Kesaria Balam - 6 in Hindi Moral Stories by Hansa Deep books and stories PDF | केसरिया बालम - 6

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केसरिया बालम - 6

केसरिया बालम

डॉ. हंसा दीप

6

एक नया कदम

आज शाम को जब बाली घर पहुँचा तो वह बेसब्री से इंतजार कर रही थी। इतने दिनों की खोज का परिणाम सुकून दे रहा था धानी को। दिन भर से अपने अंदर समेटे उस उत्साह को आवाज दे कर बाली को बताया कि वह इस स्वीटस्पॉट बेकरी को अंदर से देखकर आयी है व जगह काफी अच्छी लगी उसे। वह काम शुरू करना चाहती है। वहाँ मुख्य बेकर की वेकेन्सी है। वह बोलती गयी, एक के बाद एक अपनी बेकिंग योग्यताओं का बखान करती उस दुकान की भव्यता के बारे में भी सारी जानकारी देती गयी। जितनी देर वहाँ रही थी उतनी देर में काफी कुछ नोटिस किया था। एक ही साँस में किचन से लेकर कैश काउंटर तक, मालिक से लेकर सफाई वाले और डिलीवरी बॉय तक की एक-एक बात बतायी। बाली को कोई आपत्ति नहीं थी। वहाँ आवेदन करने के लिये उसकी मदद करने लगा। बहुत सोच-समझ कर बेकरी में आवेदन कर दिया। आसानी से नौकरी मिल गयी क्योंकि उनका मुख्य बेकर काम छोड़ कर चला गया था। काम नया नहीं था पर जगह नयी थी। नयी शैली में काम सीखने में समय नहीं लगा।

धीरे-धीरे एक और परिवार बना था धानी का। बेकरी के सारे साथी अब एक परिवार की तरह थे। इज़ी थी, जिसका पूरा नाम था इज़बेला, ईरान से आयी थी। उसका काम मुख्यत: सफाई करना था। फिलीपीन्स से आया ग्रेग बेकरी के सारे भारी सामानों को इधर से उधर करता व मुख्य बेकर का असिस्टेंट था। ग्रेग फिलीपिंस में इंजीनियरिंग करके आया था पर कहीं नौकरी नहीं मिलने से बेचारा बेकरी बॉय बनकर ही रह गया था। हालाँकि वह कभी अपनी विवशता पर रोना नहीं रोता था। डिलीवरी के लिये रेयाज़ था जो बाँग्ला देश से था। टूटी-फूटी हिंदी बोलता था। किस दिन, कितने बजे, कितने ऑर्डर डिलीवर करना है यह पूरा हिसाब-किताब रेयाज़ को रखना होता था। जब डिलीवरी नहीं होती तब इधर-उधर सबको अपनी बंगाली मिश्रित हिन्दी से हँसाता रहता था।

अभी धानी को आए कुछ दिन ही हुए थे कि उसने अपनी मजेदार बातों से उसे हँसाना शुरू कर दिया था। बेकरी की रौनक उसी से थी। उसके होते हुए कभी शांति न रहती। म्यूजिक-गानों की हमेशा ही पूरी लिस्ट होती उसके पास बजाने के लिये। धानी को डानी बोलता था। डॉन से बनी डानी, क्योंकि वह “काम पहले, बातें बाद में” की हिमायती थी। कई बार आँखें भी तरेर देती थी उसकी मस्ती पर। लेकिन दिल का भोला था रेयाज़। आज तक किसी ग्राहक को उसके काम से कोई शिकायत नहीं हुई थी। धानी से मजाक करना उसे अच्छा लगता था क्योंकि वह भारत से आयी थी – “हिन्दी-बांग्ला भाई-भाई”, कहकर खूब मजे लेता था।

“डानी, तुम हमारे लिये काम बढ़ाता है”

“कैसे”

“तुम इदर बैठेगा, कॉफी पियेगा, तो हम समझाएगा”

वह तनिक सुस्ताने के लिये बैठ जाती – “अब बताओ”

“देखो, तुम नया प्रोडक्ट बनाएगा तो हमारा काम बढ़ेगा, हमारा डिलीवरी बढ़ेगा, राइट?”

“हाँ डिलीवरी बढ़ेगा, बिल्कुल बढ़ेगा”

“तो माथापच्ची काय कू करता तुम”

“बुद्धू, तुम्हारा डिलीवरी बढ़ेगा तो तुम्हारा तनख्वाह बढ़ेगा, तुम्हारा मनी बढ़ेगा”

“ओ, आई लव मनी”

“तो चलो, फिर काम करो, कामचोरी मत करो”

उसे गाने-नचाने का बहुत शौक था। मालिक की अनुपस्थिति में खूब ठुमके लगवाता सबसे। इज़ी जब बेली डांस शुरू करती तो सब लोग देखते ही रह जाते। उसके पेट और कमर की लचक ऐसी थी जैसे किसी रबर को मरोड़ कर आकार दिया जा रहा हो। तब उसका शरीर हाड़-माँस का न लगता, ऐसा लगता जैसे कोई मशीन चालू हो गयी हो उसके भीतर जो रबर की तरह घुमावदार मोड़ ले रही हो। ऊपर-नीचे-आगे-पीछे-अगल-बगल हर ओर।

कैसी-कैसी प्रतिभाओं को अपने पेट के लिये दूसरों की नौकरी करनी पड़ रही थी!

एक दिन व्हाइट फ्लावर का डिब्बा उठाते हुए धानी के हाथ से छूटा तो वह जैसे नहा ली थी आटे से। तब रेयाज़ ने गाना शुरू कर दिया था - “रंग बरसे, भीगे चुनर वाला डानी...”

“चुनर कहाँ है रेयाज़”

“यह तो है तुमारा स्कार्फ”

और वह उसके लटकते स्कार्फ को पकड़ कर गाने लगा। माहौल ही कुछ ऐसा बना कि उसी दशा में धानी ने भी नाचना शुरू कर दिया। राजस्थानी ठुमके लगे तो उसका ‘घूमर-घूमर’ भी शुरू हो गया। इज़बेला भी धानी की नकल कर रही थी जिसमें ‘घूमर’ और ‘बेली’ का मिश्रण था। ऐसा मजेदार माहौल कि काम की जगह पर काम के साथ दिल को भी खुश रखे।

धानी तो सिर पर स्कार्फ डाले बस घूम रही थी अपनी धुन में। उसकी नकल उतारता ग्रेग भी जब ‘घूमर-घूमर’ करने लगा था तो बाकी लोग नाचना छोड़कर, पेट पकड़कर बेतहाशा हँस रहे थे। तभी मालिक आ गये थे और वे भी ताली बजा-बजाकर हौसला बढ़ा रहे थे उन सबका।

सब अपने-अपने जीवन की मुश्किलों को भूल जाते। अपने देश को याद करते और यहाँ आने की ललक का बखान करते। दूर से घास हरी दिखती है। पास जाकर ही पता चलता है कि उस हरियाली के हरेपन के नीचे कितने गड्ढे हैं। यही सबका अनुभव था। इस सच के साथ रूबरू होता हुआ कि धरती कोई भी हो आदमी को पैसा तो चाहिए ही। पैसा पास में हो तो हर जमीन अपनी भी लगती है, हरी भी लगती है। तब कहीं और जाने की जरूरत महसूस नहीं होती।

दूसरा सच यह भी था कि जब पैसा अपनी धरती से दूर ले जाता है तब मन उसके और करीब हो जाता है। कहते हैं कि दूरियाँ यादों को बढ़ाती हैं तथा यादें और ज्यादा नजदीक ले आती हैं। ऐसा ही होता इन आप्रवासियों के साथ जो किसी बेहतर की खोज में आ तो जाते अपना देश छोड़कर, मगर उनका मन बार-बार घर की उड़ान भर कर चला जाता।

धानी के साथ मिलकर उन सब लोगों की एक अच्छी टीम बन गयी जो मेहनत और लगन से स्वीटस्पॉट बेकरी में अपना श्रेष्ठ देने लगी। सबकी निष्ठा एकजुट होकर रंग दिखाने लगी और बेकरी का व्यवसाय बढ़ने लगा। चारों तरफ से माँग बढ़ी। हर ग्राहक जो बेकरी के अंदर कदम रखता, वह किसी खास फ्लेवर को लेकर उत्साहित होता व ऑर्डर बुक करके ही जाता। बेकरी के काम में गति आ गयी थी। इसका फायदा उठाकर मालिक ने प्रॉफिट पर जब बोनस देने की घोषणा की तो सब बेहद खुश थे, और दोगुने उत्साह से काम करने लगे।

धानी की योजनाएँ होतीं और कई हाथ होते उन योजनाओं को कार्यान्वित करने के लिये। हर सुबह दिन भर का एजेंडा तय होता और उसके अनुसार काम होता। अपनी-अपनी क्षमता के साथ जब आदमी किसी काम के बारे में सोचता है तो अपना श्रेष्ठ ही देता है। इसी मानसिकता के चलते इस बेकरी में नये-नये प्रयोग होने लगे। नयी-नयी चीज़ें, नये-नये फ्लेवर के साथ बनने लगीं। नमूने बनते, चखे जाते और प्रयोग सफल हो जाता। इन चखने-चखाने के प्रयोगों से इस बेकरी स्टोर की एक नयी साख बन गयी थी। वहाँ की खास, मुख्य बेकर थी धानी। अपनी तन्मयता से हर नए काम की विशेषज्ञ हो जाती, तब स्वाद और खुशबू के तालमेल का नया सिलसिला, नये प्रोडक्ट के साथ नये संबंध भी बनाता।

मालिक को जल्दी ही लगने लगा था कि नए बेकर के रूप में इतनी मेहनती लड़की मिली है जो अपने घर का काम समझ कर करती है। खुद मालिक, जो बॉस थे वे भी अब धानी को बॉस ही कहते। बॉस की बॉस कहा जाता था उसे क्योंकि उसका कहा बॉस कभी टालते नहीं थे। ओवन की गर्मी हो या फ्रिज़र की ठंडक, कभी उसे किसी चीज से कोई शिकायत नहीं होती। जल्दी ही मालिक को लगने लगा कि वह धानी को इस स्टोर का मैनेजर बनाकर नयी शाखा खोलने की तैयारी कर सकता है।

बेकरी के मालिक ने अपने बढ़ते बिजनेस को देखते हुए उसे अपनी तरह के और नये प्रयोग करने की पूरी छूट दे दी थी। वह अब अपनी तकनीक से रेसिपी बदलती, कुछ नये फ्लेवर लाती व स्टाफ द्वारा चखकर एप्रूव करने के बाद ग्राहकों में उन नयी चीजों का प्रचार करने के लिये नमूना बना कर रखती ताकि कोई भी ग्राहक आए तो चख कर देख सके। उसका यह प्रयोग बहुत कारगर हुआ। वह चखना सिर्फ चखना नहीं होता था, ग्राहक के मुँह में उसका स्वाद रह जाता था। वही स्वाद उस ग्राहक को फिर से खींच कर बेकरी पर लाता था।

मालिक प्रचार-प्रसार में और धानी तथा उसकी टीम स्टोर के काम में लगी रहती। काम बढ़ने से रेयाज़ के साथ ग्रेग को भी डिलीवरी का काम सौंपा गया। त्वरित डिलीवरी से लोगों को घर बैठे ताज़ा, स्वादिष्ट और मनपसंद चीज़ों का ऑर्डर देना बहुत भाने लगा। पेस्ट्री, बिस्किट, केक और फलों के बने ऐसे कई अलग-अलग उत्पाद, अपने नये नामों के साथ विस्तार पाते स्वीटस्पॉट बेकरी की विशिष्ट पहचान बनने लगे।

इन बेकरी की चीजों का स्वाद दूर तक अपनी महक फैलाने लगा और धीरे-धीरे ये सामान पार्टियों की जान होते गये। इलाके की शादियों में डेज़र्ट टेबल लगती तो इसी बेकरी को ऑर्डर मिलता। तब शादी में आया हर व्यक्ति उन ढेर सारी बेकिंग डिशेज़ का आनंद लेता और बेकरी का एक कार्ड अपने पास जरूर रख लेता ताकि अपने घर की पार्टियों में इसी बेकरी को ऑर्डर दे सके। शादी के अलावा घरों के हर उत्सव, मेहमानों की हर आवभगत में और हर गेट-टुगेदर में ऑर्डर पर ऑर्डर मिलने लगे।

क्रमश...