कम सक्सेना ने उस राष्ट्रपति जी की उड़ान को लेकर कोई सवाल नहीं किये थे. ‘हरेक रंज में राहत है आदमी के लिए’ गुनगुनाते हुए मैं वापस मेस में आकर सो गया. उन दिनों कोई ना कोई लडकी सपनो में आ ही जाया करती थी. उस रात सपने में जो लडकी आयी वह. हंस हंस कर मुझे चिढाती रही ये कहकर कि उसे तो आई ए एस लड़के पसंद थे.

क्रमशः ----------