जननम
अध्याय 7
सब लोगों से अपने को छुड़वा कर कार से घर की ओर रवाना हुआ।
हिंदी में अच्छी तरह बात करना जानती है, वह उत्तर भारत के इलाके में पली-बड़ी होगी। यहां कहां आकर फंस गई ? उसके अंदर एक नया संदेह पैदा हुआ। उत्तर भारत के पेपर में भी इसके बारे में जानकारी देनी चाहिए थी ऐसा उसे लग रहा था। बहुत देर सोचने के बाद उसने अपने आप ही समाधान किया। वह कहीं से भी आई हो उसके घरवालों को वह नहीं मिली तो जरूर पूछताछ की होगी और उसे ढूंढा होगा ऐसा उसे लगा। हिंदू और इंडियन एक्सप्रेस दोनों ही पेपर उत्तर भारत में जाते हैं उसे याद आया। उसका नजदीकी रिश्तेदार कोई होता तो वे दक्षिण भारत की पुलिस से संपर्क करने नहीं आते ? निश्चित तौर पर इसके नजदीकी रिश्तेदार इस दुर्घटना में मर गए होंगे। इस अनाथ को छोड़कर चले गए होंगे। बार-बार सोचने के बाद
होना ऐसा ही होना चाहिए ऐसा सोचकर कि यही सच है उसने आप को संतुष्ट कर लिया ।
घर को पीछे छोड़कर वह थोड़ी दूर आगे निकल गया है यह महसूस कर कार को पीछे की तरफ दोबारा घुमाया। अपने गेट से आगे आते समय ही देखा उसकी मां बरामदा में एक कुर्सी पर बैठी हुई है।
कार के दरवाजे को बंद कर उसे देखा तो मां जोर से हंसी।
"क्या है, डॉक्टर साहब अपना घर भी भूल गए ऐसा लगता है ?"
घर को छोड़कर मैं आगे निकल गया इसे अम्मा ने देखा है!
वह संकोच से हंसा।
"कुछ सोच रहा था !"
"टोटल एमिनेशिया !!"
मां के चेहरे में व्यंग्य दिखाई दे रहा था। वह जोर से हंसा।
"मुझे यह सब नहीं होगा, डरो मत। टोटल पागल होने का तो चांस है !"
"युवा लड़का पागल हो गया है तो उसकी अम्मा क्या करती है पता ?"
"मुझे पूरा पागल होने दो फिर सोचेंगे।
"फिर ठीक है !" ऐसा बोली जैसे कोई बड़े समस्या का हल कर लिया हो । मां को उसका चेहरे को देखने से ही उसे हंसी आ रही थी। "ओ अम्मा इतनी मजाकिया अम्मा किसको मिलती है ?"
"कॉफी पी लिया क्या ?"
"हां पी लिया ।"
"कहां ?"
"आज स्कूल में कमेटी की मीटिंग थी। वहां पकोड़ा, हलवा और कॉफी।"
"ओ हो !"
"क्या ओ हो !"
"मैंने तो कुछ और सोचा ।"
अम्मा के चेहरे में हमेशा दिखने वाली हंसी दिखाई नहीं दी। चिंता दिखाई दी।
"क्या हुआ मां ?"
कुछ क्षण सोच रही जैसे उसकी अम्मा ने उसे देखा।
"तुमसे कुछ बात करना है आनंद !"
वह आंखें फाड़कर उसे देख हंसा।
"अभी फिर क्या कर रही हो ?"
"ऐसा नहीं। थोड़ा सीरियस बात करनी है। अंदर की बात करनी है ।"
"हां ,बात करो !"
वह उनके पास एक कुर्सी खींच कर बैठा। अम्मा चारों तरफ देखकर धीमी आवाज में शुरू किया।
"कुछ-कुछ मेरे कानों में आ रहा है आनंद !"
"क्या आ रहा है ?"
अम्मा बोलने में परेशान हो रही है ऐसा लगा।
"तुम रोज उस लड़की के घर जा रहे हो-उस लावण्या के घर ?"
"रोजाना नहीं जा रहा अक्सर जाता हूं ।"
"दोनों में ज्यादा अंतर नहीं है।"
"होने दो। उसके लिए......?"
"क्यों जाते हो, एक जवान लड़की अकेली रहती है उस जगह ?"
"बहुत अच्छा है! किसने कहा वह अकेली है ? उस की देखभाल के लिए एक बुढ़िया हमेशा उसके साथ रहती है ?"
"ठीक है क्यों जाते हो ?"
"अम्मा, तुम ग्रामीणों जैसे कैसे बोल रही हो। वह लड़की मेरी पेशेंट है। इस गांव में अनाथ बनकर फंस गई है। उसकी देखभाल करना हमारी जिम्मेदारी नहीं है क्या ?"
"जिम्मेदारी तो है। उसके लिए उसकी तबीयत को ठीक कर दिया। मकान रहने के लिए दिया। नौकरी दिला कर, एक बुढ़िया को उसके साथ रख दिया। रोज जाना जरूरी है क्या ? मुझे जो संदेह हो रहा है वह इन गांव वालों को भी होगा सोचती हूं।"
उसके अन्दर अचानक एक तूफान सा आया। उसने आज तकअम्मा को ऐसा नहीं देखा वह चिड़चिड़ता हुआ बोला "सोचने दो मुझे उसकी परवाह नहीं है।"
एकदम से उसके चेहरे पर गुस्सा दिखाई दिया वह जल्दी से उठ कर अपने कमरे में चला गया। उसके दिल की धड़कन तेज हो गई। उसकी अपनी अंतरंग बातों पर प्रश्न पूछा हो जैसे गुस्सा उसे आया। छीं ! कैसा गांव है यह पहली बार उसे इस गांव के प्रति असंतुष्टि हुई । मेरा कोई अपना जीवन नहीं है क्या ? मेरी अपनी इच्छा है अभिलाषाएं कुछ भी नहीं होना चाहिए क्या ?
एक दूसरी तरह के विचार भी उसे आए। इस गांव में जो लोग हैं उनका मुझे ध्यान रखना चाहिए। यह मेरा कर्तव्य है। मेरे दादा और मेरे बीच दो पीढ़ियों का अंतर है फिर भी उन्हीं दादा का पोता ही हूं मैं जनता की नजर में। इस नजरिये को बेवकूफी से मुझे नहीं बिगाड़ना चाहिए मेरे मन में जो विचार उठा वह सही है। मेरे मन में उठने वाला विचार , इच्छा सब न्याय संगत है। यह मुझे उन्हें महसूस कराना है। अनाथ लड़की होने पर भी लावण्या अच्छे परिवार की गरिमापूर्ण लड़की है यह उन्हें समझना होगा। यदि उनके समझ में नहीं आया तो मेरी स्थिति बहुत खराब हो जाएगी। उसी समय उसके कंधे पर किसी ने हाथ रखा। उसने मुड़कर देखा तो उसकी अम्मा मुस्कुराते हुए खड़ी थी। मेरा मन शांत हो गया प्रश्न का समाधान हो गया ऐसी हंसी उनके चेहरे पर थी।
"क्या बात है तुम्हें इतनी जल्दी गुस्सा आ गया ?"
"गुस्सा नहीं..…क्रोध....... तुमने भी मुझे नहीं समझा ऐसा ?"
मां के चेहरे से मुस्कुराहट नहीं हटी।
"समझने के लिए ही ऐसा सोचा आनंद। तुम्हें मुझ पर विश्वास करना चाहिए ।"
इतना मेरी मां मुझे समझेगी ऐसे विचार के साथ आनंद चुपचाप खड़ा था। इस गांव में पैदा होकर पलकर लोगों से मिलकर भी यहां की जनता की बातों को सुनकर अम्मा का ब्रेन वाश जैसा हो गया। अम्मा मुझे कितना समझेगी ? अपने वंश के बारे में गर्व से सोचने वाली मां उसके मन को एक अनाथ लड़की ने वश में कर लिया इस बात को वह कैसे पचा पाएगी ? मुझे उस लड़की की परंपरा के बारे में मालूम होना चाहिए, उसके परिवार के बारे में मालूम होना चाहिए, उनके स्टेटस के बारे में मालूम करना चाहिए वह ऐसा जरूर बोलेंगी।
"आनंद मुझ से बात नहीं करोगे ?" अम्मा आराम से बोली।
उसने अचकचा कर मुड़ कर देखा। "क्या बात करें ? क्या बोलूं तो तुम समझोगी ?"
अम्मा मुस्कुराई ।
"तुम्हें कुछ बोलने की जरूरत नहीं । तुम्हारे बिना बोले ही मेरे समझ में आ गया। परंतु इस गांव के लोग प्रेम भाव से यह सब देख कर हंसते हुए नहीं रहेंगे। उनकी एक जीभ भी है।"
"तो उससे ?"
"देखा, दोबारा गुस्सा कर रहे हो, एक काम करो। आज शाम को मुझे लावण्या के घर लेकर चलो ।"
उसने चकित होकर मां की तरफ देखा।
"अट्ठाईस साल तक किसी भी लड़की के पास ना जाने वाले के मन को जिसने बदला उस होनहार लड़की से मुझे भी नहीं मिलना चाहिये क्या ?"
वह अपने संकोच को भूल फिर से खिड़की की तरफ मुडा़।
"अम्मा, तुम मुझे समझोगी ?"
"कोशिश करूंगी..."
"वह लड़की एक अनाथ है ! उसके कुल के बारे में, गोत्र के बारे में तुम मुझसे पूछोगी तो मेरे पास उसका कोई जवाब नहीं।"
"तुम पहले उस लड़की को दिखाओ। उसके बाद इनके बारे में फिक्र करना है या नहीं सोचकर बताऊंगी।"
लावण्या के घर के कंपाउंड के अंदर शाम को उनकी गाड़ी के घुसते समय वह बगीचे में कुर्सी पर बैठी कोई किताब पढ़ रही थी। कार की आवाज सुनकर उसने सिर ऊंचाकर देखा और उसका चेहरा खिला इस बात पर ध्यान देते समय उसका भी दिल छोटे बच्चे जैसे उछलने लगा।
उसकी, अम्मा से परिचय कराने के बाद वो आश्चर्य से हंसते हुए "नमस्कारम !" बोली। उसे अम्मा की मुखाकृति को देखने में भी डर लग रहा था। अम्मा ने उसकी हंसी को देखा ? उसकी सुंदरता को दे खा ? उस के इतने तेज के सामने तुम क्याकुल, गोत्र के बारे में फिक्र करोगी ? ये राजवंश से संबंध रखती है। वास्तव में तुम्हारा लड़का उसके लायक है क्या तुम्हें सोचना चाहिए।
लावण्या ने उन लोगों को अंदर ले जाकर बैठाया।आज उसके चेहरे पर एक थकान दिखाई दी। आनंद ने सोचते हुए उसे देखा, वह अम्मा के हाथों को पकड़क र बोली: "आज आप यहां आए मुझे बहुत खुशी हुई। आपको देखे बिना मैं इस गांव से चली जाऊंगी यह सोच कर मुझे बहुत दुख हो रहा था।"
आनंद अपने आश्चर्य को छुपाता हुआ एक प्रश्नवाचक दृष्टि से लावण्या को देखा।
वह हिचकिचाते हुए हंसी। फिर जमीन को देखने लगी।
"इस शहर को छोड़कर जाने की मैंने योजना बना ली।"
किससे पूछकर यह योजना बनाई उसने पूछना चाहा, लेकिन फिर आनंद ने पूछा; "किसशहरको ?"
"कोई भी शहर को, मद्रास समझ लो।"
"वहां कौन है ?"
अचानक वह फूट-फूटकर रोने लगी। उसको जो गुस्साआ रहा था उसके रोने को देखकर एक दम से खत्म हो गया। वह किसी डर में या असमंजस में है उसे ऐसा लगा। अम्मा के मन को कुछ लोगों ने दूषित किया है वैसे ही उसके मन को भी किसी ने दूषित कर दिया होगा.....
मंगलम उठकर लावण्या के पास जाकर बैठी और उसके कंधे को छूकर उसे आश्वस्त किया।
"रो मत बेटी। तुम्हें यहां क्या तकलीफ है बताओ ? हमसे जो बन सकेगा वह मदद करेंगे।"
"मुझे यहां कोई तकलीफ नहीं है। मेरी वजह से दूसरों को कष्ट है !"
"नॉनसेंस ! किसको तकलीफ है ? क्या तकलीफ है ?"
गुस्से से देखने वाली निगाहों को बर्दाश्त ना कर पाने के कारण उसने सिर झुका लिया। धीमी आवाज में बोली:- "यह सब बातें बताने करने का विषय नहीं है डॉक्टर। प्लीज ! मेरा यहां से रवाना होना ही अच्छा है सोचती हूं।"
"किसका ?"
"इस गांव को ?"
वह अपने गुस्से को दबाकर हंसा।
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क्रमश...