Pata Ek Khoye Hue Khajane Ka - 10 in Hindi Adventure Stories by harshad solanki books and stories PDF | पता, एक खोये हुए खज़ाने का - 10

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पता, एक खोये हुए खज़ाने का - 10

अपरिचित लोगों को दरवाजे पर खड़े देखकर उनके चेहरे पर प्रश्न भाव उभर आए.
राजू: "नमस्ते आंटीजी! क्या हम नानू से मिल सकते हैं?"
औरत: "जी. आप घर में आइए."
उनका उत्तर सुनकर राजू को खुशी हुई कि नानू ज़िन्दा तो है. वे घर में जा कर बैठे.
औरत: "आप बैठिये; थोड़ी देर में दादा आ जायेंगे. वे चर्च गए हैं. अब लौटते ही होंगे.
औरत की बात से राजू की टीम को इतना यकीन हो गया कि नानू स्वस्थ भी है और चर्च आया जाया करते हैं. इसलिए उनकी उम्मीदें भी बढ़ गई. वें बेताबी से इंतजारी करते हुए बैठे.
घंटे भर बाद उनकी इंतजारी खत्म हुई. एक बहुत बड़ी उम्र के बुज़ुर्ग ने घर में पाँव रखे. आँखों में मोटे मोटे चश्मे थे. कानों में सुनने वाली मशीन लगी हुई थी. गाल पिचक गए थे और माथे पर बालों का निशान नहीं था.
खेर, उस बुज़ुर्ग की उम्र चाहे कितनी भी बढ़ गई हो, चाहे उसका हुलिया कितना ही बदल गया क्यूँ न हो, मगर उसके माथे का निशान और मुड़ा हुआ पैर उनके नानू होने की साक्षी देते थे.
उनको देखकर राजू खुशी से खड़ा हो गया. उनके पाँव छुए और हाथ पकड़ कर उन्हें सॉफे पर बिठाया. बाकी के सबों ने भी नमस्ते कहा और हालचाल पूछे.
फिर राजू ने मेघनाथजी के परपोते के रूप में अपना परिचय दिया. दो तीन कोशिश के बाद वह सुन और समज पाया.
मेघनाथजी का नाम सुनते ही उनके लबों पर हंसी और आँखों में पानी उमड़ आया. उसने चश्मा उतार कर आंखें पोंछी और राजू को पास बुलाकर बगल में बिठाया. उनके माथे पर हाथ फेरा और बड़े प्यार से हालचाल पूछे. राजू ने भी भावुक हो कर उनका हाथ पकड़ लिया और सहलाने लगा.
नानू: "बरसों पहले भी एक लड़का अपने दोस्तों को लेकर यहाँ आया था. वह मालिक का धन प्राप्त करना चाहता था, पर वह अपने को मालिक का वारिस साबित न कर पाया था."
राजू: "जी वे मेरे पिताजी ही थे."
नानू: "क्या वह तेरा बाप था?"
राजू: "जी. अब वे इस दुनियाँ में नहीं रहे."
नानू: "बहुत दुख की बात है."
राजू: "जी. कुछ माह पूर्व ही वह चल बसे."
नानू: "वह आया था. पर नकली सामान लेकर आया था."
राजू: " हाँ, उसने बात बताई थी."
नानू: "क्या तुम वो सारा सामान लाए हो?"
राजू: "हाँ."
इस बार राजू ने सब असली नक्शा, चाबी और तस्वीर अपने पास ही रखी थी. उसने अपनी बेग खोलकर सब सामान निकाला. नानू ने नक्शे चाबी पर तो कोई ध्यान न दिया, पर तस्वीर को लेने के लिए हाथ आगे बढ़ाया. राजू ने वह तस्वीर नानू के हाथ में रख दी.
नजर कमजोर हो जाने से वह तस्वीर को अपने चेहरे के नजदीक ले जाकर बड़े ध्यान से देखने लगा. थोड़ी देर तक आगे पीछे घूमा कर देखता रहा. धीरे धीरे उसके चेहरे पर हंसी और होंठों पर मुस्कान फैलने लगी. यह दृश्य देखकर राजू और उनकी टीम के चेहरे भी खुशी से खिल उठे. उनकी टीम के लिए यह एक शुभ संकेत था.
फिर राजू के हाथ में वह तस्वीर थमाते हुए नानू आगे बोला.
नानू राहत की सांस लेते हुए: "यह ठीक है. लड़के, तुमने मेरे सर से एक बड़ा बोझ हटा लिया. मैं कब से मालिक के घर से किसी सही आदमी के आने की बात देख रहा था! बरसों से तो उम्मीद भी जाती रही थी. अब तो मेरी उम्र भी पूरी होने को आई. पर आज तुमने आकर मुझे मालिक का कर्ज उतारने का मौका दे दिया. अच्छा हुआ जो तुम मेरे जीते जी आ गए. वर्ना मैं इस कर्ज को लिए ही उपरि दरबार में चला जाता."
नानू की आँखों में आंसू आ गए. उसको देखकर सब ज़मीं की और देखने लगे. सब भावुक हो उठे थे. सभी के ह्रदय भर आये थे.
नानू बात को आगे बढ़ाता है.
नानू: "उस वक्त मेरे घर से कोई चीज की चोरी हुई थी. और मैं तुम्हारे बाप पर संदेह कर उसकी बोट पर जा पहुंचा था. मैंने उन लोगों को मारा पिटा भी था. और पूरी बोट को छान मारा था. क्यूंकि उस चीज की जरूरत उसे ही पड़ सकती थी, जिन्हें मालिक के धन की खोज हो. और वह अपने को मालिक का सच्चा वारिस भी साबित नहीं कर पाया था." इतना कहते हुए नानू ने लम्बी सांस ली.
राजू: "हाँ, यह बात भी बताई थी. उस वक्त आप के घर से कोई तस्वीर की चोरी हुई थी. और उसी वक्त मेरे पापा की बोट से भी एक मेथ्यु नाम के लड़के ने वो चाबी, नक्शा और तस्वीर चुराई थी."
नानू हँसते हुए : "हाँ, ठीक बताया तुमने! उस वक्त एक तस्वीर की ही चोरी हुई थी मेरे घर से."
राजू: "फिर क्या वह तस्वीर वापस मिली?"
नानू: "हाँ, वह मैंने बड़ी मुसीबत से वापस पाई थी."
राजू: "वह चोर का पता चला था कुछ?"
नानू: "था एक चोर. मेरी ही रिश्तेदारी में था वह शैतान."
राजू: "फिर आपने वह तस्वीर कैसे वापस पाई?"
नानू: "किनारे जाते वक्त तुम्हारे बाप ने मुझे अपनी बोट से चोरी होने की बात बताई थी. कोई नीरा बेचने वाले ने वह चोरी की थी. तब मुझे संदेह हुआ. और मेरा वह संदेह सच्चा भी साबित हुआ. मैंने जिसके बारें में सोचा था वहीँ चोर निकला. मैंने उसका पीछा किया और बड़ी मुश्किल से वह तस्वीर वापस पाई."
राजू: "तो क्या आप के घर से भी मेथ्यु ने ही चोरी की थी?"
नानू: "उसका नाम मेथ्यु नहीं, पर फ्रेड था. जो किनारे पर नीरा बेचता था. मेरे घर से सायद उसने या उसके बाप ने चोरी की होगी. पर वह पूरा कारस्तान उसके बाप डेविड का ही था. "
राजू: "इसका मतलब मेथ्यु ने अपना नाम गलत बताया था!"
नानू: "हाँ, ऐसा ही था."
राजू: "ये डेविड कौन है? क्या मेरे पापा का पीछा करनेवाला आदमी ही डेविड था?"
नानू आश्चर्य से: "हैं! क्या तुम्हारे बाप का कोई पीछा कर रहा था?"
राजू: "हाँ, पापा ने बताया था, पहली बार जब वे जेन्गा बेट पर पहुँचे थे तब से कोई मनहूस शकल वाला आदमी उसका पीछा कर रहा था. और जब वे आप को मिलकर निकले तब भी उन्होंने उस मनहूस शकल वाले आदमी को आप के घर के पिछवाड़े से निकलते हुए देखा था."
नानू: "मनहूस शकल तो डेविड की भी थी! तब तो वहीँ होगा. मगर इस बात का मुझे पता नहीं था. वर्ना मैं उस मामले को आगे बढ़ने ही नहीं देता."
राजू: "फिर पापा मेथ्यु का पीछा करते हुए कोई अनजान टापू तक पहुँच गए थे. जहां उन लोगों ने तीन लोगों की लाश देखी थी. उसमे एक वह मनहूस शकल वाला भी था. और वहां उसे चुराई हुई वह तस्वीर और नक्शा भी मिला था. पर चाबी नहीं मिली थी."
नानू फिर से आश्चर्य प्रगट करते हुए: "क्या तुम्हारा बाप वहां तक पहुंचा था?"
राजू: "हं."
नानू: "मगर मैंने वहां किसी को नहीं देखा था! और हाँ, उन लोगों को मैंने ही मारा था. जब मुझे तुम्हारे बाप ने नीरा बेचने वाले की बात बताई तो मुझे पूरी बात समझ में आ गई. मैंने तुरंत ही उसका पीछा किया. और उस बेट पर उन्हें दबोच लिया."
राजू: "तो क्या डेविड भी यह राज़ जानता था? और क्या उनकी मेरे प्रदादाजी से कोई जान पहचान थी?"
नानू" "मैं तुम्हें मालिक की पुरी बात बताता हूँ." डेविड का मेघनाथजी से कोई वास्ता है या नहीं? और किस तरह उसने यह राज़ जाना.
नानू अपनी कहानी आरम्भ करता है.
यह तब की बात है जब दूसरा विश्वयुद्ध अपने चरम पर था. व्यापार धंधे में बहुत हानि हो रही थी. व्यापार करना मुश्किल हो गया था. चारों और लूटपाट हो रही थी. सुरक्षा के प्रबंध सारे नष्ट हो चुके थे. चोर लुटेरे पूरी स्वतंत्रता से अपना काम कर रहे थे. कई बेईमान लश्करी सिपाही और अफसर भी इस मौके का बड़ा फायदा उठा रहे थे. कई व्यापारियों के जहाज़ो को लूट लिया गया था या डुबो दिया गया था. बहुत से व्यापारी इस तरह कंगाली की हालत में आ गए थे. जो बच गए थे, वे भी अपना व्यापार समेटने लगे थे.
तुम जानते ही होंगे की मेरे मालिक और तुम्हारे परदादा भी गोवा के एक बड़े सेठ के यहाँ नौकरी ही किया करते थे. उस सेठ का एक लड़का और एक लड़की थी. लड़की ने तो किसी पोर्तुगीस से भागकर शादी रचा ली थी. फिर उसका अपने बाप से नाता टूट गया था. उस सेठ की लड़की के इस तरह से भाग जाने से और उम्र की वजह से तबियत ठीक नहीं रहती थी. इसलिए उसका सारा कारोबार उसका लड़का ही देखता था.
उस वक्त वह सेठ का लड़का अपने बीवी बच्चों को अफ्रीका घुमाने के लिए लाया हुआ था. पर तभी लड़ाई बहुत फ़ैल जाने की वजह से वे लौट न पाए. फिर उसके बच्चे की तबियत बिगड़ गई. डाक्टर से बहुत इलाज करवाया, पर कोई कायमी फायदा नहीं हो रहा था. उसके बच्चे ने भी दादा दादी के पास जाने की जिद पकड़ ली थी.
एक तरफ व्यापार मंदा था और दूसरी तरफ बच्चे की तबियत बिगड़ी रहने से वह भी किसी तरह घर पहुंचना चाहता था. उसने मालिक को यह बात बताई. तब मालिक ने भी व्यापार समेट कर बाल बच्चों के पास घर पहुँच जाना उचित जानकर लौटने की तैयारी करनी शुरू कर दी.
फिर सारा कारोबार समेट लिया गया. जो भी मालिक का धन था वह एक जहाज में और सेठ के धन को दूसरे जहाज में लादा गया. उस वक्त मालिक के दो जहाज और उसके सेठ के सोलह जहाज हुआ करते थे. कुल मिलाकर अठारह जहाज़ो का पूरा काफिला था. बीच में वे दोनों जहाज़ो को रखकर उसके अगल बगल बाकी के धान, कपड़ा और मसाले लदे जहाज लौटने लगे. मालिक खुद सब से आगे एक जहाज पर थे. मालिक ने सभी जहाज़ो को एक दूसरे से थोड़ी थोड़ी दूरी पर रखा था, जिससे की कोई लुटेरे आ पहुँचे तो कुछ जहाज़ो को बचकर भाग निकलने का मौका मिल जाए. हमारे साथ दूसरे व्यापारियों के जहाज भी आगे पीछे सफर कर रहे थे.
तब मैं छोटा था और मेरा भी वहां कोई न था. जो भी भली वारिस था वह मालिक ही था. मैं भी मालिक को दिल से मानता था. इसलिए मालिक ने मुझे भी साथ ले लिया. मैं भी मालिक वाले जहाज पर ही था.
उस दिन हम बीच मार्ग में ही थे, जब मालिक की बायीं आँख सुबह से ही फरकने लगी थी. वे किसी अमंगल की दहसत से व्याकुल हो उठे थे. और उसी दोपहर को सेठ के पौत्र की हालत फिर बहुत बिगड़ गई. सेठ के लड़के ने मालिक को बुलाया और कहा कि बच्चे को डाक्टर की जरूरत होगी. इसलिए नजदीक वाले बन्दर पर जाना पड़ेगा. सबसे नजदीक वाला बन्दर तो पीछे छूट गया था. तब सेठ के लड़के ने सारे जहाज़ो और ख़ास उसके धन वाले जहाज का जिम्मा मालिक के हवाले किया. कहा कि आगे के बन्दर पर राह देखे. और खुद एक जहाज में उसके बीवी बच्चे और थोड़े से आदमी को साथ लिए पीछे लौटने की तयारी करने लगा.
मालिक और दूसरें बुजुर्ग खलासियों ने सेठ के लड़के को बहुत समजाया था कि वह वापस न लौटे. आगे वाला जो बन्दर है, वह सिर्फ एक दिन ज्यादा की दूरी पर है. वहां भी डाक्टर मिल जायेगा. पर वह न माना. और लौट पड़ा.
पर उसे यह कहाँ पता था, कि उसने इस तरह वापस पलट कर बहुत बड़ी गलती कर दी थी! जैसे वह पलता नहीं था! उसके नसीब ने ही पलती मारी थी. उसका यह निर्णय सारे काफिले का नसीब ही बदल देने वाला था.
क्रमशः
सेठ के लड़के ने पीछे लौटकर क्या गलती कर दी? क्या वह पिछले बन्दर पर पहुँच पाया? या उसके साथ कोई दुर्घटना हो गई? दुर्घटना हुई तो क्या हुई? इससे सारे काफिले के नसीब पर कैसे फरक पड़ने वाला था? जानने के लिए पढ़ते रहे...
अगले हप्ते कहानी जारी रहेगी...