Pata Ek Khoye Hue Khajane Ka - 11 in Hindi Adventure Stories by harshad solanki books and stories PDF | पता, एक खोये हुए खज़ाने का - 11

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पता, एक खोये हुए खज़ाने का - 11

पर सेठ के लड़के को यह कहाँ पता था, कि उसने इस तरह वापस पलट कर बहुत बड़ी गलती कर दी थी! जैसे वह पलता नहीं था! उसके नसीब ने ही पलती मारी थी. उसका यह निर्णय सारे काफिले का नसीब ही बदल देने वाला था.
सेठ का लड़का पीछे लौटा. बाकी के जहाज आगे बढ़े. पर चार पांच घड़ी क्या बीती होगी की आगे से जानेपहचाने जहाज़ो का काफिला आते देखा. वह काफिला हम से एक दिन आगे पर ही निकला था. उससे पता चला की आगे लुटेरों ने धावा किया है और वें वहां से भागकर आ रहे हैं. सब गभराए. हमारे कुछ जहाज़ों पर भी तोपें थी, पर वे लुटेरे की तोपों के आगे टिकने वाली नहीं थी. इसलिए सभी जहाज़ो को वापस मोड़ा गया.
जब हम लौट रहे थे तब हमने कुछ आदमियों को डूबते देखा. वे लकड़ी या किसी और सहारे तैर रहे थे. हम लोगों ने उसे बचाया. जब हमने देखा तो वे आदमी हमारे ही थे. उन लोगों ने बताया कि जब वे सेठ के लड़के के साथ वापस लौट रहे थे तब साथ सफर करने वाले व्यापारी के जहाज जो पीछे छुट गए थे, उन्हें आते देखा. वे जहाज हमारे पास आने लगे. सेठ के लड़के ने समझा की हमें वापस मुड़ता देख मामले का पता लगाने के लिए आते होंगे. इसलिए उन्होंने भी आने दिया. उन पर आदमी भी जानेपहचाने ही थे. पर वे जैसे पास आए, की तुरंत ही उसमे से बहुत से छिपकर बैठे लुटेरे निकल कर हमारे जहाज पर कूद पड़े. और देखते ही देखते जहाज पर कब्जा कर लिया. उन्होंने आते ही मारकाट मचा दी. वे सेठ के लड़के से काफिले के दूसरे जहाज और खज़ाने का पता पूछ रहे थे. फिर क्यूँ कर सेठ के लड़के को भी मार दिया. कुछ नौकरों को बंदी बना लिया. जो बचे हुए थे वे जान बचाकर पानी में कूद पड़े. थोड़ी ही देर में वहां लुटेरों के अन्य जहाज भी आ पहुँचे. सब जहाज मिलकर अब आगे गए हैं. सायद वे आप लोगों के पीछे ही गए हैं.
उनकी बात सुनकर सब दर गए. मालिक ने पूछा की सेठ के लड़के की औरत और बच्चे का क्या हुआ?
इनके उत्तर में उन्होंने बताया कि उनका कुछ पता नहीं चला.
मालिक ने तुरंत एक वफादार आदमी को पूरे काफिले का जिम्मा दे, और उसे कुछ कहकर खुद एक छोटा जहाज ले कर औरत बच्चे की खोज में लौट पड़े. हमारा काफिला फिर दूसरे रास्ते पर चल पड़ा.
चार दिन पर मालिक भी आ पहुँचे. वे बहुत दुखी थे. उसने बताया कि सेठ के लड़के वाला जहाज लावारिस भटकता हुआ मिला. पर बच्चे औरत का पता नहीं. और बाकी के नौकरों की भी लाशें पड़ी मिली. तुरंत ही कुछ जहाज को अलग अलग बन्दर पर सेठ के बहु बच्चे की खोज में भेजा गया. उसके बाद हम अमेरिका की और निकल गए.
उस वक्त मालिक भी बहुत बीमार पड़ गए थे. साथ गए नौकरों ने बताया की जब से बच्चा औरत लापता है तब से मालिक ने रोटी पेट में डाली नहीं है. सब ने मालिक को कुछ खाने के लिए बहुत कहा. मैंने भी बहुत बिनती की. पर मालिक राजी ही नहीं हुए. वह कहता था अब कौन सा मुंह लेकर देश जाऊँ. सेठ को क्या मुंह दिखाऊ. सेठ का लड़का बच्चा मरा, समझो मैं भी मर गया. मेरे बालबच्चे अनाथ हो गए. फिर मैंने भी खाना छोड़ दिया. तब जा के चार दिन पर मालिक ने रोटी खाई.
जब हम केरेबियन सागर में हो कर अमेरिका की और जा रहे थे, तब रास्ते में एक नौका को डूबते पाया. उसके यात्रियों को हमने बचाया. वह नौका किसी खड़क के साथ टकरा गई थी. उसमे एक आर्थर नाम के आदमी का परिवार भी था. जिसमे मारिया नाम की लड़की थी. मालिक ने बाद में उस आदमी से बात कहकर मारिया से मेरी शादी करवा दी. और यह डेविड आर्थर का ही छोटा भाई था. तब उसको भी हमने डूबते हुए बचाया था.
जब हम उन सब को जेन्गा बेट पर छोड़ने के लिए आये, तब मालिक ने मुझे यहाँ रहने को कहा. आर्थर से कहकर घर और मछली पकड़ने की नाव भी दिलवा दी. मैं छोटा था, इसलिए मुझे भी उसके हवाले किया. मालिक फिर यह कहकर निकल गए कि सेठ के बहु बच्चे के पीछे जाऊँगा. उसे किसी भी तरह धुंध निकालूँगा. मैं भी मालिक के साथ रहना चाहता था, पर मालिक राजी न हुए. तब से मैं यहाँ रह रहा हूँ. मैंने आर्थर की मदद से मछली पकड़ना शुरू कर दिया. इससे मेरी घर गृहस्थी भी चलने लगी.
आठ दस माह के अंतराल पर मालिक फिर आ पहुँचे. अब तो वे बहुत बीमार हो चुके थे. उसे सेठ के बहु बच्चे का कोई पता नहीं मिला था. उनके साथ सिर्फ दो नौकर थे. बाकी के नौकरों को उसने थोड़ा थोड़ा धन देकर बिदा कर दिया था.
उस रात हम सब बैठे थे. आर्थर और उनका भाई डेविड भी था. मालिक ने आर्थर को कहा कि कुछ ख़ास बात करनी है. मालिक की बात सुनकर आर्थर ने अपने भाई को बाहर भेजा. और दरवाजा बंध कर दिया.
तब मालिक ने आर्थर को मेरे लिए थोड़े पैसे और कुछ सोने चांदी के सिक्के सौंपे. कहा की मुझे जरूरत पड़े तो दें. और मुझे एक तस्वीर देते हुए कहा कि इसे संभालकर रखना. मेरे घर से परबत या कोई आएगा. उसे ये तस्वीर देना. मैंने अपने बाल बच्चे के लिए कुछ धन बचाकर छिपाया है. मैंने उसकी चाबी और इस तस्वीर का एक हिस्सा मेरे घर भिजवाया है. दोनों को मिलाने से पता मिल जाएगा.
तभी बारी का पलड़ा जरा हिला. आर्थर ने देखा तो डेविड था. वह छिपकर हमारी बातें सुन रहा था. उसने सारा सामान देखने के लिए बारी का पलड़ा जरा खोला था. आर्थर ने उसे दांत कर भगा दिया. सायद तभी से वह इस भेद को जान गया था. फिर तो मालिक की बात भी खत्म हो गई थी इसलिए आर्थर भी अपने घर लौटे. और हम सोने चले.
पर दूसरी सुबह मालिक ने निराला पा कर असली और नकली तस्वीर पहचानने का तरीका मुझे बताया. तस्वीर के दूसरे भेद भी बताए. बहुत कुछ मुझे समझाया भी.
एक दो हफ्ता रुकने के बाद मालिक जाने लगे. पर मैंने और आर्थर ने रोका. कहा कि अभी आप की तबियत ठीक नहीं है; थोड़े दिन और रुक जाओ; जब तबियत भली हो जाए तो चले जाना. उनके दोनों नौकरों ने भी यही बात उसे समझाई. इसलिए मालिक रुक गए. वे नौकरों का भी कोई वारिस न था, तो वे भी मालिक के साथ ही रुक गए.
मालिक की तबियत भी दिन ब दिन बिगड़ती ही जा रही थी. डाक्टर को भी दिखाया; दवाई से थोड़ा ठीक रहता था; पर कभी मालिक भले चंगे न हुए. वे कई बार जाने की बात करने लगते, पर मैंने उसे इस हालत में कभी जाने न दिया. क्यूंकि वह सेठ के बहु बच्चे के बिना घर तो जाना ही नहीं चाहते थे! उसके बाद उसने भी जाने की बात कभी न की. फिर तो मालिक मेरे साथ तीन चार साल रहे.
पर एक बरस बहुत कड़ाके की ठंड पड़ी. उस ठंड में मालिक को दमा हो गया. हमने बहुत सेवा की. दवाइयाँ भी की. पर बीस पच्चीस दिनों के बाद दमे ने आखिरकार मालिक की साँसों को हंमेशा के लिए रोक दिया.
मैंने उसके लड़के की तरह उसका दाह संस्कार किया. देश में होता है वैसा क्रिया करम तो नहीं करवा पाया, पर फाधर को बुलवा कर मालिक की आत्मा की शांति के लिए प्रेयर करवाई. उसकी अस्थियां मैंने आज तक संभालकर रखी हैं. सोचा था, जब मालिक के घर से कोई आएगा तब उनके हवाले करूँगा. इसी इंतज़ारी में बरसों बीत गए. अब जा के तुम आए हो. इतना कहते ही नानू की आंखें भर आई.
उनका धैर्य; उनकी स्वामीभक्ति; उनकी निष्ठा और वफादारी के सामने सब नतमस्तक हो गए. राजू नानू का हाथ पकड़े फफक फफक कर रो पड़ा. नानू ने उसे अपनी बांहों में भर लिया. बाकी के बैठे हुए लोग भी अपने आंसू न रोक पाए.
फिर नानू उठा और घर के अन्दर जा कर पीतल के तीन कलश ले आया. उसमे से एक कलश राजू के हाथ में देते हुए बोला. "यह मालिक की अस्थियां हैं. और ये उन दोनों नौकर की हैं. जो बारी बारी से कुछ साल के अंतर पर चल बसे थे. इसे भी तुम ले जाओ और गंगा में बहाकर सद्गति कर दो.
राजू ने वे तीनों कलश लिए. बारी बारी से सब ने बड़े भक्तिभाव से कलशों को अपने सर से लगाए. फिर राजू ने संभालकर अपनी बेग में रख दिए.
थोड़ी देर तक सब भाव विह्वल होकर बैठे रहे. फिर नानू ने कहना आरम्भ किया.
उन दिनों आर्थर के घर से मालिक के दिए हुए वे सोने चांदी के सिक्के की चोरी हुई थी. आर्थर को डेविड पर शक गया. क्यूंकि वह पहले भी ऐसे मामलों में शामिल रह चूका था. आर्थर ने दांत डपट लगाई तो सच बोल गया. फिर तो वे सिक्के वापस पा लिए गए, पर थोड़े सिक्के उसने बेच डाले थे. बाद में आर्थर ने उसकी शादी करवा कर अलग घर में भेज दिया. पर वह कभी सुधरा नहीं. धंधा वंधा तो उसको करना ही नहीं था. ऊपर से घर गृहस्थी का जिम्मा सर आने पर वह और बिगड़ गया. चोरी और जुआ ही उसका धंधा बन गया था.
उसको दो लड़के और तीन लड़कियाँ हुई. फ्रेड उसमे छोटा लड़का था. लड़कियों की शादी तो मैंने और आर्थर ने करवा दी है. पर जब डेविड जहन्नुम में गया, तब अपने बड़े लड़के और एक दोस्त को भी साथ लेता गया. फ्रेड भी डेविड की राह पर चलकर बर्बाद हो गया.
नानू की बात सुनकर राजू की टीम ने अफसोस प्रगट किया.
नानू का बयान अब खत्म हुआ था. वह फिर खड़ा हुआ और अन्दर गया. जब वापस लौटा तो उसके हाथ में एक तस्वीर थी. उसने वह तस्वीर सब को दिखाई. और कहा:
"यह वहीँ तस्वीर है जो मालिक ने मुझे संभालने के लिए दी थी. और जिसकी चोरी हुई थी."
राजू ने तस्वीर हाथ में ली. वह एक निर्जन बेट की तस्वीर थी.
नानू ने आगे बताना शुरू किया.
"तुम्हारे पास जो तस्वीर है, वह सेंत ल्युसिया का एक चित्र है. और मेरी तस्वीर में उसके सामने वाले एक द्वीप का चित्र है. जो बिलकुल निर्जन है. डेविड वहीँ मेरे हाथों मारा गया था. और तुम्हारा बाप भी वहीँ पहुंचा था."
नानू ने आगे जोड़ते हुए कहा: "मालिक ने बहुत उस्तादी का काम करते हुए गलत लोगों को बड़े भरम में डाला. अगर कोई समुद्र को जानने वाला देखे तो वह सीधे सेंत ल्युसिया ही पहुँच जाए."
अब मेघनाथजी के वे नौकरों के भेदी तरह से मारे जाने की बात का भेद खुला. जब वे मेघनाथजी का छिपा धन लेने गए थे. वे भी सायद उसी सेंत ल्युसिया के सामने वाले बीहड़ टापू पर पहुँच गए होंगे. और उसकी भूलभुलैया में फंसकर रह गए होंगे. पर उनके इस तरह से मारे जाने से गाँव में खजाने के अभिशापित होने की अफवा फैली थी. राजू को यह सब बात याद आ गई.
राजू ने आगे सवाल किया. : "पर पापा ने जो असली तस्वीर की नक़ल बनाई थी, वह भी असल जैसी ही होगी. फिर उनसे कोई काम क्यूँ निकल नहीं सकता था?"
नानू: "ये तस्वीरें तो एक भरम मात्र है. मगर असल बात कुछ और ही है." इतना कहते हुए नानू बड़े रहस्यमय तरीके से हंसा.
नानू की ऐसी भेदभरी हंसी से सब उत्सुकता से उनकी और देखने लगे.
क्रमशः
तस्वीर में ऐसी कौन सी बात है? जो नानू उसे भरम मात्र कहता है? और उनके भेदी तरीके से हंसने की क्या वजह है? जानने के लिए पढ़ते रहे...
अगले हप्ते कहानी जारी रहेगी.