Anu aur Manu Part-20 in Hindi Fiction Stories by Anil Sainger books and stories PDF | अणु और मनु - भाग-20

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अणु और मनु - भाग-20

गौरव मीटिंग खत्म होने पर जल्दी से निकल कर हॉल से बाहर आता है | वह इधर-उधर देखता है कि कहाँ कॉफ़ी या चाय की मशीन लगी हुई है | जब उसे कहीं नहीं दिखती तो वह सामने खड़े सिक्यूरिटी गॉर्ड से पूछता है | गॉर्ड की बताई जगह से कॉफ़ी का कप लेकर गौरव हॉल के बाहर पड़े सोफ़े पर आ कर बैठ जाता है | हॉल से बाहर निकलते हुए अक्षरा की नज़र गौरव पर पड़ती है | वह तेज क़दमों से गौरव के पास पहुँच कर बोली “अरे वाह गौरव साहिब मैं आपको अंदर ढूंढ रही थी और आप यहाँ बैठे अकेले-अकेले कॉफ़ी का मज़ा ले रहे हैं | ये बहुत गलत बात है” |

गौरव मुस्कुराते हुए बोला “मैडम जी मैंने अभी तो पी भी नहीं है | आप पी कर मज़े ले लो”, कह कर गौरव कॉफ़ी का कप अक्षरा की ओर बढ़ाते हुए बोला |

“नहीं, नहीं मैं तो मज़ाक कर रही थी | मेरी ऐसी कोई इच्छा नहीं है” |

“सच में, झूठी नहीं है | आप ले सकती हैं | मैं दूसरी ले आऊंगा” |

अक्षरा शर्माते हुए बोली “नहीं सच में मेरी इच्छा नहीं है | वैसे सुच्ची-झूठी से मुझे कोई फ़र्क नहीं पड़ता है” |

प्रणव कॉफ़ी का कप लाते हुए अक्षरा के पास आकर बोला “मेरी झूठी कॉफ़ी है | अक्षरा जी आप पी लो | आप को तो कोई फ़र्क नहीं पड़ता” |

अक्षरा गौरव के पास सोफ़े पर बैठती हुई बोली “तुम्हारी झूठी....सवाल ही पैदा नहीं होता” |

प्रणव मुस्कुराते हुए बोला “क्यों मेरे मुँह में कीड़े पड़े हैं” ?

अक्षरा इठलाते हुए बोली “शायद इससे भी ज्यादा” |

तमन्ना प्रणव की बात सुन उसके पास आते हुए बोली “लाओ जी मैं पी लेती हूँ” |

प्रणव मुस्कुराते हुए अपना कप तमन्ना को देते हुए बोला “देखा, अगली मेरा झूठा कप पीने तो तैयार हो गई है और एक तुम हो” |

अक्षरा मुँह बिचकाते हुए बोली “उसकी मर्जी बाकी मैं तो तुम्हारी झूठी कभी भी नहीं पीती” |

प्रणव झुंझलाते हुए बोला “मेरे और गौरव में क्या फ़र्क है | ये तो बताओ” |

गौरव प्रणव की ओर देखते हुए बोला “भाई क्यों सेंटी हो रहा है | उसे पता था कि मैंने अभी नहीं पी है इसीलिए वह कह रही थी” |

अक्षरा गंभीर भाव से अपने सिर पर हाथ रखते हुए बोली “कसम से मुझे नहीं पता था कि तुमने नहीं पी है | बाकी पी भी होती तो भी मुझे कोई एतराज नहीं था” |

गौरव अक्षरा की तरफ़ इस तरह देखता है जैसे वह कहना चाह रहा हो कि क्यों इतनी छोटी सी बात का बतंगड बना रही हो | अक्षरा गौरव की अनकही बात को समझते हुए बोली “प्रणव मैं मज़ाक कर रही थी | खैर छोड़ो इस बात को, अगर तुम लोगों का मूड है तो मैं आज तुम्हें चौपाटी घुमा कर लाती हूँ | शाम को वहाँ घूमने का मज़ा ही अलग है” |

अक्षरा की बात सुन कर तमन्ना और प्रणव जल्दी से ‘हाँ’ बोल देते हैं | गौरव न चाहते हुए भी उन दोनों को देख ‘हाँ’ में सिर हिला देता है | अक्षरा सोफ़े से उठते हुए बोली “ठीक है मैं पार्किंग से गाड़ी निकाल कर लाती हूँ तब तक आप लोग नीचे आइए”, कह कर वह तेज क़दमों से लिफ्ट की ओर चल देती है |

गौरव दोस्तों के साथ जैसे ही नीचे पहुँचता है अक्षरा गाड़ी ले कर आ जाती है | सब गाड़ी में बैठते हैं और चौपाटी की ओर चल देते हैं | रास्ते में अक्षरा कई जगह गाड़ी रोक कर सब को उनके बारे में बताती है | रास्ते भर गौरव को अपने में मस्त देख अक्षरा बोली “गौरव क्या बात है आप को मुम्बई पसंद नहीं आई क्या” ?

गौरव मुस्कुराते हुए बोला “नहीं ऐसी कोई बात नहीं है” |

अक्षरा गंभीर स्वर में बोली “आप को देख कर तो नहीं लगता” |

गौरव धीमे से बोला “मैडम आप गलत समझ रही हैं” | अक्षरा आगे कुछ बोल पाती पीछे बैठे प्रणव और तमन्ना एक साथ बोल उठते हैं “यार चौपाटी आ गया है | हम यहाँ मजे लेने आए हैं न की सेंटी होने | प्लीज ऐसे मौके को बर्बाद न करो” | उनकी बात सुन गौरव मुस्कुराते हुए बोला “भाई मैं भी तो यही कहना चाहता हूँ”, कह कर गौरव गाड़ी रुकते ही दरवाज़ा खोल कर बाहर आ जाता है | प्रणव और तमन्ना के गाड़ी से बाहर आने के काफी देर बाद अक्षरा अनमने भाव से बाहर निकलती है | प्रणव गौरव का हाथ पकड़ कर उसे लगभग खींचते हुए अंदर की ओर ले जाता है | तमन्ना, अक्षरा के साथ-साथ तेज क़दमों से प्रणव और गौरव के पीछे-पीछे चल पड़ती हैं |

*

प्रणव और तमन्ना गाड़ी से उतरते हुए बोले “अक्षरा तुम्हारा बहुत-बहुत धन्यवाद | तुमने आज की यह शाम हमारी जिन्दगी की यादगार शाम बना दी” | उनकी बात सुन गौरव भी गाड़ी का दरवाज़ा खोलते हुए बोला “बॉस यही तो आन-बान और शान मुम्बई और उसके रहने वालों की है | वह जिन्दगी का हर दिन यादगार तरीके जीते हैं | बाकी अक्षरा की तो बात ही कुछ और है” |

गौरव को प्रणव और तमन्ना के साथ उतरते देख अक्षरा जल्दी से बोली “मैंने नहीं आप लोगों ने इस शाम को यादगार बनाया है | लेकिन गौरव तुम यहाँ-कहाँ उतर रहे हो | मैं तुम्हें तुम्हारे घर तक छोड़ दूंगी” |

गौरव मुस्कुराते हुए बोला “नहीं यार तुम्हें लगभग अपने घर से उलटे रास्ते पर जाना पड़ेगा | कोई बात नहीं मैं यहाँ से ऑटो कर चला जाऊंगा” |

अक्षरा नाराजगी दिखाते हुए बोली “जब मुझे कोई मुश्किल नहीं है तो तुम क्यों बेवजह नाटक कर रहे हो | चुपचाप बैठो” | गौरव अक्षरा के तेवर देख प्रणव और तमन्ना को विदा कर गाड़ी में वापिस बैठ जाता है |

अक्षरा कुछ देर चुपचाप गाड़ी चलाती रहती है | वह गौरव को गाड़ी से बाहर देखते हुए बोली “ऐसे क्यों बैठे हो” | गौरव सीट पर पसरा हुआ था | यह बात सुन कर ठीक से बैठते हुए बोला “ओह! सॉरी मुझे ऐसे नहीं बैठना चाहिए था” | उसका इस तरह हड़बड़ा कर ठीक से बैठना और फिर मासूमियत से बोलना देख अक्षरा हँसते हुए बोली “जनाब मेरा ये मतलब नहीं था” |

“तुम क्या कहना चाहती हो कि मुझे नशा हो गया है” |

अक्षरा हँसते हुए बोली “न.....न....हीं मैं ऐसा कुछ भी नहीं कहना चाहती हूँ | मैं तो सिर्फ़ ये कहना चाहती थी कि तुम चुपचाप क्यों बैठे हो | मेरी बात सुन कर तुम ऐसे हड़बड़ा के सीधे बैठ गये जैसे कोई बच्चा चोरी करते पकड़ा गया हो | अब......तुम......इसे नशा कहते हो तो हो सकता........है”, कह कर वह फिर से हँसने लगती है |

गौरव हैरानी से अक्षरा को देखते हुए बोला “मैडम तुमने बोला ही इतनी जोर से था तो मुझे लगा कि शायद तुम्हें मेरा ऐसे पसर कर बैठना अच्छा नहीं लग रहा है” |

अक्षरा अपनी हँसी रोकते हुए बोली “पहले तो मुझे नहीं लगा पर अब लग रहा है”|

गौरव अटकते हुए बोला “क....क्या....लग रहा है” |

“यही कि तुम्हें नशा हो गया है” |

गौरव मुस्कुराते हुए बोला “मैडम आप मुझे जानती नहीं हैं | मुझे एक दो पेग पी कर नशा नहीं होता है” |

“क्यों ऐसी क्या ख़ास बात है तुम में | क्या तुम बहुत बड़े नशेड़ी हो”?

गौरव मुस्कुराते हुए बोला “मैडम ऐसी कोई ख़ास बात नहीं है मुझ में | मैं तो ये कहना चाहता था कि मुझे अपने शरीर पर कण्ट्रोल है और जब तक मैं नहीं चाहूँगा तब तक ये बहक नहीं सकता” |

अक्षरा गौरव को ऐसे देखती है जैसे वह कहना चाहती हो कि ये तो मैं भी जान गई हूँ कि तुम्हें अपनी सोच और शरीर पर बहुत कण्ट्रोल है | वरना ऐसी हसीन और नशीली शाम में एक सेक्सी लड़की के साथ बैठने पर कोई भी बहक जाए | तुम्हें अपने पर कण्ट्रोल है तभी तो ऐसे बैठे हो जैसे किसी अनजान के साथ बैठे हुए हो | मेरे जैसी लड़की जिस पर कितने ही लड़के सिर्फ़ बात करने के मरते हैं | वो तुम जैसे पत्थर दिल इंसान को अपना दिल दे बैठी है | लेकिन तुम्हें कोई फर्क ही नहीं पड़ता है | तुम मेरी अदाओं को मेरी सुन्दरता को एक नजर भर कर देखते तक नहीं हो | आज नशे में भी तुम बहक नहीं रहे हो | गौरव की अचानक नजर अक्षरा पर पड़ती है | वह सकपका कर बोला “क्या हुआ मैडम ऐसे ही देखती रहोगी या फिर गाड़ी भी चलाओगी” |

यह सुन अक्षरा होश में आते हुए बोली “साहिब ध्यान से देखिये आप अपने घर पहुँच चुके हैं” |

गौरव खुश होते हुए बोला “अबे यार ! सॉरी अक्षरा मैंने ध्यान ही नहीं दिया | मुझे लगता है तुम सही कह रहीं थीं मुझे शायद नशा ही हो गया है | थैंक्स, घर तक छोड़ने के लिए | घर ध्यान से जाना और पहुँच कर मुझे फ़ोन जरूर कर देना”, कह कर वह जल्दी से गाड़ी से उतरता है और बिना पीछे मुड़े तेज क़दमों से अपने घर की ओर बढ़ जाता है |

अक्षरा काफ़ी देर तक वहीं खड़े गौरव के पीछे मुड़ कर देखने का इन्तजार करती रहती है | लेकिन जब वह नहीं देखता है और सोसाइटी के गेट से अंदर जा कर आँखों से ओझल हो जाता है तो अक्षरा की आँखें नम हो आती हैं | वह बोझिल आँखों से गाड़ी स्ट्रार्ट कर घर की ओर चल देती है |

*

गौरव कमरे का दरवाज़ा खोल कर चाबियाँ मेज पर फैंकता है और जल्दी से अपने जूते उतार कर बेड पर पसर जाता है | लेटते ही उसकी ऑंखें थकावट से बंद हो जाती हैं | वह थोड़ी देर सोने के बाद अचानक उठ कर बैठ जाता है | कुछ देर शून्य में देखने के बाद वह बेड से उठता है और रसोई में जा कर एक गिलास पानी पीता है | फिर कुछ सोचते हुए बेड पर बैठ कर बुदबुदाने लगता है ‘मैं भी कहूँ कि अप्पा मुझे मुम्बई क्यों भेजना चाहते थे’, कहते हुए वह यादों में खो जाता है |

*

गौरव सोफ़े पर अक्षित के सामने बैठते हुए बोला “अप्पा फिर आपने क्या फ़ैसला किया” |

अक्षित सोनिया को देखते हुए बोला “बेटा मैंने तो अपनी राय दी है कोई फ़ैसला नहीं सुनाया है | बाकी तो अब तुम दोनों को फ़ैसला करना है” |

“आप गोरु को मुंबई ही क्यों भेजना चाहते हैं”, सोनिया झुंझलाते हुए बोली |

अक्षित हँसते हुए बोला “डार्लिंग समझा करो | उसे भी कुछ करने का मौका दो”|

सोनिया गुस्से से बोली “यार वो तो यहाँ नॉएडा में रह कर भी कर सकता है | मुम्बई में ऐसी क्या ख़ास बात है” |

अक्षित सोनिया और गौरव को देखते हुए मुस्कुरा कर बोला “तुम भूल रही हो | मैंने भी मुंबई में जा कर ही तरक्की की शुरुआत की थी | और इससे भी बड़ी बात ये है कि मुझे अपना प्यार यानी तुम मुंबई में ही मिलीं थीं | हो सकता है गोरु के साथ भी ऐसा ही हो” | यह सुन कर सोनिया बोलते-बोलते चुप कर जाती है | गौरव सोनिया को चुप देख मुस्कुराते हुए बोला “अम्मी आप क्या कहती हैं” |

सोनिया अटकते हुए बोली “बेटा....तुम्हारे अप्पा ने ऐसी बात कर दी है कि मैं चाह कर भी कुछ नहीं बोल सकती | वैसे ये ठीक ही कह रहे हैं | नॉएडा जा कर भी तू घर का घर में ही रहेगा और बंगलुरु जाने से तो अच्छा है कि तू मुंबई ही जाए | वहाँ रह कर तुझे अकेले रहने का तजुर्बा भी हो जाएगा और जैसे ये कह रहे हैं कि हो सकता है तुझे तेरा प्यार भी मिल जाए| बाकी अब तू बता कि कहाँ जाना चाहता है” |

गौरव मुस्कुराते हुए बोला “आप लोगों की अगर यही राय है तो मेरा फ़ैसला अलग कैसे हो सकता है | अप्पा जो कुछ भी कह रहे हैं वह सोच समझ कर ही कह रहे होंगे” |

अक्षित गौरव की ओर प्यार भरी निगाहों से देखते हुए बोला “बेटा ये हम दोनों की राय है, फ़ैसला नहीं है | फ़ैसला तो तुम्हें करना है | तुम्हें जो ठीक लगता है वो करो” |

गौरव हँसते हुए बोला “आज तक कभी ऐसा हुआ है जो अब होगा | फ़ैसला तो हो चुका, मैं मुंबई जा रहा हूँ” | सोनिया के चेहरे से लग रहा था कि वह गौरव के मुंबई जाने से चिंतित है | अक्षित सोनिया के चेहरे को पढ़ते हुए बोला “गोरु लगता है तुम्हारी अम्मी तुम्हारे फ़ैसले से सहमत नहीं है” |

सोनिया जबरदस्ती मुस्कुराते हुए बोली “नहीं ऐसी कोई बात नहीं है | ये पहली बार छः महीने के लिए हम से दूर जा रहा है बस इसीलिए.......” |

गौरव बीच में ही बात काटते हुए बोला “अम्मी आप और चिंतित वो भी अप्पा के होते हुए | कमाल करती हैं” |

अक्षित गंभीर भाव से बोला “बेटा माँ तो माँ ही होती है | उसका चिंतित होना पूरी तरह से जायज है | बाकी तू अपनी तैयारी कर ईश्वर सब भली करेंगे” |

*

गौरव अपनी यादों से बाहर आते हुए फिर से बुदबुदाने लगता है ‘मैं छः महीने की ट्रेनिंग पर मुम्बई आया था | सपनों की नगरी मुम्बई का माहौल ही कुछ ऐसा है कि कोई भी अपनी सुधबुध खो दे | लेकिन मैं ऐसा कर रहा हूँ मुझे यकीन ही नहीं हो रहा है | शुरू-शुरू में मुझे जब भी अकेलापन महसूस होता था | तब मैं अम्मी-अप्पा और सब से फ़ोन पर बात करके काफ़ी अच्छा महसूस करता था | ऐसा लगता ही नहीं था कि मैं किसी नए शहर में आया हुआ हूँ | जैसे-जैसे समय बीतता गया मेरे फ़ोन करने का सिलसिला भी कम होता गया | पहले दो महीने तो सब कुछ ठीक-ठाक चला लेकिन अब दो महीने से तो शायद तीन-चार बार ही घरवालों से बातचीत हुई होगी | क्या मैं असल में इतना बदल गया हूँ | मैं ऐसा कैसे हो गया हूँ | लेकिन कमाल है अम्मी-अप्पा का भी तो फ़ोन नहीं आया | फिर कुछ सोचते हुए गौरव जल्दी से अपना मोबाइल फ़ोन उठाता है और उस में समय देखता है | समय रात के एक बज कर बीस मिन्ट हुए थे | वह समय देख कर हताश हो जाता है | इस समय वह किसी को फ़ोन नहीं कर सकता यह सोच कर वह अपने बेड पर से उठता है और खिड़की के पास आकर खड़ा हो जाता है | कुछ देर खिड़की से बाहर देखने के बाद फिर से बेड पर आकर लेट जाता है | वह काफी देर तक छत पर लगे पंखे को देखता रहता है फिर पासा पलट कर आँख बंद कर लेता है |

आँखें बंद कर लेने के बावजूद घर-परिवार की यादें उसका पीछा नहीं छोड़ती हैं | ‘अम्मी-अप्पा ने आखिर फ़ोन क्यों नहीं होगा | अम्मी-अप्पा इसी सोसाइटी में ही रहा करते थे | यहीं अप्पा की मुलाकात अम्मी से हुई थी | अप्पा कह तो रहे थे कि मुझे मेरा प्यार यहाँ ही मिलेगा | तो क्या अक्षरा ही मेरा प्यार है | उसकी सुन्दरता उसकी नजाकत उसकी अदाएं मुझे आखिर क्यों अच्छी लग रही हैं ? ऐसा क्या आकर्षण है उसमें कि मैं चाह कर भी उससे अलग नहीं रह पा रहा हूँ | वह जो चाहती है मैं वैसा ही करता हूँ | क्यों आखिर क्यों?

नहीं, अक्षरा वो नहीं है | शायद मैं उसमें रीना को देख रहा हूँ | इसीलिए उसकी ओर खिंचा चला जा रहा हूँ | ‘हाँ, यही बात है’ बुदबुदाते हुए गौरव फिर से उठ कर बैठ जाता है | गौरव बैठ कर शून्य में देखते हुए सोचने लगता है | ‘रीना को मैं भूल नहीं पा रहा हूँ | रीना की सारी अदाएं और बोलने का ढंग अक्षरा से मिलता-जुलता है | लेकिन रीना जैसी सोच अक्षरा की नहीं है | रीना का कोई मुकाबला नहीं है | कमाल है मैं पहचान ही नहीं पाया कि मुझे रीना से मुहब्बत हो गई है | वह चाहते न चाहते हुए मेरे दिलो-दिमाग पर हावी है | तभी मैं कहूँ कि मुझे अक्षरा क्यों अच्छी लगती है | क्यों मैं बार-बार उसके पास खिंचा चला जाता हूँ | लेकिन उसके साथ होने पर मुझे वह शान्ति वह प्यार क्यों नहीं दिखता है | क्यों मैं उसके साथ हो कर भी उसके साथ नहीं होता | यह बात तो अक्षरा ने भी कई बार कही है कि जब मैं उससे फ़ोन पर बात करता हूँ तो बहुत अच्छे ढंग से पेश आता हूँ लेकिन जब साथ होता हूँ तो मेरा व्यवहार बिलकुल अलग होता है | वह इस बात पर कई बार नाराज भी हुई लेकिन मैं अपने अंदर कोई कमी महसूस ही नहीं करता था | इसीलिए मैंने कभी उसकी बातों पर गौर ही नहीं किया | अब समझ में आ रहा है कि वह ठीक ही कह रही थी’, सोचते हुए गौरव एक बार फिर से उठ कर खड़ा हो जाता है | कुछ देर वह खड़े-खड़े सोचता रहता है और फिर वह सिर झुका कर कमरे के चक्कर काटने लगता है |

कुछ देर चक्कर काटने के बाद थक कर गौरव फिर से बेड पर आकर बैठ जाता है | गौरव के चेहरे से लग रहा था कि वह अंदर ही अंदर काफी बैचेनी महसूस कर रहा था | वह बार-बार जिस तरह से सिर झटक रहा था | उससे लगता था कि वह अपने किए पर पछता रहा था | वह बार-बार लम्बा साँस ले रहा था जैसे उसका कमरे में दम घुट रहा हो | कुछ ऐसा ही सोच कर वह कमरे का दरवाज़ा जोकि बालकनी में खुलता था खोल कर एक लम्बी साँस लेता है | फिर कुछ सोच कर वह वापिस आकर बेड से फ़ोन उठा कर टाइम देखता है | रात के चार बज रहे थे और नींद उसकी आँखों से कोसों दूर थी | वह टाइम देख कर फ़ोन अपनी पेंट की जेब में रखने लगता है तो उसे याद आता है कि उसने वापिस आकर अभी तक कपड़े ही नहीं बदले हैं | ये सोच कर वह खुद पर ही मुस्कुरा हुए बाथरूम की ओर चल देता है |

कपड़े बदल कर वह रसोई में आकर कॉफ़ी बनाता है और एक हाथ में कप और एक हाथ में मोबाइल फ़ोन लेकर वह बाहर बालकनी में आ जाता है | बालकनी में बेंत की मेज पर कॉफ़ी का कप और मोबाइल फ़ोन रख कर उसके पास ही पड़ी बेंत की आरामदायक कुर्सी खींच कर बैठ जाता है | धीरे-धीरे कॉफ़ी पीते हुए वह एक बार फिर से पुरानी यादों में खो जाता है |

*

मोबाइल फ़ोन की आवाज सुन गौरव की नींद खुलती है | वह आसपास बड़ी हैरानी से देखता है | कुछ देर तो उसे समझ ही नहीं आता है | वह बाहर बालकनी में ही कॉफ़ी पीते-पीते सो गया था जब उसे यह याद आता है तो वह मंद-मंद मुस्कुराते हुए एक अंगड़ाई लेते हुए फ़ोन उठाता है | फ़ोन पर रीना का नाम देख कर हैरान हो जाता है | जब तक वह कुछ सोच पाता फ़ोन की घंटी बंद हो जाती है | वह समय देखता है उस समय सुबह के आठ बज रहे थे | रीना और इस समय फ़ोन कर रही है | यह सोचते हुए वह कमरे में आकर उसका नंबर मिलाने ही लगता है कि फिर से रीना का फ़ोन आ जाता है | वह जल्दी से फ़ोन कान पर लगाते हुए कांपती आवाज में बोला “हेलो”|

“हाँ जी”, रीना की आवाज सुन गौरव स्तब्ध रह जाता है | रीना की शुरू से आदत थी कि वह जब भी फ़ोन पर बात शुरू करती थी तो वह सबसे पहले ‘हाँ जी’ ही बोलती थी | आज फिर से वह आवाज सुन कर गौरव सुन्न हो जाता है | गौरव कुछ बोल पाता इससे पहले ही रीना हँसते हुए बोली “क्यों साहिब आज ईद का चाँद इतनी सुबह कहाँ से निकल आया”|

रीना की खनकती हुई आवाज सुन कर गौरव का पूरा शरीर ख़ुशी से काँप उठता है | वह चाह कर भी कुछ बोल नहीं पाता है | उसे ऐसा महसूस हो रहा था जैसे सारे जहां की खुशियाँ उसे मिल गई हों | गौरव की आवाज न सुन कर रीना एक बार फिर हँसते हुए बोली “चाँद साहिब फ़ोन पर हो या रख दिया” |

गौरव सकपकाते हुए बोला “हाँ, हाँ बोलो” |

“क्या हुआ इतनी सुबह-सुबह फ़ोन कैसे किया | मेरी याद आ रही थी क्या”?

गौरव हैरान होते हुए बोला “मैंने किया या तुमने किया है” |

“जनाब आपका फ़ोन सुबह पाँच बजे आया था | मैं तो सो रही थी | मैंने अभी-अभी देखा है” |

गौरव सिर झटकते हुए बोला “अच्छा, मुझे तो याद नहीं कि मैंने तुम्हें फ़ोन किया है| खैर मैं आपको अभी फ़ोन करता हूँ”, कह कर गौरव जल्दी से फ़ोन काट देता है | वह फ़ोन की डायल लिस्ट निकाल कर देखता है तो हैरान हो जाता है कि रीना ठीक ही कह रही है | वह बैचैन हो इधर-उधर देखते हुए सिर पर हाथ फेरते हुए बुदबुदा उठता है ‘यार मैं तो सो रहा था तो मैंने कब रीना को फ़ोन मिला दिया | कमाल ही हो गया | क्या मेरी याद इतनी शक्तिशाली थी कि उसका नंबर खुदबखुद ही मिल गया’ | फिर मुस्कुराते हुए रीना का नंबर मिलाते हुए सोचने लगा कि ऐसे कैसे हो सकता है | वह इससे आगे कुछ और सोच पाता रीना की आवाज सुन होश में आते हुए बोला “हाँ यार तुम सही कह रही हो | नंबर तो मैंने ही मिलाया था लेकिन मुझे याद नहीं | मैं तो सो रहा था” |

रीना हँसते हुए बोली “लगता है साहिब को मेरी याद कुछ ज्यादा ही सता रही थी तभी तो आपके भूत ने मेरा नंबर मिला दिया” |

रीना की बात सुन गौरव मुस्कुराते हुए बोला “बात तो तुम सही कह रही हो | रात को मुझे तुम सबकी याद बहुत सता रही थी” |

“तुम सबकी या सिर्फ मेरी” |

“हाँ बाबा तुम्हारी | अब ख़ुश” |

यह सुन कर रीना की ख़ुशी का कोई ठिकाना ही नहीं था | वह अपनी हँसी रोक ही नहीं पा रही थी | रीना की खनकती हुई हँसी की आवाज सुन कर गौरव की आँखें नम हो जाती हैं | कब से तरस रहा था वह यह आवाज सुनने को लेकिन उसे भी कहाँ एहसास था कि वह यही चाहता था | गौरव की सोच को चीरते हुए रीना की आवाज आई “चलो अच्छा है | आखिर आपको हमारी याद तो आई | हम तो कब से आपके फ़ोन का इन्तजार कर रहे थे | आखिर इन्तजार खत्म हुआ | आपने न सही आपके भूत ने ही सही फ़ोन तो किया आपने” |

“और सुनाइए कैसा चल रहा है सब” |

“आपको छोड़ कर बाकी सब ठीक-ठाक ही चल रहा है | आपके अम्मी-अप्पा कल कुछ परेशान थे | आपने काफ़ी दिन से उन्हें फ़ोन क्यों नहीं किया”?

गौरव हैरान होते हुए बोला “तुम घर गईं थी क्या” ?

“हाँ महीने में एक दो बार चली ही जाती हूँ | जब कभी भी कुछ ज्यादा दिन हो जाते हैं तो अम्मी या अप्पा का फ़ोन आ जाता है” |

“अच्छा जी | लेकिन उन्होंने मुझे कभी ये नहीं बताया कि तुम आती रहती हो” |

रीना बात को पलटते हुए बोली “यहाँ किसी से दोस्ती हुई कि नहीं” |

गौरव रीना की चालाकी भांपते हुए मजाकिया अंदाज में बोला “हाँ..... है यहाँ एक लड़की | अक्षरा नाम है उसका | वह काफी फ़िदा है मुझ पर | देखो अभी तो दो महीने बाकी है शायद कुछ बात बन ही जाए” |

रीना झुंझलाते हुए बोली “अच्छा अभी तो मुझे कॉलेज जाना है | रात को बात करती हूँ”, कह कर रीना फ़ोन रख देती है | गौरव मुस्कुराते हुए सोचने लगता है कि अप्पा और अम्मी बहुत प्लानिंग से चल रहे हैं | मुझे फ़ोन न करके यह जताते हैं कि हम लोग तुम्हें डिस्टर्ब नहीं करना चाहते | और वहाँ रीना से मिल कर मेरे खिलाफ़ साजिश रच रहे हैं | अप्पा को मालूम है कि मुझे समय देंगे तो ही मुझे एहसास होगा पारिवारिक स्नेह और प्यार का | कितनी सही सोच है अप्पा की | काश! ऐसी ही सोच हर माँ-बाप की होती’, सोचते हुए गौरव ख़ुशी-ख़ुशी फ़ोन बेड पर रख कर एक अंगड़ाई लेता है और बाथरूम की ओर चल देता है |

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