राम रचि राखा
अपराजिता
(1)
दोपहर हो चुकी थी। ध्रुव को सुलाकर मैं आफिस के लिए तैयार होने लगी थी। शान्ति खाना बना रही थी। तभी कालबेल बजा। कौन आ गया इस समय...सोचते हुए मैने दरवाजा खोला।
तीन साल बाद अचानक अनुराग को देखकर मेरे पैर वहीं जम से गये। आँखें खुली रह गयीं। पिछले तीन सालों से जो क्रोध, क्षोभ और पीड़ा हिमखंडों सी मन में जमी हुई थी, इन पलों की छुवन पाकर तरल हो गई और उसने आँखों की पुतलियों को ढँक लिया। सामने सब कुछ धुँधला हो गया। इससे पहले कि आँसू पलकों की सीमा लाँघ पाते, मैंने उन्हे वापस अन्दर धकेल दिया।
अनुराग की नज़र मेरे चेहरे पर ठिठक गई। "अन्दर आने को नहीं कहोगी?" उसने कहा।
हम ड्राइंग रूम में सोफे पर बैठ गये। बिल्कुल चुपचाप। हमारे होंठ सिले हुए से लग रहे थे। आँखें एक दूसरे में कुछ ढूँढ रही थीं।
"कैसे हो?" कुछ देर बाद मैंने ही शुरुआत की।
"ठीक हूँ।" बहुत धीरे से कहा। प्रतिपल उसके चेहरे के भाव बदल रहे थे। बहुत कुछ अन्दर मथ रहा था। मुझसे दूर चले जाने का क्षोभ और आज पुनः मुझे सामने पाने की ख़ुशी, दोनों ही एक दूसरे में घुले हुए से लग रहे थे।
हम दोनों फिर कुछ देर के लिये मौन हो गये। कुछ कहने के लिये शब्द नहीं मिल रहे थे। शायद सारे शब्द जम गये थे या जो कुछ मन की सतह से उठकर बाहर आना चाहता था, उसका भार वहन कर पाने में स्वयं को असमर्थ पा रहे थे।
"बाम्बे से कब वापस आए?" मैंने पूछा।
"कल ही आया"
फिर वही खामोशी हमारे बीच पसर गई।
'कैसी हो तुम...?" मेरी आँखों में झाँकते हुए पूछा। माथे की माँसपेशियाँ उसी तरह सिकुड़ गयीं जैसे मुझसे प्रेम-प्रदर्शन करते समय सिकुड़ा करती थीं। जब प्रेम की सघन भावनाएँ उसके हृदय तल से उठकर आँखों में तैरने लगती थी तो उसके वाणी की कम्पन और शब्दों का भाव-प्रवाह मुझे मंत्र मुग्ध कर देता था और मैं एकटक उसे निहारती रहती... अनवरत सुनते रहना चाहती थी। तीन-चार साल पहले की बात है…
****
(2)
"वाणी, तुम मेरा एक फेवर कर सकती हो? डान्स क्लास से बाहर निकलते हुए अनुराग ने मुझसे पूछा।
आज पहली बार उसने मुझसे व्यक्तिगत रुप से कुछ कहा था। पिछले तीन सप्ताह में हमारे बीच डांस स्टेप्स के अलावा और कोई बात नहीं हुई थी। क्लास के ख़त्म होते ही हम चुपचाप निकल जाते थे। पहले दिन के सामूहिक परिचय में सबने अपना नाम और काम के बारे में बताया था। वह किसी कंसल्टिंग कम्पनी में इलेक्ट्रिकल इंजिनियर था।
मैंने उसके चहरे पर एक प्रश्नवाचक दृष्टि डाली।
"मुझे लग रहा है कि मैं सालसा के स्टेप्स ठीक से नहीं कर पा रहा हूँ। मुझे थोड़ी और प्रैक्टिस की जरुरत है" फिर थोड़ा रुक कर बोले, " अगर कल तुम थोड़ी जल्दी आ सको तो मुझे बहुत मदद मिल जायेगी।" उसकी आवाज़ में एक झिझक सी थी,
"ठीक है ...कितने बजे ?" मैंने थोड़ा सोचते हुए कहा,
"चार बजे... ?"
"थीक है...आ जाउँगी "
"थैंक्स।" उसकी आँखों में एक कृतज्ञता उभर आई।
हम इंस्टिट्यूट के कैम्पस से बाहर आ चुके थे। हाथ हिलाते हुए एक दूसरे को विदाई दी और वहाँ से निकल गये।
वैसे तो मुझे बचपन से ही नृत्य करना पहुत पसंद था किन्तु कभी औपचारिक रुप से कोई शिक्षा नहीं ले पायी थी। मध्यम वर्गीय लोगों के लिये सबसे महत्वपूर्ण प्राथमिकता जीविका होती है। मेरे लिए भी थी। अब तक कैरिअर के लिये ही जद्दोजहद करते हुए छब्बीस साल गुजर चुके थे। सामाजिक पार्टियों में लोगों को नृत्य करते देखकर एक दिन मन में उठा कि क्यों न पाश्चात्य नृत्य की थोड़ी बहुत ट्रेनिंग ले ली जाय। और मैंने इस इंस्टिट्यूट में बालरूम डांस सीखने के लिये दाखिला ले लिया था। शनिवार और रविवार को शाम में पाँच बजे से सात बजे तक दो घंटे के क्लास होते थे।
क्लास के पहले दिन जब मेरा कोई पार्टनर नहीं था...सिर्फ़ मेरा ही नहीं, बल्कि मेरी तरह कई अन्य लड़के और लडकियां भी थीं जिनका कोई पार्टनर नहीं था, डांस इंस्ट्रक्टर ने उन्हें आपस में पार्टनर बना दिया था। मेरे हिस्से में अनुराग आया था। उसे देखकर मुझे अच्छा लगा था। ऊँचा कद, गेहुआँ रंग, चेहरे पर एक शालीनता झलक रही थी। चौड़े सीने से चिपके हुए गहरे भूरे रंग के टी शर्ट पर सफेद रंग से अंग्रेजी का बड़ा सा ओ लिखा हुआ था।
दूसरे दिन रविवार था। हम पूर्वनिर्धारित समय पर चार बजे पहुँच गये। दो - चार और लोग भी प्रैक्टिस कर रहे थे। आधे घंटे के प्रैक्टिस के बाद हम थोड़ा थक गये और क्लास के बाहर रखे बेंच पर बैठ कर सुस्ताने लगे। हमारे बीच औपचारिक बातें शुरू हो गयीं।
“तुम क्या करती हो?"
"पहले दिन इंट्रो में मैंने बताया तो था"
"आई ऍम सॉरी, एक्चुअली मैंने ध्यान नहीं दिया था।" थोड़ा झेंपते हुए हुए बोले। "तब मुझे नहीं पता था कि तुम मेरी पार्टनर बनने वाली हो।" कहते हुए मुस्करा दिए। एकदम निश्छल मुस्कराहट...किसी बच्चे की तरह।
“ओके...मैं एक सोफ्टवेयर इंजीनियर हूँ।“
“ग्रेट...!”
“और मुझे याद है कि तुम एक इलेक्ट्रिकल इंजीनियर हो।“ मैंने हँसते हुए कहा।
पाँच बजे क्लास शुरू हुआ। आज हम साथ में नृत्य करते हुए पहले से अधिक सुविधा महसूस कर रहे थे। शायद हमारे बीच से अजनबीपन का अहसास कुछ हद तक कम हो चुका था। नृत्य करते समय मेरे हाथों और पीठ को थामने में उसे जो पहले झिझक सी होती थी वह आज नहीं थी। आज नृत्य करने में बहुत ही आनंद आया।
क्लास से बाहर हम साथ-साथ निकले। पार्किंग में कार के पास आकर थोड़ा ठिठक गये।
"तुम्हारी मदद के लिए थैंक्स" उसने कृतज्ञता जाहिर की।
"इट्स ओके। तुम मेरे पार्टनर हो। "
"मुझे लगता है कि आज मैंने बेहतर किया "
"हाँ आज बहुत बेहतर था "
"ठीक है…अब हमें चलना चहिए।" वह अपनी कार का दरवाजा खोलते हुए बोला।
"हाँ...बाय...फिर मिलते हैं।"
"बाय...शनिवार को मिलते हैं।" उन्होंने कार में बैठते हुए कहा।
क्रमश..