दुलदुल घोड़ी एक पाठकीय प्रक्रिया
राजनारायण बोहरे
पुस्तक समीक्षा
पुस्तक का नाम दुलदुल घोड़ी
लेखक रामगोपाल भावुक
प्रकाशक ममता प्रकाशन दिल्ली
मूल्य ₹125
समीक्षक राजनारायण वोहरे
दुलदुल घोड़ी एक पाठकी प्रक्रिया
दुलदुल घोड़ी शीर्षक पुस्तक पंच महल बोली के क्षेत्र कथा लेखक रामगोपाल भावुक का पहला रचना संग्रह है । इसके पहले उनके छह उपन्यास प्रकाशित हो चुके हैं । प्रस्तुत संग्रह में उनकी 24 रचनाएं हैं, उनमें से कुछ लघु कथाएं, कुछ संस्मरण, कुछ इतिहास विवेचन, चार उपन्यास अंश और कुछ कहानियां निश्चित की जा सकती हैं ।
पहली कहानी मुरमुरा के लड्डू एक ऐसे किसान की व्यथा कथा है जो सदैव नौ खाये तेरह की भूख की स्थिति में रहता है । मंडी में अनाज बेचकर घर भर के लिए सौदा कर कर के लाया कुंडेरा और उसकी पत्नी गल्ला व्यापारियों को इसलिए कोसते है की कम दाम और कमतौल की शोषणकारी तरकीब लगाकर वे लोग गरीब कृषकों को ठगते हैं । कहानी के अंत में कृषक के दोनों बेटे लालू और जीत लिया एक जगह लेखक ने उसे तूतूरिया भी लिखा है आइंदा खुद मंडी जाकर व्यापारियों के शोषण को नाकाम करने का निश्चित करते हैं । इस कथा में वर्णित कुढ़िरा की भावपूर्ण जिंदगी में अतिरिक्त दिखता है।
कलुआ कहानी में चौधरी रामनाथ द्वारा शोषित एक कुम्हार की कथा है, जो गांव छोड़ने या चौधरी के मुकाबले तन कर खड़ा होने की मानसिकता बनाकर जन जागरण करता है । इसी कथा का पूर्वार्ध का हिस्सा इस संग्रह की एक और कहानी पंच महल की गंध लगती है ,क्योंकि इस कथा में भी शांति और चौधरी रामनाथ हैं । वहां पन्ना बढ़ाई पर जाने पर शांति के नए पति के रूप में चौधरी धनुआ को बुलाते हैं । यह कथा पंच महल की गंध में है कहानी कलुआ में बढ़ाई की जगह कुमार और कलुआ की जगह धनुआ भर लिख दिया है अन्यथा दूसरा पति बनने चौधरी के द्वारा बुलवाने की घटना की चर्चा कलुआ में भी है , कहानी वही पंचमहल की गंध है ।
एक बार कहानी में विधवा स्त्री पात्र के साथ अपने एक महत्वपूर्ण श्याम का बचपन से पालन पोषण करती है । किशोरावस्था में आने पर श्यामू को पढ़ाने हेतु शहर चली जाती है और गांव में अपने खेत बटाई पर दे जाती है वहां पर वह अपने गांव के दो किशोरों को भी साथ रख लेती है । श्यामू को टीवी हो जाती है तो वह उसे अस्पताल में भर्ती करा देती है । डॉक्टर भगवत सहाय नामक चिकित्सक के इलाज से श्यामू ठीक हो जाता है । लेखक को पूरे प्रसंग में कहानी कहां नजर आती है यह समझ में नहीं आता ।
दुलदुल घोड़ी एक ऐसे पात्र की कथा है जो शादी विवाह के अवसर पर घोड़े की आकृति का बना हुआ पुतला कमर में बांध के नृत्य करता है । धीरे-धीरे वह प्रचलन बंद हो गया । पूर्व में इस काम में बहुत ज्यादा धन उपार्जन नहीं होता था । बाद में तो खाने के लिए भी लाले पड़ गए । दुलदुल घोड़ी का स्वांग बनाकर नृत्य करने वाला कलाकार शम्मा गवालियर जाकर एक बैंड वाले के साथ जुड़ जाता है । उस बैंड वाले के साथ उसने स्वांग की प्रस्तुति करता है । लेखक वर्षों बाद उसे देखता है तो उसकी मुखाकृति और बाड़ी लैंग्वेज से इस कलाकार का दर्द समझ कर दुखी होता है । जीवन की आशा में संघर्ष करते टूटे मन से शम्मा की ही नहीं , यह हर श्रमजीवी जन कलाकार की अंतर व्यथा है, यह कहानी एक आदमी कहानी की 90% शर्तों को पूरा करती है । संग्रह की राजा बेटा , चाह नहीं ,आंखों में गुर्जर नहीं होते ,बच्चों का डर लघुकथा हैं , जो इस कथा में अपने विधायक अभाव ही नहीं प्रस्तुत कथा कमजोर की वजह से भी उल्लेखनीय नही है ।
राजा की दिव्य दृष्टि एक राजतंत्र अथवा जनतंत्र राजा की कथा है, जो अकाल पीड़ित राजा के लिए राहत कार्य खोलता है । जिसका प्राया पूरा भाग ठेकेदार डकार जाता है । सेल का एक नए आदेश आते हैं कि ठेकेदार के काम बंद अवशेष कार्य सरपंच कराएंगे । सरपंच तो पूरा ही डकार गए लोग भूख से मरने लगे तो राजा ने भुखमरी से मारे गए 60 लोगों को जहरीली शराब से मरने वाला घोषित कर अपने राज्य का कलंक मिटा लिया ।
आकार का विशिष्ट नाम ही पात्र संवादहीन कथा होने से इस कहानी में संपूर्ण इयत्ता पूरी तरह सफल नहीं होपाती । कवि की व्यथा में स्थानी कवि की आत्मग्लानि और राजकाज में मेहनती अध्यापक की पीड़ा शामिल है उन्हें आंशिक रूप से कहानी कहा जा सकता है । अन्यथा यह संस्मरण ही है ।
हड़ताल की तरह मौजी, तुलसी की रचना, एकलव्य, भवभूति रचनाएं लेखक के उपन्यास कौन सा गांव ,रत्नावली एकलव्य और भवभूति नामक उपन्यासों के दरअसल उपन्यास अंश है, जो पता नहीं क्यों लेखक ने इस तरह कहानी के रूप में शामिल किए हैं ।
इसी तरह नर्स की, लाडली प्रवीण का एक ऐतिहासिक प्रसंग का सहज वर्णन है जो कहानी की ना कि नाटका से सर्वथा भिन्न है । इस कारण बेअसर है ।
इस संग्रह की भाषा पर पंचमहल कदर हावी है कि पूरे पूरे संभाग पंचमहल ही बोली होने के कारण ,इस अंचल से दूर के पाठक पर भारी पड़ जाते हैं संभवत यह व्यवधान लेखक को अपनी बोली के प्रति अतिरिक्त आग्रह होने के कारण हैं । लेखक ने अपनी कथा सर्जना और संवाद योजना में कोई निजी कलात्मक शैली नहीं लाई है, इस कारण एक ही पैराग्राफ में अलग-अलग पात्रों के संवाद जाते आते जाते हैं । पाठक दुविधा में पड़कर अपना मन एकाग्र करता है संवाद समझने का प्रयास प्रयत्न करता है । यादें में से लेखक हर संभाग में नई-नई ग्राफ से शुरू करना चाहिए । यही दोस्त लेखक के सभी उपन्यासों में मौजूद है । संग्रह कलुआ की कथा दो टुकड़ों में बांटकर दो नाम से भला किस मनसा से किया है या गया है यह तो स्पष्ट नहीं होता । संस्मरण, लघुकथा उपन्यास आंसुओं की कहानी के रूप में अभुज पड़ती है,
इन कथाओं के कुछ के कथानक भी कुल्फी और निरर्थक जान पड़ते हैं । हां इनके पास उनकी समस्याएं जरूर यथार्थ के निकट जान पड़ती हैं । मात्र मुरमुरा के लड्डू, दुलदुल घोड़ी की कहानी की शर्तों को काफी कुछ पूरा करती हैं । दुलदुल घोड़ी निश्चित ही शीर्षक कथा बनने योग्य है ।
कुल मिलाकर इस संग्रह से कलात्मकता संपूर्णता संवाद योजना की अपेक्षा न की जाए तो उसे कहानी संग्रह माना जा सकता है । जबकि इस कथा संग्रह के साथ साथ छापा उनका उपन्यास गूंगा गांव को एक अवस्थी से भर देता है कि कथा रचना के उपन्यास एक आयाम में लेकर काफी हद तक सफल और कुशल है । गूंगा गांव ग्राम साल्वे मैं शरणार्थी बन के आए मौजी राम तब भी गांव की मुख्य धारा से अलग नहीं होता । जबकि जाटव मोहल्ले के कुछ उच्च कल युवकों से विवाद हो जाने के कारण और यारों की टोली दान आज का इस जाटव मोहल्ले में नहीं आता । पूरे कुनबे के साथ गांव के प्रभावशाली लोगों के यहां काम करता । मोजीराम इतना भी नहीं पाता, कीर्तन ढक सके और पेट भर सके । अपने इस चिंतन कुंदन मास्टर को पुलिस से छुड़ाने के चक्कर में कम्युनिस्ट पार्टी के संपर्क में आया मौजी बाद में अपने वर्ग के लोगों का नेता बनकर उनके हक हुकुम के लिए लड़ने फिरने लगता है । उसको हत्या को भेजें किराए के गुंडों के हमले को कुंदन ना काम करता है । अपनी हर रचना की तरह इस उपन्यास में पंचवेली बोली की प्रचुरता जहां इस उपन्यास की संपूर्ण सत्ता को कमजोर करती है वही डबरा का नाम जानबूझकर भगवतीनगर किया जाने से लेखक की संस्कृत कवि महाकवि भवभूति के प्रति निष्ठा समर्पण और भक्ति भाव प्रकट करता है । उल्लेखनीय है कि लेखक का उपन्यास भवभूति तमाम शोध पूर्ण संदर्भों कल्पनाशीलता भाव संप्रदाय और ऐतिहासिक तथ्यों के बावजूद लिए उतना सफल नहीं रहा कि भवभूति के व्यक्तित्व और कृतित्व से हद दर्जे तक प्रभावित लेखक इस तरह भभूति दुनिया तंग करने में जुटा रहता है । एक पैराग्राफ में कई प्रश्न उत्तर और कई अंतर्द्वंद वक्तव्य भी लेखक को प्राया हर रचना के में देखने को मिलते हैं जो उनकी कलात्मकता कुशलता औपचारिकता है तथा प्रभा बीच में बिना किसी संदर्भ के नीति वाक्य वंशानुगत वक्तव्य देखकर लेखक अपनी रचना की सिलता कम ही करता है कदाचित लेखक अपने भाषागत पूर्वाग्रह चरित्र कृत जूना गायन और लेखक शिल्प की सीमाओं का अतिक्रमण कर लेता तो यह पुस्तक अनीता और प्रशंसनीय की मिसाल कायम करती