अन्जान रिश्ता - 3 in Hindi Fiction Stories by suraj sharma books and stories PDF | अन्जान रिश्ता - 3

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अन्जान रिश्ता - 3

तभी कुछ ऐसा हुआ जिसने सबको और भी ज्यादा झंझोलकर रख दिया ।।।
दादी ने सोचा ये डॉक्टर से ठीक होने वाली बीमारी नहीं है, ये सोचकर दादी ने घर में फकीर बाबा को बुलाना चाहा और सबको कहने लगी कि अगर शादी अच्छी से करना है तो पहले रानी को फकीर बाबा को दिखाना होगा!।
रानी की मां ने बहोत कोशिश की सबको रोकने की पर भगवान को कुछ और ही मंजूर था, सबने मिलकर फैसला किया कि आज घर पर गांव के बाहर वाले फकीर बाबा को बुलाया जाए।।
फकीर बाबा।। इसी का इन्तज़ार तो कर रही थी रानी, पर क्यों? क्या रिश्ता है रानी का उस फकीर से? दादी फकीर बाबा को गुरु मानती थी, दादी को लगता था कि उनके घर की सारी परेशानी फकीर बाबा ही हाल कर सकते है,
दोस्तो कहानी के बीचमे कहने के लिए क्षमा चाहता हूं, पर कहना चाहता हूं कि " भगवान पर विश्वास करना सही बात है पर बाबाओं पर अंधविश्वास करना बहोत गलत"
और ये ही गलती दादी ने की।।। आगे जानते है कैसे…….
बाबा को घर पर आने का बुलावा भेजा गया पर घर वालो की बदकिस्मती थी कि बाबा गांव से बाहर गए हुए थे और ३-४ दिन बाद आने वाले थे, सबने सोचा ये तो बहोत बड़ी परेशानी है क्यों की २ दिन बाद शादी है और अगर शादी में कुछ गडबड हुई तो अच्छा नहीं होगा।।
आज हल्दी कि रात थी फिर नाच गाने का प्रोग्राम चल रहा था, शोर था.
दादी-" क्या कर रहे हो बच्चो? वो हल्दी तुमरे लिए नहीं है, चलो भागो यह से।।
रानी चुपचाप मां के गोदी में बैठकर सब देख रही थी, मा बेटी बाते कर रहे थे ।।देख गुड़िया जब तू भी बड़ी हो जाएगी ना तुझे भी ऐसी हल्दी लगाएंगे, फिर तेरी शादी होगी"
"नहीं, मां मुझे नहीं जाना आपको पापा को छोड़कर
"बेटी जाना तो पड़ेगा, हर लड़की जाती है, मै भी आई अपना घर छोड़कर, दादी भी आई" सब लोग उनकी बाते सुन रहे थे ।। और रानी के बचपन की नासमझ पर मुस्कुरा भी रहे थे।। तभी रानी ने अपनी गुड़िया के मुंह के पास खुदके कान लगाए और ज़ोर ज़ोर से हसने लगी,
मां ने पूछा क्या हुआ बेटी, रानी बोली मां, गुड़िया कुछ बोल रही है ।। सारे बच्चे हस पड़े, दादी भी तेवर दिखाती हुए बोली, पागल हो गई की री छोरी, गुड़िया भी कभी बतयाती है क्या।।
हां मेरी गुड़िया बोलती है, मुझसे बात करती है..
पापा ने कहा "अच्छा क्या बोल रही है गुड़िया?"
"वो बोल रही है की अब फकीर फ़िर कभी नहीं आएगा," और रानी फिर जोर से हसने लगी..
सब जैसे हक्केबक्के रह गए, दादी ने सोचा जब फकीर को बुलाने की बात हो रही थी तब रानी तो रूम में सो रही थी फिर उसे कैसे पता फकीर …..
सबका नाच गाना फिर रुक गया सबने सोचा रानी ने बात करते हुए सुन लिया होगा, अब जैसे जैसे रात शाम को अपने आगोश मै ले रही थी वैसे वैसे सबको पिछले रात की रानी की बाते याद आने लगी…सब उस से दूरी बनाने लगे और रानी फिर कहने लगी कल अमावस्या है दादी, कल जुलाई की दूसरी अमावस्या की रात ..आपको याद तो होगी ही, अपना पुराना हिसाब जो चुकाना है। ये सुनकर तो मानो दादी जैसे समझ गई कि रानी क्या कहना चाहती है, दादी चिल्लाते हुए भागी "नहीं।। ये नहीं हो सकता, ऐसा कैसे हो सकता है"? और दादी ने खुदको रूम में बंद कर दिया…
रानी भी ज़ोर से चिल्लाने लगी "भागती कहा हो दादी, कल की रात आपकी आखरी रात होगी"
क्या होना वाला है कल? ....