dharti ka swarg in Hindi Motivational Stories by Minal Vegad books and stories PDF | धरती का स्वर्ग।

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धरती का स्वर्ग।

"माँ तुम मेरा रिपोर्ट कार्ड देखो मैंने बहुत अच्छे नंबर पाए हैं।" कीशन अपना परिणाम बड़ी खुशी से अपनी माँ को दिखाते बोला।
"नहीं माँ, पहले मेेेेरा देेेेखोंं। मुुझे तो भैया से भी अच्छे नंंबर मिले हैं।" छोटा माधव भी अपना परीणाम सबसे पहले माँ को दिखाने के लिए उतावला था।
माँ तो अपने दोनों बेटों को प्यार से देखने लगी। उसके लिये तो दोनों बेटे एकसमान थे इसलिए दोनों के हाथ से रीपोर्ट कार्ड लेते हुए बोली,
"में तुम्हारे दोनों के रिपोर्ट कार्ड साथ में ही देख लेती हूँ, तबतक तुम दोनों खीर खालों। मैंने कब से तुम दोनों के लिए तुम्हारी मनपसंद खीर बना के रखी है।
खीर..... खीर... करते दोनों भाई खुश होते हुए दोडते रसोई घर में गये। दोनों बेटों को एसे खुश देखकर सरीता के होठों पे भी मुस्कान आ गयी।
सरीता के दो बेटे थे। बडा कीशन तेरह साल का था और छोटा माधव नौ साल का था। जब माधव दो साल का था तभी सरीता के पति की वो जहाँ काम करते उस फेक्टरी में एक अकस्मात में मोत हो गई थी। उसके पति के मोत के बाद घर की और बच्चों की सारी जिम्मेदारी सरीता पे आ गयी थी। फेक्टरी के मालिक ने कुछ भी मदद करने से मना कर दिया था। सरीता ने आसपास के घरों में काम करना शुरू कर दिया। और अपने घर का गुजारा करने लगी। सरीता चाहती थी कि उसके दोनों बच्चे पढ लिखकर बडे और सज्जन आदमी बने। उसके दोनों बच्चे अच्छी शाला में पढ शके इसके लिए सरीता पूरा दिन दुसरो के घर पे काम करती। और कड़ी मेहनत करके बच्चों की हर ख्वाहिश पूरी करती।
रात्रि का समय था। माँ अपने दोनों बेटों को सुला रही थी तभी छोटा माधव कुछ गंभीर सोच में डुबा हुआ था। थोड़ी देर बाद उस सोच में से बहार निकल कर माधव बोला,
" देखना माँ, में बडा होकर इंजीनियर बनूंगा। फिर एक बडे शहर में बडा सा बंगला लूगां एकदम बडे महल जैसा। उसमें कई सारे नौकर काम करते होगे। और आप भी मेरे साथ उसी बंगलो में रहेगी। फिर आपको कोई काम करने की आवश्यकता नहीं रहेगी।"
माँ तो माधव की बात सुनके खुश हो गयी। हर माँ चाहती है की उसके बेटे के सारे सपने सच हो। सरीता को और भी अच्छा लगा क्यूकी इतनी कम उम्र में भी माधव को अपनी माँ की फिक्र थी।
" माँ तेरे साथ क्यों रहेगी? में बडा हु इसीलिये माँ मेरे साथ ही रहेगी। " किशन छोटे माधव की बात सुनकर बोल पडा़।
" आप बडे है तो क्या हुआ? , पर माँ मेरे साथ ही रहेगी। " माधव तो अपनी बात पे अडा था।
" नहीं माँ मेरे साथ ही रहेगी।"किशन भी माधव से बहस करने लगा।
दोनों बेटों को एसे अपने लिए लडते देख सरीता मन ही मन खुश होती हुए दोनों को समझाते हुए बोली,
" बस बस मेरे प्यारे बच्चों, तुम दोनों बडे होके जुदा क्यों रहोगे? तुम दोनों बडे होके भी एसे ही साथ रहोगे और में भी तुम दोनों के साथ ही रहूगी।तो अब लड़ाई बंद करके दोनों सो जाओ। "
ये बात ठीक है कहकर दोनों भाई सो गए और सरीता उन दोनों को देखती रही। सरीता नई पीढ़ी की कडवी हकीकत जानती थी। उसने कितने बूढ़े माँ- बाप को अपने बच्चे से बात करने के लिए तरसता देखा था। पर बच्चे तो बड़े होके अपनी दुनिया में खो जाते हैं। और माँ बाप को वृद्धाश्रम या अकेले ही तड़पने के लिए छोड़ जाते हैं। पर सरीता ने सिर हिला कर एसी बेहुदा बातें मन से निकाल दी, आगे जाकर जो भी हो पर सरीता अभी तो ये पल में ही खुश थी।
*

कीशन बारवीं पास करके काम पे लग गया। वो आगे पढना चाहता था पर उसने देखा कि माँ से अब ज्यादा काम होता नहीं था और माधव हमेशा पढाई में अव्वल था और वो इंजीनीयर बनना चाहता था। घर के बड़े बेटे होने के नाते घर की जिम्मेदारी किशन ने उठा ली थी।
माधव की नौकरी गाँव से दूर एक बडे शहर में लगी थी। और माधव ने शादी करके वही अपना घर बसा लीया था। सरीता गाँव में ही किशन के साथ रहती थी। छुट्टियों में माधव अपनी माँ से और भाई से मिलने आया करता था। सरीता अपने दोनो बेटे की तरक्की देख के बहुत खुश थी। और दिल से दुआएँ देती की दोनों बेटों का घर संसार एसे ही हमेशा खुश रहे।

*
कुछ साल एसे ही बित गए। सब अपने अपने घर परिवार के साथ खुश थे। पर अपनी माँ को लेके कीशन और माधव दोनों के बीच कई बार लड़ाई झगड़े हो चुके थे। सरीता की आयु अब पचहत्तर पार कर चुकी थी। अब उनसे अपने आप को संभाल ना भी मुश्किल हो रहा था। अब कीशन के हाल भी कुछ एसे थे।कीशन की तबियत भी अब नरम गरम रहने लगी थी। उसे अस्थमा की बिमारी हो चुकी थी। माधव तो शहर में अपने परिवार के साथ एकदम खुशी से अपना जीवन व्यतीत कर रहा था। पर माँ को लेके दोनों के बीच कइ बार बोला चाली के बाद आखिर बात कोर्ट तक पहुँच ही गय।

कीशन और माधव अपनी माँ को लेकर परिवार के साथ कोर्ट पहुँच चुके थे। अब सिर्फ जज साहब के आने का इंतजार था। जज साहब आ गये और केस की फाईल हाथ में ली। फाईल को देख कर और केस की विगत जानके जज साहब की आखें फटी की फटी रह गई। उनहोंने कभी नहीं सोचा था कि ऐसा भी केस कभी आ सकता है। उनकी इतने सालों की प्रेक्टिस में ना तो उन्होंने एसा केस देखा था, ना एसे केस के बारे में सुना था।

केस माधव ने अपने बडे भाई के खिलाफ र्दज कीया था।
बात कुछ यूँ थी कि, माधव माँ को अपने साथ रखना चाहता था। पर कीशन भी अपनी बात पे अडा था। उसने माधव को साफ मना कर दिया था। उसने कह दिया था कि माँ तो उसके साथ ही रहेगी।
माधव ने कई बार अपने भैया को समझाने की कोशिश की थी,
"कि आपकी तबियत भी अब कुछ ठीक नहीं रहती इसलिए माँ का खयाल में रखूगा।"
"नहीं, जब तक में जिंदा हु तब तक माँ का खयाल में ही रखुगा।अपने स्वर्ग को अपने से केसे मे दुर कर सकता हूँ।" कीशन ने अपने स्वर्ग समान माँ को अपने से दूर करने से साफ मना कर दिया था।
" भैया, तो अब मुझे भी मौका दो ताकि मैं भी स्वर्ग में जीने का आनंद पा शकु।" माधव अपने भैया को समझाने की कोशिश कर रहा था।
" नहीं, मेने एक बार मना कर दिया। नहीं मतलब नहीं। " कीशन समझने के लिए तैयार ही नहीं था।
माधव ने कई बार कोशिश की थी पर कीशन मानने के लिए तैयार ही नहीं था इसलिए माधव को कोर्ट का सहारा लेना पडा था।
जज साहब ने केस की पुरी जानकारी प्राप्त करने और सबको सुनने के बाद ये सुझाव दिया कि, "दोनों भाई 15-15 दिनों अपनी माँ को रखेंगे। " पर ये फैसला दोनों भाई को मंजूर नही था। इसलिए जज साहब ने सरीता देवी से पूछा कि वो किसके साथ रहना चाहती है?
सरीता देवी ने कहा उनके लिए तो दोनों बेटों समान थे वो केसे किसी एक को चून सकती है। उसने कहा जज साहब जो फैसला लेगे वो उनको मंजूर रहेगा।
जज साहब ने सारी विगत प्राप्त करते हुए आखरी फैसला लिया कि,
"कीशनजी की तबियत को ध्यान में रखते हुए कोर्ट उनकी माता सरीतादेवी की जिम्मेदारी अब उनके छोटे बेटे माधव को सौपती है।"
कोर्ट का फैसला सुनके कीशन रो पड़ा। ना चाहते हुए भी अब उनको अपने स्वर्ग से दूर होना ही पड़ेगा। माधव ने तो कई बार कहा था शहर आकर उनके साथ रहने के लिए पर कीशन शहर में रहना नहीं चाहता था।
सरीतादेवी तो अपने आप को धन्य समझने लगी। मन ही मन भगवान का आभार मानते हुए कहने लगी भगवान सबको एसे बेटे दे।
जज साहब की आखें भीनी हो चुकी थी ये दृश्य देख के, साथ ही साथ कोर्ट में उपस्थित सारे लोगों के आखों में भी आंसू आ गये थे।
जज साहब ने केस की फाईल को बंद करते हुए कहा कि,
" अगर दो भाईओ में कभी अपने माँ बाप को लेकर लड़ाई झगड़ा हो तो ऐसा झगड़ा होना चाहिए। सभी बेटे कीशन और माधव की तरह सोचने लगे तो माँ के चरणों में ही सच्चा स्वर्ग मिल जाएगा। "
धरती का स्वर्ग............ "माँ"!!!



Thank you
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