anokha chidiyaghar in Hindi Children Stories by Kusum Agarwal books and stories PDF | अनोखा चिड़ियाघर

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अनोखा चिड़ियाघर


छुट्टियों दिन थे। रिंकू के चचेरे भाई बहन मीनू-चीनू भी उनके घर आए हुए थे।


उस दिन रिंकू ने अपने पापा से कहा- पापा, बहुत दिन हो गए हम कहीं घूमने नहीं गए। हमारी छुट्टियाँ हैं। यदि हम सारा दिन घर पर बिताएँगे तो हमारा ध्यान केवल टी.वी या मोबाइल में ही रहेगा। प्लीज, आप हमें कहीं घुमाने ले चलो ना।


इस पर मीनू-चीनू भी बोले- हां, हां चाचा जी। हमें कहीं घुमाने ले चलो ना। अभी मौसम भी बहुत अच्छा है- वसंत ऋतु। ना अधिक सर्दी ना गर्मी‌। बड़ा मजा आएगा।


रिंकू के पापा- शर्मा जी को बच्चों की बात माननी पड़ी और उन्होंने कहा- ठीक है ले चलूंगा। पर फिर वे सोच में पड़ गए कि आखिर जाएँ तो कहाँ जाएँ?


कुछ सोच कर उन्होंने कहा- ठीक है बच्चों, कल मैं तुम्हें एक अनोखे चिड़ियाघर ले चलूँगा। हम सुबह जल्दी ही चलेंगे ताकि भीड़ कम हो। पर अभी रात हो गई है। तुम समय से सो जाओ ताकि कल जल्दी उठ सको।


- ठीक है हम सो जाते हैं। यह कहकर तीनों बच्चे सोने चले गए।


यूँ तो चिड़ियाघर जाने के नाम से सभी खुश थे परंतु रिंकू सबसे ज्यादा था क्योंकि उसे प्रकृति से बहुत प्रेम था और तरह-तरह के पशु-पक्षी देखने का बहुत शौक था।


- पापा कल हमें किसी खास चिड़ियाघर में ले जाएंगे।- यह सोचते-सोचते वह सो गया।


- पापा देखो हम सब तैयार हैं। रिंकू ने कहा। पापा ने देखा- सभी बच्चे तैयार थे। सभी ने स्पोर्टस शूज पहन रखे थे तथा आरामदायक कपड़े भी ताकि घूमने-फिरने में आसानी हो। अपने साथ कुछ खाने-पीने का सामान लेकर, वे सब जल्दी ही चिड़ियाघर के लिए निकल गए।


चिड़ियाघर के बाहर टिकट लेने के लिए लाइन लगी हुई थी। शर्मा जी ने लाइन में लगकर चार टिकट ले लिए तथा फिर वे चिड़ियाघर में प्रवेश कर गए।


कुछ दूर जाने के बाद जब एक ओर नजर पड़ी तो शर्मा जी ने कहा- वह देखो बच्चों, हाथी। दो हाथी हैं। शायद एक नर और एक मादा। चलो, पास चल कर देखते हैं। यह कहकर शर्मा जी बच्चों को लेकर उधर गए जहाँ हाथी थे। बच्चे कुछ देर तो एकटक हाथियों को देखते रहे परंतु कुछ ही देर बाद उन्हें एहसास हो गया कि ये हाथी जिंदा नहीं हैं। वे तो पुतले मात्र हैं।


यह देखकर सबसे पहले रिंकू चिल्लाया- पापा, ये हाथी तो नकली हैं। ये ना तो अपने कान या सूँड हिला रहे हैं, ना ही चल-फिर रहे हैं ये मुझे बिल्कुल अच्छे नहीं लग रहे।


- हां चाचाजी, ये तो नकली हैं। चीनू-मीनू ने भी कहा।


- ठीक है हम आगे बढ़ते हैं। -शर्मा जी ने कहा और वे उस और गए जहाँ बाघ आदि के पिंजरे थे। एक पिंजरे में दो बाघ बैठे थे।


- वह देखो बच्चों। पिंजरे में देखो। दो बाघ हैं। बच्चों ने उन बाघों को ध्यान से देखा। वे भी स्थिर थे। उनमें कोई हलचल नहीं थी।


- चाचाजी, ये बाघ भी नकली हैं। मुझे लगता है ये मिट्टी के बने हैं। चलो कोई दूसरा पशु देखते हैं। यह कहकर वे सब उधर गए जहाँ एक बाड़े में हिरण बंद थे।


परंतु यह क्या? वे हिरण भी नकली थे- मिट्टी के बने हुए। बच्चों ने दौड़-दौड़ कर इधर-उधर जाकर अन्य कई पशु भी देखे परंतु यह देखकर वे हैरान हो गए कि पूरा चिड़ियाघर नकली पशु-पक्षियों से भरा हुआ था। किसी में कोई हलचल नहीं थी। ना कोई चिंघाड़ने की आवाज, ना कोई गुर्राहट ना चहचहाहट। वे मायूस हो गए।


तब रिंकू शर्मा जी का हाथ पकड़कर बोला- पापा, आप हमें यह कैसे चिड़ियाघर में लाए हो? यह तो बेकार है। आप तो कह रहे थे कि मैं तुम्हें अनोखे चिड़ियाघर में लेकर जाऊंगा।


- यह अनोखा ही तो है क्योंकि इस चिड़ियाघर में एक भी पशु-पक्षी जीवित नहीं है, केवल उनके मॉडल हैं। जानते हो यह हमारे देश के भविष्य का चिड़ियाघरों का नमूना है। अब भविष्य में बच्चों को ऐसे ही चिड़ियाघर देखने को मिलेंगे।


- मगर क्यों चाचाजी? मीनू ने पूछा।


इस पर शर्मा जी गंभीर होकर बोले- क्योंकि हम लोग अपने पर्यावरण की रक्षा नहीं कर रहे हैं। हम दिनों दिन जंगलों को काट रहे हैं जो पशु-पक्षियों का घर होते हैं। हम माँस का सेवन करते हैं और जिसके कारण बहुत से पशु-पक्षियों को मार दिया जाता है। यदि ऐसी ही हालत रही तो वह दिन दूर नहीं जब कोई भी पशु-पक्षी जीवित नहीं बचेगा। यदि वे जीवित नहीं बचेंगे तो फिर आने वाली पीढ़ी उन्हें कैसे देख पाएगी? ऐसी स्थिति में बच्चों को विलुप्त पशु-पक्षियों की जानकारी देने के लिए ऐसे मॉडल चिड़ियाघर ही तो बनाने पड़ेंगे।


- वैसे ही जैसे हम डायनासोर का मॉडल देखकर उसके बारे में जानते-समझते हैं। है ना पापा?


- हां वैसे ही।


शर्मा जी की बात सुनकर बच्चे चिंता में पड़ गए। कुछ दिनों पहले उनके प्रिंसीपल सर ने भी यही बात समझाई थी।


चूंकि रिंकू को पशु-पक्षियों से विशेष प्रेम था इसलिए सबसे पहले वह बोला- पापा मैं प्रामिस करता हूं कि मैं खूब पेड़ लगाऊंगा तथा सभी पशु-पक्षियों से प्रेम करूँगा तथा जहाँ तक हो सकेगा मांसाहार नहीं करूँगा।


-चाचाजी, हम भी- चीनू-मीनू भी बोले।


- पापा, फिर तो हमारे पशु-पक्षी नहीं मरेंगे ना। नहीं मरेंगे ना, नहीं मरेंगे ना। कहकर रिंकू पापा का हाथ जोर-जोर से हिलाने लगा।


- अरे क्या हुआ? कौन नहीं मरेगा? अब उठ भी जा। ना जाने क्या बड़बड़ा रहा है? मम्मी जो रिंकू को जगाने आई थी, अपना हाथ छुड़ाते हुए बोली।

रिंकू हड़बड़ा कर उठा और बोला- मम्मी, मैंने एक भयानक सपना देखा मगर मैं वह सच नहीं होने दूँगा। देखना, हमारे भविष्य के चिड़ियाघर भी अभी की भाँति पशु-पक्षियों की आवाजों से गुंजायमान रहेंगे।


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