jadugar jankal aur sonpari - 9 in Hindi Children Stories by राज बोहरे books and stories PDF | जादूगर जंकाल और सोनपरी (9)

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जादूगर जंकाल और सोनपरी (9)

जादूगर जंकाल और सोनपरी

बाल कहानी

लेखक.राजनारायण बोहरे

9

इसके बाद आंगन था और आंगन के बीचोंबीच एक अजीब सा चमकदार कमरा बना था जिसमें कही से दरवाजा नहीं था। शिवपाल हैरान था कि इस किले में में ज्यादातर महल और कमरे ऐसे क्यों है, जिनमें कोई दरवाजा ही नही है।

यह सोच ही रहा था कि सहसा उसने देखा कि आने हाथ में एक थाली सी लिये एक सैनिक उस चमकदार कमरे की दीवार के सामने आ खड़ा हुआ है। वह सैनिक जाने किस भाषा में कोई मंत्र सा बोल रहा था उसके मंत्र बोलने के साथ चमत्कार हुआ कि दीवार में एक दरवाजा दिखने लगा था। वह सैनिक कमरे में प्रवेश कर गया । किवाड़ अब भी खुला हुआ था और सैनिक सीधा बढ़ता चला गया था।

शिवपाल ने आव देखा न ताव वह तेज गति से कमरे में घुस गया उसने देखा कि सैनिक के सामने एक बड़े से खम्भे पर एक पिंजरा रखा है, जिसमें एक तोता है, सैनिक ने वह तोता अपने हाथ में उठा लिया है और उसे थाली में से खाना खिला रहा है।

शिवपाल को लगा कि यह तोता निश्चित जादूगर के लिए बहुत महत्वपूर्ण प्राणी है, इसे अपने कब्जे में कर लिया तो तुरूप का एक पत्ता अपने हाथ होगा।

अगले ही पल छलांग लगा कर शिवपाल सैनिक के पास था और उसने अपनी चमत्कारी तलवार किलकारी का आव्हान कर लिया था। सैनिक की गरदन पर तलवार रखकर शिवपाल बोला ‘चुपचाप तोता मेरे हवाले कर दो।’

सैनिक को मानो विश्वास ही ना था कि उनका कोई साथी इस तरह दगाबाजी करेगा वह मिमियाते हुए बोला ‘जादूगर तुम्हें पत्थर की मूर्ति बना देगे साथी, ऐसी दगाबाजी मत करो। इस तोते का महत्व तुम जानते हो। हमारे जादूगर की जड़ इसी तोते में है, इसलिये चुपचाप बाहर चले जाओ।’

गोपाल उछल पड़ा । अरे अनजाने में यह बहुत जरूरी चीज हाथ लग गयी उसने एक जोरदार प्रहार किया और सैनिक की गरदन एक ओर को लुड़क गयी।

अब उसने तोता को अपने हाथ से पकड़ लिया था ओर उसे अपनी झोली मे छिपा लिया था।

वह पुनः उसी कमरे में आ गया था जहां कि मूर्तियां खड़ी थी।

कुछ देर बाद ऐसी आवाज आई मानो कई लोग आ रहे हैं।

शिवपाल मूर्तियों की कतार में तन कर खड़ा हो गया। शिवपाल का दिल धड़क रहा था क्यों कि कुछ ही देर बाद उसका सामना उससे होने जा रहा था था जिसकी तलाश में उसने इतनी लम्बी यात्रा की थी।

उसने देखा कि सामने से उड़ते हुए सुनहरे चोगे में लिपटा हुआ अपने रेशमी बाल लहराता लगभग पांच हाथ ऊंचा जादूगर जंकाल चला आ रहा था, जिसके पीछे आठ दस सैनिक नंगी तलवार लिये चल रहेथे।

यह जुलूस ज्यों ही शिवपाल के सामने से निकला आखिरी सैनिक के पीछे शिवपाल भी हाथ में तलवार लेकर चलने लगा।

वे लोग विशाल भोजनालय में जा पहुंचे थे जहां सारे सैनिक दीवार से लग कर खड़े हो गये थे और बीच में पड़ी विशाल मेज के एक कोने में रखी कुर्सी पर जादूगर बैठ गया था। ताज्जुब था कि मेज पर पहले से पांच पुतले ऐसे बैठे थे मानों वे भी केाई भोजन करने वाले होंगे।

एकाएक जादूगर ने अपने हाथ की छड़ी को घुमाया और एक झटके से पांचो पुतले जीवित हो उठे।

शिवपाल ने ध्यान से देखा कि जीवित हुए पुतलों में दो लोग बुजुर्ग से खूब उम्र के बूढे़ बूढ़िया बन गये थे ,जबकि तीसरे व चौथे पुतले बच्चे बन गये थे और पांचवा पुतला एक युवा महिला के रूप में बदल गया था।

जादूगर ने उन सबसे खूब कड़क भाषा में बात करना शुरू की- तुम लोग मना करते थे न, कि मैं उस परी से ब्याह न करूं। अब आज की रात बाकी है, कल अमावस्या की रात मैं उस परी से ब्याह कर लूंगा और तुम लोग हमेशा के लिए यो ही पत्थर के बने रहोगे। परसो से इस टेबल पर मेरी सोन परी बैठेगी। आप लोगों न जीवित करूंगा न यहां से हटाऊंगा।

बूढ़े व्यक्ति ने बहुत दर्द भरी आवाज में कहा कि ‘हमने बहुत बड़ी गल्ती की है जो तुमको जादू सीखने को बंगाल भेजा था। वैसे तो तुमने बचपन से ही हम लोगों को तकलीफ दी है। तुम जैसा राक्षस बेटा किसी का नही होगा, जिसने अपने मां बाप और बच्चांे के साथ अपनी बीबी को भी पत्थर का बना दिया है। जल्दी ही तुम्हारा जादू टूटने वाला है , उस दिन तुम्हारा ये जादू का महल और सारा साम्राज्य खत्म हो जायेगा। तुम खुद पत्थर के हो जाओगे और तुमने इस महल में अपने जिन दुश्मनों को पत्थर का बनाया है, वे सब जीवित होकर तुम पर हमला कर देंगे।’

इतना सुनते ही जादूगर ने आपा खो दिया उसने अपनी जादुई छडी़ उठा कर बूढ़े तरफ घुमाई और मंत्र पढ़ के अपने बूढ़े पिता को फिर से पत्थर का बना दिया। फिर गुस्से में अपनी मां से बोला कि मेरे पिता को क्या पता कि मेरी पूरी जादुई ताकत कभी खत्म नहीं होगी। मेरी जादुई ताकतों की रक्षा यहां से बहुत दूर जिस रत्नदीप की स्वर्ण गुफा में एक विशाल सर्प कर रहा है उस तक पहुंच पाना कितना कठिन है।

बूढ़ी महिला जो कि जादूगर की मां थी उससे बोली ‘ देखो बेटा हमारा आशीर्वाद है कि तुम खूब बढ़ो! लेकिन अपने मां बाप और बच्चों को तुमने जो इतनी तमलीफ दी है, उसकी वजह से तुम्हे केसे सुख मिलेगा ? जरा सोचो कि दुनिया में सबसे ज्यादा प्यार तुम्हे घर के लोग करते हैं और तुमने घर के लोगों को ही पत्थर का बना दिया है।’

जादूगर पर फिर से गुस्सा हावी होने लगा था और इस बार गुस्से का शिकार होने की बारी उसकी मां की थी। उसने मां को भी फिर से ज्यों का त्यों पत्थर का बना दिया।

अब जादूगर ने अपनी पत्नी को टोका ‘ तुम बोलो, क्या मेरी दूसरी शादी करने से तुम्हे कोई आपत्ति है?’

उसकी पत्नी बोली ‘ हमारे टोकने से क्या होने वाला है ?लेकिन यह विचार करो कि कितनी महिलाओं से विवाह करोगे ? आपने मुझ से भी प्रेम विवाह किया था और जब से जादूगर बन कर अपने गुरू के इस आश्रम पर कब्जा किया है तबसे आप पूरे बदल गये हो । आपने अपने महल मे कितनी सारी लड़कियों को उठा कर कैद कर रखा है । इसकी क्या गांरटी कि तुम सोनपरी के बाद किसी और से ब्याह नही करेंगे।’

यह सुन कर जादूगर खूब जोर से हंसा और बोला कि तुम्हे कोई आपत्ति नही है तो आज तुम हमारे साथ भोजन करोगी ।’

शिवपाल को लगा कि यहां रूकना अब बेकार है क्योंकि इस जादूगर की सारी जादूभरी ताकत के आगे उसकी क्या बिसात ? इसलिये अब जल्दी सी जल्दी मुझे रत्नदीप चलना होगा।

शिवपाल तुरंत ही वापस पलटा और सुरंग तथा सोनपरी के महल में से होता हुआ उस बगीचे में आ गया जहां कि बाज उसकी प्रतीक्षा कर रहा था।

उसने बाज से कहा कि वह जल्दी से जल्दी समुद्र तट तक ले चले । बाज ने उसे अपने पंजो से उठाया और बात की बात में समुद्र तट पर ला उतारा।

समुद्र तट पर चंद्र परी उसके इंतजार में थी । शिवपाल ने सुनाया कि वह सोनपरी को देख आया है वह सुरक्षित है लेकिन कल ही जादूगर उससे जबर्दस्ती विवाह कर लेगा इसलिए अब हमको यह पता लगाना है कि रत्नदीप कहां है और वहां कैसे जा सकते हैं।

शिवपाल की बात सुन कर उसने अपने हाथ की अंगूठी को देखते हुए कुछ बुदबुदाया और सहसा उसकी अंगूठी के बड़े से नग में कुछ दिखने लगा तो वह शिवपाल को बताने लगी कि रत्नदीप छठवें और सातवें समुद्र के बीच पानी में आधा डूबा एक सुनसान द्वीप है जहां वह एक बार जा चुकी है, क्योंकि वहां परियों की करामात खत्म नहीं होती।

शिवपाल प्रसन्न हो उठा।

एक बार फिर मगरमच्छ की सहायता से उन्होंने सातवां समुद्र वापस पार किया और वापस दूसरे तट पर आ गये। वहां परी ने अपनी चटाई बुलाई और उस पर बैठ कर वे लोग समंदर के बीचोंबीच मौजूद उस सुनसान से टापू रत्नदीप के किनारे जा पहुंचे।

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