Kesaria Balam - 7 in Hindi Moral Stories by Hansa Deep books and stories PDF | केसरिया बालम - 7

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केसरिया बालम - 7

केसरिया बालम

डॉ. हंसा दीप

7

आसमानी ख्वाब, जमीन पर

समय की पाबंदी ने बेकरी के हर कर्मी को अपने तई ढाल लिया था।

डेज़र्ट के अलावा बेकिंग किए हुए समोसे जो ब्रेड के मटेरियल में नया आकार लेकर आते, बगैर तले हुए, हर पार्टी की शान बढ़ाने लगे। भारतीयता का जामा पहने आलू मसाला जब पाश्चात्य की ‘स्वीटस्पॉट’ बेकरी से निकलता तो नाश्ते का एक ऐसा स्वादिष्ट हिस्सा होता जिसे देखते ही मुँह में पानी आता। यह बात सिद्ध हुई थी कि मशहूर होने के लिये कोई खास ताम-झाम नहीं सिर्फ मेहनत चाहिए। अब केक और पेस्ट्री के साथ कई तरह के अलग-अलग नाश्ते की खाद्य सामग्री इसी बेकरी से जाने लगी लोगों के घरों में।

सबकी तनख्वाह बढ़ा दी गयी थी। सबकी जिम्मेदारियाँ भी बढ़ गयी थीं। यह ऐसा माहौल था जो घर से बाहर एक घर बना रहा था। यूँ लगता जैसे यह अपने ही घर का एक हिस्सा हो, नौ से पाँच तक का। काम गति पकड़ने लगा। मुनाफा ज्यादा होने से बोनस मिलता। क्रिसमस पर तो अच्छा-खासा बोनस। काम की एक अलग शैली विकसित हो रही थी। बैंक से लोन लेकर मालिक ने आसपास की छोटी-मोटी दुकानों को खरीद कर बिक्री के लिये अलग काउंटर बना दिए थे ताकि बेकिंग उत्पादों के लिये पर्याप्त जगह हो जाए। इसमें धानी के सुपरविजन में सारे उत्पाद कई गुना अधिक मात्रा में बेक होने लगे।

धानी का काम बढ़ता गया उसका स्टाफ भी बढ़ता रहा। धानी की तनख्वाह स्टोर मालिक ने इतनी बढ़ा दी थी कि वह कहीं और से प्रस्ताव मिलने पर छोड़ कर न चली जाए। बुजुर्ग मालिक उसे अपनी बेटी की तरह प्यार करता था। धानी, बिल्कुल उसकी अपनी बेटी की उम्र की थी। उसकी ऊर्जा से औरों को भी बहुत प्रोत्साहन मिलता। सब एक दूसरे के काम में मदद करके छ: बजे तक घर चले जाते थे।

काम बढ़ने से नये लोगों की भरती भी होने लगी। धीरे-धीरे उसकी टीम में ऐसे लोग आते जा रहे थे जो हर कहीं खुश रहना जानते थे। वे किसी भी काम को छोटा नहीं समझते थे। कभी आपस में कोई छोटी-मोटी तकरार होती भी तो वहीं सुलझ जाती।

नयी धरती पर नयी पहचान बनाने के लिये आतुर होने वाला ही अपनी जमीन छोड़ने की हिम्मत कर सकता है। हर किसी में न यह जज़्बा होता है, न ही नया काम सीखने की ललक। जिनमें होती वे आगे बढ़कर अपना भविष्य बना लेते। जिनमें नहीं होती वे वापस घर लौट जाते।

घर और बेकरी के बीच बहुत कुछ था जो कभी बैगल और कभी क्रसान की खुशबू देता। केक बनाने की आइसिंग पर बच्चों-बड़ों के नामों को लिखते धानी बहुत कुछ सोच लेती थी। दूर तक जाती उसकी नज़र - “कितनी खुशी होगी उस घर में आज, जहाँ यह केक कटेगा।” कहीं न कहीं परोक्ष रूप से वह भी शामिल है इस खुशी में। उसकी इस कलाकारी से कितने बच्चों के चेहरों पर मुस्कान आती होगी। कम ही लोगों के भाग्य में होते हैं ऐसे पल। हर वह नाम जो उकेरा जाता केक की आइसिंग में, उसके लिये वह कामना जरूर करती कि यह केक जब कटे तो उसकी शुभकामनाएँ भी वहाँ हों।

कलाकार के मानिंद उसकी कला आटे और बटर के साथ तो थी पर आइसिंग के आकार के साथ जो मीठापन आता था उसका तो कोई सानी ही नहीं था। बच्चों के पसंदीदा कार्टून कैरेक्टर को जब वह उनके जन्मदिन के केक पर उकेर देती तो बच्चों की मुस्कान उसे उस कार्टून में ही दिख जाती। बड़े ही मनोयोग से सजाती उस केक को जैसे कोई रचनाकार अपनी कृति को सजाते हुए उसकी आगे की यात्रा के लिये शुभकामनाएँ दे रहा हो। कभी-कभी उस खुशी की झलक उसे मिल जाती जब अपने पिता के साथ वह बच्चा भी केक पिकअप करने आता। डिलीवरी से पहले बंद डिब्बा उन्हें खोल कर बता दिया जाता कि वे अपना काम पूरा करके दे रहे हैं। तब वह बच्चा अपने जन्मदिन पर अपने खास कार्टून कैरेक्टर को अपने केक पर देखकर खूब खुश होता और कहता – “आप दुनिया की सबसे अच्छी केक बनाने वाली लड़की हो।”

वह एक प्यारा-सा चुंबन देती उसे हवा में और तब, देर तक उस बच्चे की खुशी धानी को प्यारी सी मुस्कान में डुबो देती।

मालिक कहते – “ये बच्चे तुम्हे कितना प्यार करते हैं।”

“इसी प्यार के लिये तो मैं इन कार्टून कैरेक्टर्स को केक पर उकेरती हूँ।”

“भगवान तुम्हे लंबी उमर दे धानी”

“हाँ, तभी तो मालिक की कमाई बढ़ेगी।” रेयाज़ पीछे से हिन्दी में बोलता तो वह मुस्कुरा देती।

उसे कुकिंग का बहुत शौक था। माँसा के रहते वह रोजमर्रा का खाना बनाने रसोई में नहीं जाती थी। हाँ, किसी खास डिश को बनाने के लिये माँसा को आराम करने को कहकर जुट जाती थी उसे तैयार करने में। सबसे पहले उसे चखते थे बाबासा। ऐसी जीभ चटकाकर “वाह-वाह” करते थे कि धानी खुश हो जाती थी।

जब माँसा की तरफ देखकर आँखें मिचका कर कहते थे – “थारी माँसा ने तो कदी नी बनायी ऐसी चीज!”

“हाँ, माँसा ने तो कदी कुछ नी बनायो” आँखें तरेर देतीं वे।

बच्ची को खुश करके माँसा से चुहलबाजी करने की आदत थी बाबासा की। धानी की मेहनत सफल हो जाती। इसी शौक के चलते अपने कस्बे में ही ऐसी कई कक्षाएँ ली थीं उसने जो नयी-नयी चीज़ें बनाना सिखाती थीं। हमेशा ही जो सीखा उसमें अपने खास प्रयोग से उसे एक नया स्वाद और नया नाम देती।

बस वही शौक आज यहाँ इस बेकरी में उसके लिये वरदान साबित हुआ। अपने बलबूते पर कई नये प्रयोग करते हुए उसकी अपनी कई सिग्नेचर डिशेज़ बन गयी थीं। अब बेकरी के ऑनलाइन प्रचार-प्रसार के लिये एक कम्प्यूटर विशेषज्ञ था डेविड, जो आए दिन रंगीन फोटो खींचकर ऑनलाइन सर्च इंजन में उस बेकरी को सबसे ऊपर रखता जो बेकर के नाम को एक नयी पहचान देती। मेज पर रखे वे उत्पाद जब इंटरनेट पर दिखाई देते तो रंगबिरंगी तस्वीरें ही खींच कर ले आतीं ग्राहकों को। एक के बाद एक ऑर्डर मिलते रहते। कभी दालचीनी की खुशबू तो कभी चाकलेट की खुशबू, कभी बनाना फ्लेवर, तो कभी स्ट्रॉबेरी फ्लेवर। रंग और स्वाद मिलकर सुंदरता की प्रतिमूर्ति बना देते उस छोटे से बेकरी आयटम को।

“डेविड तुम्हारे खींचे हुए फोटो तो बहुत ही सुंदर बना देते हैं इन चीजों को।”

“यह तो दरअसल आपकी मेहनत है। फोटो तो वैसा ही आता है जैसा है। आपका रंगों का चयन ही ऐसा आकर्षक है।”

“अच्छा सुनो, कोई भी बच्चों का नया कार्टून कैरेक्टर आए तो मुझे जरूर बताना।”

“जी बिलकुल, तुरंत आपके पास उसकी पूरी जानकारी होगी ताकि आप बच्चों को और खुश कर सकें।”

बेकिंग की जो कक्षाएँ बस ऐसे ही समय काटने के लिये, सखियों के साथ बतियाने के लिये ली थीं वे ही कक्षाएँ आज उसे इतना सम्मान दिला रही थीं कि हर ग्राहक वैसी ही माँग करता जैसी पिछली बार की पार्टी में चीज़ों के स्वाद में था। मालिक कहता यह धानी के हाथ का कमाल है कि वह लोगों के मन में बसती जा रही है – “मैं नहीं, धानी है हमारी बॉस।”

रेयाज़ कहता – “यह हमारी डानी डॉन है, गैंग मास्टर।”

ग्रेग कहता – “अपने डॉन की बंदूक की नोक पर काम करते हैं हम।”

हर सहकर्मी का चेहरा मुस्कुरा रहा होता इस सफलता पर। उन सबके घरों में पैसा तो जा ही रहा था, खाने की चीज़ें भी जाने लगी थीं। उनकी अपनी पार्टियों में भी सामान अपनी बेकरी से ही जाने लगा था। कोई नया घर खरीदने के बारे में सोचने लगा था तो कोई किसी बेहतर लोकेशन पर घर को किराए पर लेने के बारे में सोचने लगा था।

सबसे अधिक आय तो धानी की थी। उसने अपने घर के सारे खर्चों को अपने ऊपर ले लिया था। इतना सब कुछ होते हुए कभी यह नहीं सोचा कि वह अपना ही काम शुरू कर दे। इसी बेकरी को अपना समझकर सबकी प्रगति के रास्ते खोलती रही। बहुत खुशी होती उसे अपने साथियों को खुश देखकर। सिक्कों की खनखनाहट की खुशी सबके स्वभाव में मिठास ले आती थी। वह खुशबू सिर्फ चीजों या बेकरी के उत्पादों की नहीं थी, वह धानी के मीठे व्यवहार की भी थी। उसकी मुस्कान की थी जो होठों पर ऐसे बनी रहती थी मानो खुशियाँ बाँटने की सौगात ले कर ही आयी हो।

जल्दी ही बेकरी के मालिक ने धानी को वह स्टोर सौंप कर उसका सर्वेसर्वा बना दिया था। वहाँ बढ़ते-बढ़ते बीस से अधिक लोगों का स्टाफ तो था ही, अतिरिक्त मदद की भी जरूरत पड़ती रहती। क्रिसमस व्यस्ततम समय रहता। इतना व्यस्त कि रात की शिफ्ट में काम करके ऑर्डर पूरा करना पड़ता। काम करते थे उसके मातहत और वह एक के बाद एक नयी डिश जोड़ती जा रही थी। अब कई अलग-अलग फ्लेवर लिये वीगन केक, नट फ्री केक, अंडा फ्री केक, शुगर फ्री केक, हर तरह के केक के साथ सुबह के नाश्ते के लिये कई तरह की अलग-अलग ब्रेड, बैगल, क्रसान, मफिन आदि भी ताजे और थोक में बेक होने लगे थे। फोन से ऑर्डर लेकर बुक करना और समय पर डिलीवरी देना।

व्यस्तता के इन पलों में भी वह बाली को फोन करके हालचाल अवश्य पूछ लेती। कई बार फोन उठाता, कई बार नहीं उठाता। चिंता होती तो फोन लगा लेती। कभी बस “हाँ, हलो” करके रख देता तो भी वह आवाज सुनकर ही खुश हो जाती। घर के लिये कई तरह का सामान आने लगा बेकरी से। सभी काम करने वाले बचा हुआ सामान आपस में बाँट लेते क्योंकि कठोर नियम के चलते आज का बनाया आज ही खत्म हो तो ठीक वरना कल किसी काम का नहीं रहता। ऐसे में फेंकने के बजाय जितना उपयोग किया जा सके, बेहतर लगता। धानी अपना अतिरिक्त समय देती कि खाना व्यर्थ न जाए। कई बार ऐसा होता कि सबके लेने के बाद भी बच जाता सामान तो वह स्वयं जाती बचा हुआ खाना फूडबैंक को देने।

इस ट्रिप से समय तो ज़ाया होता पर उसे बहुत राहत मिलती। संतोष मिलता कि जरा से अतिरिक्त समय से वह कई भूखे लोगों तक खाने की चीजें पहुँचा रही है।

अपनी गाड़ी से शाम के धुंधलके में वापस आते हुए रास्ते में लड़कियों की टोलियाँ दिखतीं तो अपनी पुरानी टोली याद आ जाती। बेफिक्र, मस्ती में झूमती वे लड़कियाँ। ये अपने फोन के साथ व्यस्त दिखतीं तो अपने कस्बे की वे लड़कियाँ अपने-अपने समूह के साथ चहकती दिखाई पड़तीं। उसके होंठों पर मुस्कान आती यह सोचकर कि जगह बदलने से मानव स्वभाव तो नहीं बदलता। हर जगह सुविधाओं में हो या अभावों में, इंसान अपनी खुशियाँ तो ढूँढ ही लेता है। वही किशोरावस्था का चुलबुलापन तब भी था जो आज यहाँ पर इन लड़कियों की मस्ती में दिख रहा है। एकबारगी खो जाती उन यादों में जब कजरी और सलोनी के साथ यूँ ही बेफिक्र होकर घूमते रहते थे।

उसकी व बेकरी की जितनी प्रशंसा बढ़ रही थी उतनी ही काम की जिम्मेदारियाँ भी बढ़ रही थीं। पुराने उत्पादों के साथ नये उत्पादों की माँग के कारण काम और समय का दबाव बना रहता। लेकिन उत्साह और उमंग को बनाए रखने के लिये उसे बहुत सारे साथी मिले थे जो कभी उस दबाव को महसूस नहीं होने देते। मालिक अब पूरी तरह से निश्चिंत हो कर एक और नयी शाखा खोलने की तैयारी में जुट गया था।

पूरे स्टाफ की हर शुक्रवार को एक पार्टी के साथ मीटिंग होती जिसमें सबको अपनी-अपनी बात कहने का मौका मिलता। सबके सुझावों का स्वागत होता। इस तरह टीम भावना से टीम वर्क को आगे बढ़ाने के रास्ते प्रशस्त होते।

क्रमश...