Aadhi duniya ka pura sach - 12 in Hindi Moral Stories by Dr kavita Tyagi books and stories PDF | आधी दुनिया का पूरा सच - 12

Featured Books
Categories
Share

आधी दुनिया का पूरा सच - 12

आधी दुनिया का पूरा सच

(उपन्यास)

12.

रानी जहाँ बैठी थी, बिना हिले-डुले निष्क्रिय और भाव शून्य मुद्रा में वहीं पर बैठी रही । एक क्षण पश्चात् उसके कानों में बालिका-गृह की उसी परिचारिका का पूर्व परिचित आदेशात्मक स्वर सुनाई पड़ा, जिसने पिछली रात रानी को नेता जी से मिलने के लिए कपड़े लाकर दिए थे -

"चल उठ ! वार्डन साहब ने बुलाया है !

"मुझे कहीं नहीं जाना है !" रानी ने निराश-उदास लहजे में उत्तर दिया।

"कहीं नहीं जाना है ? यह होटल तेरे बाप का है क्या ? जहाँ तू जब तक चाहे रहेगी ! जल्दी खड़ी हो, यह कमरा खाली करना है !" रानी उठ खड़ी हुई और कमरे से बाहर निकलकर सीढ़ियों की ओर बढ़ने लगी। परिचारिका ने उसकी बाँह पकड़ कर उसे दूसरी ओर घसीटकर जोर से झटकते हुए पुनः डाँटा -

"ऐ स्याणी ! इधर नहीं इधर !"

रानी चुपचाप लिफ्ट के पास वहाँ जाकर खड़ी हो गयी, जहाँ खड़ी होने के लिए परिचारिका ने संकेत किया था। कुछ क्षणों में लिफ्ट का दरवाजा खुला, तो परिचारिका ने रानी को लिफ्ट में धकलते हुए पुन: डाँटा -

"अरी, ओ महारानी, बुत बनकर यहीं खड़ी रहेगी क्या ? लिफ्ट के अंदर चलना है ! " परिचारिका के निर्देशानुसार रानी ने लिफ्ट में प्रवेश कर लिया ।

नीचे भूतल पर आकर लिफ्ट रुकी, तो रानी शीघ्रतापूर्वक लिफ्ट से बाहर निकली और होटल के मुख्य द्वार की ओर बढ़ गयी। पीछे-पीछे तेज कदमों से चलते हुए परिचारिका ने आकर रानी की बाँह पकड़कर लगभग खींचते हुए निकट खड़ी कार की ओर संकेत करके आदेश दिया-

"उधर कहाँ भागी जा रही है ? इस गाड़ी में बैठकर चलना है !"

"छोड़ो मुझे ! मुझे इसमें नहीं बैठना है ! न हीं मुझे आपके साथ जाना है !" रानी ने दृढ़तापूर्वक अपना निर्णय सुनाया।

"इसमें तो तुझे बैठना पड़ेगा और मेरे साथ ही चलना पड़ेगा !" परिचारिका ने रानी की बाँह पर अपनी पकड़ को दृढ़ करते हुए कहा।

"नहीं ! मैं इस गाड़ी में नहीं बैठूँगी ! और न ही मैं आपके साथ चलूँगी !" रानी ने पूरे आत्मविश्वास के साथ कहा ।

परिचारिका को रानी से ऐसे प्रतिरोध की आशा नहीं थी। उसने रानी को चेतावनी देते हुए कहा -

"तो फिर मुझे पुलिस को बुलाना पड़ेगा ! पुलिस खुद समझेगी, तेरे साथ क्या करना है ?"

तभी होटल से एक वर्दीधारी सिपाही निकला। परिचारिका ने उसको अपने निकट बुलाकर उससे कहा -

"सर जी, यह बालिका-गृह की लड़की है। रात को नेता जी की सेवा में होटल में छोड़ी गयी थी। अब मैं इसको वापस लेने के लिए आयी हूँ, तो यह मेरे साथ जाने में आनाकानी कर रही है। आप जरा इसको ऐसी भाषा में समझा दीजिए कि यह सही से समझ जाए ! यह कहीं भाग-भूग गयी, तो हमें जवाब देना भारी पड़ जाएगा !"

"हूँ-ऊँ-ऊँ... !" कहते हुए सिपाही ने रानी की ओर घूरकर देखा और फिर अपने हाथ में पकड़े हुए डंडे से डराते-धमकाते हुए कहा -

"चल, बैठ जा गाड़ी में ! वरना ... !"

अपनी सीमाओं और पुलिस की शक्ति का अनुभव करके रानी चुपचाप निकेतन की परिचारिका के साथ जाकर गाड़ी में बैठ गयी। उन दोनों के गाड़ी में बैठते ही ड्राइवर ने गाड़ी स्टार्ट कर दी। कुछ ही मिनटों में गाड़ी बालिका-गृह के परिसर में जाकर रुकी, तो परिचारिका ने रानी को गाड़ी से उतारकर स्वयं उसके कमरे में पहुँचाया और उसको छोड़ने से पहले कठोर लहजे में हिदायत दी -

"किसी भी तरह की चालाकी दिखाने की या बालिका-गृह छोड़कर भागने की कोशिश की, तो उसका अंजाम भुगतने के लिए पहले से ही तैयार रहना !" रानी ने कोई उत्तर नहीं दिया और चुपचाप जाकर अपने बिस्तर पर लेटकर सुबकने लगी ।

सारा दिन कराहते-सुबकते हुए गुज़र गया । संध्या का झुटपुटा हुआ, तो पिछले दिन-रात की सारी घटना उसकी आँखों में चलचित्र की भाँति एक-एक करके आने लगी । अपने साथ घटित सारी घटना की दोषी स्वयं को मानते हुए आँखों से बहते आँसुओं के साथ उसके होंठों से बार-बार एक ही वाक्य निसृत हो रहा था -

"कल मैंने उस नेता से मिलने की बात नहीं कही होती, शायद मेरे साथ यह सब नहीं होता !"

रोते-रोते रात हो चली थी । रानी अपने दुर्भाग्य कोष ही रही थी, तभी परिचारिका ने आकर कहा -

"चल, खड़ी हो !" उसके आदेश के बारे में रानी कुछ समझ पाती, इससे पहले ही उसने पुनः गरजते हुए कहा -

"वार्डन साहब ने बुलाया है, तुझे !" रानी आदेश का तुरन्त पालन करते हुए उठकर खड़ी नहीं हुई, तो परिचारिका ने उसके ओढ़े हुए कंबल को उठाकर फेंकते हुए उसको घृणापूर्वक झिंझोड़कर कहा -

"चल रही है या मार खाके ही जाएगी !"

रानी अभी पिछली रात की पीड़ा से भी मुक्त नहीं हुई थी । अब और मार खाने की सामर्थ्य उसमें नहीं थी । अतः यह जाने-बूझे बिना ही कि वार्डन साहब ने क्यों ? और कहाँ ? बुलाया है, वह उठकर चुपचाप परिचारिका के पीछे-पीछे चल दी ।

बालिका-गृह के गेस्ट हाऊस पर जाकर परिचारिका ने एक बार डोर बेल बजायी, तो अन्दर से ब्यूटी नाम की एक नवयौवना लड़की ने तुरन्त दरवाजा खोल दिया । ऐसा प्रतीत होता था कि दरवाजे पर खड़ी हुई वह लड़की पहले से ही डोर बेल बजने की प्रतीक्षा कर रही थी । परिचारिका ने उस लड़की से कहा -

"मैडम जी, ले आयी हूँ !"

यह कहकर वह स्वयं पीछे हट गयी और रानी से बोली -

"चल, जा अंदर ! देख नहीं रही, मैडम जी तेरे इंतजार में दरवाजा खोले खड़ी हैं ! बुत बनी हुई यहीं खड़ी रहेगी !"

"हाँ-हाँ, अंदर आओ !" लड़की ने रानी से कहा ।

पहले परिचारिका तथा फिर अतिथि गृह का दरवाजा खोलने वाली लड़की ब्यूटी के कहने के बावजूद रानी भावशून्य मुद्रा में अपनी जगह पर स्थिर खड़ी रही । रानी को यथावत् खड़ी देखकर ब्यूटी ने एक कदम आगे बढ़ाया और रानी का हाथ पकड़कर उसको कमरे के अंदर खींचते हुए परिचारिका को वापिस लौट जाने का आदेश देकर तुरन्त दरवाजा बंद कर लिया । यद्यपि दरवाजा बन्द होने के बाद भी परिचारिका ने कुछ क्षणों तक दरवाजे से सटकर खड़ी होकर अंदर की गतिविधियों का आभास लिया । कुछ समय पश्चात् वह वापस लौट गयी ।

दरवाजा बन्द करके ब्यूटी ने रानी के हाथ में छोट-छोटे दो कपड़े देकर एक छोटे-से कमरे की ओर संकेत करके कहा -

"जा, चेंज करके आ !"

रानी ने अपने हाथ में पकड़े हुए कपड़ों को उलट-पलटकर देखा और चुप खड़ी रही । ब्यूटी ने उसको डाँटकर पुनः कहा -

"सुना नहीं तुझे ? जा जल्दी, चेंज करके आ ! कब तक यहीं खड़ी रहेगी ?"

"ये बहुत छोटे हैं !"

"तू भी तो छोटी है, डीयर ! तू भी छोटी है और कपड़े भी छोटे हैं, इसीलिए तो तुझे पहनने के लिए दिये गये हैं !"

"मैं ऐसे कपड़े नहीं पहनती हूँ !"

"कोई बात नहीं ! आज से पहले तूने ऐसे कपड़े नहीं पहने, पर आज तुझे पहनने पड़ेंगे ! जा, जल्दी चेंज करके आ !" ब्यूटी ने अंतिम वाक्य जोर देकर कड़क स्वर में डाँटते हुए कहा । रानी फिर भी नहीं गयी और भय से काँपने के बावजूद दृढ़ता के साथ वहीं खड़ी रही ।

"ऐसे नहीं जाएगी ! तेरे जैसी बददिमाग लड़कियों को चेंज कराना मुझे अच्छे से आता है !" कहते हुए ब्यूटी ने रानी के बाँए गाल पर एक जोरदार थप्पड़ मारा । थप्पड पड़ते ही रानी की गर्दन टेढ़ी हो गयी और उसके कोमल गाल पर ब्यूटी की उंगलियाँ छप गयी । रानी का बाँया हाथ स्वतः ही अपने गाल पर रक्त छलकाते हुए ब्यूटी की उंगलियों से पड़े हुए निशानों को सहलाने लगा था और उसकी मुख-मुद्रा विकृत होने लगी ।

अपने थप्पड़ का प्रभाव आँकते हुए ब्यूटी ने पुनः कड़ककर कहा -

"चेंज कर रही है या और खुराक दूँ ?"

रानी नहीं चाहती थी कि उसे दूसरा थप्पड़ भी पड़े, इसलिए वह चुपचाप उस कमरे में चली गयी, जिसकी ओर ब्यूटी ने संकेत किया था । रानी ने कपड़े बदलने के लिए अंदर से कमरे का दरवाजा बन्द करना चाहा, लेकिन दरवाजे में कुंडी नहीं थी । वह क्षण-भर तक खड़ी सोचती रही, क्या करे ? अगले ही क्षण ब्यूटी का स्वर पुनः उसके कानों में पड़ा -

"दो मिनट के अन्दर कपड़े चेंज करके बाहर निकल, वरना ... !"

ब्यूटी का कठोर स्वर सुनते ही रानी ने कपड़े बदल लिये ।

क्रमश..