us ek subhah ke baad in Hindi Classic Stories by राजेश ओझा books and stories PDF | उस एक सुबह के बाद

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उस एक सुबह के बाद



रमा सारे काम निपटा कर बैठी ही थी कि मोबाइल बज उठा..स्क्रीन पर विटिया दीपाली का नम्बर चमक रहा था..हौले से फोन उठाया

"हां बेटा..! हलो.."

"मम्मी अखिलेश अंकल को कल तक रोंकना, मैं कल आ रही हूँ"

"पर बेटा उन्हें तमाम काम होते हैं.. काहे रुकेंगे वे"

"मम्मी प्लीज किसी तरह रोंकना..बहुत जरूरी काम है" कहकर दीपाली ने फोन काट दिया था..'बेचारे कब तक वे मेरी जिम्मेदारियों को ढोते रहेंगे' रमा मन ही मन बुदबुदायी थी

एक खूबसूरत जवान महिला को आस-पड़ोस से संवेदना तो बहुत मिलती है पर उस संवेदना में अपनत्व की जगह छल की मात्रा अधिक होती है..रमा ने ढेर सारी संवेदनाओं में अखिलेश का छल रहित अपनत्व पहचान लिया था और गाहे बगाहे मन की कह लेती थी उनसे..

उन्नीस वर्ष की उम्र में जब वह ब्याह कर आयी थी तो सब ठीक था..पति नीलेश तीन भाइयों में सबसे छोटे थे और एक निजी कम्पनी में ठेकेदार के शागिर्द के रुप में काम करते थे.. ठीक ठाक तो नही पर जीवन जीने भर का कमा लेते थे..शेष दोनों बड़े भाई पुरखों की खेती बारी करते थे..परिवार में यदि कलह न हो तो कम पैसे में भी खुशहाल जीवन जिया जा सकता है..रमा भी खुश थी..एक दिन उसने पति से बताया कि वह पापा बनने वाले हैं..घर में पूड़ियां छानी गयीं.. पर यह खुशी चन्द दिनों की मेहमान निकली..इधर बिटिया का जन्म हुआ उधर पति और ससुर एक सड़क दुर्घटना में चल बसे..रमा घर में भले सबसे छोटी थी पर चूंकि पति की बाहर की आमदनी थी और वे सबके लिये कुछ न कुछ लाते रहते थे तो सास ,जेठानियां उससे बड़ा अपनत्व रखती थीं.. पर वह अपनत्व पति के साथ जाता रहा..जिस बच्चे का नामकरण घर वाले प्रसव पूर्व कर रहे थे उसी को कोई अब फूटी आंख से भी नही देखना चाहता था..सास ने तो बाकायदा घोषणा कर दी थी..

"देख बहू इस विटिया को मुझसे दूर ही रखना..पैदा होते ही मेरे बेटे और पति को खा गयी..इसका मुह देखना भी मेरे लिये पाप है"

"अम्मा इसमें उस नन्हीं का क्या दोष है..बहू वैसे ही दुखी है ऊपर से आप उसे और रुला रही हैं"

मझले जेठ ने सास को समझाने का प्रयास किया था..रमा आंखों में आंसू लिए वहाँ से हंट गयी थी..पर मझले जेठ के प्रति कृतज्ञता से भर गयी..मझली जेठानी मायके गयी थीं..रात्रि में खाने के बाद मझले जेठ ने कहा था..

"बहू मैं बगल के पनवारी के यहाँ से पान खाकर आता हूँ तुम चारपाई के नीचे पानी रख आना"

और जब वह पानी रखने गयी तो देखा जेठ पहले से ही कमरे में उपस्थित हैं.. हाथ पकड़ते हुये बोले..

"किसी को पता नही चलेगा..बस तुम मान जाओ"

रमा किसी तरह हाथ छुड़ाकर चली तो आयी पर मारे भय के पूरी रात सो न सकी..सुबह पिता को बुलाया था

"चल बेटा घर चल..यहाँ नही रह पायेगी तू"

"पापा यदि जीवन में दुख ही लिखा है तो वह आप दूर नही कर सकते..यहाँ नीलेश की यादें
हैं.. मैं रह लूंगी..बस मेरा बंटवारा करवा दीजिये "

"अपने साथ उस नन्हीं का भी जीवन बर्बाद कर रही है..इसे मैं पाल लूंगा और तेरा दूसरा विवाह कर दूं..अकेले जीवन नही काट पायेगी "

"पापा इस नन्हीं को छोड़ अलग जाने को मैं सोच भी नही सकती..आप मां नही हो न इसलिये सरलता से यह बात कह गये..मुझे तो ऐसा सोचने में ही मूर्छा आयेगी"

"तुझे पाल लिया था तो इसे नही पाल पाऊंगा..?"

"पापा फिलहाल अगर आप यही सोचकर आये हैं तो माफी ,आप जा सकते हैं.. नन्हीं के बिना मैं नही रह सकती"

पिता हताश होकर बोले.." चल ब्याह नही करेंगे तेरा पर चल वहीं.. इसका दाखिला करवा देंगे..इस नर्क से छुट्टी तो पा जायेगी"

"पापा वहाँ भैया भाभी इससे प्यार नही बस दया दिखायेंगे..दया का जीवन मुझे कभी नही भाया..यहाँ नीलेश के हिस्से की खेती कराऊंगी और इसे पाल लूंगी.."

"जिद ठीक नही होता बेटा"

"दया के बदले अभाव का जीवन श्रेष्ठ होता है पापा "

रमा की जिद के आगे पिता को झुकना पड़ा.. प्रधान से मिलकर रमा का हिस्सा अलग करवा दिया..तथा विटिया का दाखिला प्राथमिक विद्यालय में करवाकर चले गये..प्रधान जी के छोटे बेटे चूंकि पति नीलेश के मित्र रहे थे..उन्होंने मित्र धर्म का ध्यान रखा कि अपना वोट बैंक सुरक्षित किया यह तो नही कहा जा सकता पर महिला चिकित्सालय में उन्होंने 'आशा बहू' के रुप में रमा का चयन करवा दिया था..

पहले दिन घर की देहरी लांघते ही घर में तूफान आ गया था
"क्या कलयुग आ गया है..गाँव घर के लड़कों से पेट नही भरा तो अब अस्पताल में नैन मटक्का होगा" मझले जेठ बोले थे

"जेठ जी कोई और कहता तो कोई बात भी थी..तुम क्या बोलते हो जो घर भी नही बरा सके..कहो तो मुह खोल दूं ..?" रमा ने धीरे से ही सही पर तीखा प्रतिवाद किया था..मझले तिलमिला कर रह गये थे..जेठानियां अहेरिया-पारसी में दक्ष थीं.. एक ने कहा "जिज्जी अब ओ कुतिया भी जुगाड़ में है जिसे गाँव घर के कुत्तों ने भी घास नही डाली वह शहर में तलाश करने निकली है"
कोई कुछ भी कहता पर रमा को न कोई असर पड़ना था न पड़ा.. जब बात असह्य हो जाती तो प्राथमिक विद्यालय चली जाती.. शिक्षक अखिलेश वर्मा जो विटिया के प्रारंभिक अध्यापक थे से मन की बात कहकर दिल हल्का कर लेती..

दीपाली का जब कक्षा एक में नाम लिखाया गया था तो गाहे बगाहे रमा का स्कूल में जाना होता था..दीपाली के प्रति अखिलेश का दुलार रमा को अच्छा लगा था..या यूं कहें कि अखिलेश का दीपाली के प्रति ममत्व भरे मोह ने रमा का अखिलेश के प्रति भावनात्मक झुकाव का सेतु बना..जब मन बहुत भारी हो जाता वह अखिलेश के पास चली आती पर किसी ने भी एक दूसरे की उंगली तक पकड़ने का लोभ नही किया..अखिलेश विधुर अवश्य थे पर संयमित थे..प्राथमिक विद्यालय से निकलने के बाद आगे की सभी पढ़ाई दीपाली ने अखिलेश के निर्देश व सहयोग से ही किया था..पिछले हफ्ते किसी बड़ी कम्पनी में ऊंचे ओहदे पर उसका चयन हुआ था..

दीपाली प्रेम में थी..नौकरी मिल जाने के बाद जब साथी वैभव ने विवाह का प्रस्ताव रखा तो उसे अपनी माँ ही याद आयी..वह मां जिसने उसके लिये अपना पूरा जीवन दांव पर लगा दिया था..ऐसे में मां को सदा के लिये छोड़ कर जाने को सोचते ही वह सिहर उठी..

"वैभव विवाह तो हम करेंगे ही पर मेरी एक शर्त भी है "

"हमारा सम्बन्ध शर्तों से परे होना चाहिए दीपाली..शर्तों पर अवलम्बित सम्बन्ध कमजोर माने जाते हैं"

"समझती हूँ पर दिल से मजबूर हूँ"

"शर्त बोलो "

"हम मम्मी को साथ रखेंगे"

शर्त सुनकर वैभव मुस्काये थे.."पागल यह कोई शर्त हुयी..वह हमारी मम्मी हैं.. साथ ही रहतीं पर मैने तो उनके लिये कुछ और सोच रखा है"

"क्या..! " दीपाली कुतूहल से बोली थी

"क्या तुम्हें नही लगता कि मम्मी अखिलेश अंकल से भावनात्मक रुप से जुड़ी हैं"

"तो..!" दीपाली की उत्कंठा चरम पर थी..

"तो क्या..! अभी उनकी उम्र ही क्या है..बयालीस तैंतालीस..क्या तुम्हें नही लगता कि उन्हें अपना जीवन पुनः शुरु करना चाहिए.. क्या हम उनका ब्याह नही करा सकते..!"

दीपाली मारे खुशी के झूम उठी..मारे खुशी के उसने वैभव का हाथ पकड़ कर चूम लिया पर अगले ही पल वो कुछ सोचकर निराश हो गयी

"क्या हुआ..?

"सामाजिक दबाव के चलते शायद मम्मी तैयार न हों"

"मम्मी तुम्हारी हैं पर तुमसे अधिक उन्हे जानता मैं हूँ.. वह एक क्रांतिकारी महिला हैं.. आज के बीस वर्ष पहले उन्होंने उस रूढ़िवादी परिवार की देहरी लांघकर यह बता दिया था कि वह साहसी महिला हैं"

"पर एक दिक्कत और है..पिछले हफ्ते जब मैं घर से निकली थी तो अंकल ने बताया था कि उनका स्थानांतरण हो गया है शायद.. एक दो दिन में ही वे गाँव छोड़ने वाले हैं"

"मम्मी को फोन करो न कि वे अंकल को एक दो दिन रोंके किसी तरह "

और उसी क्रम में दीपाली ने फोन किया था..रमा ने अखिलेश को बुला लिया था..दोनों दीपाली की प्रतीक्षा कर ही रहे थे कि वैभव की बाइक रुकी और दीपाली चहकते हुये आकर मां से लिपट गयी..

"अब मां से ही लिपटी रहोगी कि मुझे भी कुछ बताओगी .." अखिलेश उलाहना वाली आवाज में बोले थे

"मुझे विवाह करना है"

"अरे यह तो बहुत अच्छी बात है..कब कर रहे हो आप लोग"

"जब आप दोनों चाहोगे "

"मतलब..?"

"मतलब यह कि जब आप दोनों विवाह कर लेंगे..मम्मी को दो बोल बोलने वाला मिल जायेगा..फिर हम भी विवाह करके फुर्र हो जायेंगे" दीपाली ने कहा तो बहुत सरलता से था पर उसका प्रभाव बड़ी तेजी से हुआ..

"क्या..? रमा और अखिलेश एक साथ चौंकते हुये बोले..

" न न यह नही हो सकता..यह समाज हमें जीने नही देगा" रमा ने बड़ी तेजी से कहा..

"आप जैसी बहादुर महिला से यह कायरता वाली बातें अच्छी नही लगीं आन्टी " वैभव तेजी से बोले थे..

"नही बेटा..! बात कायरता की नही है..अब इस उम्र में पुनः विवाह हम कैसे सोच सकते हैं"

"जीवन जड़ नही है आन्टी..जीवन में परिवर्तन हमें प्रत्येक दशा में खुशी देता है..जीवन में नयापन लाने के लिये कुछ बदलाव आवश्यक होते हैं"

"बेटा तुम लोग आते रहोगे..मेरी देखभाल होती रहेगी..मेरे खुश रहने के लिये विवाह ही अन्तिम विकल्प नही है..मैं अपने काम में इतना व्यस्त रहती हूँ कि बाकी कुछ सोचने का समय ही नही है"

"काम करते रहने का मतलब यह तो नही कि बाकी जिन्दगी की सुध ही न ली जाये.."

"इसके पापा को अभी मैं भूल नही पायी हूँ बेटा " रमा ने अन्तिम हथियार फेंका..वैभव तैयार थे..तुरंत बोले

"आन्टी यह सही है कि बीत चुकी चीजों को भूलना नही चाहिए.. उससे हम तमाम चीजें सीखते भी रहते हैं पर बीते हुये में जीना खतरनाक होता है"

रमा को लगा कि ये सीधे मानने वाला नही तो अपनी प्रकृति के विपरीत बोलना प्रारंभ किया..

"फिर भी यह विवाह संभव नही..मैं पण्डित की बेटी और ये वर्मा हैं"

वैभव मुस्काये..आन्टी आप कृष्ण भक्त हैं न..कृष्ण की बहन सुभद्रा यादव कुल की कन्या थीं और अर्जुन ठाकुर थे फिर भी कृष्ण ने विवाह होने दिया..अन्तर जातीय विवाह के तमाम उदाहरण हमारे पौराणिक उपाख्यानों में भरे पड़े हैं "

"फिर भी बेटा यह सही नही होगा"

बड़ी देर बाद दीपाली बोली थी.."कोई बात नही..मैं भी नही करती विवाह अब..दोनों मां बेटी साथ साथ रहेंगे..खूब खुश रहेंगे"

रमा को दीपाली के व्यंग्य से धक्का लगा था..हारकर बोली.."कोई अखिलेश जी से भी तो पूंछों ,इनकी क्या मर्जी है"

"मैं तो कब से प्रतीक्षा कर रहा हूँ तुम्हारा साथ पाने को" अखिलेश धीरे से बोले थे"

"तो फिर कल का दिन इतिहास में अमर हो जायेगा..जब जिला रजिस्ट्रार के समक्ष मां बेटी का विवाह एक साथ होगा" दीपाली चहकते हुये बोली

"तू तो मेरी अम्मा निकली रे" कहते हुये रमा ने दीपाली को भींच लिया था..अखिलेश और वैभव खड़े मुस्करा रहे थे

राजेश ओझा