Purnata ki chahat rahi adhuri - 5 in Hindi Love Stories by Lajpat Rai Garg books and stories PDF | पूर्णता की चाहत रही अधूरी - 5

Featured Books
Categories
Share

पूर्णता की चाहत रही अधूरी - 5

पूर्णता की चाहत रही अधूरी

लाजपत राय गर्ग

पाँचवाँ अध्याय

प्रतिदिन की भाँति मीनाक्षी के ऑफिस पहुँचने के कुछ मिनटों बाद ही महेश डाक ले आया। डाक में तीन दिन बाद दिल्ली में होने वाली मासिक मीटिंग का पत्र भी था। सारी डाक देखने के बाद उसने महेश को पिछले महीने की स्टेटमेंट फ़ाइल लाने के लिये कहा। फ़ाइल देखने के बाद उसे सभी अफ़सरों को दोपहर तीन बजे अपने-अपने वार्ड की ताज़ा रिपोर्ट के साथ मीटिंग में आने के निर्देश दिये।

मीटिंग में अफ़सरों से वांछित सूचनाएँ प्राप्त करने के बाद हरीश को रोककर बाक़ी सभी को अपना-अपना काम देखने को कहकर विदा किया। सभी के जाने के बाद हरीश को सम्बोधित करते हुए कहा - ‘हरीश, मीटिंग में तुम भी मेरे साथ दिल्ली चलना।’

‘जो आज्ञा मैम।’

‘सतपाल तुम्हें घर से ले लेगा।’

‘ठीक है मैम, मैं तैयार मिलूँगा।’

.......

मीटिंग हॉल में जैसे ही कमिश्नर साहब ने प्रवेश किया, सभी अफ़सरों ने खड़े होकर उनका अभिवादन किया। तत्पश्चात् कमिश्नर साहब ने मीनाक्षी और हरीश को साथ बैठे हुए देखकर पूछा - ‘मि. हरीश, यू हैव कम विद मीनाक्षी?’

‘यस सर।’

‘ऑय हैव अ गुड न्यूज़ फ़ॉर बोथ ऑफ यू। कांग्रेचूलेशन्स। बोथ ऑफ यू हैव बीन प्रमोटिड।’

हरीश तो खड़ा था ही, इतना सुनते ही मीनाक्षी ने भी खड़े होकर कहा - ‘थैंक्यू सो मच सर फ़ॉर दिस गुड न्यूज़।’

दूसरे अफ़सर भी इन दोनों को बधाई देने लगे। कुछ मिनट तक माहौल में चहल-पहल रही। फिर मीटिंग की कार्रवाई विधिवत आरम्भ हुई। मीटिंग दोपहर के खाने के बाद भी चली। दूसरा सत्र समाप्त होते-होते दिन ढल चुका था। दिल्ली से बहादुरगढ़ पहुँचते-पहुँचते नौ बज गये थे। चाहे मन-ही-मन हरीश शीघ्रातिशीघ्र घर पहुँच कर अपनी पत्नी सुरभि के संग प्रमोशन की ख़ुशख़बरी साझा करना चाहता था, फिर भी जब मीनाक्षी ने ‘गौरैया’ में डिनर करने को कहा तो उसके पास ‘बॉस’ की बात मानने के सिवा कोई चारा नहीं था।

‘गौरैया’ पहुँच कर हरीश ने आगे बढ़कर रिसेप्शन क्लर्क को बताया कि मैडम आयी हैं और रूम खोलने के लिये कहा। क्लर्क ने इंटरकॉम पर मैनेजर से बात की। मैनेजर तुरन्त हाज़िर हो गया। आते ही उसने मैडम को ‘गुड ईवनिंग मैम’ कहा और क्लर्क से वीआईपी रूम की चाबी लेकर स्वयं उन्हें रूम तक पहुँचाया। फिर खाने में मैडम की पसन्द जानी और चला गया। मैनेजर के जाने के बाद मीनाक्षी ने हरीश से कहा - ‘जब तक खाना आता है, मैं कमर सीधी कर लेती हूँ।’

‘ठीक है मैम। आप आराम कीजिये, मैं यहाँ बैठा हूँ।’

‘तुम भी अन्दर आ जाओ। वहीं कुर्सी पर बैठ जाना।’

लेटे हुए मीनाक्षी ने हरीश से पूछा - ‘प्रमोशन की ख़ुशी में तुम सुरभि और बच्चों के लिये कोई गिफ़्ट नहीं लेकर जाओगे क्या?’

‘मैम, अब इतनी रात हो गयी है, गिफ़्ट लेने में और समय लगाना ठीक नहीं रहेगा। वैसे भी, उनके लिये प्रमोशन का समाचार ही गिफ़्ट से बढ़कर होगा।’

मीनाक्षी ने मज़ाक़ में कहा - ‘हरीश, तुम्हें मेरा आभारी होना चाहिये कि आज मैं तुम्हें अपने साथ ले आयी और तुम्हें प्रमोशन का समाचार आज ही मिल गया वरना तो कल ऑफिस में आने पर ही तुम्हें प्रमोशन का पता लगता।’

मीनाक्षी ने बात हल्के अंदाज़ में कही थी, किन्तु हरीश ने संजीदगी से उत्तर दिया - ‘मैम, आभारी तो मैं हमेशा रहूँगा। शायद टेलीपैथी के कारण ही आप मुझे आज मीटिंग में लेकर आईं वरना मीटिंग में तो आप हर महीने जाती रहती हैं।’

‘तुम्हारी टेलीपैथी वाली बात से इनकार नहीं किया जा सकता। इसे ही हम पूर्व निर्धारित विधि का विधान मानते हैं। हरीश, यमुनानगर में एंटी-मंडल एजीटेशन की वजह से जैसे हालात हैं, उसके कारण वहाँ तुम्हारी पोस्टिंग को लेकर मुझे चिंता है। वहाँ अभी भी कर्फ़्यू चल रहा है। बीच-बीच में थोड़ी-बहुत ढील दी जाती है।’

‘आपकी बात से सहमत हूँ, परन्तु न तो मेरे पास ऐसा कोई जुगाड़ है कि पोस्टिंग कहीं और करवा लूँ और न ही इन हालात में छुट्टी मिलेगी। सर्विस में विपरीत परिस्थितियों से मुख नहीं मोड़ा जा सकता, उनका सामना करने से ही कर्त्तव्य-पालन हो सकता है। मैंने तो ऐसा सोचा है कि जब तक वहाँ के हालात सामान्य नहीं हो जाते, तब तक बच्चों को शिफ़्ट नहीं करूँगा।’

‘हरीश, आज मैं तुमसे अपने मन की बात साझा कर रही हूँ। जैसी हमारी सामाजिक व्यवस्था है, मुझे कई बार भाई की कमी महसूस होती है।....... कभी सोचती हूँ कि नीलू के विवाह के बाद उसके एक बच्चे को गोद ले लूँगी।’

‘मैम, उम्र और अनुभव में आपसे छोटा हूँ, फिर भी एक बात कहना चाहता हूँ।’

‘हाँ, कहो। इस समय मैं तुम्हारी बॉस और तुम मेरे सबोर्डिनेट नहीं हो, बल्कि तुम मुझे बड़ी बहिन मान सकते हो।’

‘मैम, अभी आपकी उम्र इतनी भी नहीं हुई कि विवाह योग्य कोई वर न मिले। आपकी उम्र के बहुत से ऐसे लड़के मिल जायेंगे जिन्होंने किसी मजबूरी के चलते अभी तक विवाह नहीं किया होगा। समाचार पत्र अथवा विवाह-सम्बन्ध करवाने वाली एजेन्सियों के माध्यम से योग्य साथी तलाशा जा सकता है।’

‘अब तक मेरी कुछ ज़िम्मेदारियाँ थीं जिनकी वजह से मैं इस विषय को टालती रही, किन्तु अब मैं भी सोचती हूँ कि मुझे विवाह कर लेना चाहिए।’

‘फिर तो जल्दी ही मुँह मीठा करने की आशा की जा सकती है।’

‘यह सब संयोग पर निर्भर है।’

......

हरीश जब घर पहुँचा तो लॉबी की लाइट जल रही थी। जाली वाला दरवाज़ा ही बन्द था। उसने बाहर से ही पम्मी और स्वीटी को आवाज़ लगायी। बच्चों ने तो नहीं, सुरभि ने आगे बढ़ कर उत्तर दिया - ‘दोनों आपकी प्रतीक्षा करती-करती अभी सोई हैं। लेकिन मीटिंग से इतनी लेट कैसे हो गये?’

यह सुनते ही कि बच्चे सो गये हैं, हरीश ने सुरभि के प्रश्न का उत्तर न देकर उसे बाँहों में उठा लिया।

‘अरे! यह क्या करते हो?’

‘डार्लिंग, आज मैं बहुत खुश हूँ। तुम भी सुनोगी तो झूम उठोगी।’

‘ऐसा क्या कुबेर का ख़ज़ाना मिल गया?’

‘ऐसा ही समझो बस। नौकरी में प्रमोशन होना ही कुबेर का ख़ज़ाना मिलने समान होता है। आज अपनी प्रमोशन हो गयी है और यमुनानगर की पोस्टिंग मिली है।’

जहाँ प्रमोशन की बात सुनकर सुरभि के चेहरे पर रौनक़ आ गयी थी, वहीं यमुनानगर की पोस्टिंग का सुनकर रौनक़ की जगह चिंता की लकीरें उभर आयीं। अतः बधाई देने की बजाय उसने कहा - ‘वहाँ तो कर्फ़्यू चल रहा है, ऐसे में वहाँ कैसे जायेंगे?’

‘ड्यूटी तो ज्वाइन करनी ही पड़ेगी, नौकरी में नख़रा नहीं चलता। मैंने सोचा है कि एक बार अकेला जाकर ज्वाइन करूँगा, जब हालात ठीक हो जायेंगे तो शिफ़्ट कर लेंगे।’

‘आप हाथ-मुँह धो लो, इतने में मैं चपातियाँ सेंक लेती हूँ।’

‘सुरभि, मैं तो खाना खा चुका हूँ। मैडम के कहने पर मुझे उनके साथ डिनर करना पड़ा। तुमने तो खा लिया होगा?’

‘बच्चों को खिला दिया था। मैं तो आपकी प्रतीक्षा कर रही थी। सोचा था कि इकट्ठे खायेंगे।’

‘सॉरी यार। बॉस को ना भी तो नहीं कर सकता था।’

हरीश ने देखा कि सुरभि का मूड उखड़ गया है, अतः उसने चापलूसी करते हुए कहा - ‘चलो, सज़ा के तौर पर और प्रमोशन की ख़ुशी में आज मैं तुम्हें पराँठे बनाकर खिलाता हूँ।’

‘बस-बस, रहने दो। पराँठे बनाना इतना आसान नहीं है। मेरी तबीयत ख़राब होने पर भी कभी जनाब ने चाय तक तो बना कर पिलायी नहीं, ख़ुद की चाय के लिये भी मेरी चापलूसी करते रहे हो और अब पराँठे बनाने की बात कर रहे हो। ...... चलो, रात बहुत हो गयी, कपड़े बदलो और सोते हैं।’

‘भूखे पेट सोओगी?’

‘अरे, एक टाइम नहीं खाऊँगी तो कहीं मरने वाली नहीं!’

‘मरें तुम्हारे दुश्मन। आज ख़ुशी के मौक़े पर तुम भूखी सोओ, यह मुझसे बर्दाश्त नहीं होगा।’

‘अच्छा बाबा, मैं खाना खा कर आती हूँ, आप बेडरूम में चलो।’

.......

मीनाक्षी जब घर पहुँची तो देखा कि मौसी ड्राइंगरूम में सोफ़े पर उकड़ूँ बैठी थी। चाहे मीनाक्षी उसके सामने खड़ी थी, फिर भी मौसी ने, जैसी बुजुर्गों की आदत होती है, पूछा - ‘आ गयी मीनू?’

‘हाँ मौसी, बहुत लेट हो गयी। थकावट से सारा बदन टूट रहा है। मैं सोने जा रही हूँ।’

‘लेकिन खाना....?’

‘मैंने रास्ते में खा लिया था।’ कहकर बेडरूम में घुस गयी बिना यह पूछे कि मौसी ने खाना खाया है या नहीं। वहीं से आवाज़ लगायी - ‘मौसी, पानी दे जाना।’

पानी आने पर पर्स में से एक टेबलेट निकाली, पानी के साथ गटकी और नाइट सूट पहनकर लेट गयी। लेटे-लेटे सोचने लगी - हरीश ने अपनेपन में जो कहा है, ठीक ही कहा है। यदि कोई मन को भाने वाला साथी मिल जाये तो मौसी के शब्दों में मेरी पहाड़-सी ज़िन्दगी को भी एक मुक़ाम हासिल हो जायेगा, फिर इसका भी कोई मक़सद होगा। तन-मन की सूखी बगिया फूलों की महक से सुवासित होगी। यदा-कदा समाज की नज़रों से छुप छुपाकर देह की भूख मिटा लेना एक बात है और जीवन-भर सुख-दु:ख में साथ निभाने वाले साथी का साथ होना अलग ही अर्थ रखता है। हमारे शास्त्रों में वर्णित अर्द्धनारीश्वर की अवधारणा मात्र कल्पना नहीं है। इसके पीछे पूरा सामाजिक मनोविज्ञान कार्यरत है। जीवन-रूपी नदी के बहाव को दो किनारे ही सही दशा व दिशा प्रदान करते हैं। वैसे भी देखा जाये तो सृष्टि जोड़ों से ही गतिमान है। स्त्री और पुरुष एक-दूसरे के बिना अधूरे हैं। स्त्री-पुरुष का सम्बन्ध शरीर तक ही सीमित नहीं होता, बल्कि उनमें भावनात्मक सम्बन्ध का कहीं अधिक महत्त्व होता है। अब मुझे भी अपने जीवन में पूर्णता लाने के लिये, किसी एक के साथ भावना के धरातल पर जुड़ने के लिये कदम उठाने चाहिएँ। मस्तिष्क में उपरोक्त विचार चल रहे थे, फिर भी आँखें मुँदने लगी थीं, क्योंकि दवा ने अपना प्रभाव दिखाना आरम्भ कर दिया था।

क्रमश..