punouradham in Hindi Spiritual Stories by Archana Anupriya books and stories PDF | पुनौराधाम

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पुनौराधाम

सीता जी का अवतरण-स्थान--पुनौरा-धाम


पिछले दिनों एक पारिवारिक प्रसंग में अपने गांव जाना हुआ जो बिहार के सीतामढ़ी जिले में है और इसी क्रम में अत्यंत पवित्र स्थली “पुनौरा धाम”के दर्शन हुए।अत्यंत पवित्र “पुनौरा धाम” जिसका पुरातन नाम “पुण्यारण्य”था,बिहार राज्य के सीतामढ़ी जिले में स्थित है और सीता जी की अवतरण- भूमि है। प्राचीन काल में यह पुंडरीक ऋषि की तपोभूमि थी। संपूर्ण नारित्व की गौरव -गरिमा धरती पुत्री श्री सीता जी के जन्म से संबंधित जो कथा सर्वविदित है, यह स्थान उस कथा की धूरी है।पुराण ,संहिता तथा रामायण में इसका महत्वाकांक्षी वर्णन है। मिथिला महात्म्य के अष्टम अध्याय में जानकी जन्म से संबंधित श्लोकों में भी श्री जानकी जी के पुण्य लोक आश्रम में या पुनौरा धाम में प्रकट होने की बात कही गई है। इस अवतरण स्थान के संबंध में जो कथा प्रचलित है, उसके अनुसार शिव जी की सभा में राजा जनक से पराजित होने के बाद रावण ने क्रोध और शक्ति के मद में अंधे होकर अपने अनुचरों को पुण्यारण्य भेजा ,जो राजा जनक की राज्य-सीमा में स्थित था और जहाँ ऋषि-मुनि निरंतर तपस्या में लीन रहा करते थे। रावण के आदेशानुसार उसके अनुचर ऋषि-मुनियों से राज्य-कर माँगने लगे और नहीं देने पर परेशान करने लगे। नित तपस्या में लीन रहने की वजह से अन्न,फल,अर्थ आदि के अभाव में ऋषियों ने अपने शरीर से शोषित निकाल कर एक करंडिका में रखकर अनुचरों को राज्य-कर प्रदान करते हुए यह शाप दिया कि करंडिका(खर पात से बनी टोकरी) का मुँह खोलते ही तुम्हारे स्वामी का सर्वनाश हो जाएगा।जब रावण को यह बात पता चली तो बदले की भावना से उसने उस करंडिका को पुण्यारण्य में ही मिट्टी के अंदर गाड़ने का आदेश दे दिया। फलस्वरूप जनक के राज्य में भीषण अकाल पड़ा और अनावृष्टि से मिथिला में त्राहि-त्राहि मच गयी।जीव-जन्तु व्याकुल हो उठे और अन्न-जल के अभाव में दम तोड़ने लगे। राज्य के विद्वानों और महर्षियों ने राजा जनक कोे हलेष्टि-यज्ञ करने का सुझाव दिया। इससे संबंधित शोध के आधार पर पुण्यारण्य (पुण्डरीकाश्रम) को उपयुक्त स्थान चयन किया गया और राजा जनक ने पत्नी सुनयना और अठ्ठासी हजार ऋषियों के साथ यज्ञ सम्पन्न कर हल चलाना आरम्भ किया। हल चलाते हुए राजा जनक ज्योंहि उस स्थान पर पहुंचे, हल का अग्र भाग उस करंडिका से टकराकर विच्छिन्न हो गया और समस्त संसार की सुख प्रदायिनी शक्ति प्रकट हुईं जो ऋषियों की पावन स्तुतियों से बाल रूप में परिणत हो गयीं।हल चलाने से खेतों में जो रेखा बनती है, उसे सीता कहते हैं, अतः,बालिका का नाम सीता रखा गया। उसके लालन-पालन का उत्तरदायित्व राजा जनक ने लिया, इसलिए वह जनक की पुत्री जानकी कहलायीं। हलेष्टि- यज्ञ के परिणामस्वरूप जल वृष्टि होने लगी और बालिका को जल से बचाने हेतु वहीं पास के स्थान में एक मड़ ई(खर पात से बनी झोपड़ी) बनायी गयी। कालान्तर में वही स्थान ‘सीतामही’ और वर्तमान में ‘सीतामढ़ी’ के नाम से जाना गया।जहाँ मड़ई में सीताजी को वर्षा से बचाने हेतु रखा गया था, वहाँ अब एक मंदिर है, जिसे जानकी -स्थान मंदिर कहते हैं और यह प्राक्ट्य-स्थली से लगभग एक मील पूर्व की ओर स्थित है। हालांकि कई लोग इसे ही सीताजी की जन्मस्थली मानते हैं।

पुनौराधाम के पास ही एक भव्य मनमोहक सरोवर है, जिसे सीताजन्म कुंड,जानकी जन्म कुंड और उर्विजा कुंड -तीनों नामों से अभिहित किया जाता है।कहते हैं,जानकी जन्म कुंड के जल में स्नान करने या इसका अपने ऊपर छिड़काव करने से पाप नष्ट हो जाते हैं और मनोकामना पूर्ण होती है। जानकी जन्म मंदिर में श्री सीताराम जी की प्रस्तर एवं अष्टधातु की कश्मीरी पद्धति से निर्मित प्राचीनतम प्रतिमाएं हैं। चारों तरफ का वातावरण अत्यंत ही शांतऔर पावन है।सीता जी का जन्मस्थान होने की वजह से यह पुनौरा धाम परम दर्शनीय पुण्यदायक स्थान है। यही कारण है कि कई माँगलिक अवसरों पर यहाँ श्री सीताराम कुंड में स्नान तथा दर्शन के लिए आसपास के ही नहीं वरन् देश विदेश के लोगों की भी अपार भीड़ लगी रहती है। मिथिला की उस पवित्र भूमि को कोटि-कोटि प्रणाम, जिसने संसार के सम्मुख आदर्श नारी सीता को उपस्थित किया, जो अपनी गुण -गरिमा के कारण रमणियों में अग्रगण्यी होकर आज समस्त विश्व में पूजनीया हैं।

अर्चना अनुप्रिया।