Ye Dil Pagla kahin ka - 9 in Hindi Love Stories by Jitendra Shivhare books and stories PDF | ये दिल पगला कहीं का - 9

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ये दिल पगला कहीं का - 9

ये दिल पगला कहीं का

अध्याय-9

धीरज को एक लम्बा मेडीकल इलाज कराने की सलाह दी गई। डाॅक्टर ने जो परहेज बताये वह भी धीरज की आनंदमय जीवन को रसहीन बनाने के लिए पर्याप्त थे। इन सब के बाद भी धीरज पिता बन सकेगा इस बात की कोई ग्यारंटी नहीं थी।

"धीरज! यह सत्य है कि विवाह के बाद परिवार बढ़ाने की आवश्यकता होती है। तुम्हारे पौरूष में कमी के कारण यह एक कठिन कार्य है। शादी के बाद हम दोनों में इस विषय को लेकर मनमुटाव होना स्वाभाविक है।" कैटरीना बोल रही थी।

धीरज कैटरीना की बातें कुछ-कुछ समझ रहा था।

"इससे बेहतर है कि तुम पहले मेडीकली अच्छी तरह से ठीक हो जाओ! हम तब ही शादी करे तो यह हम सभी के लिए अच्छा होगा।" कैटरीना ने स्पष्ट किया।

कैटरीना की स्पष्ट वादिता से धीरज परिचित था। वह यह भी जानता था कि यदि वह विवाह के लिए कैटरीना पर जोर दे तब कैटरीना शादी करने के लिए तैयार भी जायेगी किन्तु दोनों के वैवाहिक जीवन में शायद फिर वह मधुरता नहीं रहेगी। उसे संजना की याद आ गई। जैसे उसने संजना को उसके मां न बन सकने के कारण छोड़ दिया था, ठीक उसी तरह कैटरीना धीरज को पिता न सकने के कारण छोड़ रही थी। धीरज ने कैटरीना को अपने सभी रिश्तों से स्वतंत्र कर दिया। उसके मन में दुःख के स्थान पर पश्चाताप के भाव उभर आये। वह संजना के पास लौटना चाहता था किन्तु उसमें इतनी हिम्मत नहीं थी। समुद्र किनारे लहरों को आते-जाते हुए धीरज देख रहा था। आज बहुत दिनों के बाद वह यहां आया था। संजना के साथ वह अक्सर यहां आया करता था। इतने में संजना उसे सामने से आते हुई दिखाई दी। धीरज संजना को अपने निकट आते देख चौंककर खड़ा हो गया।

"संजना तुम!" धीरज ने कहा।

"हां धीरज मैं!" संजना धीरज के सम्मुख आकर बोली।

"तुम्हें क्या लगा! मैं तुम्हें यूं ही आसानी से भुल जाऊंगी।" संजना बोली। संजना को धीरज के ब्रेकअप के विषय में सबकुछ पता चल गया था। वह यह भी जान चूकी थी कि धीरज अब कभी पिता नहीं बन सकेगा।

"मुझे माफ कर दो संजना! मैंने तुम्हारे साथ जो किया वही मेरे साथ हुआ है।" धीरज भावुक हो गया।

संजना ने धीरज को गले लगा लिया। दोनों की आंखें नम थी।

"मैं नहीं जानती धीरज, मेरा प्रेम सच है या झूठ! मगर इतना अवश्य जानती हूं कि तुम्हारे सिवा मेरे हृदय में न पहले कोई था और अब कोई है। परिस्थिति चाहे कूछ भी हो, तुम ही मेरा पहला प्यार थे और आगे भी रहोगे। हम मिलकर फिर से नई शुरुआत करेंगे।"

संजना ने कहा।

"मगर संजना! संतान के बिना वैवाहिक जीवन का क्या औचित्य?" धीरज ने चिन्ता जताते हुए कहा।

"अपनी संतान को तो सभी पाल-पोसकर बढ़ा करते धीरज! मगर किसी दुसरे की संतान को अपनाने का साहस कुछ विरले लोग ही दिखा पाते है।" संजना ने हल सुझाया।

"तुम्हारा मतलब•••?" धीरज बोलते-बोलते रूक गया।

"हां धीरज! हम अनाथ आश्रम से बच्चा गोद लेंगे। और उसे अपने जन्म लिए बच्चे की ही तरह पाल पोसकर बढ़ा करेंगे।" संजना ने स्पष्ट किया।

धीरज समझ गया। उसने संजना को हृदय से लगा लिया। आज उसे पता चल गया कि संजना से अधिक प्रेम उससे कोई और नहीं कर सकता। दोनों ने शादी कर ली। जल्द ही वे बेबी निहारिका को अनाथाश्रम से घर लाये। अब उनका परिवार पुर्ण हो चूका था।

अब बारी थी हिमाचल प्रदेश के प्रदेश के शिमला की--

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*आ*स्था वेट चेकिंग मशीन पर खड़ी थी। बहुत हिम्मत जुटाकर उसने नीचे मशीन द्वारा प्रदर्शित आंकड़ों को देखा। वह 88 किलो वजन दिखा रही था। इतना पसीना बहाने के बाद भी उसका वजन कम नही हुआ था। उसे मशीन की विश्वसनीयता पर संदेह हो चला। 28 की उम्र में इतना बढ़ा हुआ शारीरिक वज़न वह पचा नहीं पा रही थी। आस्था के बढ़ते वजन के कारण उसकी शादी होने में परेशान खड़ी हो गई थी। कंचन देवी अपनी बेटी के विवाह न होने के कारण चिंतित थी। मोहल्ले में आस्था की हमउम्र सहेलियां एक-एक कर विदा हो चूकी थी। यहां तक की आस्था की छोटी बहन मोहिनी का विवाह भी हो चूका था। पुरा परिवार आस्था के लिए चिंतित था। आस्था ने दोनों समय के भोजन की मात्रा में भारी कटौती की थी। सुबह-शाम व्यायाम और योगा भी आरंभ कर दिया था। आस्था के भाई भोला ने ऑनलाइन वजन कम करने का इलेक्ट्रॉनिक कमर बेल्ट मंगवा दिया। दिन भर आस्था उसे पहने रहती। उसके पिता ओंकार द्वारा आस्था के लिए ग्रीन टी आरंभ कर दी। वे स्वयं इस बात का ध्यान रखते की आस्था नियमानुसार ग्रीन टी पी रही है या नहीं। पंतजली के घरेलु आयुर्वेदिक प्राॅडक्ट का घर में अम्बार लगा रहता। वजन कम करने का उपाय जहां से भी देखने-सुनने को मिलता, परिवार सदस्य आस्था के लिए अवश्य आजमाते। इन सबके बाद भी आस्था का वजन कम होने का नाम ही ले रहा था। भोला के लिए शादी के रिश्ते आने लगे थे। भोला शादी हेतु तैयार था किन्तु वह चाहता था कि उसकी और आस्था की शादी एक ही मंडप में हो। आस्था नैन नक्श से सुन्दर थी मगर मोटापे के कारण उसे विवाह हेतु सभी ओर से अस्वीकृति मिल रही थी। कंचन देवी कोई भी पारिवारिक विवाह परिचय सम्मेलन में अनुपस्थित नहीं रहती। समाज के प्रत्येक निमंत्रित कार्यक्रम में वह आस्था को ले जाना नहीं भुलती। वहां वो रिश्तेदारों से आस्था के विवाह के विषय में बातचीत जरूर करती। समाजिक आयोजनों में आये विवाह योग्य युवकों को आस्था के बारे बताती। आस्था के फोटो पर मोहित होने वाले युवक आस्था को प्रत्यक्ष देखकर असहमती देने में विलंब नहीं करते। संपूर्ण समाज में आस्था का विवाह न होना एक आम चर्चा का विषय बन चूका था। मिश्रा परिवार आस्था के विवाह को एक मिशन के समान स्वीकार कर चूके थे। हर दुसरे-तिसरे दिन आस्था को देखने वाले लड़के आया करते। समाज के बंधनों को दरकिनार कर ओंकार मिश्रा ने अन्य समुदाय में भी आस्था के लिए वर ढूंढने आरंभ कर दिये थे। आस्था कठपुतली के समान अपने माता-पिता और भाई के वचनों का अक्षरशः पालन कर रही थी। घण्टों की भुख प्यास सहना और जमकर व्यायाम करना उसकी दैनिक दिनचर्या हो गयी थी। आस्था अपने से अधिक वजनी और आयु के पुरूष के साथ भी विवाह करने के लिए तैयार थी। क्योंकि पास-पड़ोस और नाते-रिश्तेदारों के कड़वे वचन तो वह सह लेती मगर उसके परिवार के सदस्यों ने जब उसके मोटापे को लेकर खरी-खोटी सुनायी तब वह विचलित हो उठी। उसे गहरा सदमा लगा। ओंकार मिश्रा भी अब आस्था को ताने मारने से चूकते नहीं थे। मां कंचन देवी अपने पति को समझाती अवश्य थी किन्तु झल्लाकर कभी-कभी वे भी आस्था पर बरस पढ़ती। भोला ने यह कहकर सभी को चौंका दिया कि वह आस्था के विवाह होने तक नहीं रूक सकता। उसने अपनी मंगेतर नीता से तुरंत विवाह करने का दबाव बनाया। भोला की जिद के आगे ओंकार मिश्रा को झुकना पड़ा। भोला और नीता का विवाह बड़ी ही धूमधाम से सम्पन्न हुआ। विवाह के संपूर्ण क्रियाकलापों के संपादन के समय भी आस्था सभी मेहमानों की नज़र में थी। नीता को शरीर से मोटी और अधिक आयु की ननद स्वीकार नहीं थी। वह चाहती थी कि आस्था किसी तरह घर से चली जाये। नीता और आस्था की तु-तु मैं-मैं, मिश्रा परिवार में अशांति का एक अन्य प्रमुख कारण बनकर उभरा। धैर्य का बांध जब टुटा तब आस्था ने घर पर रहने के बजाय नौकरी कर स्वयं को व्यस्त करने में ही भलाई समझी। नीता को भी सांत्वना मिली। दिनभर आस्था ऑफिस में रहती, जिससे दोनों का आमना-सामना कम ही होता। फलतः दोनों के बीच होते आये दिनभर के झगड़ों में भारी कमी आई। आस्था को आज हेल्थ जिम्म जाने की बहुत जल्दी थी। हेल्थ जिम में पाॅवर लिफ्टिंग का आयोजन था। सुबह-सुबह बड़ी संख्या में महिला-पुरुष जिम में एकत्रित हो रहे थे। भारी-भरकम शारीरिक वज़न की महिला पहलवानों को देखकर आस्था को असीम सांत्वना मिली। जब महिला पहलवान अपने वजन से अधिक वजनी वस्तु उठाती तो यह दृश्य देख रहे दर्शक तालियां बजाकर उनका अभिनन्दन करते। आस्था को अपने लिए उम्मीद की किरण दिखाई दी। सैकड़ो की संख्या में उपस्थित लोग महिला पहलवानों को बधाई दे रहे है। आस्था उन महिला पहलवानों से व्यक्तिगत मिली। बिल्कुल उन्हीं की तरह तो थी आस्था भी। इनमें से कुछ महिला पहलवान शादीशुदा और बाल-बच्चेंदार थी। उन्हें देखकर आस्था को तनिक भी अनुभव नहीं हुआ की ये महिलाएं अपने मोटापे से परेशान है। अपितु वे भी अन्य युवतियों की भांति अपने विवाह पुर्व और पश्चात जीवन को आनंद से व्यतीत कर रही है। लोगों ने जिसे उनकी कमजोरी समझा, इन्होनें उसे ही अपनी शक्ती बना ली। ये महिलाएं विश्वभर में जाकर खेलों में भागीदारी कर देश दुनियां में नाम रोशन कर रही है। ऐसा नहीं था कि आस्था जिन परिस्थितियों से गुजर रही थी, ये स्थितियां उनके साथ घटित न हुई हो। महिला खिलाड़ियों से व्यक्तिगत वार्ता में आस्था ने जाना की उनमें से अधिकतर महिला पहलवानों को आरंभ के दिनों में अपने मोटापे के कारण कितनी परेशानियों का सामना करना पड़ा। ओलम्पिक और अन्य क्षेत्रीय खेलों को टीवी पर और अखबारों में महिलाओं की सक्रिय भागीदारी देखकर उन्हें भी इस दिशा में अपना कॅरियर बनाने की प्रेरणा मिली। परिवार के सहयोग और मित्रों के उत्साह वर्धन से राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय खेलों में ढेरों पदक जीतकर अपना और देश का गौरव बढ़ाया। कुशल प्रशिक्षण और मासिक खान पान की खुराक में निश्चित ही बड़ी राशी व्यय हो जाती, जो परिवार के सहयोग के बिना संभव नही था। आस्था की आंखों में चमक आ गई। वह मन ही मन भारोत्तोलक खिलाड़ी बनने का निश्चय कर चूकी थी। मिश्रा परिवार कतई नहीं चाहता था कि आस्था भारोत्तोलक खिलाड़ी बने। स्वयं आस्था के माता-पिता ने आस्था का कढ़ा विरोध किया। भोला ने भाईगिरि दिखाकर उसका जिम जाना बंद किये जाने के भरसक प्रयास किये। किन्तु आस्था अपना लक्ष्य निर्धारित कर चूकी थी। उसे अपने लक्ष्य के अलावा कुछ नहीं दिख रहा था। अर्द्धरात्रि के समय जब ओंकार मिश्रा ने अपनी बेटी आस्था को व्यायाम करते हुये देखा, तब उनका मन आस्था के प्रति नर्म हुये बिना नहीं रह सका। कंचन देवी और भोला भी आखिरकार आस्था के दृढ़ संकल्प के आगे नतमस्तक हो गये। आस्था को नौकरी से इस्तीफा देने के लिए ओंकार मिश्रा ने मना लिया। अब आस्था पुरे समय वेट लिफ्टिंग का अभ्यास किया करती। कंचन देवी ने आस्था के लिए बादाम पिस्ता युक्त दुध की नियमित व्यवस्था कर दी। भोला अपनी वेतन में से बहन की गरिष्ठ खुराक के लिए मासिक अंशदान नियम से देने लगा। आस्था का विरोध करना दुबली-पतली और छरहरी काया की नीता के वश में न था। आस्था की बलिष्ठ भुजाओं द्वारा स्वयं के वजन से अधिक का भार उठाते देख नीता का कंठ सूख जाता। आस्था के व्यवहार में असीम आत्मविश्वास झलकने लगा। उसके परिश्रम की प्रथम परिक्षा आ ही गई। 90 किलोग्राम की आस्था ने 104 किलोग्राम का भार उठाकर जिला स्तरीय भारोत्तोलन प्रतियोगिता में स्वर्ण पदक जीतकर इतिहास रच दिया। इसके साथ ही राज्य स्तरीय भारोत्तोलन प्रतियोगिता में आस्था ने प्रवेश पा ही लिया। आस्था के कदम अब रूकने वाले नहीं थे। राष्ट्रीय भारोत्तोलन प्रतियोगीता में स्वर्ण पदक हासिल कर आस्था राष्ट्रीय चेहरा बन गई। मीडिया जगत ने उसे हाथों-हाथ लिया। आस्था के चर्चे प्रसारित होने लगे। पांच वर्ष के कढ़ी मेहनत रंग लाई। आस्था ओलंपिक के लिए क्वालीफाई हो गई। आस्था ने देश और दुनियां को दिखा दिया कि शरीर का मोटापा किसी भी लक्ष्य को प्राप्त करने में बाधक नहीं होता। आज आस्था बहुत सी युवतियों की आईडियल बन चूकी थी।

अगली कहानी पश्चिम बंगाल के कोलकाता से आयी-

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"*ले* किन आप मुझसे ही शादी क्यों करना चाहते है? आप स्मार्ट है, वेल सेटल है, आपको मुझसे भी बेहतर लड़की मिल जायेगी?" शिखा ने कहा।

निर्मल मुस्कुरा रहा था। वह बोला- " आपने जो कहा वो सत्य है। आपके इन्कार के बाद भी मेरी पहली पसंद आप ही है।"

शिखा की स्पष्ट वादिता और निडर स्वभाव ने निर्मल को बहुत प्रभावित किया था। तब ही तो पुर्व में शिखा की विवाह हेतु अस्वीकृति जानते हुये भी निर्मल ने अपने हृदय की बात शिखा को बताना उचित समझा।

"शिखा, आपने अपने मन की बात मुझे पुर्व में बताई थी। इसलिए मैं अपने मन की बात आपको बताने आया हूं।" निर्मल ने काॅफी का कप टेबल पर रखते हुये कहा।

"किन्तु मुझे लगता है कि मेरी असहमती ही काफी है, हमारे भावि रिश्ते को यही पर समाप्त करने के लिए?" शिखा मुखर थी।

क्रमश..