mansik rog - 5 in Hindi Fiction Stories by Priya Saini books and stories PDF | मानसिक रोग - 5

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मानसिक रोग - 5

पिछले भाग में आपने जाना श्लोका के पास दो रास्ते थे। आइये अब जानते है श्लोका ने कौनसा रास्ता चुना और वह कितना सही थी अपना रास्ता चुनने में।
अब श्लोका ने ठान लिया उसको पीछे मुड़कर नहीं देखना है। उसे अपने सपनों को साकार करना है। आत्मविश्वास से भरी श्लोका फिर उठ खड़ी हुई। उसने फिर से सब बातों को समझने का प्रयास किया। धीरे-धीरे वह अपने दोस्तों से भी बातें करने लगी, जिन सबसे वह दूर हो गई थी। वह अंदर से खुद को मजबूत करने लगी। श्लोका ने फिर से पढ़ना शुरू किया और कंपनी में आवेदन देने लगी। कुछ समय बीता, कुछ हार हाथ भी लगी पर श्लोका अब रुकी नहीं। वह हर हार से एक सबक लेती और अगली बार उसे दूर करके फिर आवेदन करती। अब श्लोका में आत्मविश्वास की कमी न थी।
कुछ महीनों के परिश्रम के पश्चात श्लोका को एक कंपनी में काम मिला। सैलरी ज़्यादा न थी पर काम सीखने को बहुत था। श्लोका ने कड़ी मेहनत करके बहुत कुछ अनुभव किया। वह जानती थी आगे जाकर ये अनुभव काम आएगा। इस बार उसने झट से मिलने वाले रिजल्ट के बारे में नहीं सोचा, वक़्त लेकर आगे बढ़ने का निश्चय जो था। जैसा उसने उस पौधे से सीखा था। जिस तरह पौधा सीधे फल नहीं दे सकता उसी तरह एक दिन में कुछ हासिल नहीं होता। लगातार मेहनत करते रहना ही पड़ता है, तब जाकर फल खाने को मिलता है।
श्लोका एक के बाद एक कंपनी में आवेदन करती और इस तरह बढ़ते हुए वह एक नामी कंपनी में मैनेजर के पद पर नियुक्त हुए। श्लोका जिस भी कंपनी में काम करती उसके आगे की पढ़ाई और नई चीजों को सीखना कभी बन्द न करती इसी प्रकार वह आगे बढ़ती। अब उसके पास दौलत की कोई कमी न थी। खाली समय में श्लोका अपने पुराने हुनर से कुछ न कुछ बनाती रहती। 3 साल की लगातार मेहनत के बाद आज श्लोका इस मुकाम पर आ खड़ी हुई। उसने एक नया घर भी ले लिया, जहाँ वह सुकून के कुछ पल बताती थी। श्लोका ने ये मुकाम हाँसिल करने के लिए बहुत कुछ खोया भी था। सपने देखने की कोई कीमत नहीं होती, कीमत होती है उसे पूरा करने की। श्लोका के मन के अंदर अब भी कुछ घाव मौजूद थे। जिन्हें दूर करने के लिए श्लोका खुद डॉक्टर के पास गई। कुछ महीनों की काउंसलिंग के बाद श्लोका अब बेहतर महसूस कर रही थी।
अब वह अपनी ज़िन्दगी में नई शुरूआत करना चाहती थी। अब वह गृहस्थ जीवन मे कदम रखने के लिए तैयार थी किन्तु समाज के आगे सिर न झुकाने वाली श्लोका शादी जैसे बड़े निर्णय में समाज के आगे कैसे झुक जाती। श्लोका ने फैसला किया कि वह जात पात की बेड़ियों में न पड़ेगी। वह पहले उस इंसान को जानेगी जिसके साथ उसने पूरी ज़िन्दगी गुजरने का निर्णय किया है। अगर वह समझ पाया उसे तो ही वह शादी करेगी अन्यथा नहीं किंतु श्लोका के माता पिता इस सोच के खिलाफ थे। वह चाहते थे जैसा अब तक होता आया है, माता पिता ही फैसला करते है कि लड़की को किससे शादी करनी चाहिये, अब भी वही हो।

श्लोका की शादी का किस्सा पढ़िए मानसिक रोग के अगले भाग में।