Udaan, prem sangharsh aur safalta ki kahaani - 9 in Hindi Love Stories by Bhupendra Kuldeep books and stories PDF | उड़ान, प्रेम संघर्ष और सफलता की कहानी - अध्याय-9

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उड़ान, प्रेम संघर्ष और सफलता की कहानी - अध्याय-9

परिस्थितियों से संघर्ष:-

दो दिन बाद जब प्रथम कॉलेज में था तो अनु आ गई।
प्रथम तक सूचना पहुंची तो वह आ गया।
बैठो अनु। तुम ठीक हो।
हाँ मैं ठीक हूँ। आप ठीक हो ?
हाँ मैं भी ठीक हूँ । यहीं बैठोगी कि विभाग में चलोगी क्योंकि मेरी एक क्लास बची है। उसको ले लेता हूँ फिर चलते है।
ठीक विभाग में ही चलिए।
चलो।
वो प्रथम के क्लास लेते तक बैठी रही। फिर वहाँ से घर के लिए निकल गए।
घर मे बता कर आई हो ?
हाँ, बता दी हूँ।
क्या बोले ?
नाराज हैं और क्या। वो तो पहले ही बोले थे कि तुम्हारी मर्जी तो और कुछ तो बाकी रहा नही था। बस भाई लोग थोड़ी ज्यादा नाराजगी व्यक्त कर रहें थे।
चलो सब ठीक हो जाएगा। वक्त बड़ा बलवान होता है। धीरे ही सही पर वक्त सब घाव भर देता है। फिर तुम तो घर की बड़ी हो। तुमसे तो ज्यादा उम्मीदें थी उनको अपने परंपराओं को निभाने की।
हाँ आप सही बोल रहे हैं परन्तु मैं क्या करती जब प्रेम हुआ तब इन सबका ज्ञान नही था। मुझे लगता था समाज की सोच जाति-पाति, धर्म से ऊपर हो चुका है पर ऐसा कुछ भी नहीं है।
इतने में दोनो घर पहुँच गए। अनु ने देखा कि सिर्फ एक-एक रूम से बना हुआ मकान था और सिर्फ बैचलर लड़के ही उन कमरों में रहत हैं। प्रथम ने कमरे का दरवाजा खोला और कहा - अंदर आओ अनु अब ये तुम्हारा है, मेरे ऊपर और इस घर के हर एक चीज पर सिर्फ तुम्हारा अधिकार है।
इतने में गोलू आ गया।
अनु ये गोलू है बगल वाले कमरे में ही रहता है।
बिल्कुल मेरे छोटे भाई की तरह है।
नमस्ते भाभी, आप दो मिनट रूको मैं आरती की थाली लेकर आता हूँ।
अनु बाहर ही खड़ी रही।
गोलू थाली में दीपक जला कर ले आया।
भैया आप ही टीका लगाईये भाभी को। गोलू बोला।
ठीक है लाओ दो गोलू।
प्रथम ने थाली ली और आरती उतारी और टीका लगाया।
आओ अनु अंदर।
अरे ये तो बहुत छोटा कमरा है ? अनु ने कहा।
हाँ अब महल तो नहीं है मेरे पास, जो है यही है।
आपका सब काम इसी कमरे में होता है।
हाँ।
मतलब यही खाना बनाना, सोना, पढ़ना सब।
नहीं, नहीं हम लोग कम से कम दो कमरे वाला घर देखेंगे।
देखों अनु। अभी तो न मेरे पास पैसे न बजट।
फिलहाल यहीं रहो। खाना बनाने का समान देखों इधर रखा है तुम खाना बना लो और गोलू के साथ बात करो, तब तक मैं कोचिंग से आता हूँ।
कैसे जाते हो कोचिंग ?
पैदल चला जाता हूँ ज्यादा दूर नहीं है लगभग एक किमी. होगा।
ठीक है आप होकर आओ। तक मैं खाना बनाती हूँ। तुम तो घर से कपड़े भी नहीं लाई हो अभी कैसे करें। प्रथम ने पूछा।
एकात गाऊन ले आना, बस। अनु ने कहा।
मेरे ख्याल से 60-70 रूपए में आ जाएगा तुम्हारा गाऊन और एक सेट इनरवियर भी ले आऊँगा।
ठीक है आप जाओं और जल्दी आओ।
आठ बजे आऊँगा मैं ठीक है प्रथम बोला।
ठीक है।
प्रथम कोचिंग चला गया।
कहाँ के रहने वाले हो गोलू ?
यहीं पास में ही बोरी गाँव है भाभी वहीं का रहने वाला हूँ। ये घर क्या है मेरे बड़े पिताजी का है तो मेरे भाई और मैं यहाँ रहते हैं। तुम्हारे भाई कहाँ है ?
वो लोग नीचे रहते हैं भाभी।
अच्छा गोलू आस-पास मंदिर है ?
हाँ है ना भाभी पास ही शीतला मंदिर है और काली मंदिर है।
साई बाबा का मेदिर नहीं क्या आस-पास ?
है ना भाभी पर थोड़ा दूर है।
ठीक है गोलू तुम यही खाओगे खाना।
नहीं भाभी, आप लोग अपने लिए बनाओ। मैं तो बना लिया हूँ। थोड़ी सब्जी लाकर देता हूँ आपके लिए।
गोलू एक कटोरी सब्जी ले आया और बोला कोई आवश्यकता हो तो बता देना।
ठीक है भाई।
लगभग 8:30 बजे प्रथम आया।
कैसी हो प्रिये।
ठीक हूँ, आपको देर कैसे हो गई।
पैदल आता हूँ ना इसलिए देर हो जाती है।
गाड़ी क्यों नहीं ले लेते ?
पैसे कहाँ है अनु करेंगे धीरे-धीरे। प्रथम ने कहा।
अच्छा दरवाजा बंद करो।
प्रथम ने दरवाजा बंद किया और पलटा ही था कि अनु उससे लिपट गई।
अरे क्या हुआ ?
कुछ नहीं।
बताओगी भी क्या हुआ ?
दिन भर से देख रही हूँ कभी कॉलेज में क्लास लेना है, कभी कोचिंग जाना है मेरे लिए तो टाईम ही नहीं है आपके पास। छू भी नहीं पा रही थी आपको।
अच्छा, ऐसी बात है पर काम तो करना पड़ेगा ना प्रिये। काम नही करूंगा तो जियेंगे कैसे मैं कुछ नहीं जानती चुपचाप ऐसे ही खड़े रहो।
क्यों खाना नहीं खाना है ? प्रथम ने पूछा।
नहीं, मुझे नहीं खाना है।
पर मुझे तो खाना है, दिनभर का भूखा हूँ मैं। और तुम्हारे लिए कपड़े भी लाया हूँ मैं। इसको भी देख लेना पहनकर।
ठीक है मैं खाना निकालती हूँ आप बैठो।
दोनो ने मिलकर खाना खाया।
दिखाओं मुझे क्या कपड़े लाये हो।
बस तुम्हारे लिये गाऊन और इनरवियर है।
अच्छा तुम्हें साईज मालूम था ?
नहीं अंदाजे से लाया हूँ, फिटिंग नहीं होगी तो कल वापस कर दूंगा। तुम पहनकर देख लो।
ठीक है आप उधर मुंह कर लो।
उधर मुंह कर लूं, भला क्यूं ? मेरे सामने चेंज करने में क्या दिक्कत है।
मुझे शर्म आती है। प्लीज उधर मुंह कर लो ना ?
ठीक है प्रथम पलट गया।
अनु कपड़े चेंज करने लगी। जैसे ही अनु ने आधे कपड़े उतारे। प्रथम पलटा और जोर से उसे अपने पास खींच लिया।
छोड़ो ना मुझे प्लीज। अनु ने कहा।
नहीं छोड़ूँगा।
प्लीज, छोड़ो ना मुझे शर्म आ रही है।
नहीं छोड़ूँगा।
अच्छा ठीक है मत छोड़ो। अनु ने कहा और समर्पण कर दिया और इस तरह उनके दामपत्य जीवन की शुरूआत हो गई।
सुबह उठकर अनु ने पूछा।
ये बर्तन कहाँ पर धोना है ?
नीचे जाना पड़ेगा, बोर के पास।
अच्छा मैं देखती हूँ।
नीचे ही टॉयलेट बाथरूम भी है। प्रथम ने कहा।
ठीक है मैं आती हूँ।
वो नीचे गई ही थी कि तुरंत वापस आ गई।
नीचे तो सभी लड़के हैं ?
वहीं पर हैं क्या ? प्रथम ने पूछा।
हाँ। बाथरूम के पास ही हैं सब।
अच्छा ठीक है लाओ मैं बर्तन धोकर आ जाता हूँ । तुम थोड़ी देर से नीचे चली जाना।
ठीक है और आपका ये बेड तो माशा अल्ला है। ताँत वाला बेड क्यों लिए थे ?
पैसे नहीं थे भाई। कहाँ से लेता तुम्ही बताओ। जो सबसे सस्ता था वो ले लिया मुझे मालूम थोड़ी था कि एक दिन तुम मुझे डांटने वाली हो।
क्यों, मालूम तो था कि मैं आने वाली हूँ। अनु ने कहा।
अच्छा बाबा तुम ऊपर बेड पर सो जाना मैं नीचे चटाई पर सो जाऊँगा, और अगले महीने ठीक-ठाक वाला बेड ले लेंगे।
क्यों सोऊँगी मैं ऊपर। जब आप नीचे सोओगे तो मैं क्यों ऊपर सोऊँगी। मैं भी नीचे ही सोऊँगी।
ठीक है ठीक है लाओ बर्तन दो मैं नीचे से इनको धोकर आता हूँ।
आप परिवार वाला कोई घर क्यों नहीं ढूँढते हो जहाँ मैं थोड़ा सुरक्षित महसूस कर सकूं।
क्योंकि आप तो दिनभर के लिए बाहर चले जाओगे। मुझे दिनभर अकेला हरना पड़ेगा। इस वीरान घर में एक भी महिला नहीं है। अनु ने कहा।
ठीक है आज कोचिंग में सभी लोगों से पूछूँगा, वो सब लोग यहीं के लोकल हैं तो कोई न कोई रास्ता निकल आएगा।
खाना खाकर जाते हो कि टिफिन लेकर जाओगे।
टिफिन कहाँ है मेरे पास। सुबह खाना खाकर ही जाता था और शाम को आकर चावल भर बना लेता था। प्रथम ने कहा।
आज तो खाकर जाओ। शाम को टिफिन लेने जायेंगे। अनु ने कहा।
अरे नहीं अभी आवश्यकता नहीं है। शाम को वैसे भी मुझे समय नहीं मिलता। संडे को देखते हैं। संडे को अपन घर भी देख लेंगे और टिफिन भी ले लेंगे। प्रथम बोला।
शाम को कोचिंग में मैथ्स वाले सर कौशल जी ने बताया कि स्टेशन के पास वो जहाँ रहते हैं वहाँ दो कमरे वाला एक घर खाली है। कैम्पस जैसा है घर। एक परिवार पहले से किराए पर रहता है, सेकंड आप हो जाऐंगे। परंतु टाॅयलेट कॉमन है।
सर किराया कितना है। प्रथम ने पूछा।
मेरे ख्याल से 600 रूपए है। कौशल ने उत्तर दिया।
सेपरेट टॉयलेट बाथरूम वाल घर नहीं मिलेगा क्या ?
मिल तो जाएगा पर 1000-1200 के आस-पास ही मिलेगा।
ठीक है 600 वाला घर ही देख लेते हैं कम से कम परिवार के बीच तो रहने मिलेगा।
जब प्रथम घर लौटा तो अनु दरवाजे पर ही खड़ी थी।
क्या हुआ ? अनु ने पूछा।
एक घर पता तो चला पर वहाँ भी टॉयलेट कॉमन है। एक और परिवार के साथ शेअर करना पड़ेगा। दो रूम है और अंदर वाले रूम में एक हिस्से में किचन बना है। पानी के लिए नल कैम्पस अंदर है और घर के पिछले गेट से बाहर निकलकर भी भर सकते हैं। प्रथम ने बताया।
ठीक है पर सेपरेट टॉयलेट बाथरूम वाला मकान नहीं मिल रहा है क्या ? अनु ने पूछा।
उसका बजट ज्यादा हो रहा है यार 1000-1200 रूपए। मेरी तनख्वाह उतनी नहीं है कि मैं एफोर्ड कर सकूं।
तो फिर देखना क्या, चलो उसी घर में शिफ्ट हो जाते हैं। अनु ने कहा।
ठीक है मैं आज कौशल सर से बात करता हूँ।
मेरे पास तो अभी पैसे हैं नहीं एडवांस देने के लिए।
अगर वो बिना एडवांस के शिफ्ट होने देते हैं तो संडे ही चले जाएंगे। प्रथम बोला।
कैसे जाएंगे मतलब गाड़ी करनी पडे़गी ना ? अनु बोली।
अरे नहीं इतने से सामान के लिए क्या गाड़ी करना मैं ठेला कर लूंगा। पैसे भी बच जाऐंगे।
जैसी आपकी मर्जी। अनु बोली।
खाना खिलाओगी कि नहीं?
हाथ धोकर बैठ जाओं परोसती हूँ आपको। अनु बोली।
तुम भी खा लो।
ठीक है। अनु बोली।
अनु तुम उपर सो जाओ मै नीचे सोता हूॅ ।
आपको लगता है मै ऐसा करने दूंगी। मै भी नीचे सोऊॅगी ।
अरे वाह, ये तो अच्छी बात है नेकी और पूछ-पूछ आ जाओ नीचे मोहब्बत करते हैं ।
भागो यहाँ से जब तक नए घर में मुझे नहीं लेकर जाते तब तक छूना भी मत। अनु बोली
यार ये तुम्हारे बात मनवाने वाले दबाव से तो मैं परेशान रहता हॅू। कुछ आगे पीछे सोचना ही नहीं है अच्छा ठीक है संडे को शिफ्ट कर लेंगे। तुम वो गद्देे को नीचे चटाई पर डाल दो। प्रॉमिस मैं तुमको टच नहीं करूगां। मुझे तुम पर भरोसा नहीं है। अनु बोली ।
भरोसा करो भाई आ जाओ तकिया लेकर। प्रथम बोला।
जैसे ही अनु उसके बगल में लेटी प्रथम ने उसे अपनी बाहों मे खींच लिया ।
छोड़ो मुझे। मालूम था कि आप सुधरने वाले नहीं हो फिर भी पता नही कैसे आपके ऊपर भरोसा कर लेती हॅू। संडे मतलब संडे। मुझे यहाँ से जाना ही है। आप कैसे करोगे आप जानो।
ठीक है प्रिये अभी तो सो जाओ। प्रथम बोला ।
दोनों हलके-फुलके मूड में सो गए। अगली सुबह प्रथम फिर से बर्तन लेकर नीचे गया तो अनु बेहद नाराज हुई।
मेरे रहते आपको बर्तन धोना पड़ता है ये मुझे बिलकुल भी पसंद नहीं। अनु मुॅह फुलाए बैठी थी। चिंता मत करो परसों हो जाऐंगे शिफ्ट। मैं आता हूँ ।
नए घर के मालिक ने अनुमति दे दी थी कि प्रथम बाद में किराया चुका सकता थ। अतः संडे को उसने 80 रूपए में एक ठेला किया और पूरे सामान सहित नए घर में शिफ्ट हो गया।
नये घर में दो ही कमरे थे एक बैठक और एक बेडरूम ।
बेडरूम में ही किचन बना हुआ था। पीछे एक दरवाजा गली में खुलता था जहाँ पर नगर निगम का नल था। घर के बीच में आंगन था, बाथरूम था, नल था, और चारों तरफ कमरे बने हुए थे। एक बार मेन गेटबंद कर देने पर अंदर कोई नहीं आ सकता था। कैम्पस में बहुत सी महिलाएँ थी ।
भैया नमस्ते। मेरा नाम प्रथम है और ये मेरी पत्नि अनुप्रिया ।
प्रथम ने मकान मालिक से कहा।
नमस्ते सर, मेरा नाम समीर यादव है मैं स्कूल में शिक्षक हूँ। मैं जानता हूँ सर ये घर आपके लायक नहीं है। जब भी आपको इससे बेहतर घर मिले तो चले जाइएगा। हाँ एक बात के लिए मैं आपको आश्वस्त कर सकता हूँ कि यहाँ आपको पूरा पारिवारिक माहौल मिलेगा।
बस उसी बात को ध्यान में रखकर आया हूँ भैया। प्रथम ने कहा ।
कोई दिक्कत नहीं है सर आराम से रहिए जब तक नया घर नहीं मिल जाता ।
दसरे दिन सुबह कैम्पस के नल में दूसरे किराएदार बर्तन धो रहे थे तो अनु ने सोचा बाहर गली वाले में धो लेती हूँ वहाँ भी भीड़ थी। उसने थोड़ी देर इंतजार किया फिर पीने का पानी भरी और बर्तन धोई।
अब मुझे अच्छा नहीं लग रहा है। प्रथम ने कहा।
क्यों ? अनु ने पूछा।
तुम बाहर गली में जाकर बर्तन क्यों धो रही हो ?
तो क्या करूं। अंदर भी जगह खाली नहीं है। यहाँ तो दोनो जगह कम से कम महिलाएँ है। वहाँ तो लड़के होते थे। अनु ने कहा।
मै कर दिया करूगां बर्तन धोने और पानी भरने का काम। प्रथम बोला।
अच्छा, तो यहाँ आने का मतलब ही क्या हुआ। आप ही कर लोगे सब काम तो मेरी जरूरत क्या है।
ऐसी बात नहीं है अनु मुझे पसंद नही तुम बाहर रोड पर बर्तन धोओ । कैसे घूर-घूर कर सब देख रहे थे तुमको।
पसंद नहीं है तो अच्छे घर का इंतजाम करो। इस महीने की सैलरी मिलने दो फिर कुछ ना कुछ करते हैं। प्रथम बोला।
और भी जरूरत की चीजें है जिन्हें पहले खरीदना जरूरी है जैसे पलंग।
तभी सुबह-सुबह एक गाड़ी घर के बाहर आकर रूकी।
आईए पिताजी प्रथम ने कहा। आओ माँ। आईये मामाजी।
प्रथम के माता पिता आये थे। ठीक हो बेटा ? प्रथम के पिता ने पूछा।
हाॅ पिताजी ठीक हूँ। आप लोग ठीक हैं ?
हाॅ बेटा हम लोग ठीक हैं। तुम्हारी माँ तो आने के लिए एक सप्ताह से बोल रही थी मुझे ही देर हुई पर प्रोग्राम बनाकर आज आ ही गए।
माँ तुम अंदर आओ ना ? अनु अंदर ही है। अनु आओ।
अनु बाहर आई और सभी के पैर छुई। माँ को अंदर लेकर गई।
कैसी हो बेटी माँ ने पूंछा।
ठीेक हूँ माँ। हम दोनो को आप लोग माफ कर दीजिए। अनु ने कहा।
कोई बात नहीं बेटा। हमें तो खुशी है कि तुम हमारे घर शादी होकर आई हो। प्रथम की शादी बड़ी धूमधाम से कराने की इच्छा थी पर इच्छा पूरी ना हो पायी पर नेग तो आवश्यक है ना। मै तुम्हारे लिए सुहाग का पूरा सामान लाई हूँ। ये रख लो। माँ ने कहा।
धन्यवाद माँ मेरे लिए तो यही बहुत बड़ी बात है कि आप लोगों ने सुहाग का सामान देकर अपनी सहमति और आशीर्वाद दोनों मुझे दे दिया।
तुम दोनो खुश रहो बेटा हमें और क्या चाहिए।
अनु ने नीचे झुककर माँ को प्रणाम किया।
खुश रहो बेटा। अब हम लोग जाऐंगे। माँ ने कहा।
खाना खाकर जाईये ना माँ।
नहीं बेटा हम लोग चलेंगे।
आधे घंटे में बन जायेगा माँ, आप लोग बैठिए ना।
अच्छा ठीक है थोड़ा-थोड़ा खा लेंगे।
अनु खाना बनाने में जुट गई।
मामाजी आप लोगों को घर का पता कैसे लगा ? प्रथम ने पूछा।
प्रथम अपने पिता से ज्यादा बात नहीं करता था।
आपके कॉलेज से भाँजे। काउंटर पर जो बैठते है उन्होंने बताया।
अच्छा! माँ पिताजी को लाने के लिए धन्यवाद मामाजी। प्रथम ने कहा।
अनु खाना लगाओ सभी के लिए।
हाँ आप सभी को हाँथ धोने के लिए बोलिए मैं खाना लगा रही हूँ। अनु बोली।
फिर सभी ने बैठकर खाना खाया।
अच्छा बेटा कोई भी जरूरत हो तो मुझे फोन कर लेना। पिता ने कहा।
ठीक है पिताजी। प्रणाम।