Gavaksh - 4 in Hindi Moral Stories by Pranava Bharti books and stories PDF | गवाक्ष - 4

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गवाक्ष - 4

गवाक्ष

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मंत्री जी स्वयं इस लावण्यमय दूत से वार्तालाप करना चाहते थे। वे भूल जाना चाहते थे कि बाहर कितने व्यक्ति उनकी प्रतीक्षा कर हैं, वे यह भी याद नहीं रखना चाहते थे कि 'कॉस्मॉस' नामक यह प्राणी अथवा जो भी है इतने संरक्षण के उपरान्त किस प्रकार उन तक पहुंचा ? वे बस उससे वार्तालाप करना चाहते थे, उसकी कहानी में उनकी रूचि बढ़ती जा रही थी ।

" अपने बारे में विस्तार से बताओ----"मंत्री जी ने अपना समस्त ध्यान उसकी ओर केंद्रित कर दिया।

" जी, जैसा मैंने बताया मैं कॉस्मॉस हूँ, गवाक्ष से आया हूँ । धरती पर मुझे 'मृत्यु-दूत'माना जाता है। हमारा निवास 'गवाक्ष' में है, आप उसे स्वर्ग, नर्क --जो चाहे समझ सकते हैं लेकिन वे स्वर्ग-नर्क हैं नहीं, यह (कॉस्मिक डिपार्टमेंट) एक भिन्न विभाग है । "

"तो स्वर्ग-नर्क कहींऔर स्थित हैं ? कहाँ ?"

" मैं नहीं जानता ----"

" हम तो यह समझते हैं कि स्वर्ग-नर्क यहीं इस पृथ्वी पर हैं । "

"जी, इतना सब तो नहीं जानता ----"

"यमराज के दूत होकर भी नहीं जानते!" मंत्री जी ने व्यंग्य करके उससे उस रहस्य का पर्दा खुलवाने की चेष्टा की जिसे योगी-मुनि तक नहीं खोल पाए । जिससे धरती का प्रत्येक मानव कभी न कभी जूझता है । "

"मुझे मेरे स्वामी यमराज जी के द्वारा 'सत्य' नामक किसी प्राणी को लाने का आदेश दिया गया है । आते ही मुझे ज्ञात हुआ आपका नाम सत्यप्रिय है, मैं प्रसन्न हो गया, गत वर्ष से अपना कार्य पूर्ण न कर पाने का दंड भुगत रहा हूँ । मुझे गवाक्ष में प्रवेश करने की आज्ञा नहीं है--जब तक मैं अपना 'टार्गेट' यानि लक्ष्य पूर्ण नहीं कर लूँगा, इसी प्रकार दंड पाता रहूंगा । "

" यहाँ भीतर कैसे प्रवेश कर लिया, यहाँ किसी को आने की आज्ञा नहीं है। क्या किसीको पैसे-वैसे खिलाकर आए हो?"अपनी व्यथा भूलकर मंत्री जी ठठाकर हँस पड़े ।

“कितना कड़ा पहरा है !मुझे कौन प्रवेश करने देता ? भीतर आने के लिए मुझे अपनी अदृश्य होने वाली शक्ति का प्रयोग करना पड़ा । जब आपने मृत्यु को पुकारा मैं प्रसन्न हो गया, मुझे लगा आप मेरे साथ चलने के लिए तत्पर हैं । लक्ष्य प्राप्ति की किरण ने मेरे भीतर उत्साह जगा दिया । " वह लगातार एक रेकॉर्ड की भाँति बजता ही जा रहा था, अपना हाले-दिल सुनाए जा रहा था।

" मुझे एक बात भर्मित कर रही है ---"मंत्री सत्यव्रत जी ने कहा ।

" यह सर्वविदित है ‘जीवन एक सत्य है और ---मृत्यु भी उतना ही अटूट सत्य है’ अर्थात जीवन का आवागमन शाश्वत सत्य है । यह कहा जाता है कि इस पृथ्वी पर सबके आने और जाने का समय सुनिश्चित है । तब यह भी सुनिश्चित हुआ कि किसका अंतिम समय कब है? फिर यह कैसे संभव है कि कोई भी सत्य नामक प्राणी यह संसार छोड़कर तुम्हारे साथ जा सकता है?"

कॉस्मॉस मुस्कुराया;

" मैंने आपको बताया न, हमारा विभाग एक भिन्न विभाग है। जिसमें योजनाएं बनाई जाती हैं । इस बार 'सत्य' नामक प्राणी को धरती से गवाक्ष में लाने की योजना बनाई गई है। इतने बड़े विश्व के आवागमन का हिसाब-किताब रखना आसान नहीं है । इसके लिए गवाक्ष में सहयोगी विभाग भी हैं। मेरे साथ के कई और कॉस्मॉस भी इस कार्य पर तैनात हैं। हमारा कार्य केवल 'सत्य'नामक प्राणी को गवाक्ष में ले जाकर स्वामी को सौंप देना है। हमारे स्वामी व अन्य उच्च पदाधिकारियों के निर्णय से बारी-बारी सबका चयन किया जाता है फिर उनको आगे स्वर्ग अथवा नर्क में स्थान दिया जाता है । "

"इसका अर्थ है कि स्वर्ग-नर्क कहीं और स्थान पर स्थित हैं ? "

"महोदय! यह सब जानना हमारे अधिकार-क्षेत्र में नहीं होता । गवाक्ष से निकालकर आत्मा को कहाँ प्रेषित किया जाता है, इसको गोपनीय रखा जाता है । "

"तो क्या पृथ्वी पर से देह के समाप्त हो जाने के पश्चात गवाक्ष में प्राणी जीवित रहता है?"

"पृथ्वी पर प्राणी जिन पाँच तत्वों से मिलकर बना था, वह उन्ही में अपने व्यवस्थित समय में विलीन हो जाता है । किन्तु यह तो देह की समाप्ति हुई। आत्मा हमारे साथ जाती है तथा गवाक्ष में, आपकी भाषा में 'वेंटिलेटर' पर तब तक रहती है जब तक उसकी बारी नहीं आती, बारी तथा गुणों, अवगुणों के परिणाम स्वरूप आत्माओं के निवास का चयन किया जाता है । "यह बिलकुल नवीन सूचना ज्ञात हुई, मंत्री जी और भी संभलकर बैठ गए थे।

" महोदय! मुझे पृथ्वी पर आकर बहुत सी नई जानकारियाँ मिल रही हैं। मैं उनमें खो जाता हूँ, अपना लक्ष्य पूरा नहीं कर पाता। "

"अच्छा ! तुमने मुझे ही अपने साथ ले जाने का निर्णय क्यों लिया ?" सत्यव्रत जी ने बहुत आराम से पूछा।

" ऐसा कुछ नहीं है, यह तो अवसर की बात है कि इस बार आप मुझे धरती पर उतरते ही मिल गए अन्यथा मैं कहीं और 'सत्य' की खोज में जाता । "

" आप मुझे अन्य धरती-वासियों से अधिक प्रभावित कर रहे हैं । आपके मुख का तेज तथा आपके वार्तालाप का प्रभाव मुझे मुग्ध कर रहा है। क्या मैं आपके इस तेजस्वी व्यक्तित्व से परिचित हो सकता हूँ ?"दूत ने विनम्रता से कहा।

समय-यंत्र की रेती धीमी गति से नीचे की ओर आने लगी थी । अभी इसे नीचे आने में खासा समय लगने वाला था। दूत को यह यंत्र सदा धोखा देता रहा था। जबसे उसने पृथ्वी पर आना प्रारंभ किया था, उसमें पृथ्वीवासियों की बहुत सी ऎसी संवेदनाओं का समावेश होने लगा था। जो वास्तव में उसके हित में नहीं थी ।

क्रमश..