Aouraten roti nahi - 20 in Hindi Women Focused by Jayanti Ranganathan books and stories PDF | औरतें रोती नहीं - 20

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औरतें रोती नहीं - 20

औरतें रोती नहीं

जयंती रंगनाथन

Chapter 20

आवारा नदी के घाट नहीं होते

तीन जिंदगियां: जून 2007

एक उमस भरी दोपहरी को ठंडाने में जुटी थीं वे तीनों। जून महीने की शुरुआत थी। सुबह सात बजे से गर्म हवा चलने लगी थी। ऐसा मौसम कि मन डूबने लगे, तन तपने लगे और दुनिया वीरान लगे।

लेकिन उज्ज्वला ने सुबह-सुबह ही कह दिया था, ‘‘गर्मी को लेकर कोई शिकायत नहीं करेगा। पानी की कमी है। बस एक बार नहा सकती हो। घर में ए.सी. नहीं है। दस बजे के बाद कूलर चला दूंगी। नाश्ते में वेजीटेबल उपमा और मट्ठा दे रही हूं। लंच मुझे पता है कि कोई खाएगा नहीं।’’

मन्नू खूब हंसी, ‘‘तुम सही हो उज्ज्वला। पहले से सोच लिया कि हम दोनों क्या कहेंगे, हां? मुझे तो ऐसे माहौल में रहने की आदत है। पद्मजा का पता नहीं। इसे होगी दिक्कत।’’

पद्मजा भड़क गई, ‘‘मुझे क्यों होगी दिक्कत? क्या समझती हो मुझको तुम दोनों? मैं रही नहीं हूं ऐसे? अरे तुम्हें क्या पता? जिन दिनों रात को नींद नहीं आती थी और ड्रग्स लेनी पड़ती थी, इससे कई गुना ज्यादा बुरा अनुभव होता था। लगता था जैसे पूरा शरीर गर्म हो गया है, अंदर एक ज्वालामुखी भर गया है और बस अब फूट जाएगा और निकलेगा गर्म-गर्म लावा।’’

उज्ज्वला उपमा बनाने के लिए सूजी भून रही थी, गैस सिम पर कर पद्मजा के पास चली आई, ‘‘तुम आज भी अतीत में जी रही हो न पद्मा?’’

मन्नू डर रही थी कि कहीं फिर से उनकी कोई बात पद्मजा को न चुभ जाए। हालांकि पद्मजा जब से लौटी है, एकदम अलग मूड में है। कहती कुछ नहीं, पर साफ लग रहा है कि वह अपने को हावी नहीं रखना चाहती। बल्कि कई बार तो बच्ची सी बन, मन्नू की कोद में ही सिर रखकर लेट जाती है। कहती भी है कि तुम दोनों औरतें मुझे गोद ले लो। मैं एक अच्छी बेटीी तरह तुम दोनों का बुढ़ापे में ख्याल रखूंगी।

मन्नू छेड़ती है, ‘‘वैसे ही, जैसा अपने नाना और ममा को रखा? न बाबा, ऐसी बेटी नहीं चाहिए।’’

पहली बार पद्मजा नाना का जिक्र सुनकर स्तब्ध रह गई। पता है अतीत उसे छोड़कर कहीं नहीं जाने वाला। मम्मा की वह बेशक अच्छी बेटी नहीं, पर हर महीने एक तगड़ी रकम उनके बैंक अकाउंट में ट्रांसफर करना नहीं भूलती। मम्मा को बस यही चाहिए उससे। पैसा... और पैसा। जो पति से नहीं मिल पाया, अब बेटी से चाहिए। उन्हें मजा आता है अपने भूखे-कंगाल रिश्तेदारों को अपने पैसे से खिलाने-पिलाने में। मम्मा के पास पद्मजा का पैसा आते ही उनका भाई और परिवार लौट आता है। वे ही रिश्तेदार थे, जो बस सालभर पहले मम्मा को घर से निकालने में चूके नहीं थे बल्कि धकिया और दिया कि जाओ, अपने पैसेवाले पति के पास जाकर पैसा लेकर आओ।

पद्मजा यह कभी समझ न पाई कि लगभग मरते हुए पति के पास लौट जाने का मन मम्मा ने कैसे बना लिया? सेवा करने तो कतई नहीं। कम से कम अपनी मां से वह यह अपेक्षा नहीं रखती। तो फिर... सिर्फ इसलिए कि अंत समय में पिता सब कुछ उनके नाम कर जाएं।

मां को शायद पता न था कि नाना के पास कुछ नहीं बचा, सिवाय एक बंगले के। वो भी लिख डाला था बेटी के नाम। पद्मजा को ही वे अंत तक अपना समझते रहे। उन दिनों भी जब बेटी बाप से अलग होती जा रही थी।

नाना के जिक्र से अंदर तक भीग जाती है पद्मजा। अब भी सपने में आते हैं नाना। बीमार और लाचार रूप में। पद्मजा उन्हें थामने भागती है, तो वे रूह बन जाते हैं। कभी कहते हैं, ‘मैं ऐसे कैसे आ जाऊं तुम्हारे सामने? तुम यहां से जाओ पद्मा। कम से कम मुझे चैन से मरने तो दो...’

मन्नू समझ गई कि उसने पद्मजा के मर्म पर वार कर दिया है। तुरंत बात बदल दी, ‘‘पद्मा, तुमने बहुत किया है हमारे लिए। पता है, जब तुम दुबई में थी, रोज उज्ज्वला मुझसे यही कहती थी... पद्मा ने बदली है हमारी जिंदगी, हमें जीने का मौका दिया है... सच में पद्मजा, तुम हमारी लाइफ में न आतीं तो... मैं सड़ रही होती उसी घर में, अपने पुराने विचारों के साथ...।’’

उज्ज्वला हंसनी लगी, ‘‘तुमने मेरा नाम नहीं जोड़ा। पुराने विचारों और एक अदद खूसट औरत उज्ज्वला के साथ...’’

पद्मजा ने अपनी नम आंखों का पानी तुरंत सोख लिया। दोस्ती में अब वह अपना अहम नहीं लाएगी। मन्नू और उज्ज्वला अगर उससे कुछ कहती हैं, तो यह उनका हक है। वह भी तो कहती रही है।

लौटना ही था पद्मजा को। शायद वह इंतजार भी कर रही थी कि कब मन्नू और उज्ज्वला उसे बुलाएं और वह वापस जाए। दुबई का अनुभव बहुत अच्छा न रहा। ऑनी को अपने फाइनेंस के बिजनेस से ज्यादा दिलचस्पी होटलों और दूसरे व्यापार में थी। जिस रात वह ऑनी के साथ मुगल महल गई थी, अगली सुबह ऑनी अपना नया प्रोजेक्ट लेकर खुद उसके पास पहुंच गया था।

उस रात पद्मजा सो नहीं पाई थी। अपने फ्लैट में लौटने के बाद उसने फिर से पीना शुरू किया। रोती रही... हल्की न हुई, तो अपने मोबाइल से मन्नू का नंबर लगाने लगी। नहीं लगा। मन्नू ने नंबर बदल दिया? अब?

उज्ज्वला का नंबर तो शायद याद भी नहीं। यह तो पता था कि उज्ज्वला ने अपनी बैंक की नौकरी छोड़ दी है। अपने बॉयफ्रेंड के साथ रहती है। एक पल को ईष्र्या हो आई उज्ज्वला से। ऐसी जिंदगी की ख्वाहिश तो उसने की थी और जी रही है उज्ज्वला। जिसने कभी यह भी न जाना कि पुरुष का सान्निध्य क्या होता है? जो सेक्स खिलौनों को देख ऐसे चौंक गई थी, जैसे बम हों। जो सेक्स के नाम से घबराती थी। कितना मजा आता था मन्नू और उसे उज्ज्वला को चिढ़ाने में।

अब... उसे छोड़ वे दोनों औरतें सीख रही हैं जीना और खुद की परिभाषा गढ़ना। उज्ज्वला ने कोचीन से कोट्टकल तक के सफर में उससे कहा था, ‘‘तुम्हारी जिंदगी में सेक्स बहुत जरूरी होगा पद्मा। मेरे लिए नहीं। मैंने उनका क्रूरतम रूप देखा है। मैं आदमी के साथ सोने की सोच भी नहीं सकती, अपना शरीर उसे देना तो दूर की बात रही। एक तरफ तुम कहती हो कि हमें खुद को पुरुष से अलग होकर देखना होगा, तभी हम सही मायनों में आजाद होंगी, दूसरी तरफ तुम पुरुष शरीर से इतनी अभिभूत हो कि हर समय तुम्हारे दिमाग में सेक्स हावी रहता है। क्या तुम अपनी बात से नहीं पलट रही?’’

एक पल को खामोश रही थी पद्मजा, फिर मुखर होकर बोली, ‘‘शरीर की जरूरतें या आनंद हमारी बेड़ी नहीं है उज्ज्वला। मैं तो इस थ्योरी को ही गलत मानती हूं कि सिर्फ सेक्स के लिए शादी के बंधन में बंधना चाहिए। नो... यह अपनी जगह है, जिंदगी अपनी जगह है। पुरुष जैसे अपनी जरूरतों के लिए कॉलगल्र्स के पास जाते हैं, औरतें भी जा सकती हैं जिगोलोज के पास।’’

मन्नू के चेहरे पर आश्चर्य के भाव आए, ‘‘तुम गई हो...!’’ हां!

उज्ज्वला का नंबर मिल गया। उठाया भी उसी ने। पद्मजा रो रही थी। आवाज नहीं निकल रही थी मुंह से। किसी तरह कह पाई, ‘‘मेरा टुटू... प्लीज उसे अपने पास ले जाओ। प्लीज...’’

उज्ज्वला की आवाज संयत थी, ‘‘मैं कल ही ले जाऊंगी पद्मा। तू चिंता मत कर। तेरी शिष्या का घर यहां से बहुत दूर नहीं... मैं आजकल यहीं रहती हूं, कुतुब मीनार मेरे घर से नजर आती है... तू लौट क्यों नहीं आती पद्मा? हमें तेरी बहुत जरूरत है...’’

पद्मा की आवाज बंद हो गई। कितनी सहज है उज्ज्वला। और उसने न जाने कितनी दीवारें पाल ली थीं रिश्तों के बीच। फिर सुबह जो हुआ, उसके बाद तो लौटना ही सबसे अच्छा उपाय था।

ऑनी ने बिना लागलपेट के कहा, ‘‘आई हैव ए प्रपोजल। इंडिया में तुम्हारा अच्छा कनेक्शन होगा... कैन यू प्रोवाइड भी गल्र्स? कहने की जरूरत नहीं कि उन्हें भी और तुम्हें भी पैसे की कमी नहीं रहेगी।’’

पद्मजा चुप रही। सोचकर बोली, ‘‘यू मीन पिंप?’’

ऑनी की आवाज सतर्क थी, ‘‘राइट। लेकिन उस तरह से नहीं, जैसा तुम सोच रही हो। हम बिल्कुल हाई प्रोफाइल काम करेंगे। मेरे होटल का सबसे फ्लरिशिंग धंधा यही है। तुम कल मिली थीं न अलीशा से? वह रात को नाचकर जितना कमाती है, उसे दस गुना ज्यादा एक रात में कमा लेती है। सोचो, उस जैसी एजेड औरत को इतना पैसा मिलता है तो...’’

पद्मजा ने आंखें बंद कर लीं। पैसा... बरसता दीख रहा है। ऑनी ने ठीक पहचाना। वह बखूबी कर सकती है यह काम। कोलकाता में यही काम तो करने लगा था उसका पति मैक। फोटोग्राफर तो बस नाम का था। उसके पास आती थीं एक से एक मॉडल आंखों में ग्लैमर लिए। किसी को काम करना है टॉली गंज में प्रसेनजित के साथ, तो कोई बनना चाहती है नेक्स्ट मुनमुन सेन।

‘‘मुनमुन की बेटियां किस तरह चढ़ी हैं सीढ़ियां, पता है तुम्हें? एक दिन मैक ने पूछा था उससे।’’

कमर में आंचल का पल्ला खोंस गैस पर बैंगन भूनती बाईस साल की पद्मजा ने आंखें तरेरी थीं, ‘‘नन ऑफ यॉर बिजनेस मिस्टर मैक। तुम अपना काम शराफत से क्यों नहीं करते? ये लड़कीबाजी और दलालीगिरी छोड़ दो, किसी दिन पकड़े गए, तो आई वोंट वी देयर फॉर यू...’’

मैक के होंठों पर कड़वी सी मुस्कान उभर आई, ‘‘डोंट टीच मी यू लिटिल बिच। क्या मुझे नहीं पता कि तुम्हारा असली रूप क्या है? तुम्हारे कोलकाता में जिससे भी मिलता हूं, तुम्हारा वाइटल स्टेटसटिक्स और अंडी का नाप तक बताने को तैयार रहता है। तुम शायद ऊपर कुछ पहनती ही नहीं थीं, वरना उसका भी नाम बता देता...’’

मैक ऐसी ही अश्लीलता से बात करता था उससे। हर समय गंदी बात। लगता था जैसे चलते-फिरते पोर्न फिल्म में काम कर रही है वो।

ये वो दिन थे, जब गले-गले तक मैक के इश्क में डूबी हुई थी पद्मजा। इश्क न सही, एक नशा तो था ही। उसके सामने मैक दूसरी औरतों से फ्लर्ट करता, वह देखती रहती। सोचती कि शायद इसे ही रिश्ता कहते हैं।

फिर पद्मजा ने शुरू किया था मैक के लिए काम करना। ओह... मैंने कैसे किया था वो सब कुछ?

सोचा तो झुरझुरी हो आई। वो खुद तैयार करती थी मॉडल्स को। मैक ने क्या-क्या नहीं करवाया उससे।

अब सालों बाद ऑनी वही प्रपोजल लेकर आया है। पैसा... आसान पैसा। किसे नहीं चाहिए? मां को भी चाहिए, अपना बुढ़ापा चैन से गुजारने के लिए। क्या मुझे नहीं चाहिए? है क्या मेरे पास नाना के छोड़े बंगले के अलावा? न वहां जाकर रहा जा सकता है, न बेचा जा सकता है। मां बेचने नहीं देंगी। फिर नाना की बहन का परिवार वहां आकर रहने लगा है, उन्हें कैसे निकाले, क्यों निकाले?

इतने साल का संघर्ष। मिला क्या? पहले जितना कमाया, मैक के नाम होम कर दिया। अब लगता है आसानी से पैसे मिल जाएं, तो कितना अच्छा हो। जिंदगी की जरूरतें बढ़ती जा रही हैं। रहने के लिए बढ़िया घर चाहिए। ए.सी., एलसीडी मॉनीटर, बड़ी-लंबी गाड़ी, गाड़ी के लिए ड्राइवर, डिजाइनर कपड़े, घर की तमाम चीजें, रोज पीने के लिए महंगी शराब... इच्छाओं का अंत ही नहीं। अपनी भी तो कमजोरियां हैं, उनसे पार कैसे पाया जाए?

ऑनी का प्रस्ताव बुरा तो नहीं। बस महीने में एक बार उसकी जरूरतें पूरी करनी होंगी, इसके बाद आराम। बल्कि ऐशो-आराम।

उसी रौ में पद्मजा ने कहा दिया, ‘‘वो कल वाली अलीशा... मैं उससे मिलना चाहती हूं। पता है ऑनी, मैं स्कूली दिनों में उसकी फैन हुआ करती थी।’’

‘‘कौन सी बड़ी बात है? मैं अभी बुलाता हूं उसे। इसी समय सो कर उठती है। इन फैक्ट, तुम्हें अच्छा लगेगा उससे मिलकर, बल्कि हैल्प भी मिलेगी। वह कई तरह से काम करती है। यू नो मैडम... दुबई में काम की कमी नहीं। बल्कि मैं तो कहूंगा यूनाइटेड अरब अमीरेट्स में यही एक ऐसा शहर है, जहां जिंदगी पूरी रफ्तार के साथ जीती है। जिसको जैसे जीना हो जी ले, कोई बॉदर नहीं करता। बल्कि कुछ समय बाद तुम यही आकर सेटल हो जाओ। मैं तुम्हें वर्क वीजा दिला दूंगा...।’’

पद्मजा की आंखों में अब तक रात का भारीपन तारी था। उसने उनींदी आंखों से ‘हां’ कहा।

ऑनी की आंखें चमक उठीं, धीरे से उठकर उसने हल्के से पद्मजा के गालों पर चुंबन जड़ दिया, हौले से, इस तरह कि उसके होंठ बीच में ही तैरते से लगे, त्वचा तक उसका स्वाद न पहुंचा। पद्मजा का मन हुआ कि वह ऑनी के दोनों हाथ पकड़ ले, शायद कुछ सहारा सा हो जाए।

ऑनी ने उसके लिए सिगरेट जला दी। दो कश। लगा अपने को वापस पा रही है। ऑनी उसके कैबिनेट में कुछ ढूंढ रहा है। वह बड़बड़ा रहा है, ‘‘तुम्हें बताना था न... मैं ले आता। देखों, एकदम खाली है। नथिंग टू ड्रिंक। न रम न जिन...’’

पद्मजा उसी तरह आलथी-पालथी मारे सोफे पर बैठी रही। आंखें खुली हुईं। दिमाग की नसें धीरे-धीरे खुल रही हैं। उसने ऑनी को सीधे मना क्यों नहीं कर दिया। ऑनी की हिम्मत कैसे हुई उसके सामने इस तरह का प्रपोजल रखने की? टू मच। पर वह हिल नहीं रही। चुप है। सिगरेट का एक और कश। बुझा दी है। पर जो आग अंदर तक लगी है, उसका क्या?

अचानक ऑनी किलकारी मारते हुए उसके सामने आ गया, ‘‘आई नेवर न्यू, तुम्हें इन चीजों का शौक है!’’

पद्मजा ने चौककर देखा। एक हाथ में बड़ा सा चमड़े हा हंटर, दूसरे में गहरे भूरे रंग का सेक्स टॉय...

ऑनी हंस रहा है, ‘‘ओह गर्ल! मुझे क्यों नहीं बताया? यहां इतनी सारी शॉप हैं। मुझसे कहा होता, जन्नत दिखा देता।’’

वह पद्मजा के बिल्कुल पास आकर बैठ गया और पुचकारते हुए बोला, ‘‘तुम इस्तेमाल करती हो? बोलो?’’

पहली बार पद्मजा ने झूठ बोला, ‘‘नहीं... किसी के लिए लिया है... छोड़ दो। तुम्हें मेरा कमरा टटोलने की जरूरत नहीं।’’

क्रमश..