पागल
Dr. G.Singh
पागल एक छोटे शहर और उसके दरोगा का किस्सा है जिससे 3 भागों में लिखा गया है इस किस्से का वास्तविक नाम ‘रामनगर’ या ‘दरोगा बन्दूक सिंह’ होना चाहिए था | परन्तु बहुत सोच विचार करने के पश्चात् मैं इस निश्चय पर पहुंचा हूँ की इसका नाम ‘पागल’ रखा जाना चाहिए |
* रामनगर
* सिपाही बंदूक सिंह
* स्वर्गाश्रम
* होटल सम्राट
रामनगर
रामनगर दो लाख की मामूली आबादी वाला शहर
छोटा परंतु बहुत महत्वपूर्ण शहर । एक समय था जब रामनगर अपने रिकॉर्ड कृषि उत्पाद एवं गुणवत्ता के लिए जाना जाता था । समय बदल और युवा वर्ग की कृषि में रुचि लगभग खत्म हो गयी । बुजुर्ग अपने कंधों पर कृषि का बोझ जब तक ढो सकते थे ढोया उसके बाद रिकॉर्ड कृषि उत्पादन का महत्व खत्म हो गया ।
बदलाव महत्वपूर्ण है रामनगर के लिए कुछ अधिक ही महत्वपूर्ण क्योंकि बदलाव की धारा में रामनगर अपना कृषि संबंधी महत्व खो चुका है परंतु एक नए क्षेत्र में काफी तरक्की की । युवा वर्ग जोकि कृषि की मेहनत देखते हुए बड़ा हुआ बेशक उसे कृषि नहीं भायी परंतु उसी युवा वर्ग ने ट्रांसपोर्ट में अपना सर्वस्व झोंक दिया और रामनगर ट्रांसपोर्ट के क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण केंद्र बन गया ।
परंतु वक़्त कभी रुकता नहीं और रामनगर में शायद वक़्त कुछ अधिक रफ्तार से बदलता है । रामनगर आज ट्रांसपोर्ट का केंद्र नहीं रहा परंतु फिर भी महत्वपूर्ण नगर है ।
केंद्रीय मंत्री रामप्रताप नागर नई दिल्ली से अपनी बहुत बड़ी और महंगी कार द्वारा प्रांतीय राजधानी की तरफ रवाना हुए । दोपहर में एक अच्छे होटल में खाना खाने के बाद जब आगे का सफर आरंभ किया तब राष्ट्रीय राजमार्ग मनीषा नदी के किनारे किनारे आगे बढ़ रहा था । राजमार्ग के एक तरफ नदी और दूसरी तरफ हल्का जंगल मनमोहक नज़ारे और मंत्री जी भी अपनी हाथ की फ़ाइल साइड में रख कर मनमोहक नज़रो एवं संगीत में खो गए । अंधेरा होने से कुछ पहले मंत्री जी रामनगर से बाहर बने हुए स्वर्गाश्रम में उतरे जहां गुरु कमलानंद स्वामी का आशीर्वाद से ही मंत्री जी मंत्री पद हासिल कर पाए थे । कुछ वक्त स्वामी जी के पास बिता कर मंत्री जी होटल सम्राट में चले गए जहां उनका रात्रि विश्राम का तयशुदा प्रोग्राम था ।
केंद्रीय राजधानी से तकरीबन 10 घंटे की दूरी होने के कारण रामनगर का महत्व बढ़ जाता है । यहां केंद्रीय से प्रांतीय राजधानी की तरफ जाने वाले यात्री रात्रि विश्राम कर सकते है । रात्रि विश्राम के सभी साधन यहां उपलब्ध है । रामनगर की प्रांतीय राजधानी से दूरी भी लगभग 10 घंटे की है जो रामनगर को महत्वपूर्ण बना देती है उन यात्रियों के लिए भी जो प्रांतीय से केंद्रीय राजधानी की और सफर कर रहे हो ।
बहुत ही बढ़िया राष्ट्रीय राजमार्ग, मनीषा नदी और जंगल के किनारे किनारे बना हुआ राजमार्ग और सभी सुविधायों से सम्पन रामनगर जैसा शहर अधिकांश यात्री अपने साधन द्वारा ही यात्रा पसंद करते है और सम्राट होटल उनका पसंदीदा रात्रि विश्राम स्थल ।
रामनगर मनीषा नदी के एक तरफ बसा हुआ है और इसी मनीषा नदी के दूसरे किनारे पर राष्ट्रीय राजमार्ग । एक लंबा पुल रामनगर को राजमार्ग से जोड़ता है । राष्ट्रीय राजमार्ग पर यात्रा करनेवाले अधिकांन्श यात्री पुल पार नहीं करते ।
रामनगर कोई ऐतिहासिक नगर नहीं है जहां पर यात्री घूमने के लिए आये । परंतु रामनगर की अगर कोई जानी मानी चीज़ है तो वो है दरोगा बंदूक सिंह जी ।
बंदूक सिंह दरोगा जी का असली नाम नहीं है । जब दरोगा जी नंगे रामनगर की गलियों में घूमते थे उस वक़्त उनके कंधे पर एक लंबी छड़ी बंदूक की तरह लटकी रहती थी और जेब में एक गुलेल । कहने वाले यह भी कहते है कि दरोगा जी सोते वक्त भी छड़ी अपने पलंग के किनारे बंदूक की तरह खड़ी कर दिया करते थे । और गुलेल का निशाना बस यूं समझिए कि हो सकता है कि सूरज के रथ के घोड़े अपना रास्ता भूल जाये परंतु दरोगा जी की गुलेल से निकल पत्थर अपना निशाना नहीं भूलता । यही दरोगा जी जब एडमिशन के लिए स्कूल पहुंचे तब हेडमास्टर जी ने उनको बंदूक कह कर संबोधित किया और बस फिर यही संबोधन उनका असली नाम बन गया ।
रामनगर और उसके आसपास के शहर कभी डाकू मनोहर लाल के कहर से कांपता था । यह वो वक़्त था जब रामनगर ट्रांसपोर्ट का बड़ा केंद्र था । उस वक़्त रामनगर की आबादी थी लगभग डेढ़ लाख और अधिकांन्श परिवार सम्पन थे । अधिकांन्श घर पक्के बने हुए थे और घरो में 1 या 2 ट्रक थे । यहां उस वक़्त उच्च वर्ग के नाम पर चौधरी रामफूल का बोलबाला था और निम्न वर्ग लगभग नहीं था । इसीकारण कृषि मजदूरों एवं घरेलू मजदूरों का हमेशा अभाव रहता था । शायद इसीकारण रामनगर आत्मनिर्भर एवं स्वस्थ नगर था ।
डाकू मनोहर के लिए रामनगर कभी भी आकर्षण नहीं रहा क्योंकि यहां उच्च वर्ग था ही नहीं परंतु आसपास के गांव डाकू दल के कहर से कांपते थे । फिर भी डाकू तो डाकू ही है इसीलिए पुलिस का होना भी जरूरी है । और इसी पुलिस का एक हिस्सा बन गए बंदूक सिंह जी ।
बंदूक सिंह जी जब पुलिस में भर्ती हुए तब रामनगर शहर के अंदर पुलिस चौकी थी । डाकू दल के कारण यह महसूस किया गया कि खूनी पूल पर पहरा बढ़ाया जाए और इसीलिए एक छोटी सी चौकी पुल के दूसरी तरफ जंगल के किनारे पर स्थापित की गई । और इसी छोटी सी चौकी पर ही दरोगा बंदूक सिंह जी ने अपना नौकरी एक सिपाही के तौर पर आरंभ किया था । आज बंदूक सिंह जी इसी छोटी चौकी के बड़े से दरोगा है ।
खूनी पुल का अपना इतिहास है । यह पूल उतना ही पुराना है जितना कि रामनगर शहर । रामनगर शुरू से ही सम्पन शहर रहा शायद इसीलिए रामनगर के छोरो में प्रेम एक रोग की तरह पनपता रहा और नाकाम प्रेमी इसी पूल से मनीषा नदी में कूद कर अपनी जान देते रहे है । कुछ प्रेमिकाओं ने भी कोशिश की और कुछ कामयाब भी हो गयी । और ऐसा तब तक चलता रहा जब तक की पुल पर एक पुलिस वाले कि ड्यूटी लगवा दी गयी । उसके बाद डाकू दल के कारण पुल के पार एक छोटी चौकी बना दी गयी । आत्महत्याएं तो रुक गयी परंतु पुल का नाम खूनी पुल ही बना रहा ।
हालांकि खूनी पूल पर छुटपुट घटनाएं हमेशा होती रही परंतु वास्तविक और बड़ी घटना वो थी जिससे मनोहर डाकू का आतंक हमेशा के लिए खत्म कर दिया । पुल पार की चौकी पर 8 सिपाही तैनात थे परंतु पुल पर एक सिपाही की ड्यूटी लगा कर बाकी रात में आराम करते थे और उस रात सिपाही बंदूक सिंह की ड्यूटी थी ।
कहने वाले कहते हैं कि बंदूक सिंह अकेले पुल पर अपनी पुरानी परंतु एकदम चौकस राइफल के साथ पहरे पर थे जब डाकू मनोहर सिंह अपने 10 साथियों के साथ नज़दीकी गांव के चौधरी को लूट कर वापिस जंगल की तरफ लौट रहा था । डाकू दल ने परिवार के 20 लोगों को गोलियों से भून दिया था और इसी हिंसा के कारण और शायद कुछ शराब के कारण उनकी आंखों मैं खून दौरे कर रहा था जब सिपाही बंदूक सिंह ने अपनी और से डाकू दल को ललकारा । भयानक डाकू दल जिसने 11 डाकू मौजूद हो और सामने एक अदना सा ललकारता हुआ सिपाही । डाकू दल इस अपमान को कैसे बर्दास्त करता । दोनों तरफ से गोलियां चलने लगी और अकेले सिपाही बंदूक सिंह ने अपने अचूक निशाने के दम पर 11 के 11 डाकू नरक यात्रा पर भिजवा दिए । और छोटी चौकी के बाकी सिपाही उसके बारे में कहा जाता है कि जब गोली चलनी शुरू हुई तब हड़बड़ा कर उठे जरूर परंतु किसी की हिम्मत नहीं हुई बाहर आकर देख जाने की । कुछ लोग तो यहां तक कहते है 4 सिपाहियों ने अपनी पतलून गंदी कर दी थी जिसे उन्होंने अगली सुबह मनीषा नदी में साफ किया । और बाकी 3 सिपाही डर के कारण बेहोश हो गए । और बंदूक सिंह अकेले मोर्चे पर लोहा लेते रहे ।
लोगो के कहने से क्या होता है सरकारी रिकॉर्ड जोकि बंदूक सिंह की गवाही पर आधारित है तो यही कहता है कि 8 के 8 सिपाही पुल पर मौजूद थे और सबने डाकू दल को मिटा देने में सहायता की । डाकू दल का पोस्टमर्त्रेम रिपोर्ट सरकारी रिकॉर्ड में एक कमी है । पोस्ट मर्त्रेम रिपोर्ट कहते है कि सब डाकू बंदूक सिंह की गोली से मारे गए । शायद इसीलिए सरकार ने बंदूक सिंह को चौकी का दरोगा बना दिया और उनकी 1 लाख का नकद इनाम भी दिया ।
आज जब केंद्रीय मंत्री होटल सम्राट में रात्रि विश्राम के लिए दाखिल हुए तब डाकू दल को खत्म हुई तकरीबन 15 वर्ष गुजर चुके है । यह 15 वर्ष रामनगर के लिए तो 1 युग की तरह गुजरे है । और 15 वर्ष के युग में रामनगर जो कभी एक सम्पन शहर था अब अपनी सारी सम्पनता 6 परिवारों के पास गिरवी रख चुका है । और दरोगा बंदूक सिंह जी ने भी बहुत तरक्की की है मनीषा नदी के दूसरी तरफ बना होटल सम्राट जिसमे मंत्री जी दाखिल हुए दरोगा जी का ही है । कहा जाता है कि यह होटल इनाम के 1 लाख से शुरू किया गया था और आज यह करोड़ो का व्यवसाय है ।
वास्तव में तकरीबन 20 साल पहले होटल नहीं बल्कि ढाबा खोला गया था एक गरीब महिला द्वारा । गरीब महिला एक फौजी की पत्नी थी जो देश के लिए शहीद हुए और पत्नी को सरकारी आज्ञा से जंगल किनारे जमीन और ढाबा खोलने की परमिशन मिली । ढाबा पूरी तरह से छोटी चौकी पर तैनात सिपाहियों को खाने की सुविधा और बस यात्रियों पर निर्भर । जब बंदूक सिंह चौकी पर पहुंचे तब दिन में 2 बार खाने और 3 बार चाय के लिए ढाबे पर जाते और वही पर ढाबे वाली की इकलौती लड़की से आंखे चार कर बैठे और आखिर में एक वफादार आशिक़ की तरह विवाह बंधन में भी बंध गए । एक समय का ढाबा आज होटल सम्राट के नाम से जाना जाता है ।
वेसे होटल सम्राट का भी एक इतिहास है । जब फौजी की विधवा को सरकार की तरफ से ज़मीन दी गयी तब साथ में होटल खोलने का परमिशन भी दिया गया । ज़मीन जंगल के किनारे पर थी इसीलिए लंबाई में बहुत दूर तक फैली और चौड़ाई में बस 40 फ़ीट । तो इसी 40 फ़ीट छोड़ी ज़मीन पर सम्राट नाम का ढाबा खोल गया । जब दरोगा बंदूक सिंह का जमीम पर अधिकार हुआ उस वक़्त जंगल को आरक्षित कर दिया गया मतलब की वहां और कोई ज़मीन नहीं बची जा सकती थी और न ही कोई दूसरा होटल खोला जा सकता था । इसीकारण सम्राट नाम का ढाबा ट्रक ड्राइवरओं के लिए बहुत सुविधाजनक बन गया । फिर जब दरोगा जी ने ढाबे को होटल में बदला तो न केवल ट्रक यात्रियों बल्कि अपने साधन से यात्रा करने वाले यात्री भी यहां रुकने लगे । बढ़ते व्यवसाय एवं कॉम्पिटिशन के न होने के कारण दरोगा जी ने उस लंबी ज़मीन पर 3 होटल बना दिये । और सबका एक ही नाम सम्राट । ऐसा जरूरी था क्योंकि परमिट एक ही होटल का था । तो सम्राट होटल वास्तव में 3 अलग अलग इमारतों में बना हुआ है । एक इमारत वो जिसमे मंत्री जी उतरे यहां पर सभी कमरे आलीशान है और किराया भी बहुत अधिक । दूसरी इमारत तकरीबन 300 मीटर दूर जोकि अच्छे परंतु साधारण कमरे से युक्त यहां पर साधारण आयवर्ग के यात्री विश्राम कर सकते है । आखिरी इमारत और आगे बानी जोकि एक तरीके से सराय कहि जा सकती है यह ट्रक ड्राइवर के लिए उपयुक्त है । इस तरह सम्राट होटल एक ही परमिट पर सब तरह के यात्रियों को विश्राम की सुविधा प्रदान करता है ।
तीनों इमारतों से आगे जहां पर दरोगा जी की ज़मीन समाप्त होती है और जंगल की सीमा शुरू होती है वहीं पर स्वर्गाश्रम बना हुआ है । स्वर्गाश्रम वास्तव में कई झोंपड़ियों का समूह मात्र है । परंतु इसे वास्तव में झोंपडी कहना उचित नहीं यह झोंपड़ियां सब तरह की सुविधाओं से सम्पन है । इस स्वर्गाश्रम का भी विलक्षण इतिहास है ।
काफी पहले शायद जब मंत्री जी राजनीती के मैदान के एक छोटे से सिपाही मात्र थे | इलेक्शन का वक़्त थे और रामप्रताप नागर प्रचार अभियान पर थे | व्यस्त कार्यक्रम और उसी व्यस्तता मैं एक घने पेड़ के पास कुछ आराम और कुछ भूख का इंतज़ाम करने के लिए उतरे | वही एक तरफ एक गेरुए वस्त्र धरी एक व्यक्ति एक पत्थर पर बैठ हुआ था | उन्होंने 2 रोटी गेरुए वस्त्रधारि व्यक्ति को भी पेश की । आशीर्वाद के तौर पर गेरुएवस्त्रधारी ने नागर साहब के मंत्री बनने की भविष्यवाणी कर दी । नागर साहब पुलकित हो उठे । इलेक्शन जीत गए परंतु मंत्री पद हासिल नहीं हुआ | नागर साहब स्वामी जी को तलाश करते हुए वहीँ पहुंचे जहाँ उन्हें आशीर्वाद प्राप्त हुआ था | स्वामी जी ने एक बार फिर मंत्री बनने की भविष्यवाणी की और इंतज़ार करने की आज्ञा सुनाई | 5 वर्ष गुजर गए नए सिरे से इलेक्शन हुए इस बार नागर साहब मंत्री पद पा गए । और स्वामीजी की महिमा राजनीतिक तबके मैं नीचे से ऊपर तक छा गयी | इसी महिमा का परिणाम यह आश्रम है | कहा यह भी जाता है की स्वामी जी आश्रम से कोई सम्बन्ध नहीं रखते यह आश्रम तो भगतों की श्रद्धा मात्र है | स्वामी जी आज भी वही पत्थर के पास अपनी साधना मैं लीन रहते है | और आश्रम की व्यवस्था नित्यानंद और उनकी पत्नी आनंदी देवी करते है |