Udaan, prem sangharsh aur safalta ki kahaani - 10 in Hindi Love Stories by Bhupendra Kuldeep books and stories PDF | उड़ान, प्रेम संघर्ष और सफलता की कहानी - अध्याय-10

Featured Books
Categories
Share

उड़ान, प्रेम संघर्ष और सफलता की कहानी - अध्याय-10

फिर वो लोग निकल गए।
महीने का आखिरी दिन था।
सुनो जी सिलेण्डर खत्म हो गया। नया लाओगे तभी कुछ बन पायेगा। अनु ने कहा
अच्छा ठीक है मैं दूसरा भरवा कर लाता हूँ।
प्रथम ने पर्स निकाला और देखा कि उसमे तो सिर्फ 200 रूपये थे। जबकि सिलेण्डर 450 रूपए में आता था। बैंक अकाऊँट में भी पैंसे नहीं थे।
कुछ मंगवा कर खा ले क्या अनु। प्रथम ने पूछा।
क्यो? सिलेण्डर लाने में क्या दिक्कत है।
दिक्कत है ना, मेरे पास पैसे नहीं है। प्रथम थोड़ा उदास होते हुए बोला। और फिर कहा
कल मिल जाएगी तनख्वाह तो कल ले आऊँगा सिलेण्डर।
क्या गारंटी है कि आपकी सैलरी कल ही मिल जाएगी।
हाँ वो भी सही बोल रही हो। प्रथम बोला
और मान लो अभी बाहर से मंगा लोगे तो रात को क्या खाओगे।
फिर क्या करूं बताओ ?
कहीं से पैसे का अरेंजमैंट करो और क्या ?
अच्छा। एक ही जगह है जहाँ से मैं अपने हक का पैसा माँग सकता हूँ और वो है विकास कोचिंग। जाता हूँ और वो पैसा दे देता है तो प्राॅबलम साॅल्व हो जाएगा और नहीं तो दाई के यहाँ जाकर चाॅवल सब्जी बना लेना।
ठीक है आप पहले पता करके आओ।
प्रथम पैदल निकल गया। कोचिंग इस घर से थोड़ा और दूर पड़ता था। उस समय भाग्य से विकास कोचिंग इस्टीट्यूट में ही था।
गुड माॅर्निंग सर। प्रथम ने कहा।
अरे आइये प्रथम सर। बैठिए।
जी सर।
आज दिन में कैसे आना हुआ। कॉलेज नहीं जा रहे हैं क्या ?
जाना है सर एक आवश्यकता आन पड़ी है इसलिए आया हूँ।
हाँ बताइये ना क्या बात है ?
सर वो कल एक तारीख है तो जो सैलेरी आप मुझे कल देने वाले हैं वो आज मिल सकता है क्या ?
नहीं बन पायेगा सर। मुझे भी सारे बच्चे कल ही अपनी फीस देंगे। आज तो बिल्कुल भी पाॅसीबल नहीं है।
कोई भी पाॅसीबिलिटी नहीं सर ?
नहीं प्रथम सर। हाँ अगर कोई छोटी-मोटी आवश्यकता है तो बताइये व्यक्तिगत रूप से आपकी मदद कर दूँगा।
सर मझे 500 रूपए चाहिए थे। इसे मेरी कल सैलेरी से आप कम कर लिजिएगा।
अच्छा। ये हजार रूपए आप रख लिजिए सर।
ओ! थैंक्यू विकास सर। आपने जो मेरी मदद की है उसे मैं जीवन भर याद रखूँगा। जब कभी मैं ठीक स्थिति में रहूँ और आपको मदद की आवश्यकता पड़े तो मुझे अवश्य याद कीजिएगा। प्रथम ने कहा।
अरे कोई बात नहीं सर। कल आप मुझसे अपने सैलेरी भी ले लिजिएगा।
ठीक है सर मैं चलता हूँ। प्रथम बता कर घर पहुँचा।
क्या हुआ सर मिले कि नहीं ? अनु ने पूछा।
हाँ मिले और 1000 रूपए की मदद भी कर दी। सैलेरी कल ही दे पाऊँगा बोले क्योंकि बच्चे अपनी फीस एक तारीख को ही देते हैं। प्रथम ने बताया।
चलो ठीक है आप सिलेण्डर ले आओ तब तक मैं कुकर दाई के यहाँ से बजाकर आ जाती हूँ।
ठीक है मैं लेकर आता हूँ फिर तुरंत कॉलेज जाऊँगा। प्रथम बोला और रिक्शा लेकर सिलेण्डर लाने के लिए चला गया।
दूसरे दिन शाम को उसे दोनो जगह से सैलरी मिल गई। ये पहली बार था संघर्ष के इतने दिनों में कि उसने एक महीने में काफी पैसे कमाए थे।
आठ बजे रात को जब प्रथम घर पहुँचा तो पहला ही सवाल अनु ने किया, मिल गई सैलेरी ?
हाँ मिल गई परंतु थोड़ा उसमें पेंच है।
क्या। अनु ने पूछा।
साढ़े तीन हजार में से सिर्फ 2940 रूपए मिले बाकी 560 रूपए ई.पी.एफ. के नाम पर काट लिए। अब तुम्ही बताओ इतने में घर कैसे चलेगा और ऊपर से कॉलेज एक साल तक एक रूपए भी नही बढ़ाने वाला।
कोचिंग को छोड़ना मत और क्या ? जितना भी हो मदद तो होती रहेगी।
नहीं कोचिंग तो छोड़ँूगा ही नहीं बहुत सपोर्ट है मुझे वहाँ से। अच्छा कल मैं निशांत के एक हजार लौटा दूँगा और संडे को तुम्हारे लिए कपड़े खरीद देता हूँ। पहली बार एक महीने में मुझे लगभग आठ हजार मिले हैं।
नहीं नहीं कपड़े बाद में, पहले हम पलंग खरीदेंगे और हो सके तो एक आलमारी भी खरीद लो।
ठीक है हम संडे को ले लेंगे। परंतु तुम्हारे पास कपड़े भी नहीं है अनु। ये बात मुझे अंदर ही अंदर बहुत तकलीफ देती है। अभी चलो तुम्हारे लिए कपड़े खरीद देता हूँ।
अच्छा साहब को मेरी चिंता होती है ?
मजाक मत करो। चलो चुपचाप।
अच्छा चलो मैं तो ऐसे ही बोल रही थी।
आज दो सेट साड़ी की खरीद लो और एक सेट 150 रूपए से ज्यादा का नहीं होनी चाहिए। मेरा बजट इससे ज्यादा का नहीं है।
ठीक है बाबा, मैं उससे ज्यादा का नहीं खरीदूंगी। चलो
दोनो दुकान गए और दो सेट साड़ी का खरीद लाए।
घर पहुँचकर प्रथम ने कहा। अनु तुमने मुझसे नहीं पूछा कि आपको क्या चाहिए ?
अरे हाँ बताइये आपको क्या चाहिए। आपके लिए भी कपड़े ले लेते हैं।
नहीं मुझे कपड़े नहीं चाहिए ?
तो फिर मुझे एक बेटी चाहिए।
आपको मालूम है ना, मेरा शरीर अभी इस लायक नहीं है।
तो लायक बनाते हैं ना। प्रथम बोला।
ठीक है बनाओं फिर जो चाहे ले लेना। परंतु मेरी इच्छा है कि बेटा हो।
अच्छा जो भी हो पर मुझे तुम्हारा दिमाग नहीं चाहिए। गुस्सैल वाला। मुझे मेरा ही दिमाग चाहिए। हाँ बाल तुम्हारे जैसा होना चाहिए। प्रथम बोला।
अच्छा बाल देखकर आकर्षित हुए थे मेरी ओर।
नहीं और भी चींजे देखी थी। प्रथम बोला।
क्या ?
वो नहीं बता सकता।
बेशरम। यही सब देखते रहते थे ? मैं तो बड़ा शरीफ समझती थी आपको। अनु बोली।
अच्छा! मैं इंसान नहीं हूँ क्या ?
बिल्कुल नहीं। जानवर हो आप जानवर।
अच्छा जानवर ही सही। हूँ तो तुम्हार ही ना। अब तो तुम मेरा कुछ नहीं बिगाड़ सकती। प्रथम चहक कर बोला।
आज तो बिगाड़ ही सकती हूँ चलो जाकर नीचे सो जाओं, मैं ऊपर सोती हूँ।
अरे यार ये काम तुम गलत कर रही हो। मैं इसका बदला लंूगा।
ठीक है ले लेना अभी तो चुपचाप सो जाओ।
पहली बार दोनो निश्चिंत हो गए। अगली रविवार दोनो भिलाई जाकर आठ सौ रूपए में एक पलंग खरीद कर ले आये। उसी शाम दोनो 400 रूपए तीन महीने किश्त में एक 1200 रूपए की आलमारी भी खरीद लिए।
प्रथम की स्थिति अब पहले से बेेहतर थी उसने लगभग अपनी स्थिति स्थिर कर ली थी। उसने एक साल तक अनु का इलाज कराया और बच्चे के लिए प्रयास भी जारी रखा किंतु उसे निराशा हाथ लग रही थी। फिर एक दिन
सुनिए प्रथम जी। अनु बोली।
हाँ अनु बोलो।
मुझे आपको यूँ निराश देखकर बहुत दुख होता है।
तो क्या कर सकते हैं अनु तुम्हीं बताओ।
आज जाकर टेस्ट कराँए क्या ?
आज आपका जन्मदिन है ना और मेरा पिछला महीन गैप हो गया है पता नहीं मुझे ऐसा क्यूँ लग रहा है कि आज आपको खुशखबरी मिल जाएगी।
हर बार की तरह इस बार भी निराशा हाथ लगेगी अनु।
मेरी प्रार्थना पर चलो एक बार। प्लीज। अनु बोली।
तुम प्लीज मत बोला करो अनु। मेरे भाग्य में होगा तो मुझे मिल ही जाए। चलो चलें।
दोनो गायत्री मंदिर स्थित धमार्थ लैब पैथालाॅजी लैब में टेस्ट कराने गए और थोड़ी देर में उनको वो खुशखबरी मिली जिसके लिए प्रथम एक साल से लालायित था।
प्रथम वहीं मंदिर की सीढ़ी पर बैठ गया। उसने मंदिर की सीढ़ी में अपना माथा टिकाया और फूटफूटकर रोने लगा। अनु बल्कि चुप थी। वो प्रथम को चुप करा रही थी, पर प्रथम चुप होने का नाम ही नहीं ले रहा था। कुछ देर में पैथोलाजिस्ट भी बाहर आ गया और पूछा क्या हुआ सर ?
प्रथम सिर उठाकर बोला - कुछ नहीं, आप जाइये मैं ठीक हूँ।
दोनो घर आ गए। प्रथम बेहद खुश था। उसने सभी को फोन करके उसकी सूचना दी। वह अनु का बेहद ध्यान रखता था। इस दौरान कोचिंग से मिल पैसे ने उसकी बहुत मदद की।
गर्भ के सातवें महीने में अनु बोली।
अब मैं यहाँ और नहीं रह पाऊँगी प्रथम जी। यहाँ माहौल बहुत अच्छा है लेकिन इस अवस्था में मुझे बार बार बाथरूम जाना पड़ता है और यहाँ काॅमन टाॅयलेट बाथरूम होने की वजह से बहुत दिक्कत होती है। आप प्लीज दूसरा घर देखिए।
अच्छा अनु मैं कल परसों में ही दूसरा घर देखता हूँ। अब मैं 1000-1200 आसानी से एफोर्ड कर सकता हूँ।
ठीक है पर जल्दी कीजिए। अनु बोली।
जल्दी ही करूँगा अनु।
प्रथम को जल्दी ही एक घर मिल गया। वो रोड से नजदीक ही था ताकि बस, आटो तक जाने में सुविधा हो।
वो दोनो सामान सहित नए घर में शिफ्ट हो गए। उसकी सैलेरी भी अब छह हजार हो गई थी तो ज्यादा परेशानी नहीं थी।
अनु ने दो महीने बाद एक सुंदर बच्चे को जन्म दिया। प्रथम जब अपने बच्चे को पहली बार देखा तो वो सारा संघर्ष सारी परेशानियाँ भूल गया। वो इतना गदगद था कि बार-बार अपने बच्चें को चूमता था।
मेजर ऑपरेशन से हुआ था बच्चा, इसलिए उसे अनु की भी चिंता थी, पर ईश्वर ने सब ठीक किया और वो स्वस्थ्य होकर घर को लौट आई।
अब प्रथम के लिए उसका बच्चा और उसकी पत्नि ही दुनियाँ थे। इन दोनो के अलावा उसके पास कोई और काम नहीं था। जब तक उसका बच्चा पाँच साल का नहीं हुआ तब तक उसने अपने कैरियर के बारे में सोचा ही नहीं जबकि ये संघर्ष अच्छी सरकारी नौकरी पाने के उद्देश्य से ही चालू किया था। अनु बीच-बीच में प्रथम को बोलती भी थी कि आप पढ़ते क्यों नहीं हो तो प्रथम टाल देता था और बोलता अब इतनी उग्र हो गई है कि पढ़ने का कोई फायदा नहीं।
घर जाने पर उनके पिता आवश्यक रूप से बोलते थे कि तुम सरकारी नौकरी क्यों नहीं देखते। प्रथम ध्यान नहीं देता था।