vah ek din in Hindi Philosophy by Lovelesh Dutt books and stories PDF | वह एक दिन

Featured Books
  • મથુરા, વૃંદાવન

    મથુરા, વૃંદાવનમથુરા શ્રીકૃષ્ણ જન્મસ્થાન, વૃંદાવન કસી ઘાટ, પ્...

  • સરપ્રાઈઝ

    *સરપ્રાઈઝ* પ્રેક્ષાનો શ્વાસ રુંધાવા લાગ્યો. એ બેડ પર હાથ પછા...

  • ખજાનો - 35

    ( આપણે જોયું કે લિઝા,જોની, સુશ્રુત અને હર્ષિત માઈકલને બચાવવા...

  • હમસફર - 25

    રુચી : હું ખુશ છું કે તને તારી ભૂલ સમજાણી અને પ્લીઝ આવું ક્ય...

  • ભીતરમન - 37

    મેં માએ કહ્યા મુજબ બંગલામાં વાસ્તુ પૂજા કરાવી હતી, ત્યારબાદ...

Categories
Share

वह एक दिन

वह एक दिन
--लवलेश दत्त

‘उफ! यह तो बहुत मुसीबत हो गयी’, अखबार की हेडलाइन ‘देश में इक्कीस दिन के लिए संपूर्ण लॉक डाउन’ पर नज़र पढ़ते ही शर्मा जी के मुँह से निकला, ‘इस महामारी ने तो जीना मुश्किल कर दिया है...पता नहीं क्या होने वाला है? करे कोई भरे कोई...अब भुगतो’ मन ही मन सोचते हुए शर्मा जी ने दरवाजे के नीचे से पड़ा अखबार उठाया और आँगन में रखे गमलों के पास बैठकर अखबार पढ़ने लगे।
यह उनकी दिनचर्या का अंग है। सुबह उठकर वह सबसे पहले अखबार पर ही नज़र डालते हैं। आम दिनों में तो उनके इस क्रम में कभी नागा हो भी जाए लेकिन जब से कोरोना महामारी ने देश में हाहाकार मचाया है, वह प्रतिदिन सबसे पहले अखबार ही पढ़ते हैं। अखबार के समाचारों पर सरसरी नज़र डालते हुए उनकी दृष्टि एक समाचार पर पड़ी, ‘वरिष्ठ नागरिकों पर कोरोना ज्यादा प्रभावी’। शर्मा जी ने खबर पढ़कर सोचा, ‘जिनको साँस की परेशानी है उनके लिए तो सचमुच कोरोना जानलेवा है।’ अचानक उन्हें अपने दिवगंत मित्र की स्मृति हो आई जिनकी मृत्यु दो वर्ष पहले साँस की तकलीफ के कारण ही हुई थी।
उन्होंने अखबार के पन्ने पलटे और स्थानीय पृष्ठ पर पहुँचते ही एक खबर से चौंक पड़े, ‘सुभाषनगर में मिला कोरोना पॉजिटिव, पूरा क्षेत्र सील’ शर्मा जी पूरा समाचार एक ही साँस में पढ़ गए। ‘अरे, यह तो बहुत बुरा हुआ। गली नंबर पाँच यानी कि यहाँ से तीसरी गली,’ उन्होंने हिसाब लगाया कि तभी उन्हें अनाउंसमेंट सुनाई पड़ा, ‘सभी क्षेत्रवासियों को सूचित किया जाता है कि गली नंबर पाँच में कोरोना का एक मरीज पाया गया है। इसलिए इस पूरे क्षेत्र को चौदह दिनों के लिए हॉट स्पॉट बनाया जा रहा है। आप सभी से निवेदन है कि किसी भी परिस्थिति में घर से बाहर न निकलें। अपने दरवाजों पर भी खड़े न हों’ शर्मा जी अनाउंसमेंट सुन ही रहे थे कि उनका फोन बज उठा। उन्होंने फोन उठाया और इससे पहले हैलो बोलते उधर से आवाज आई, “हैलो, ताऊ जी, अब काम करन नाँय आ पावोंगी, जेऊ मने कर रए। कै रए कैरोना बीमारी फैल गयी सो सब लोगन को घरन में बंद रैनो है। आपहु अपनो ध्यान राखिओ और फिरीज में लौकी, तुरइया, बैंगन, फली परी भई हैं। आप रांध लिओ। जब लौ मरो कैरोना चलेगो, घरै से नाँय निकर पैहैं।” “ठीक है, कोई बात नहीं। तुम सब भी अपना ध्यान रखना,” कहकर शर्मा जी ने फोन काट दिया।
फोन चम्पा का था। चम्पा शर्मा जी की कामवाली है। कई सालों से वह उनके यहाँ काम कर रही है। फोन रखकर शर्मा जी कुछ पलों के लिए शान्त बैठकर सोचने लगे, ‘कैसे कटेंगे इक्कीस दिन? घर में पड़े-पड़े तो ऊब जाएँगे।’ फिर उनके दिमाग में आया, ‘हमारी सुरक्षा के लिए ही सरकार यह सब कर रही है। कोई बात नहीं, कट ही जाएँगे इक्कीस दिन। वैसे भी तो कितने काम पेन्डिंग हैं, एक-एक करके उनको पूरा करूँगा।’ रसोई में जाकर उन्होंने कुछ डिब्बों को खोलकर देखा और हिसाब लगाया, ‘आटा, चावल, दाल, घी, तेल, नमक, चीनी...राशन तो पूरा है, उसकी कोई समस्या नहीं। कुछ सब्जियाँ और फल भी पड़े हैं’ उन्होंने फ्रिज खोलकर देखा। उन्हें संतुष्टि हुई कि रसोई में राशन पर्याप्त था।
बीस साल पहले एमईएस से सेवानिवृत्त होकर श्रीपाल शर्मा अपना पर्वतारोही और फोटोग्राफी क्लब चला रहे हैं। पर्वतारोहण के अनेक कीर्तिमान उनके नाम हैं। लगभग अस्सी वर्ष की आयु में भी पूर्ण स्वस्थ और ऊर्जस्वित हैं। हमेशा हँसते-खिलखिलाते और मस्त रहते हैं। अपने पर्वतारोहण के जुनून के कारण उन्होंने गृहस्थी बसाने की कभी नहीं सोची। जब भी कोई उनसे विवाह के विषय में बात करता तो वे कहते, “मुझे पर्वतारोहण का शौक नहीं जुनून है। पर्वतों की चोटियों पर चढ़ना बहुत खतरनाक होता है, यह समझ लो कि जानबूझकर अपनी जान जोखिम में डालना। फिर पर्वतारोहण के और भी बहुत से खतरे हैं। क्या पता कब और कहाँ दिल धड़कना बंद कर दे या साँस आनी बंद हो जाए। ऐसे में मैं गृहस्थी बसाकर अपने साथ किसी और का जीवन बर्बाद नहीं करना चाहता। इसलिए इस विषय नहीं सोचता,’ फिर वह एक आँख दबाकर मजाक में कहते, ‘वैसे एक राज़ की बात बताऊँ? पर्वतों की चोटियाँ ही मेरी महबूबाएँ हैं। जिसकी इतनी सारी प्रेमिकाएँ हों वह केवल एक का होकर कैसे रह सकता है?’ यह कहकर वह खिलखिलाकर हँस पड़ते।
‘प्रधानमंत्री ने कोरोना महामारी के चलते देश में इक्कीस दिनों के लिए लॉक डाउन घोषित किया। लोगों से घर से न निकलने की अपील की।’ शर्मा जी ने देखा कि टीवी पर भी वही समाचार आ रहा है जो अखबार में छपा है। उन्होंने घड़ी देखी, ‘सात पच्चीस, अभी तो पाँच मिनट हैं’ सोचते हुए उन्होंने अपना आसन बिछाया, तौलिया, पीने का पानी आदि लेकर टीवी के सामने बैठ गये। वह प्रतिदिन साढ़े सात बजे से आठ बजे तक स्वामी रामदेव का योग देखते हुए स्वयं भी योगाभ्यास करते हैं। टीवी पर योग शुरू हो चुका था। शर्मा जी ने भी अनुलोम-विलोम, प्राणायाम आदि करते हुए योगाभ्यास आरंभ किया ही था कि फिर फोन बजा। शर्मा जी योग के दौरान फोन नहीं उठाते हैं। अतः फोन बजता रहा, उन्होंने एक दृष्टि डालकर देखा फोन उनकी भाँजी मीना का था। उनके मन में आया, ‘कोरोना से सावधान रहने के लिए ही कहेगी, बाद में बात करूँगा,’ सोचकर हल्की सी मुस्कान उनके चेहरे पर आयी और वह योगाभ्यास करते रहे।
मीना उनके घर से थोड़ी ही दूरी पर अपने परिवार के साथ रहती है। प्रतिदिन वह या उसके बच्चे शर्मा जी के घर आते रहते हैं। ज़रूरत पड़ने पर उनके बाजार आदि के काम ही नहीं बल्कि घर के कामों में उनकी सहायता भी करते है। एक प्रकार से मीना और उसका परिवार हर तरह से शर्मा जी की देखभाल करता है। मीना खुद भी शर्मा जी के स्वास्थ्य से लेकर खाने-पीने, कपड़े आदि का पूरा ध्यान रखती है। कुछ भी असावधानी होते ही शर्मा जी को कभी मीठी झिड़की तो कभी कभी डाँट भी देती है। शर्मा जी मुस्कुराते हुए उसकी हर आज्ञा का पालन करते हैं। कभी-कभी कह भी देते हैं, ‘तू तो माँ से भी ज्यादा सख्ती करती है।’
आधे घंटे दत्तचित्त होकर योगाभ्यास करने के बाद शर्मा जी ने मीना को फोन मिलाया, “हाँ, बोल क्या कह रही थी?”
“योगा कर रहे थे?” मीना ने पूछा।
“हाँ, तू बता तूने कैसे फोन किया?”
“सब बन्द है। घर से मत निकल जाना। बुड्ढों को बहुत खतरा है,” मीना खिलखिलायी।
“हा-हा-हा, तुझे मैं कब से बुड्ढा लगने लगा?”
“अरे हाँ, आप कहाँ, बुड्ढ़े हो? आप तो नौजवान हो। फिर भी घर से मत निकलना, वरना कोरोना सारी गलतफहमी निकाल देगा, समझे मामा जी,” कहकर मीना एकबार फिर हँसी और अपनी बात आगे बढ़ाते हुए बोली, “अपना ध्यान रखना मामा जी। दवाई बगैरह सब समय से लेते रहना। अगर कोई समस्या हो तो तुरन्त फोन कर देना।”
“हाँ, हाँ, ठीक है। तुम सब भी अपना ख्याल रखना,” शर्मा जी ने कहा और फोन काट दिया।
स्नानादि करने के बाद शर्मा जी ने अपने लिए चाय नाश्ता तैयार किया और टीवी चलाकर अपनी आराम कुर्सी पर बैठ गये। एक, दो, तीन, चार क्रमशः सभी चैनलों पर कोरोना से सम्बन्धित जानकारियाँ ही आ रहीं थीं। टीवी देखते-देखते शर्मा जी अपनी आराम कुर्सी पर झपकी लेने लगे। अभी कुछ ही मिनट बीते थे कि उनके मित्र का फोन आ गया। कुशलता पूछने के बाद उनके क्षेत्र के हॉट स्पॉट बनने, सील होने तथा पूरी तरह से घर से बाहर निकलने पर प्रतिबंध होने की जानकारी लेने के बाद फोन कट गया। थोड़ी-थोड़ी देर बाद उनके अनेक मित्रों का फोन आता रहा और लगभग सभी एक-सी बातें करते और पूछते रहे।
दरअसल शर्मा जी बहुत जिन्दादिल और मिलनसार व्यक्ति हैं। अस्सी वर्ष की अवस्था में भी उनके मित्र हर आयु के हैं। लगभग रोज़ ही उनसे मिलने आने वाले मित्रों में उनकी संख्या अधिक है जो उनसे आयु में बहुत कम हैं। उनके मित्रों के बच्चे भी उनके मित्र हैं। इसका कारण यह है कि वे सबके साथ सबके जैसे हैं। बच्चों के साथ बच्चों जैसे, बड़ों के साथ बड़ों के जैसे। उनके पास उनके संघर्षमय जीवन के साथ पर्वतारोहण के भी अनेक किस्से हैं जिसे आगंतुक बहुत चाव से सुनते हैं। इसके साथ शर्मा जी के जीवन का एक पक्ष यह भी है कि वे जरूरतमंद लोगों की निस्वार्थ सेवा करते हैं। इस कारण भी उनके मित्र और शुभचिंतकों की लम्बी सूची है। परिचितों की संख्या तो पूछो ही मत। शायद ही शहर का कोई ऐसा व्यक्ति होगा जो शर्मा जी को न जानता हो। उसका कारण उनका विश्वविख्यात पर्वतारोही होना तो है ही लेकिन आयु के इस पड़ाव में भी अनेक कार्यक्रमों में हिस्सा लेना और जींस-टीशर्ट पहनकर अपनी मँहगी मोटरसाइकिल पर शहर भर में घूमना भी लोगों के आकर्षण का केन्द्र है।
पूरा दिन मित्रों और शुभचिन्तकों से फोन पर बातें, टीवी, छोटे-मोटे घरेलू काम, खाना बनाने, पेड़-पौधों की देखभाल करने में कट गया। शाम को भी संध्या वंदन, ध्यान और टीवी देखते-देखते हल्का–सा रात्रिभोजन करने के बाद शर्मा जी सो गए। लगभग इसी प्रकार की दिनचर्या से सात दिन कट गये।
उस दिन सुबह से ही शर्मा जी के चेहरे पर उदासी-सी थी। न जाने क्यों आज किसी काम में उनका मन नहीं लग रहा था। रोज टहलने जाने वाले शर्मा जी ने अपनी ही छत पर टहलना आरंभ कर दिया था। आज छत टहलते हुए उनका मन नहीं लगा। वे दस ही मिनट में नीचे उतर आए। पिछली रात बारिश होने से मौसम भी कुछ ठंडा हो गया था। शर्मा जी को हल्की सी ठंड लगी और शरीर में सिहरन दौड़ गयी। मन भारी हो रहा था। उन्होंने थर्मामीटर से अपना बुखार नापा। हरारत थी। योग करने में भी मन नहीं लगा। नहाने और नाश्ता करने का भी मन नहीं किया। दो बिस्किट चाय के साथ लिए और अपनी आराम कुर्सी पर बैठ गए। टीवी बहुत धीमी आवाज़ में चल रहा था। टीवी पर वही घिसी-पिटी खबरें चल रही थीं लेकिन ध्यान टीवी पर न होकर सामने दीवार पर लगे मातापिता के चित्रों पर था। वे चित्रों को गौर से देख रहे थे और अपने बचपन की बातें याद कर रहे थे। कैसे उनकी माँ उन्हें स्कूल के लिए तैयार करतीं और पिताजी अपनी साइकिल पर बैठाकर उन्हें स्कूल छोड़ने जाते। उन्हें एक-एक कर अपनी बचपन की बातें याद आने लगीं। कभी पिता के दुलार तो कभी माँ के प्यार की यादें आँखों से छलकने लगीं थीं।
उनकी डबडबायी आँखें मातापिता के चित्रों से खिसक कर बड़े भाई और भाभी के चित्रों पर अटक गयीं। कुछ पलों के लिए उनकी स्मृतियों ने भी मन भारी किया, ‘भाई की असमय मृत्यु के बाद भाभी उन्हीं के संरक्षण में रहीं। उनसे बहुत कहा कि वे अपने मायके चली जाएँ लेकिन उस पतिव्रता नारी ने हारिल पक्षी की तरह जीवनपर्यन्त अपने पति की दहलीज नहीं छोड़ी और एक तपस्विनी की तरह जीवन बिताकर परलोक चलीं गयीं।’ बीते जीवन के चित्र किसी फिल्म की तरह पल-पल में बदल रहे थे। मन में अजीब-सा सूनापन भर गया। शरीर भारी लगने लगा। हाथ-पाँव शिथिल होते हुए प्रतीत हुए। एकाएक उन्हें लगा कि वे बिल्कुल अकेले हैं। कोई उनके साथ, उनके पास नहीं है। यदि ऐसे में उन्हें कुछ हो गया तो? एकबार फिर उनकी नज़रें माँ के चित्र पर गयीं और उन्हें याद आया कि माँ अक्सर उनसे विवाह करने की बात करते हुए कहतीं थीं, ‘बेटा, जब मैं नहीं रहूँगी तो तेरा ख्याल कौन रखेगा? अकेले ज़िन्दगी काटना बहुत कठिन है।’ माँ की इस बात पर वे बड़े प्यार से माँ को समझा देते और उन्हें आश्वासन देते कि जब कभी ऐसा लगेगा तो मैं शादी कर लूँगा। पर माँ जानती थी कि यह केवल झूठा दिलासा है क्योंकि जिससे वह शादी करना चाहते थे, उसके मना करने के बाद उन्होंने आजीवन कुँवारे रहने का व्रत ले लिया था। आज उन्हें न जाने क्यों लग रहा था कि काश उन्होंने माँ की बात मान ली होती। वह यह विचार अपने मन से निकाल फेंकना चाहते थे लेकिन बिजली की तरह बार-बार यही विचार उनके दिमाग में कौंध रहा था।
पिता की मृत्यु, माँ और भाइयों की मृत्यु, पर्वतारोहण के दौरान उनके अनेक साथियों की मृत्यु, भाभी की मृत्यु की स्मृतियाँ उनके मन-मस्तिष्क को बुरी तरह मथ रही थीं। उन्हें बेहोशी-सी छाने लगी। उन्होंने बहुत प्रयास करके अपने आँगन की ओर देखा। बाहर अँधेरा-सा छा रहा था। गमले के पौधे उन्हें बेजान नजर आए। उन्हें लगा कि हर ओर अजीब-सा सन्नाटा है। अचानक उन्हें लगा कि पौधों के पास कोई खड़ा है, जो उन्हें बुला रहा है। उसका चेहरा बराबर बदल रहा है, कभी वह पिता की तरह लगता है, कभी माँ की तरह, कभी भाई और भाभी की तरह तो कभी उन साथियों की तरह जो अब इस दुनिया में नहीं रहे। वह एकदम चौंक पड़े, ‘अरे, दरवाजे तो बंद हैं फिर अन्दर कौन आ गया?’
हिम्मत करके कुर्सी से उठे और बाहर आँगन में आ गये। वहाँ कोई नहीं था। वे अंदाजा नहीं लगा पा रहे थे कि उन्हें क्या हो रहा है? विषम से विषम परिस्थिति में भी वे अपना हौसला कम नहीं होने देते थे। उसी के बल पर ही वे पर्वातारोहण के दिनों में न जाने कितनी बार मौत के मुँह से निकल चुके थे। ‘यह क्या हो रहा है मुझे? क्या मेरी मौत आ गयी है?’ एक पल को यह विचार उनके मन में आया, ‘भाभी को भी तो अपनी मृत्यु से एक दिन पहले ऐसे ही आँगन में लोग दिखने लगे थे। तो क्या?’ उन्हें एकदम घबराहट होने लगी। मौसम ठंडा था लेकिन उन्हें पसीना आने लगा। होंठ और गला सूखने लगा। नजर उठाकर ऊपर देखा, घटाएँ बहुत काली थीं और हल्की बूँदाबाँदी हो रही थी। पिछले अस्सी वर्षों में उन्होंने स्वयं को कभी इतना लाचार, थका हुआ व निराश नहीं देखा था। उन्हें खुद पर आश्चर्य हो रहा था। वे दरवाजे तक आए उसे खोलने का प्रयास किया लेकिन शायद किसी ने दरवाजा बाहर से बन्द कर दिया था। घबराहट और बढ़ गयी। वे वापस अपने कमरे में आकर कुर्सी पर बैठ गये और मन को शान्त करने के लिए अनुलोम-विलोम का प्रयास करने लगे, पर सब व्यर्थ। साँसें इतनी अनियंत्रित थीं कि काबू में करना मुश्किल हो रहा था। उन्होंने सोचा, ‘अगर मृत्यु आ भी गयी तो क्या हुआ? मैं अपनी पूरी ज़िन्दगी जी चुका हूँ। वैसे भी ऐसा कुछ शेष नहीं है जीवन में जो किया न हो। मैंने तो हमेशा लोगों को मृत्यु से भयभीत न होने की ही सीख दी है और स्वयं ही...नहीं-नहीं यदि ऐसा है तो मैं मृत्यु का स्वागत करूँगा।’ ऐसा विचार करके उन्हें अपना मन पहले से शान्त लगा। उन्होंने कँपकँपाते हाथों से फोन उठाया और मीना को फोन लगाया। बहुत देर तक घंटी बजती रही लेकिन फोन नहीं उठा। ‘कहीं व्यस्त होगी’ सोचकर उन्होंने एक कागज और पेन लिया। खुद को संयत किया और लिखने बैठ गये। जो कुछ उनके मन में था उस पर लिख डाला।
उन्होंने लिखा, ‘आज मुझे ऐसा लगा रहा है कि मेरा अन्त निकट है। शायद आज रात की सुबह मेरे लिए न हो। पहले तो मन बहुत घबराया। लेकिन अब कोई घबराहट नहीं है। मेरे मन से मृत्यु का भय निकल गया। मैं यह इसलिए लिख रहा हूँ कि मेरे न रहने के बाद मेरा सारा सामान उन लोगों में बाँट दिया जाए जिन्हें उसकी जरूरत है। मेरा लैपटाप पड़ोस की लड़की चिंकी को दे दिया जाए, उसे अपनी पढ़ाई करने के लिए लैपटाप की बहुत आवश्यकता है लेकिन उसकी स्थिति ऐसी नहीं है कि वह लैपटाप खरीद सके। मेरे दोनों स्मार्ट फोन्स में से एक चम्पा को और एक सुरेश को दे दिया जाए। बेचारा सुरेश हमेशा मेरी सहायता करने के लिए साइकिल से दौड़ लगाता रहता है। अपने परिवार को चलाने के लिए उसे दो वक्त की रोटी भी ढंग से नसीब नहीं होती, मोबाइल क्या खरीद पाएगा? मेरे कैमरे और फोटोग्राफी का अन्य सामान फोटोग्राफी क्लब के सदस्यों को यह कहकर दे दिये जाएँ कि उनका उपयोग क्लब में आने वाले नौसीखिया लोगों की ट्रेनिंग के लिए किया जाए। मेरे पास कुछ ट्रेकिंग से सम्बन्धित सामान भी है जो मेरे दिवंगत मित्र पवन के बेटे को दे दिया जाए। उसे भी पर्वतारोहण का बहुत शौक है और उसने दो-तीन बार सफल ट्रेकिंग भी की है। पर उसके पास पर्याप्त सामान नहीं है। मुझे आशा है कि सामान मिलने के बाद वह अपने ट्रेकिंग के शौक को आगे बढ़ाएगा। एक और महत्त्वपूर्ण बात कि मेरे बैंक में पड़े धन को बराबर हिस्सों में बाँटकर उसका उपयोग जनहित में किया जाए किसी भी प्रकार से निजी रूप में उसका उपयोग न हो। मैं इस पत्र के साथ कुछ संस्थाओं के नाम लिख रहा हूँ जिनमें वह धनराशि दान कर दी जाए। मुझे किसी भी प्रकार का कोई भय या चिन्ता नहीं है। मैंने अपना पूरा जीवन बहुत प्रसन्नता और सुख-सुविधाओं के साथ बिताया है। मुझे मेरे परिजनों सहित मेरे मित्रों व सहयोगियों का भरपूर प्रेम और साथ मिला है। मेरे सुख-दुख में वे हमेशा भागीदार रहे हैं। मैं चाहता हूँ मेरी मृत्यु पर कोई शोक न करे क्योंकि मैं मृत्यु के बिना जीवन को पूर्ण नहीं मानता। एक राज़ की बात बताऊँ तो मृत्यु मेरी हमसफर रही है। पहाड़ों पर चलते समय मैं उसका हाथ थाम कर ही आगे बढ़ता था। उसने कई बार मुझे गले लगाने की कोशिश की लेकिन जब मैं पर्वतों की चोटियों को गले लगाता था तो मृत्यु का चेहरा उतर जाता था। इस तरह मैंने हर बार मृत्यु को चकमा दिया और हमेशा उससे बचता रहा, लेकिन लगता है कि उसने मुझे मेरे ही घर में घेर लिया। अब उससे बचने का कोई रास्ता नहीं मुझे उसके गले लगना ही पड़ेगा। सब लोग खुश रहें। यही आशीर्वाद है।....तुम्हारा...श्रीपाल।’
शर्मा जी ने पत्र बन्द कर दिया। उन्हें लगा कि एक नशा-सा उन पर छा रहा है। उन्होंने शरीर को आराम कुर्सी पर ढ़ीला छोड़कर आँखें बन्द कर लीं। एकाएक उन्हें एहसास हुआ कि उनका फोन बज रहा है। उन्होंने फोन उठाने की कोशिश की लेकिन वह अपना हाथ नहीं हिला पा रहे हैं। कुछ ही पलों में उनका दूसरा फोन भी बज उठा। बहुत कोशिश करने के बाद भी उनका शरीर हिल नहीं पाया। वे असहाय से पड़े हैं। थोड़ी देर बाद उन्हें लगा कि कुछ लोगों ने उनका दरवाज़ा तोड़ दिया है और वे घर में घुस आए हैं। मीना उन्हें हिला-हिलाकर जगाने की कोशिश कर रही है, लेकिन वे अचेत पड़े हैं। उन्हें उसकी आवाज़ सुनाई दे रही है पर न जाने कौन-सा नशा उन्हें चढ़ा है कि चाहते हुए भी वे न तो आँखें पूरी तरह से खोल पा रहे हैं और न ही कुछ बोल फूट रहा है। उनके पलक हल्के से हिलते हैं और होंठ फड़कते हैं। अपने अधखुले पलकों से ही उन्होंने देखा कि बहुत से लोग उन्हें चारों तरफ से घेरे खड़ें हैं। सबसे आगे पिताजी हैं, फिर माँ और फिर उनके तीनों भाई, पीछे-पीछे भाभी हैं लेकिन ये सब पीछे खड़े हैं, वह भी चुपचाप। उनकी आँखें बन्द हो गयीं केवल शब्द सुनाई पड़ रहे हैं। कोई कह रहा है, ‘ओह! ताऊ जी नहीं रहे’ तो कोई कह रहा है, ‘ओफ्फ मामा जी को एकदम क्या हो गया?’ किसी ने कहा, ‘अस्सी के लगभग तो होंगे ही, चलो अपना जीवन पूरा कर गए’ इतने में कोई बोल पड़ा, ‘बात तो सही है, पर ऐसे समय में चले गए कि कोरोना के कारण सही से सारे काम भी नहीं हो पाएँगे।’ इसके उत्तर में एक बहुत सभ्य स्वर गूँजा, ‘नहीं, नहीं ऐसा नहीं है, प्रशासन से बात की जाएगी और जिनता संभव होगा हम सब लॉक डाउन का पालन करते हुए ही अन्त्येष्टि करेंगे।’ एक पल को शर्मा जी को लगा कि उठ खडें हों और कहें कि ‘क्या बकवास है मैं मरा नहीं हूँ बल्कि एकदम चुस्त-दुरुस्त हूँ।’ पर, उनकी उँगली तक नहीं हिल रही थी। इसी बीच उन्हें लगा कि उनके दोनों फोन की घंटियाँ अब भी लगातार बज रही हैं लेकिन कोई उसे नहीं उठा रहा।
कुछ समय बाद उन्हें लगा कि लोग उन्हें उठाकर जमीन पर लिटाने के बाद उन पर ठंडा पानी डाल रहे हैं। ठंडे पानी से उनके शरीर में सिहरन दौड़ पड़ी, रोंगटे खड़े हो गये कि तभी उन्हें एहसास हुआ कि किसी ने उनका शरीर पर बिना पोंछे ही पहले सफेद कपड़ा ओढ़ाया और उसके ऊपर रामनामी चादर। उनका मन हुआ कि एकदम उठें और कहें कि ‘बेवकूफों शरीर पोंछ तो लेते।’ लेकिन अगले ही पल कुछ लोगों ने उन पर बहुत से फूल मालाएँ चढा दीं। लोगों के रूदन के स्वर उनके कानों में पड़ रहे हैं। इतने में एक भारी भरकम स्वर भी उनके कानों में पड़ा, ‘देखिए, डेडबॉडी को गाड़ी में ही ले जानी होगा, पैदल मार्च की अनुमति नहीं मिली। केवल बीस लोग ही शमशान भूमि तक जा सकेंगे।’ कुछ लोगों ने उस स्वर का अनुमोदन किया। रोने की आवाज़ें मंद पड़ी ही थीं कि किसी बच्चे का स्वर सुनाई पड़ा, ‘गली के बाहर गाड़ी आ गयी।’ ‘ओह, चलिए सब लोग अपने-अपने मास्क और दस्ताने पहनिए और डेडबॉड़ी को उठाइए,’ किसी ने कहा। अगले ही पल उन्हें महसूस हुआ कि वे हवा में तैर रहे हैं। लोग राम नाम लेकर उन्हें ऊपर उठाए हुए हैं। मीना दहाड़ें मार-मार कर रो रही है उसके साथ चम्पा, चिंकी और अड़ोस-पड़ोस की औरतों के भौंड़े स्वर भी उनके कान में पड़ रहे हैं। इतने में किसी पुरुष के स्वर ने महिलाओं के स्वर को धीमा कर दिया, ‘बॉडी सँभाल के चढ़ाइएगा’ उन्हें आश्चर्य हुआ कि ‘अभी कुछ देर पहले मैं ‘मामा’, ‘ताऊ’, ‘चाचा’, ‘अँकल’ और न जाने क्या-क्या था अब ये लोग मुझे डेडबॉडी कह रहे हैं। बड़े नाशुक्रे लोग हैं।’ अब उन्हें गुस्सा आने लगा लेकिन वे अपनी मुट्ठियाँ नहीं तान सके क्योंकि शरीर एकदम उनके वश के बाहर हो चला था। लेकिन न जाने क्यों अभी तक उन्हें अपने फोन की घंटियाँ सुनाई दे रही थीं।
कुछ मिनटों बाद वही लोग जो उन्हें गाड़ी डालकर ले जा रहे थे, उनके ऊपर लकड़ियाँ चुन रहे थे। कुछ लोग दूर खड़े तमाशा देख रहे थे और दूर से ही हिदायत दे रहे थे। उनके अस्पष्ट शब्द लकड़ियों के चुने जाने के स्वर के साथ उनके कानों में पड़ रहे थे। लकड़ियों का दबाव वे अपनी छाती, पेट और पैरों के ऊपर महसूस कर रहे थे। उन्हें घुटन होने लगी थी। लेकिन वे अपने शरीर नहीं हिला पा रहे थे। थोड़ी देर बाद किसी ने कहा, ‘सात चक्कर लगाकर अग्नि को चिता से लगाइएगा।’ जैसे ही यह स्वर उनकी कानों में पड़ा वे बुरी तरह घबराकर गए। उन्होंने अपनी सारी शक्ति एकत्र की और एकाएक उनके शरीर में जान आ गयी। उन्होंने अपने हाथ-पाँव पटकने शुरू कर दिये। वह एकदम चीखे, “अरे मैं मरा नहीं हूँ, जिन्दा हूँ।” चीख के साथ उनकी आँख खुल गयी। उन्होंने देखा कि वे अपने कमरे में आराम कुर्सी लेटे हैं और बहुत गहरी नींद से जागे हैं। भयानक सपना देखने के कारण उनकी साँसें तेज चल रही थीं। उनकी गर्दन और माथे सहित पूरा शरीर पसीने से भीग गया है। फोन की घंटी अभी तक बज रही थी। उन्होंने हाथ बढ़ाकर फोन उठाया और कान पर लगा लिया। मीना का फोन था।
“हाँ बोल” अपने सुपरिचित अंदाज में बोले लेकिन स्वर धीमा था कुछ-कुछ अस्पष्ट भी।
“अरे क्या हुआ? इतनी देर से फोन कर रही हूँ, फोन क्यों नहीं उठा रहे थे?”
“मर गया था,” कहकर वह हँसे।
“अरे, ऐसे समय में मत मर जाना, लोग बहुत गाली देंगे। पता नहीं है कोरोना फैला है?” मीना भी अपने अन्दाज में बोलकर खिलखिलाई।
शर्मा जी भी खूब खिलखिला रहे थे। सारी उदासी, निराशा तथा अवसाद हँसी की गूँज में ठीक वैसे ही छू हो गये जैसे आकाश से बादल गायब हो चुके थे। इधर उनके चेहरे पर चमक लौट रही थी और आँगन में सूरज की रोशनी। उनकी लिखी चिट्ठी के पुर्ज़े पास रखे डस्टबिन में पड़े थे।

संपर्क : 165-ब, बुखारपुरा, पुरानाशहर, बरेली (उ.प्र.) पिनकोड-243005
दूरभाष 9412345679 ईमेल lovelesh.dutt@gmail.com