Jindagi ki shaam - sahi in Hindi Moral Stories by Sunita Maheshwari books and stories PDF | जिंदगी की शाम - सही

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जिंदगी की शाम - सही

जब दुःख बढ़ जाता है तो अपने ही याद आते हैं, पर जब दुःख का कारण अपने प्रिय जन ही हो जाते हैं, तो फिर उसका क्या उपाय है ?

जिंदगी की शाम

सूर्य अपनी अरुणिमा से पश्चिम दिशा को अंतिम किरणें समर्पित कर रहा था | कलरव करते हुए पक्षियों के समूह अपने घोंसलों की ओर जा रहे थे | शाम के झुटपुटे में सब कुछ धूमिल सा दिखाई दे रहा था | पैंसठ वर्षीया प्रभावती देवी भी सूर्यास्त के दृश्य को बड़े ध्यान से देख रही थीं | उन्हें अपनी जिंदगी भी शाम जैसी लग रही थी | न जाने कब उनकी जिंदगी भी सूर्य की तरह परमेश्वर में लीन हो जायेगी | उन्हें अपनी मृत्यु की चिंता नहीं थी, क्योंकि वे जानती थीं कि हर दिन की एक रात और हर रात की एक नई सुबह होती है | उन्हें चिंता थी, तो अपनी उस संतान की, जो मंद बुद्धि होने के साथ साथ टीबी की मरीज भी थी | उनके बाद कौन उसे संभालेगा ? वे सोच में बैठी ही थीं, कि उन्हें अचानक अपने पति आनंदी लाल जी की चीख सुनाई दी | वे एकदम सकपका गयीं और तेजी से सीढ़ियाँ उतर कर हाँफती हुई अपने पति के पास पहुँची | उन्होंने देखा कि हाथ में फोन पकड़े उनके पति सोफे के पास गिरे हुए थे, वो तो अच्छा हुआ की टेबल का कोना उनके सिर में नहीं लगा था | उस दृश्य को देख कर उनके पैरों के नीचे से ज़मीन सरक गई, वे एकदम घबरा गईं, किन्तु फिर भी उन्होंने हिम्मत नहीं हारी | उन्होंने अपने पति को प्रयत्न पूर्वक उठाया, पानी पिलाया | वे उनका कंधा सहलाते हुए बार -बार उनसे पूछ रही थीं -

“सुनो क्या हुआ, घबराओ मत, “बताओ न आखिर हुआ क्या है ?”

बताओ न, किसका फोन था?” बताओ न, प्लीज बताओ |

अपनी पोती गौरी का नाम लेकर वे रो पड़े थे | आँसुओं का समुद्र उमड़ पड़ा था और हिचकियाँ थीं कि रुकने का नाम ही नहीं ले रही थीं | बोलने में असमर्थ वे फोन को ही देखे जा रहे थे |

प्रभावती जी के सब्र का बाँध टूटता जा रहा था | पल भर में उनका मन अनेक आशंकाओं से भर गया था | वह पुनः अपने पति को चुप करा कर पूछने लगीं , “बताओ न गौरी क्या कह रही थी ?”

तब बड़ी मुश्किल से आनंदी लाल जी ने कहा, “अखिलेश की कार और टैंकर की टक्कर हो गयी | प्रभा,... अखिलेश और प्रीति हमें हमेशा के लिए छोड़ कर चले गए |”

वे प्रभावती जी के कंधे पर सर रख कर फूट- फूट कर रोने लगे | प्रभावती जी पर तो जैसे आकाश से बिजली ही आ गिरी थी |

जैसे ही उन्होंने बेटे, बहू की मौत की ख़बर सुनी, तो वे निढाल सी हो जमीन पर बैठ गईं और अपने पति का हाथ थामें रोती रहीं | फिर उन्होंने हिम्मत जुटाई और बोलीं कि अब दिल्ली चलने की तैयारी करनी चाहिए | उन्होंने अपने पड़ोसी को दुर्घटना के विषय में बताया | पड़ोसी चाहें कैसे भी हों, दुःख-सुख में सबसे पहले वे ही काम आते हैं | पड़ोसियों ने आकर उन अभागे माता-पिता और अमीता को सँभाला और जाने की तैयारी करवाई | फिर उन्होंने रात में चम्बल की पहाड़ियों के कारण, सुरक्षा की दृष्टि से उन्हें टैक्सी में न भेज कर, मुरैना से दिल्ली की ट्रेन में बिठा दिया | दुःख के सागर में डूबे हुए, वे सफर कर रहे थे | समय ऐसा लग रहा था कि मानों कभी समाप्त ही नहीं होगा |

अमिता बार-बार पूछ कर उन्हें सता रही थी, “भैया भाभी को क्या हुआ है मम्मी बताओ न, बताओ न |”

प्रभावती देवी ने कहा , “बेटा, तेरे भैया, भाभी चले गए, हम सब को छोड़ कर |”

यह सुनते ही वह ट्रेन में जोर-जोर से रोने लगी | अपरिपक्व मस्तिष्क हुआ तो क्या हुआ, प्यार तो उसके दिल में भी था, प्रभावती जी अपना पहाड़ सा दुःख भूल कर कभी अपने दिल के मरीज पति को सांत्वना देतीं तो कभी अमीता को चुप करातीं | आस पास के कुछ लोग उनकी पीड़ा देख स्तब्ध से बैठे थे और कुछ उनका दुख बाँट रहे थे | दिल्ली आने पर कुछ लोगों ने ट्रेन से उतरने में उनकी सहायता की | स्टेशन पर बड़े बेटे को देख उनका सब्र का बाँध टूट पड़ा, वे बेटे से गले लग कर रोने लगीं | जब अपने पास होते हैं तो आंसू भी अपनी मर्यादा भूल जाते हैं | पर पति की अस्वस्थता तथा स्टेशन पर अन्य यात्रियों को देख वे शांत हो गईं |

घर पहुँच कर आनंदी लाल जी और प्रभावती देवी का बुरा हाल हो गया | वे बेहोश से हुए जा रहे थे | बड़ी बहू, बेटे और आस-पास के लोगों ने उन्हें सँभाला | अनाथ सी पोती गौरी अपने बाबा और दादी से लिपट कर रोए जा रही थी | ऐसा हृदय विदारक दृश्य था कि समझ ही नहीं आ रहा था कि कौन किसको कैसे सांत्वना दे | बेटे, बहू दोनों का एक साथ अंतिम संस्कार करना कोई छोटी बात नहीं थी | पूरा परिवार और सभी मिलने वाले इस असमय की मृत्यु से व्यथित थे | पर ईश्वर की मर्जी के आगे किसी की चली है क्या ?

आनंदी लाल जी और प्रभावती देवी ने मृत्यु के बाद की समस्त क्रियाएँ, सभी रीति रिवाज, गरुड़ पुराण, उठावनी, ब्राह्मण भोज आदि दिल पर पत्थर रख कर मशीनवत पूरे किए | आनंदी लाल जी की बड़ी बहन जैसे कहतीं, वे करते जाते क्योंकि रीति रिवाजों पर उनकी बहन की अच्छी पकड़ थी | आनंदी लाल जी और प्रभावती देवी की तो सोचने समझने की शक्ति ने ही जवाब दे दिया था | मृत्यु के समय में रीति रिवाजों को पूरा करना सच बड़ा ही कठिन होता है | कुछ रीति रिवाजों ने तो कुप्रथाओं का रूप भी ले लिया है |

कई दिनों तक लोगों का आना जाना चलता रहा | घर में असहनीय दुख की काली छाया का बसेरा हो गया था | अभी एक महीना भी नहीं बीता था कि एक दिन अचानक आनंदी लाल जी की तबीयत बिगड़ गई | जब तक डॉ. आते तब तक तो उनके प्राण पखेरु ही उड़ गए | मानो वे अपने स्वर्गवासी बेटे, बहू से मिलने को उतावले हो गए हों | घर में हाहाकार मच उठा | प्रभावती देवी तो सोच ही नहीं पा रही थीं, कि अब आगे क्या होगा | एक साथ तीन मौतों के साए ने उनको जकड़ लिया था | असह्य पीड़ा से उनका मन व्याकुल था | दुख की उस काली छाया ने अब और दृढ़ता से अपने पाँव फैला लिए थे | उन्हें अपना जीवन ही निरर्थक लग रहा था | पर जब उन्होंने अपनी बेटी अमिता और पोती गौरी के विषय में सोचा तो उन्हें अपनी जिम्मेदारी का अहसास हुआ | अपनी मंद बुद्धि बेटी अमीता और गौरी के भविष्य की चिंता प्रभावती देवी को खाए जा रही थी | अनेक प्रश्न उनके मस्तिष्क में उमड़-घुमड़ कर उन्हें व्याकुल कर रहे थे | उन्हें ऐसा लग रहा था, जैसे किसी ने उनके तन-मन की शक्ति को ही समाप्त कर दिया हो | घर के वातावरण में घोर उदासी भर गयी थी | नियति के आगे किसी की नहीं चलती, पर यह भी सत्य है कि मौत अपना क्रूर रूप दिखाती है और जिंदगी भी अपनी राह खोज लेती है | तभी गौरी के नाना जी का फोन आया ,

“बहन जी, यदि आप ठीक समझें तो कुछ दिन के लिए मैं गौरी को अपने साथ कानपुर ले आऊँ | गौरी का मन बदल जाएगा |’

प्रभावती देवी ने अपने बड़े बेटे से पूछा और उन्हें स्वीकृति दे दी | दूसरे ही दिन गौरी के नाना जी आए और वे उसे अपने साथ कानपुर ले गए | बड़े बेटे श्याम, बहू स्वप्निल को भी मुंबई से दिल्ली आए हुए बहुत दिन हो गए थे | उनकी अनुपस्थिति में उनके व्यापार में भी दिक्कतें आ रही थीं | अतः उन्हें भी मुंबई जाना था | श्याम ने अपनी माँ से कहा –

“माँ आप और अमीता हमारे साथ मुंबई चलो |”

प्रभावती देवी ने उसकी बात मान ली और वे बेटे श्याम और बहू स्वप्निल के साथ मुंबई आ गईं | भव्य बँगला, उत्तम साज सज्जा, कार, ड्राइवर सब सुख सम्पन्नता देख माँ का मन बेटे की प्रगति पर नाज कर रहा था | वे मन ही मन बेटे बहू को लाख-लाख आशीष दे रही थीं | वे अपने कमरे में लेटे-लेटे सोच रही थीं कि छोटे बेटे की बेटी गौरी को भी यहीं बुला लेंगी | यहीं उसका एडमिशन करा देंगी | नाना जी के घर कितने दिन रहेगी ? श्याम जैसे बेटे और स्वप्निल जैसी प्यारी बहू के होते हुए उन्हें क्या चिंता करने की जरूरत है | वे बहुत से सपने बुन रही थीं | इतना बड़ा घर है, सब मिल कर आराम से रहेंगे | फिर गौरी की शादी भी तो करनी है | इक्कीस वर्ष की हो गई है | अभी से लड़का देखेंगे तभी तो कोई अच्छा लड़का मिलेगा | वे सब सोच ही रही थीं कि अचानक अमीता ने खाँस-खाँस कर खाने की मेज पर उलटी कर दी | वे भागी भागी गईं, तो उन्होंने देखा कि उनकी बहू स्वप्निल जोर- जोर से चिल्ला रही है –

“अमीता को इतनी अक्ल भी नहीं है, कि उलटी आ रही है, तो खाने की मेज से दूर चली जाए | अब कौन करेगा सफाई ? नौकर भी तो हाथ नहीं लगाना चाहते | खुद तो टीबी की मरीज है, सारे घर को बीमार करेगी | और माता जी को देखो सारे दिन अपने कमरे में पड़ी सोती रहती हैं | मजाल है जो एक काम को भी हाथ लगा दें |”

स्वप्निल को चिल्लाते देख श्याम ने कहा, “धीरे बोलो माँ सुन लेंगी |”

पर स्वप्निल तो और जोर से चिल्लाई,

“मैं किसी से नहीं डरती | दो-दो लोगों के घर में आने से मेरा कितना काम बढ़ गया है | तुम्हें कुछ पता भी है | आज खुद आई हैं, कल कहेंगी कि गौरी को भी बुला लो | यह मेरा घर है या धर्मशाला? इतना काम करूँगी तो मैं भी बीमार हो जाऊँगी और खर्चा, खर्चे की तो पूछो ही मत, पिछले दो महीनों में कितना खर्च हो गया, कोई हिसाब ही नहीं है | श्याम, अगर तुम्हारी माँ और बीमार बहन घर में रहेंगी, तो मैं अपनी माँ के घर जा रही हूँ | इतना सब कुछ मैं नहीं कर सकती | कल ऋषभ भी हॉस्टल से आ जाएगा | कहीं उसको टीबी की बीमारी लग गई तो... |”

स्वप्निल चिल्ला रही थी और श्याम चुपचाप सुन रहा था | जब पत्नी ज्यादा चिल्लाई तो बोला,- “ठीक है बाबा कुछ दिन बाद छोड़ आऊँगा |”

पर स्वप्निल को इतना सब्र कहाँ, उसने बीमार अमीता को धक्का दिया और चिल्लाई – “मैं अपने और अपने परिवार के स्वास्थ्य को दाँव पर नहीं लगा सकती | तुम आज ही अपनी माँ और मंद बुद्धि बहन को दिल्ली छोड़ कर आओ | मुझ से नहीं होगा यह सब | मैं कोई नौकरानी नहीं हूँ |’

प्रभावती देवी सब कुछ देख, सुन कर सन्न रह गईं | उन्हें बहू, बेटे का असली चेहरा पहली बार दिखाई दिया था | हमेशा तो वे माता-पिता के घर कुछ दिन के लिए आते थे और माता-पिता उन पर बलिहारी रहते थे | सब खुश रहते थे, पर स्थिति बदलने पर व्यवहार कितना बदल गया, सोच कर प्रभावती देवी असहाय सी हो गईं | उनसे अमीता की ऐसी बुरी हालत देखी नहीं जा रही थी | उन्होंने अमिता को प्यार किया और उसके हाथ पैर धुलवाए और दवाई दी | वह बेचारी भाभी के चिल्लाने से सहम गई थी | रोते रोते बोली –

“मम्मी अपने घर चलो |” प्रभावती देवी जी ने उसे प्यार से सुलाया, फिर सोचने लगीं कि बहू तो दूसरे घर से आई है पर बेटे ने भी तो बहू से कुछ नहीं कहा | उनके आत्मसम्मान को गहरी ठेस पहुँची थी | उनकी आँखों से आँसुओं की झड़ी लग गई थी | रोते - रोते उनका गला रुंध गया था, तभी उन्होंने देखा की श्याम उनके पास आ रहा है | उन्हें लगा कि वह उन्हें सांत्वना देने आ रहा है | उनकी हिचकियाँ और भी तेज हो गईं | जब कोई अपना मिलता है, तो संवेग द्विगणित हो जाते हैं | वे बेटे का हाथ पकड़ रोती रहीं | पर माँ का पवित्र हृदय अपने बेटे की स्वार्थ पूर्ण मंशा को समझ न पाया | बेटे ने माँ से कहा –

“माँ अमीता को टीबी है, मुझे, स्वप्निल या ऋषभ किसी को भी यह रोग लग गया तो मुश्किल हो जाएगी | पढ़ाई -लिखाई, कामकाज सब धरा का धरा रह जाएगा | आप दोनों के आने से स्वप्निल का काम भी बहुत बढ़ गया है | वह बेचारी थक जाती है | अच्छा यही रहेगा कि आप अपना और अमीता का सामान बाँध लो| कल सुबह की फ्लाइट से दिल्ली चलेंगे |”

प्रभावती देवी श्याम का मुँह देखती रह गईं | जब दुख बढ़ जाता है तो अपने ही याद आते हैं, पर जब दुख का कारण अपने प्रिय जन ही हो जाते हैं तो फिर उसका क्या उपाय है ? उन्हें ऐसा लगा कि छोटे बेटे और बहू को तो उन्होंने दुर्घटना में खो दिया, पर श्याम और स्वप्निल को तो उन्होंने जीते जी ही खो दिया | ये तो ऐसी कठिन परिस्थिति में अपनी सगी माँ और बहन को भी चार दिन नहीं रख पाए | अभी तीन दिन पहले ही तो वे मुंबई आई थीं | उन्हें अपने पति के बिना अपना अस्तित्व निरर्थक लग रहा था , पर बेटी अमीता और पोती गौरी की बड़ी जिम्मेदारी उनके कन्धों पर थी | जब कठिन परिस्थितियाँ आती हैं तो अथाह शक्ति भी ईश्वर ही प्रदान करते हैं | उन्होंने अपने आँसू पोंछे और अपने मन में शक्ति का संचार किया | वे समझ गईं कि निर्बल का कोई सहारा नहीं होता |

फिर बेटे से बोलीं, “बेटा, ठीक है तू हमें घर छोड़ आ | मैं दिल्ली में गौरी के साथ रहूँगी | वहाँ उसकी पढ़ाई भी तो है | वे भी नाना के घर कितने दिन रहेगी ? घर तो अपना ही अच्छा होता है |”

श्याम अपनी माँ की बातें सुनकर सब समझ गया | माँ उसके घर की सुख-शांति भंग नहीं करना चाहती थीं | पर वह मन ही मन प्रसन्न हो गया , उसने सोचा कि अच्छा हुआ, माँ तुरंत ही मान गईं, नहीं तो स्थिति को संभालना मुश्किल ही हो जाता |

वह माँ और अमीता को सुबह की फ्लाइट से लेकर दिल्ली छोड़ आया | दिल्ली में माँ के लिए सब कुछ नया था | फिर भी उन्होंने गौरी की पढ़ाई की खातिर दिल्ली रहने का निर्णय किया | गौरी को नाना जी के घर से बुला लिया | अमीता को डॉ. के पास लेकर गईं और उसका लग कर इलाज करवाया | कुछ समय में ही अमीता की टीबी की बीमारी ठीक हो गई | पैंसठ वर्षीया प्रभावती देवी ने दोनों बच्चियों की जिम्मेदारी को बड़ी लगन से निभाना शुरु कर दिया | गौरी एम. बी. ए. कर रही थी | वे उसे बड़े प्यार से कॉलेज भेजतीं | उसके लिए तरह-तरह के व्यंजन बनातीं | पूरी कोशिश करतीं कि उसे माँ, बाप की कमी महसूस न हो | गौरी बड़ी समझदार थीं | वह भी अपनी दादी और भूआ का बहुत ध्यान रखती | दिल में यादों का सागर उमड़ता रहता पर कोई किसी से कुछ न कहता | सब मुस्कराने और एक दूसरे को हँसाने का प्रयास करते रहते | दिल में गम हो तो छिपाने के लिए आदमी नकली हँसी भी हँसता है |

धीरे-धीरे स्थिति सामान्य होती जा रही थी | समय बड़े से बड़े घाव को भी भर देता है | गौरी का एम. बी. ए. पूरा हो गया | वे एक अच्छी कंपनी में काम भी करने लगी थी | प्रभावती देवी और उनके पति की पेंशन से घर के खर्चे आराम से चल रहे थे | छोटे बेटे ने भी खूब धन कमाया था, अतः रुपयों की कोई तंगी नहीं थी | एक दिन गौरी दादी का हाथ पकड़े उनके पास बैठी थी | उसकी बड़ी-बड़ी आँखों में दादी ने किसी के लिए प्यार की अनुभूति कर ली थी | वे गौरी से बड़े प्यार से बोलीं-

“बेटा, मुझे ऐसा क्यों लग रहा है, कि तुझे किसी से प्यार हो गया है |” दादी की बात सुन कर गौरी शर्म से लाल हो गई |

“दादी मेरे साथ ऑफिस में प्रशांत काम करते हैं | मैं प्रशांत को बहुत चाहती हूँ, उन्हीं से विवाह करना चाहती हूँ | वे मुझसे दो साल सीनिअर हैं | मैं चाहती हूँ, कि आप भी उनसे मिल लें |” गौरी ने शर्माते हुए दादी से कहा |

दादी की खुशी का ठिकाना न रहा | उन्होंने कहा –

“जरूर, क्यों नहीं बेटा | जल्दी से जल्दी तू मुझे उससे से मिलवा दे | मैं उससे बात करूँगी |”

शादी की बात चलने पर घर में फिर से खुशी की लहर सी आ गई | प्रशांत घर आए | दादी को भी वे बड़े सुलझे हुए विचारों वाले लगे | प्रशांत के माता पिता गौरी का सम्बन्ध लेकर आए और शादी पक्की हो गयी | गौरी के विवाह की तैयारियाँ जोर शोर से चल रही थीं | तभी उनके बड़े बेटे श्याम का फोन आया –

“माँ शादी के लिए कुछ पैसे भेज दूँ |”

प्रभावती देवी ने कहा, “नहीं बेटा भगवान् का दिया बहुत है, सब हो जाएगा |”

दादी और पोती ने मिल कर विवाह की सब तैयारी कर लीं | माता-पिता की यादों को आँखों में संजोये धूमधाम से विवाह संपन्न हो गया | प्रशांत और प्रशांत के माता पिता बड़े नेक दिल लोग थे, अतः किसी तरह की दिक्कत नहीं हुई | सभी मेहमान प्रभावती देवी की हिम्मत को दाद दे रहे थे | एक पड़ोसिन बोली, “ इस उम्र में प्रभावती आंटी ने दोनों बेटियों को इतनी अच्छी तरह सँभाला है | शादी भी इतनी बढ़िया की है | मान गए | बुजुर्गों में बड़ी हिम्मत होती है | हमें बहुत कुछ सीखना चाहिए इनसे |”

शादी के बाद गौरी अपने ससुराल चली गई | वह अपने पति प्रशांत के संग एक बार दादी और भुआ से मिलने घर जरुर आती | घर की जरूरतों को भी पूरा करती | अब दादी अकेली रह गई थीं | उनकी तबीयत भी ठीक नहीं थी | एक दिन उन्होंने गौरी और प्रशांत को बुलाया और कहा,

“बेटे आज मैं तुमसे एक बात कहना चाहती हूँ | वैसे तो मृत्यु के बाद बड़ा बेटा अग्नि देता है, पर मैं चाहती हूँ कि मुझे अग्नि तुम देना | जो मुझे कठिन समय में चार दिन न रख पाए, उनके अग्नि देने से मेरी मुक्ति नहीं होगी | मरने के बाद भी उन्हें देख कर मेरा मन रोता रहेगा | मैं शांति से मरना चाहती हूँ |”

दादी ने अपनी इच्छा व्यक्त कर पहले से बनाई हुई विल गौरी के हाथ में दे दी | उन्होंने अपना घर, जायदाद, गहने आदि गौरी और अमीता के नाम लिख दिए थे | उन्होंने रोते हुए कहा,

“मेरा कोई बेटा नहीं है | एक मुझे छोड़ कर भगवान् के पास चला गया और दूसरा मुझसे बंधन तोड़ अपने निजी संसार में ही खो गया |”

ये कहते कहते प्रभावती देवी की हिचकियाँ बँध गईं | श्याम का बचपन उनकी आँखों में जैसे जीवंत हो उठा था | माँ के प्रति उसका प्यार, वह याद कर रही थीं | एक समय वह भी था, जब वह माँ के बिना एक दिन भी नहीं रह पाता था और अब, अब उसे माँ के रहने से परेशानी होती है | अरे, उसने तो एक साथ हुई भाई, भाभी और पिता की मृत्यु के बाद भी, माँ को अपने पास रखना मुनासिब नहीं समझा |

वे श्याम के विषय में मन में भारी पीड़ा ले सोचती हुई सो गईं | पर यह कैसी कभी न समाप्त होने वाली नींद थी | वे सोईं तो सोती ही रह गईं| अमिता ने जब कहा, “मम्मी उठो शाम हो गई, उठो न मम्मी, उठो...”

जब प्रभावती देवी नहीं उठीं तो उसने घबराते हुए गौरी को बुलाया |

“गौरी जल्दी आओ , मम्मी बोल नहीं रही हैं | उन्हें कुछ हो गया है|”

गौरी ने तुरंत ही डॉक्टर को बुलाया पर तब तक सब कुछ समाप्त हो गया था | गौरी ने रोते -रोते बड़े बेटे श्याम को फोन किया |

“ताऊजी जल्दी आजाइए, दादी नहीं रहीं |”

श्याम और स्वप्निल जो भी फ़्लाइट मिली उससे दिल्ली आगये | घर में लोगों की भीड़ लग चुकी थी | सभी प्रभावती देवी का गुणगान कर रहे थे | उनकी हिम्मत और होशियारी के लिए सब उनकी प्रशंसा कर रहे थे | तभी गौरी ने श्याम ताऊजी को कमरे में बुलाया और दादी की अंतिम इच्छा लिखा नोट ताऊजी को दिया, जिसमें लिखा था-

“मेरा अंतिम संस्कार गौरी द्वारा किया जाए | मैं अपने बड़े पुत्र श्याम को इस जिम्मेदारी से मुक्त करती हूँ | मैंने अपने क्रियाकर्म आदि के लिए धन राशि फिक्स डिपोसिट के रुप में रखी है | उसी का उपयोग किया जाए |”

श्याम ने जब पत्र पढ़ा तो उनके ऊपर वज्रपात सा हुआ | उनके मन में तरह तरह के भाव आ रहे थे | वे इस पीड़ा को बर्दाश्त नहीं कर पा रहे थे | वे समाज में क्या मुँह दिखाएँगे ? लोगों से क्या कहेंगे ? बड़े बेटे के होते हुए पोती क्यों क्रियाकर्म कर रही है? किस-किस को उत्तर देंगे ? उनके मन में प्रश्नों का घमासान मचा हुआ था | आखिर कैसे समाज के प्रश्नों से बचा जाए | उन्होंने बीमारी का ड्रामा करने का निर्णय किया और जोर से छाती पकड़ चिल्लाने लगे, “दर्द से मर जाऊँगा, बचाओ |” गौरी सब समझ गयी | उसने सभी संबंधियों को आकर बताया –

“ताऊजी की तबीयत बहुत खराब है, वे घाट नहीं चल सकेंगे, अतः हमें दादी को ले कर चलना चाहिए |”

प्रभावती देवी की अंतिम यात्रा बिना बड़े बेटे के ही शुरु हो गयी | श्याम मन ही मन बहुत दुःखी था | उसके मन में बचपन के वे प्यार भरे दिन कसक पैदा कर रहे थे, जब उसकी माँ उसे खिलाती, स्कूल भेजती, उसे पढ़ाती, उसके बुखार में रात-रात भर जग कर सेवा करती | माँ के प्रति दुर्भाव के कारण उसे अपना व्यक्तित्व बहुत ही तुच्छ लग रहा था | वह जमाने की निगाह में तो बीमार बन कर बच गया था, किन्तु अपनी ही निगाह में गिर चुका था | आत्मग्लानि के गहरे अँधेरे कूएँ में उसकी आत्मा विलाप कर रही थी |

सुनीता माहेश्वरी

फ्लैट न. 7, ऋषिराज अवेन्यु

शरणपुर लिंक रोड, कनाडा कार्नर

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