वो आदमी उस चीज को अच्छी तरह से समझ सकता है,जिसने उस चीज को महसूस किया हो और मैंने इस चीज को सिर्फ महसूस ही नहीं किया बल्कि इस चीज को जिया है,उस हर एक पल को उस हर एक लम्हे को इसीलिए मैं इस चीज को आप सबके सामने अच्छी तरह से बयां कर सकता हूं।
मैंने पीछे मुड़ कर देखा तो अजय मोहित और विनय मेरी थोड़ी दूरी पर खड़े थे पर उनके साथ पार्थ नहीं था।अजीब बात थी क्योंकि थोड़ी देर पहले तो वह सब एक साथ पार्क से निकलकर अपने घर की तरफ चले गए थे,फिर यह तीनों वापस क्यों आए हैं और वह तीनों आपस में कुछ बातें कर रहे थे।
'पर क्या यह ठीक रहेगा?' मोहित ने अजय से पूछा।
'तू फिकर मत कर तुझे सिर्फ यही चिंता है ना कि पार्क वाले कुछ कहेंगे तो नहीं, तो सुन मैंने उनसे बात कर ली है और उन्होंने हां भी कर दी है, सिर्फ 10 मिनट की ही तो बात है और अपने दोस्त के लिए तू इतना भी नहीं कर सकता, मैं उसके उन पलों को यादगार बनाना चाहता हूं.......बस' अजय ने विनय और मोहित की तरफ देखते हुए कहा।
'माफ कर दे भाई मैं बस थोड़ा सा डर गया था,तुं फिकर मत कर मैं आगे सब कुछ संभाल लूंगा' मोहित ने अजय से कहा।
'ठीक है, अब अंधेरा हो चुका है और पार्क में भी बहुत कम लोग नजर आ रहे हैं वह थोड़ी देर में यहां आ जाएंगे, इसलिए जल्दी जाकर अपनी जगह ले लो' इतना कहकर वह तीनों अलग हो गए।
अजय वहां से सीधा पार्क के कंट्रोल रूम की तरफ गया और मोहित और भी नहीं Flower Garden के बीचों-बीच आए हुए फाउंटेन की तरफ गए। मैं यह सब कुछ देख रहा था की आखिरकार यह लोग करना क्या चाहते हैं? इसलिए मैं फाउंटेन से थोड़ी दूर आए एक कोने में जाकर बैठ गया,क्योंकि वहां पर ज्यादा रोशनी ना होने की वजह से वह लोग मुझे ठीक से देख नहीं सकते थे।उन दोनों ने पहले जाकर फाउंटेन का पानी बंद कर दिया और फिर फाउंटेन के आसपास कुछ करने लगे पांच 10 मिनट में उन्होंने अपना काम कर दिया और फिर इस फाउंटेन को एक कपड़े से ढक दिया।
'आखिरकार हो गया तूने बाकी का काम तो कर दिया है ना?' विनय ने मोहित से पूछा।
'हां भाई, तू फिक्र मत कर देना बाकी का सब काम कर दिया है....जरा ऊपर तो देख' यह कहकर मोहित ने ऊपर की तरफ इशारा किया।
मैंने ऊपर देखा तो पेड़ के पत्तों के बीच कुछ चीजें कपड़ों से ढकी हुई थी और वह चीजें इस तरह से रखी गई थी कि वहां लोगों को आसानी से ना दिखे, मुझे यह देखकर जरा सा ताज्जुब हुआ कि उन्होंने पेड़ों के बीच में क्या छुपा रखा है?
'पर तू उन सबको निकालेगा कैसे?' आश्चर्य से मोहित को पूछा।
'तू उसकी फिक्र मत कर वह देख मैंने सभी पेड़ों के पीछे एक पतली सी रस्सी छुपा रखी है जैसे ही मैं इशारा करूं तू उसे बस खींच देना?'
'ठीक है....अब जल्दी से जाकर अपनी जगह ले रहते हैं,उन लोगों के आने का वक़्त हो गया है' इतना कहकर वह दोनों अलग-अलग पेड़ों के पीछे जाकर छुप गए।
थोड़ी देर बाद उन्हें पार्थ Fountain की तरफ आता हुआ दिखा।वह थोड़ा सा परेशान लग रहा था,उसके हाथ में Red Rose और एक बैग था। वह Fountain के पास एक बेंच पर आकर बैठ गया,वह कुछ सोचने में लगा हुआ था कि तभी उसकी नजर Fountain पर गई वह सोचने लगा कि 'ईस पर कपड़ा क्यों ढका हुआ है और आज इस में से पानी क्यों नहीं आ रहा?'वह यह सब सोचने में लगा ही था कि उसे सामने से उसकी दोस्त दीप्ति आती हुई दिखाई दी।
दीप्ति को आता हुआ देखकर उसने Red Rose और बैग तुरंत छुपा दिया क्योंकि दीप्ति सामने से गुस्से में चलती हुई आ रही थी,उसे इस तरह से आता हुआ देखकर पार्थ भी थोड़ा सा डर गया इस तरह दीप्ति को भी आता हुआ देखकर वह तीनों चौंकन्ने हो गए। जैसे ही दीप्ति पार्थ के करीब आई वह तुरंत सीधा खड़ा हो गया।
'Hi दीप्ति.....'
'Hi पार्थ तुमने मुझे इस वक्त यहां पर क्यों बुलाया और वहां पर अभी क्या कर रहे थे?'
'मैं......वह मैं....कुछ नहीं....ऐसे ही.....मेरी shoe की लैस ठीक कर रहा था बस।'
'ठीक है अब बताओ जल्दी कि क्या काम है,तुमने क्यों मुझे यहां पर बुलाया बड़ी मुश्किल से पापा ने घर के बाहर आने की परमिशन दी है।'
'अरे....अरे तुम्हें घर जाने की इतनी जल्दी क्यों है? क्या 5 मिनट मेरे साथ रुक नहीं सकती?'
'नहीं....नहीं रुक सकती। क्योंकि आज मैं बहुत Busy हूं।'
'Wow.....तुम्हारा काम आज तुम्हारे दोस्तसे भी ज्यादा Important हो गया?'यह सुनते ही दीप्ति पार्थ को घूरने लगी
'दोस्त मानते हो मुझे।मैं जानती हूं कि तुम ज्यादा मोबाइल यूज नहीं करते हो फिर भी तुम बता सकते हो कि आज क्या है?'
'हां क्यों नहीं..आज का दिन में कैसे भूल सकता हूं और वैसे भी इस चीज के बारे में तो सभी को पता है कि आज होली है।'
पार्थ के मुंह से ऐसा जवाब सुनकर दीप्ति का चेहरा उतर गया,वह उदास हो गई और साथ ही साथ थोड़ा सा गुस्सा भी हो गई।'तुम...... तुम ना बस......'वह कुछ आगे नहीं बोली और पैर पटकते हुए पीछे मुड़कर जाने लगी कि तभी पार्थने उसका हाथ पकड़ लिया।
'Hey....Hey......तुम कहां जा रही हो और इतना गुस्सा क्यों हो? मुझे भी तो बताओ कि मैंने इसमें क्या गलत कहा की आज होली है।'
'क्या तुम्हें वाकई में नहीं पता कि आज क्या है?'
'नहीं मुझे सच में नहीं पता की आज ऐसा क्या है?'
'कैसे पता होगा?क्योंकि खयाल तो उन लोगों का रखा जाता है जिनका लाइफ में कोई इंपॉर्टेंस हो और मैं तो बस.....'दीप्ति आगे कुछ ना बोल पाई और उसकी आंखें थोड़ी सी नम हो गई और वह पीछे मुड़कर जाने लगी कि तभी......
'कैसे पता नहीं होगा.....जो हमारे ग्रुप का इतना Important मेंबर हो और उससे भी ज्यादा जो मेरी एक बहुत अच्छी दोस्त हो तो, तुमने यह सोच भी कैसे लिया की तुम्हारा मेरी लाइफ में इतना Importance नहीं है।माना कि मैं Socially इतना एक्टिव नहीं हूं,पर मुझसे जुड़े सभी लोगों का मैं जरूर खयाल रखता हूं.... सॉरी यार तुम्हारे बर्थडे के दिन ही तुम्हारा दिल दुखाने के लिए..... Happy Birthday'
दीप्ति तुरंत पीछे मुड़ी उसने अपनी आंखों को साफ किया। उसके सामने पार्थ एक बैग लेकर खड़ा हुआ था और उसके चेहरे पर मुस्कुराहट थी दीप्ति बैग देखकर बहुत ही खुश हो गई।
'तुम्हें याद था मेरे बर्थडे के बारे में?'
'कैसे याद नहीं रहेगा, तुम तो मेरी सबसे अच्छी दोस्त हो तो फिर मैं तुम्हारा बर्थडे भूल जाऊं ऐसा हो ही नहीं सकता और सॉरी मैं तुम्हारे साथ बस थोड़ा सा मजाक कर रहा था'
'बस एक दोस्त'
दीप्ति ने पार्थ की आंखों में देखते हुए कहा और पार्थ थोड़ी देर तक कुछ नहीं बोला वह बस एक दूसरे को देखते रहे।आखिरकार दीप्ति ने पार्थ के हाथ में से वह बैग ले लिया।
'जरा मैं भी तो देखूं की तुम मेरे लिए क्या गिफ्ट लेकर आए हो?'इतना बोल कर दीप्ति बैग खोलने लगी गिफ्ट देकर वह चौंके बिना नहीं रह सकी। उसने उसे बैग में से बाहर निकाला जैसे उसने अपना हाथ बाहर निकाला उसके हाथ में एक बहुत ही ब्यूटीफुल नेकलेस था। उसे देख कर एक पल के लिए पार्थ के चेहरे को देखती रही। नेकलेस बहुत ही खूबसूरत था और रोशनी में वह और भी चमक रहा था। उस नेकलेस को देखकर दीप्ति के मुंह से थोड़ी देर तक एक शब्द भी नहीं निकला,वह कभी नेकलेस के सामने देखती तो कभी पार्थ को।
'क्या....हुआ दीप्ति तुम्हें यह पसंद नहीं आया क्या?'
'नहीं ऐसी बात नहीं है,पर तुमने यह इतना सब.....'दीप्ति के मुंह से शब्द नहीं निकल रहे थे।उसे लग रहा था कि वह इतना महंगा गिफ्ट कैसे Accept कर सकती है।'
अब तुम यह मत कहना कि 'मैं इतना महंगा गिफ्ट कैसे ले सकती हूं, तो तुम्हारी जानकारी के लिए मैं बता दूं की,यह गिफ्ट खुद मेरी मॉम ने और मैंने तुम्हारे लिए सिलेक्ट किया है इसलिए तुम्हें इसे Accept करना ही पड़ेगा क्योंकि मेरी मां का दिल दुखे यह मुझे बिल्कुल भी पसंद नहीं है।'
पार्थ एक बिजनेसमैन का बेटा था,उसके लिए यह नेकलेस कोई बड़ी बात नहीं थी। पार्थ के मम्मी पापा भी दीप्ति को और उसकी फैमिली को अच्छी तरह से जानते थे और वह दीप्ति को बहुत पसंद भी करते थे,आखिरकार दीप्ति ने उस नेकलेस को Accept कर लिया क्योंकि वह जानती थी कि पार्थ अपनी मां से कितना प्यार करता है।
'अरे दीप्ति.....जरा इस नेकलेस को पहनकर तो दिखाओ जरा देखूं तो यह नेकलेस तुम पर कैसा लग रहा है'यह सुनकर दीप्ति ने बाकी सब सामान साइड पर रख दिया और नेकलेस को पहनने लगी पर उसे पहनने में जरा दिक्कत हो रही थी पार्थ जरा मेरी मदद तो करो दीप्ति के कहने पर पार्थ उसके पास गया और उसे नेकलेस ठीक से पहना दिया।
जैसे ही नेकलेस पहनकर दीप्ति उसकी तरफ मुड़ी तो पार्थ एक पल के लिए तो पलक झपकना ही भूल गया,दीप्ति बहुत सुंदर लग रही थी और नेकलेस उसकी सुंदरता और भी बढ़ा रहा था 'ऐसा नहीं था कि पार्थ ने पहले कभी दीप्ति को देखा नहीं था पर आज वह कुछ ज्यादा ही सुंदर लग रही थी' पार्थ के मुंह से एक शब्द नहीं निकल रहा था और वह बस उसको देखे ही जा रहा था उसे इस तरह देखकर दीप्ति की हंसी निकल गई।
'हेलो पार्थ........ ऐसे क्या देख रहे हो?क्या मुझे पहले कभी देखा नहीं क्या?' दीप्ति की आवाज सुनकर वह होश में आ गया।
हं....हह.क्या? ऐसा नहीं है पर आज तुम कुछ ज्यादा ही सुंदर लग रही हो पार्थ के मुंह से यह बात सुनकर दीप्ति ने अपनी नजरें शर्म से झुका ली,तभी उसकी नजर उस Red Rose पर पड़ी जो ठीक वहां पड़ा था,जहां पर थोड़ी देर पहले पार्थ बैठा था जिसे देख कर दी थी समझ गई कि यहां जरूर पार्थ लाया होगा जिससे उसके चेहरे पर एक मुस्कुराहट आ गई।
'अच्छा पार्थ...क्या तुम कुछ और भी कहना चाहते हो?' दीप्ति ने पार्थ की तरफ देखते हुए पूछा
'नहीं और कुछ नहीं मैं तो बस तुम्हें बर्थडे विश करने के लिए आया था'
'पक्का कुछ और नहीं कहना तुम्हें'
'बिल्कुल सही मौका है कह दे मेरे भाई' इस तरफ पेड़ों के पीछे छुपा हुआ विनय बोला।
'तुम्हें क्या लगता है कि यह बोल पाएगा अरे जब लड़कियां इसके सामने आती है तो इसकी जुबान खुद-ब-खुद बंद हो जाती है जैसे किसी ने इसके मुंह पर ताला लगा दिया हो' मोहित ने विनय की तरफ देखते हुए कहा।
'हां वैसे तो मैं तुम्हें कुछ कहना चाहता था पर....' इतना बोल कर इधर-उधर देखने लगा।
'पर क्या क्या कहना चाहते थे तुम जल्दी बोलो' दीप्ति ने पार्थ की आंखों में देखते हुए कहा।पार्थ ने दीप्ति की आंखों में देखा,दीप्ति की आंखों को देखकर ऐसा लग रहा था कि जैसे वह जानती हो कि पार्थ क्या कहना चाहता है और वह सिर्फ वह बात सुनना चाहती थी पर फिर भी नर्वसनेस के कारण पार्थ इधर-उधर देखने लगा।
'वह...वह मै तुमसे यह कहना चाहता था की..... की'
'क्या पार्थ?' दीप्ति ने एक बार फिर पार्थ के सामने देखा,जिसके कारण वह और भी डर गया।
'कि आज मौसम कितना अच्छा है ना,जैसा तुम्हें पसंद है'डर की वजह से पार्थ कुछ और बोल गया जिसे सुनकर दीप्ति का भी चेहरा उतर गया।
'हो गया बन्टा ढार... माना कि थोड़ा डर लगता है,पर क्या यह एक लड़की को प्रपोज भी नहीं कर सकता?'मोहित ने भी विनय की तरफ देखते हुए कहा।
'हां लगता है की यह नहीं बोल पाएगा और वैसे भी टाइम निकलता जा रहा है'विनय ने चांद की तरफ देखते हुए कहा 'हमारे पास ज्यादा वक्त नहीं है तू जाकर रस्सी खींच मैं अजय को बता लेता हूं।'
'ठीक है'यह बोलकर वह दोनों अलग हो गए और पेड़ के पीछे छुपाई गई रस्सी के पास पहुंच गए।
पार्थ का जवाब सुनकर दीप्ति थोड़ी नाराज हो गई उसने पार्थ की तरफ देखा जो अभी भी उससे नजरें चुरा रहा था,शायद वह पार्थ की हालत समझ गई थी इसलिए उसने पार्थ से एक बार फिर पूछा।
'क्या तुम सिर्फ यही कहना चाहते हो?पक्का तुम्हें कुछ और नहीं कहना?'दीप्ति ने अपने हाथ से पार्थ का चेहरा अपनी तरफ करते हुए पूछा।
'हां वह मैं तुमसे यह कहना चाहता हूं कि पार्थ अभी कुछ बोलने वाला था की पार्क की सारी लाइट्स अचानक ऑफ हो गई और चारों तरफ अंधेरा छा गया, जिसके कारण पार्क में आए सभी लोग इधर-उधर देखने लगे।
'यह लाइट्स कैसे ऑफ हो गई?'पार्थ ने इधर-उधर देखते हुए कहा पार्क की लाइट्स इस तरह अचानक ऑफ हो जाने की वजह से दीप्ति भी थोड़ा सा डर गई, क्योंकि पार्क में पहले कभी ऐसा नहीं हुआ था।जिसकी वजह से उसने पार्थ का हाथ कसकर पकड़ लिया।
तभी अचानक Fountain पर ढका हुआ कपड़ा हट गया और Fountain किसी बल्ब की तरह चमकने लगा उसकी रोशनी इतनी ज्यादा नहीं थी पर फिर भी Fountain बहुत चमक रहा था,जैसे कोई हीरा सूरज की रोशनी में चमकता हो,उसकी रोशनी चारों तरफ बीखर रही थी। पार्थ और दीप्ति के अलावा सभी लोग इसे देखकर चकित हो गए।
पूर्णिमा की वजह से चांद आसमान में पूरा निकला हुआ था।पार्क की सभी लाइट्स ऑफ हो जाने की वजह से चांद की रोशनी पूरे पार्क में फैल गई थी।चांद का प्रतिबिंब तालाब में पढ़ने की वजह से तालाब ओर भी बहुत सुंदर लग रहा था और ठंडी हवाएं चलने की वजह से यह एक अलग ही आनंद दे रही थी। दीप्ति यह नजारा देखकर चारों तरफ देखने लगी,दीप्ति को कुदरत के इन रूपों को देखने में बहुत आनंद आता था। उसने पार्थ का हाथ छोड़ दिया और फाउंटेन के पास जाकर अपने दोनों हाथों को फैलाकर इन लम्हों का पूरा मजा लेने लगी। क्योंकि यह पल ऐसा था जैसे कोई खुली आंखों से सपना देख रहा हो।
पार्थ भी दीप्ति को इस तरह से देख कर बहुत खुश था,पर उसके मन में यह सवाल भी था कि आखिरकार यह सब किसने किया। क्योंकि यह सब किसी सुंदर सपने से कम नहीं था। दीप्ति आज बहुत खुश थी क्योंकि यह उसके जन्मदिन का सबसे सुंदर गिफ्ट था। उसने आज के दिन के बारे में जो कुछ भी सोचा था उससे कहीं ज्यादा खुशी उसे मिली थी,आज का दिन उसकी जिंदगी का सबसे यादगार लम्हा बन चुका था,जिसे वह शायद ही भुला पाए।
पार्थ अभी तक दीप्ति को ही देख रहा था।दीप्ति चांद की तरफ मुंह करके खड़ी थी, उसकी दोनों आंखें बंद थी और उसके चेहरे पर एक बड़ी सी मुस्कान थी। जैसे वो इस लम्हे को पूरी तरह से जी लेना चाहती हो और इस नजारे को अपनी आंखों में हमेशा के लिए कैद कर लेना चाहती हो। उसके दोनों कान के झुमके और गले का नेकलेस चांद की रोशनी में ओर भी चमक रहा था।
उसने अपनी दोनों आंखें खोली और पार्थ के पास आई।पार्थ अभी कुछ बोलने वाला था कि तभी दीप्ति उसके गले लग गई। पार्थ एक बुत जैसे खड़ा रह गया उसे यकीन ही नहीं हुआ कि आखिर का उसके साथ या क्या हुआ,क्योंकि जो लड़का किसी लड़की से बात करने में शरमाता हो, उसके अचानक ही एक लड़की गले लग जाए तो उसकी क्या हालत होगी। पार्थ को भी अब यह समझ में आ गया था कि दीप्ति आज बहुत खुश है। इसलिए उसने भी अपने दोनों हाथों से दीप्ति को पकड़ लिया।
चांद की चांदनी पूरे पार्क में पूरी तरह से फैली हुई थी ठंडी हवाएं भी धीरे धीरे चल रही थी और तालाब में चांद का प्रतिबिंब देखकर तो ऐसा लग रहा था कि जैसे आसमान से सचमुच में चांद उतरकर धरती पर आ गया हो। पार्थ और दीप्ति में से थोड़ी देर तक कोई अलग नहीं हुआ,दोनों ऐसे ही खड़े रहे।जैसे एक दूसरे में खो गए हो।
आखिरकार दीप्ति पार्थ से अलग हुई उसने पार्थ की आंखों में देखा और कहा,'पार्थ मैं तुमसे कुछ कहना चाहती हूं जो शायद थोड़ी देर पहले तुम कहने वाले थे'आपको भी अब समझ में आ गया था की दीप्ति क्या कहना चाहती हैं।'I love you Parth and Thanks for everything' इतना कहकर उसने अपना सर नीचे झुका दिया।
'1 मिनट रुको तुम जैसा समझ रही हो वैसा कुछ नहीं है' पार्थ ने दीप्ति के चेहरे को ऊपर करते हुए कहा।
'क्या मतलब? क्या तुम मुझसे प्यार नहीं करते?'
'नहीं ऐसी बात नहीं है प्यार तो मैं भी तुमसे बहुत करता हूं पर यह सब कुछ मैंने नहीं किया है'
'तुमने नहीं किया है तो फिर किसने किया यह सब?'दीप्ति ने आश्चर्य से पार्थ की तरफ देखते हुए पूछा।
'हमने किया है यह सब......'दूसरी तरफ से किसी के चिल्लाने की आवाज दोनों को सुनाई दी और दोनों ने अपना चेहरा उस तरफ किया। उन्होंने देखा तो अजय,विनय और मोहित तीनों एक पेड़ के पीछे खड़े थे और वहां पर खड़े-खड़े मुस्कुरा रहे थे। उन तीनों को यहां पर देख कर पार्थ और दीप्ति चौंक गए और एक दूसरे से अलग हो गए। दोनों शर्म के मारे इधर-उधर देखने लगे।
'अरे....अरे इसमें शर्माने की क्या बात है,जो कुछ भी है वह सब तो हम तीनों ने अपनी आंखों से देखा और सुना है'अजय ने उनकी तरह आते हुए कहा। दीप्ति को बहुत शर्म आ रही थी इसलिए वो अपना चेहरा झुकाए खड़ी थी। पार्थ ने दीप्ति की हालत समझ में आ गई,इसलिए उसने तुरंत अजय से पूछा।
'तुम लोग क्या कर रहे हो और तुम सब ने यह सब कैसे और कब किया?'
'ओहोहो.... अभी से भाभी की तरफदारी'अजय ने दीप्ति की तरफ देखते हुए कहा जिसे सुनकर दीप्ति और भी शर्मा गई।
'साले एक लड़की को आई लव यू भी नहीं बोल सकता और शर्म नहीं आती एक लड़की के मुंह से बुलाते हुए'अजय ने पार्थ की तरफ देखते हुए कहा।
'नहीं तुम बात बदलने की कोशिश मत करो तुम पहले यह बताओ कि तुम लोग यहां क्या कर रहे हो?'पार्थ ने फिर अपना सवाल दोहराया।
'ठीक है.....ठीक है बताता हूं,तो सुन जब देढ़ महिने पहले तू और आंटी यह नेकलेस खरीद कर घर में बातें कर रहे थे,तब हम तीनों तुझे बुलाने तेरे घर आए थे और तब हम तीनों ने छिपकर यह सुन लिया था,की तू दीप्ति के बर्थडे के दिन उसे प्रपोज करने वाला है इसलिए हम तीनों ने इस सब की तैयारी पहले से ही कर रखी थी।'
'सालो किसी की बात छुपकर सुनने में शर्म नहीं आती।'
'अच्छा बेटा.... हमें बोल रहा है, तू खुद एक लड़की को Rose देख कर प्रपोज नहीं कर सकता और हमें सलाह दे रहा है'विनय ने जमीन पर पड़ा गुलाब उठाते हुए कहा।
'अबे तू खुद एक लड़की को प्रपोज कर सकता तो हमें यह सब नहीं करना पड़ता और वैसे भी हमने तेरे लिए यह सब थोड़ी ही किया है यह सब तो हमने हमारी दोस्त के लिए किया है।'मोहित ने दीप्ति की तरफ देखते हुए कहा। जिसे सुनकर दीप्ति भी हंसने लगी।
'पर तुम लोगों ने यह सब किया कैसे? कितना सुंदर है यह सब।'दीप्ति ने सब की तरह देखते हुए कहा।
'हां मेरा भी यह सवाल है कि तुम सब ने आखिरकार कैसे किया?'पार्थ ने अजय की तरफ देखते हुए पूछा।
'वह देखो हमने पेड़ों के ऊपर Mirrors छिपा रखे हैं, जिससे रोशनी उससे टकराकर Fountain की पर पड़ती है और ऐसे 1-2 नहीं पर कई सारे हैं इन सब Mirrors को हम तीनों ने ऐसे लगाया था कि जैसे यह लोगों की नजरों में ना आएं'
'और ईन सबकी तैयारी हमने अभी नहीं बल्कि 1 महीने पहले पिछले पूर्णिमा के दिन की थी,भाईई.... इन सब को ठीक जगह पर रखने में बहुत मेहनत लगी है'विनय नहीं ऊपर की तरफ देखते हुए कहा।
'और पूरे Fountain पर हमने Sliver का Cover लगा रखा था जिससे वह चमकने लगे और पार्क वालों से हमने लाइट्स ऑफ करने के बारे में बात कर ली थी'मोहित ने Fountain की तरफ इशारा करते हुए कहा।
'कुछ ज्यादा ही फिल्मी नहीं हो गया यह सब' पार्थ ने तीनों की तरफ देख कर मुस्कुराते हुए कहा।
यह सुनकर तीनों ने पार्थ को पकड़ लिया और उसे मस्ती में मारने लगे। 'साले एक तो तेरे लिए इतनी मेहनत की और तू हमें शुक्रिया बोलने की बजाय नौटंकी कर रहा है, तू देख इन सब की सफाई तुझसे ही करवाता हूं'अजय ने उसे मारते हुए कहा।
'अरे..सोरी... सोरी..सोरी... दीप्ति बचाओ मुझे प्लीज'पार्थ ने दीप्ति की तरफ देखते हुए कहा जो उसे देख कर मुस्कुरा रही थी।
'मैं क्यों तुम्हें बताऊं इन सब ने इतना खूबसूरत तोहफा दिया है,तो फिर तुम इन्हें शुक्रिया कहने की बजाय ऐसा कह रहे हो।ठीक है मैं तो जा रही हूं घर....क्योंकि बहुत देर हो चुकी है बाय...'इतना कहकर दीप्ति वहां से चली गई।
'उम्मीद मत रखना दीप्ति क्योंकि कल तक यह जिंदा नहीं बचेगा'अजय ने उसे मारते हुए कहा।
'कमीनों अब तो बस करो'पार्थ ने हांफते हुए कहा और उन तीनों ने उसे मारना बंद कर दिया। 'शुक्रिया यारों हम दोनों के लिए इतना सब कुछ करने के लिए'इतना बोल कर चारों एक दूसरे के गले लग गए। उन चारों को देख कर मेरे चेहरे पर भी मुस्कान आ गई। मेरे चलते हुए पार्क से निकल गया। अंधेरा हो चुका था और रात के करीब 8:00 बज रहे थे।
मैं चलते चलते जंगल के रास्ते की तरह बढ़ा। यहां पर दिन में लोगों की काफी चहल-पहल रहती थी, पर रात को यहां पर बहुत कम लोग दिखाई देते थे। यह रास्ता जंगल के बीचो-बीच बनाया गया था, इसकी दोनों तरफ घने पेड़ थे यह सब पर इतने घने थे कि ऊपर से एक दूसरे को टच करते थे, जिसकी वजह से दिन में भी सूरज की काफी कम रोशनी यहां पर पड़ती थी।
मैं उन पेड़ों के बीच में से चलते हुए आगे बढ़ने लगा।यह जंगल वाकई में बहुत खूबसूरत था,चांदनी रात में इसकी सुंदरता और भी ज्यादा बढ़ जाती थी। चारों तरफ झींगुर उड़ रहे थे, जमीन पर पत्ते गिरे हुए थे और कहीं जगह पर घास उगी हुई थी। केतन को इसलिए यह जगह बहुत पसंद थी, मुझे आज भी वह दिन याद है जब वह मुझे पहली बार यहां पर लेकर आया था।
'वाह यार कितनी खूबसूरत है यह जगह...' मैंने चारों तरफ अपनी नजर घुमाते हुए कहा।
हम जहां पर खड़े थे वहां से पूरा जंगल दिखाई देता था, यहां से खड़े होकर कुदरत की खूबसूरती का नजारा देख सकते थे। जंगल के बीचों-बीच नदी बहते हुए आगे शहर से मिलती थी।यह ऐसी जगह थी जहां से Sunrise और Sunset देख सकते थे और सामने खूबसूरत पहाड़ दिखाई देते थे,जैसे हम कोई Hill Station पर आ गए हो।
'मुझे पता था तुझे यह जगह जरूर पसंद आएगी इसीलिए मैं तुझे यहां पर लेकर आया हूं। जब मैं थोड़ा परेशान होता हूं या बोर होता हूं तब मैं इस जगह पर आ जाता हूं।मुझे यहां आकर बहुत सुकून मिलता है, क्योंकि यहां पर और कोई नहीं बल्कि सिर्फ मैं अपने साथ होता हूं।'
'सच में यार बहुत खूबसूरत जगह है यह।वैसे तुझे इस जगह के बारे में कैसे पता चला?'
'एक बार शहर से दूर चलते चलते मैं इस तरफ आ गया था,तब तो यह रास्ता भी नहीं बना था और मैं यहां पर पहुंच गया। तभी मुझे इस जगह के बारे में पता चला।यह जगह मुझे बहुत पसंद है, क्योंकि यहां पर ना तो किसी की चहल-पहल है,ना ही शोर-शराबा और ना ही इंसानों की नकली बनावती दुनिया। बस इस कुदरत के खूबसूरत रूप का एक एहसास है,क्योंकि उन सब की तरह पैसो के पीछे भागना मुझे पसंद नहीं है। मैं जिंदगी को लंबी नहीं बड़ी बनाना चाहता हूं,जहां पर मैं कभी मुड़ कर पीछे देखूं तो मुझे खुशी मिले।'
मैं उसके चेहरे को मुस्कुराते हुए देखता रहा, क्योंकि उसने जो बात कही थी वह बिल्कुल सच थी।हम दोनों आपस में बातें कर रहे थे कि तभी हमें पीछे से किसी के आने की आवाज सुनाई दी।हम दोनों ने पीछे मुड़कर देखा तो चौंक गए क्योंकि पीछे कीर्ति खड़ी थी।
कीर्ति हमारी क्लासमेट थी और हम सब की बहुत अच्छी दोस्त थी। वह उनके मां बाप की वह एकलौती बेटी थी।वह एक Funny Nature की लड़की थी और फिर भी बहुत कम लोगों से बात करना इसे पसंद था, जैसे अपनी ही दुनिया में रहती हो। एक दिन किसी Subject की वजह से केतन के साथ इसकी बातचीत शुरू हुई और फिर धीरे-धीरे हम सब भी इसके दोस्त बन गए।वह आते ही केतन पर बरस पड़ी।
'कहां गए थे तुम दोपहर से, किसी को कुछ बताया भी नहीं, पता है मुझे तुम्हारी कितनी फिक्र हो रही थी' यह सुनकर केतन उसे देखता ही रह गया उसने मुस्कुराकर मेरी तरफ़ देखा।
'वैसे एक बात पूछूं तुमने इसकी इतनी चिंता क्यों रही थी?' मैंने मुस्कुराते हुए उसे पूछा।
'वह मेरे कहने का मतलब था कि हम सबको तुम्हारी चिंता हो रही थी और तुम क्या हंस रहे हो मैं कब से तुम्हारा मोबाइल ट्राई कर रही थी तुम्हारा फोन क्यों Switch Off है और केतन भी अपना फोन घर पर बुलाया है।'
मैंने अपना मोबाइल निकाल कर देखा तो वह सच में Switch Off था 'ओह सॉरी मेरे फोन की बैटरी डेड हो गई होगी'
'केतन की मॉम को उसकी बहुत फिक्र हो रही थी, इसलिए मैं तुम दोनों को ढूंढते हुए यहां पहुंच गई'
'वैसे एक बात पूछूं तुम्हें कैसे पता कि हम दोनों यहां पर आए हैं?मैंने तो इस जगह के बारे में किसी को भी नहीं बताया'केतन ने उससे पूछा।
'वो जब 1 दिन में यहां से गुजर रही थी तब मैंने तुम्हें यहां पर देख लिया था, इसलिए मुझे लगा कि शायद तुम यहीं कहीं होगे और मैं तुम्हें ढूंढते ढूंढते यहां पर पहुंच गई अब चलो काफी रात हो गई है और सब लोग तुम्हारी चिंता कर रहे होंगे'
आखिरकार में वहां पर पहुंच गया,पर मैंने देखा तो उस जगह पर पहले से ही कोई लड़की बैठी हुई थी, मेरे आने की आवाज सुनकर वह पीछे मुड़ी, जैसे ही उसने मेरी तरफ देखा मैं उसे देखता ही रह गया क्योंकि वह कीर्ति थी।हम सबकी कॉलेज खत्म होने के बाद किसी Office Issues के चलते वह अपनी फैमिली के साथ कहीं और चली गई थी पर आज अचानक वहां पर मेरे लिए किसी बड़े झटके से कम नहीं था।
'तुम यहां पर कैसे? कब?' मैंने उससे पूछा तो उसने मुस्कुरा दिया।
वह पहले से काफी बदल गई थी। कॉलेज के दिनों में वह हमारी बात बात पर टांग खींचतीं थी,ट्यूशन क्लासेस में भी हमारी हंमेशा उसे से बहस होती थी हम लोगों को सताने का वह कोई भी मौका नहीं छोड़ती थी,पर फिर भी वह हमारी सबसे अच्छी दोस्त थी। किसी को हंसाना उसे बखूबी आता था।
हम सबके साथ रहना उसे पसंद था,वह किसी छोटी लड़की की तरह थी। हमेशा खुश रहना और हंसते रहना शायद उसकी आदत थी।कोई ऐसी प्रॉब्लम हो जिसका जवाब उसके पास ना हो ऐसा कभी नहीं होता था इसलिए हम उसे Solution Girl भी कहते थे।मैं उसके पास जाकर बैठ गया, वो जंगल की तरफ देख रही थी।
'तो तुम कब शहर में वापस आई और मुझे बताया भी नहीं'
'अभी 2 दिन पहले ही इस शहर में आई हूं इसलिए तुम्हें नहीं बताया'
मुझे यह देखकर बहुत आश्चर्य हो रहा था कि इसे अचानक से यह क्या हो गया है जैसे यह वह कीर्ति नहीं है जिसे मैं जानता हूं,क्योंकि वह हमेशा बातें किया करती थी पर आज इतनी शांत होकर बैठी है जैसे यह कीर्ति नहीं पर इसका कोई बुत हो माना कि कई साल बाद लोग थोड़ा बदल जाते हैं पर कीर्ति इतना बदल जाएगी मैंने कभी सपने में भी नहीं सोचा था'
'क्या हुआ कीर्ति क्या बात है? सब ठीक तो है तुम इतनी शांत क्यों हो?'
'हां सब ठीक है पर तुम यह सवाल क्यों पूछ रहे हो?'
'नहीं मेरा मतलब पहले तो तुम बहुत बातें किया करते थे तुम्हारा मुंह बंद रखना हम में से किसी के बस की बात नहीं थी,पर तुम इतनी शांत होकर बैठी हो मैंने कभी सोचा भी नहीं था कि तुम इतना बदल जाओगी'
'वक्त के साथ इंसान को बदलना ही पड़ता है क्योंकि वह ऐसे पल दिखाता है जो शायद आपने कभी सपने में भी नहीं सोचा हो' उसने यह बात किस तरह कई कि मैं उसे देखता ही रह गया।
'क्या मतलब?'
'कुछ नहीं....और बताओ कैसे हैं बाकी सब?'
'बहुत टाइम हो गया है सब से मिले हुए बस फोन और मैसेज इस पर ही बात होती है बाकी तो सब ठीक है'हम दोनों कुछ देर तक वहां बैठ कर बातें करते रहे फिर वहां से निकलकर होली के दर्शन करके अपने अपने घर की तरफ चल पड़े। जैसे ही घर में घर पहुंचा मां मेरा इंतजार कर रही थी। मैं हॉल में से चलते हुए अपने कमरे की तरफ पड़ा।
'कहां गया था शाम से? और अपना फोन भी नहीं ले गया'
'सॉरी मां वह बस थोड़ा घूमने के लिए निकल गया था'
'अच्छा ठीक है चल खाना खा ले'मुझे भूख तो नहीं थी पर जो मैंने खाना खाने के लिए मना कर दिया तो मां नाराज हो जाएगी इसलिए मैंने थोड़ा सा खा लिया।
'अच्छा सुन कल हम सबको तुम्हारे सर के घर पर जाना है,शाम को जब तू घर पर नहीं था तब वह कहने के लिए आए थे,उन्होंने अपने दूसरे घर में Festival Celebration के लिए बुलाया है'
सब के जाने के बाद मैंने होली का त्योहार कभी ठीक से नहीं मनाया था और इस साल भी मेरा बिल्कुल भी मन नहीं था। पर मुझे एक बात समझ में नहीं आ रही थी कि Abhi के बिना सर ने यह Celebration क्यों रखा है?
'क्या सर ने बताया कि Abhi आने वाला है या नहीं?'
'नहीं Abhi तो इस साल भी नहीं आने वाला'
मेरा मन फिर उदास हो गया क्योंकि इस साल भी वह सब नहीं आने वाले हैं,इसलिए मेरा मन वहां पर जाने का बिल्कुल नहीं था,पर सर की बात को मना भी नहीं कर सकता था क्योंकि उन्होंने हमें एक Student की तरह नहीं पर किसी बेटे की तरह हमारा ख्याल रखा था।
D.M Rathod उनके बारे में मैं क्या ही लिखुं एक Dynamic Personality वाले इंसान।जिन्होंने हम में से कभी किसी में अंतर नहीं किया।उनकी कही हर बात सीधी दिल को छू जाती है। हम सबकी प्रॉब्लम्स को हमेशा समझने वाले, हम सबका सर की तरह नहीं बल्कि एक दोस्त की तरह साथ देते और सभी Students को Mentally और Financially हमेशा मदद करते थे। एक Simple Person, अभिजीत के पिता और हमारे Tution Classes के Sir।
कॉलेज ट्यूशन के वह 3 साल मेरी लाइफ का गोल्डन टाइम है क्योंकि हर दिन को एक Special day बना देते थे।इसलिए हम में से कोई भी एक दिन भी मिस नहीं करता था उनका Knowledge में भी कोई मुकाबला नहीं था। एक तरह से यूं कहूं तो कि मैं आज जो कुछ भी हूं सब उन्हीं की वजह से।
मैंने अपने कमरे में जाकर अपना बैग खोलकर उनमें से एक Album निकाला। उस Album को लेकर अपने बेड पर लेट गया और उसका पहला पेज खोला।उसमें हम सभी की सर के साथ एक फोटो थी उस Album में मैंने अपनी उन दिनों की सभी यादें तस्वीरों के रूप में कैद कर ली थी।
इस एल्बम में 'कॉलेज हो या ट्यूशन,पाक हो या पिकनिक,मूवी हो या रेस्टोरेंट,फेस्टिवल हो या बर्थडे' उन सभी की तस्वीरें इसमें मौजूद थीं। आज भी याद है जब सबने Resturant में जाने का प्लान बनाया था पर मैंने end time पर मना कर दिया उसके बाद जो सब ने सुनाया पूछो मत...., अभी के बर्थडे के दिन देर रात तक उसको जगा कर परेशान करना, या फिर सर के बर्थडे का सरप्राइस, मूवी थिएटर की मस्ती, या बाइक राइड की मजा। वह सब यादें है मैंने इसमें रखी थी। इस Album को देखकर वो सब पल मेरी आंखों के सामने तैरने लगे।
मैंने Album बंद किया और पानी पीने के लिए किचन की तरफ बढ़ा। पानी पीकर मैं अपने रूम की तरफ बढ़ रहा था,तो मैंने सामने देखा तो दो बैग्स पड़े हुए थे,मैं जैसे ही उसकी तरफ बढ़ने वाला था कि तभी पीछे से किसी ने मेरा गला पकड़ लिया।