Ek-Apreshit-Patra - 9 in Hindi Letter by Mahendra Bhishma books and stories PDF | एक अप्रेषित-पत्र - 9

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एक अप्रेषित-पत्र - 9

एक अप्रेषित-पत्र

महेन्द्र भीष्म

साथ

सकलेचा के दो फोन आ चुके थे। रूबी बेड पर पड़ी ऊहापोह की स्थिति में थी। तेजी से पतनोन्मुख सुदर्शन बोकाड़िया ग्रुप ऑफ कम्पनीज़ की सबसे लाभदायक कम्पनी बोकाड़िया मल्टी मास कम्युनिकेशन की ओर से आज सायं शहर के सुप्रसिद्ध पंच सितारा होटल ‘ताज‘ में फैशन शो होने जा रहा है, जिसमें देश—विदेश के धन कुबेर पहुँच रहे हैं।

कभी बोकाड़िया मल्टी मास कम्युनिकेशन के सर्वेसर्वा सुदर्शन बोकाड़िया की सबसे नजदीकी, सबसे चहेती मॉडल थी वह ... ‘रूबी कपाड़िया‘। पारिवारिक सदस्य की हैसियत से वह उनके परिवार के साथ ही उन्हीं के भव्य आवास ‘गोल्डन विला‘ में रहती थी।

देश—विदेश में होने वाले ‘बोकाड़िया ग्रुप‘ के फैशन शो की ‘रूबी‘ जान थी अौर लाखों चहेतों के दिलों की धड़कन। रूबी की बदौलत ही सुदर्शन कुछ वर्षों में कहाँ से कहाँ पहुँच गये, दो अरब की सम्पत्ति के तन्हा मालिक।

रूबी मॉडलिंग के क्षेत्र में विश्व ख्याति अर्जित कर जानी—मानी हस्ती बन चुकी थी। अनेक अन्य ग्रुप के लोगों ने तमाम तरह के प्रोलोभन उसे देने चाहे, अपने साथ काम करने के लिए मुँह माँगी कीमत देनी चाही, परन्तु रूबी ने उन तमाम प्रलोभनों से स्वयं को दूर रखा अौर अपने गॉड फादर सुदर्शन की कम्पनी से कभी भी नाता नहीं तोड़ा........तब तक, जब तक कि वे जीवित रहे।

सुदर्शनजी की आकस्मिक मौत से वह हतप्रभ रह गयी। व्यावसायिक प्रतिद्वन्दितावश माफिया गिरोह द्वारा सुदर्शनजी की हत्या करा दी गयी थी। रूबी को लगा जैसे उसका कोई सगा, अतिप्रिय सदा के लिए संसार छोड़ गया हो। कई महीनों तक वह इस दुःख से दुःखी रही। मीडिया में तो यहाँ तक निकल गया था कि सुदर्शन बोकाड़िया की आकस्मिक मौत से एक नहीं दो स्त्रियाँ विधवा हुई हैं।

सुदर्शनजी के देहावसान के चंद महीने बाद से ही रूबी को महसूस होने लगा था कि अब वह उस परिवार में कतई नहीं रह रही है, जो सुदर्शनजी के समय में था। उसे अकसर पराया जैसा महसूस कराया जाने लगा था। धीरे—धीरे उसका सुदर्शनजी के परिवार से केवल मॉडल की हैसियत जैसा रिश्ता रह गया था।

रूबी तमाम चुभती बातों को स्वयं में आत्मसात किये रही। वह नहीं चाहती थी कि सुदर्शनजी के बाद उसकी वजह से उनके परिवार वालों को आर्थिक संकट उठाना पड़े, बाहरी लोगों तक तनाव की चर्चा जाये।

आख़िर कब तक रूबी परिस्थितियों से समझौता करती रहती। अन्ततः, जब स्वर्गीय सुदर्शनजी की धर्म—पत्नी ने अपने देवर की सलाह को तरजीह देते हुए उसकी स्थिति दोयम दर्जे की करने की गरज से नयी—नयी लड़कियों से मॉडलिंग करायी जाने लगी अौर उसे कम्पनी की खर्चीली हथिनी तक की संज्ञा दी जाने लगी, अब वह उनके लिए महंगी अौर अधिक उम्र की मॉडल नजर आने लगी........... मीडिया में रूबी अौर सुदर्शनजी के परिवार के बीच के बिगड़ते सम्बंधों की तल्खी छपने लगी; तब न चाहते हुए भी रूबी को सुदर्शनजी के परिवार और कम्पनी से स्वयं को अलग करना पड़ा।

स्वर्गीय सुदर्शनजी अपने लाभ में से पच्चीस प्रतिशत हिस्सा रूबी को दे देते थे, बिना किसी लब्बो लुआब के पारिवारिक सदस्यों जैसा सम्मान उसे मिलता ही था, पर सुदर्शन जी अपने सिद्धान्तों का पालन कठोरता से करते थे अौर उनके इन्हीं उसूलों के चलते रूबी कुछ कह न पाती अौर प्राप्त हिस्से को अपने खाते में जमा करा देती।

मात्र चौदह वर्ष की उम्र में उसे अनाथालय की जिंदगी से बाहर निकालकर देश—परदेश की प्रख्यात अौर महँगी मॉडल बनाने में सुदर्शनजी का पूरा—पूरा श्रेय रहा है। भला ऐसे गॉड फादर के न रहने के बाद क्या उसका स्वर्गीय सुदर्शनजी के परिवार से, फिर उनकी कम्पनी से अलग होना उचित था...... कदापि नहीं फिर भी...... यह असम्भव—सी बात सहज में सम्भव हो गयी।

......अौर बीते एक वर्ष में रूबी ने दूसरी कम्पनियों के द्वारा देश—विदेश में आयोजित फैशन शो में हिस्सा लेकर स्वयं को अौर प्रायोजित कम्पनियों को काफी लाभ पहुँचाया.... मॉडलिंग के संसार में सफलता के सर्वोच्च शिखर में होने के बावजूद उसके हृदय के किसी कोने में रह रहकर सुदर्शनजी की स्मृति अौर उनके परिवार के लोगों की वजह से बोकाड़िया मास कम्यूनिकेशन की गिरती जा रही साख की उसे चिंता रहती थी। उसकी हार्दिक इच्छा रहती थी कि जिस कम्पनी ने उसे आज इस मुकाम पर पहुँचाया, शोहरत अौर समृद्धि दी, वह अपना स्थान पूर्ववत बनाये रखे... पर क्या करे, वह अकेली अौर मजबूर थी। आत्म—सम्मान के विरुद्ध कुछ सहन करना उसके स्वभाव में नहीं था।

सेल्युलर की घण्टी बजी... सकलेचा का यह तीसरा फोन था, रूबी सकलेचा की आवाज सुन रही थी, “मेडम! बचा लीजिए, बड़ी मेहनत अौर लगन से जिस कम्पनी को सुदर्शन जी बना गये थे, वह डूबने वाली है....... दीवालिया हो जायेगी उनकी कम्पनी....... मैडम! आप तो पल—पल की ग़वाह हैं, सुदर्शनजी की फलती—फूलती कम्पनियों के बढ़ते व्यवसाय में आप का महत्वपूर्ण ‘साथ' रहा है। मैडम! आज के फैशन शो में आपके आ जाने से डूबती नैया पार लग सकती है।.... मैडम! मैं आपके ‘हाँ' की प्रतीक्षा कर रहा हूँ.... आपकी पसंद की सारी व्यवस्थाएँं करा दी हैं। आपको आ भर जाना है... सब कुछ तैयार है.... मैडम!....''

“करती हूँ... मैं......... फोन....” रूबी ने सामने दीवार पर सजी अपने गॉड फादर की तस्वीर पर अपनी दृष्टि जमा दी। उसके मन—मस्तिष्क में उथल—पुथल मच गयी, मान—अपमान की बातें गूँजने लगीं, स्वर्गीय सुदर्शनजी की निरपेक्ष छवि आँखों के बीच तैरने लगी।

..... अौर द्वंद्व के बादल जब हटे, तब रूबी निर्णय ले चुकी थी। वह निर्णय था.... अपने गॉड फादर के नाम को वह जीते जी डूबने नहीं देगी.... भले ही इसके लिए उसे कोई भी कीमत चुकानी पड़े।

सेल्युलर में एक बार पुनः घण्टी बज उठी। रूबी ने हैलो के बाद कहा, “सकलेचा! मैं आ रही हूँ।”

*****