यूँ ही राह चलते चलते
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तभी संजना ने आवाज दी ‘‘आंटी इधर आइये देखिये कितना अद्भुत दृश्य है ।’’
चारों फोटोग्राफी छोड़ कर उस गैलरी से बाहर खुले स्थान पर गये। वहाँ सच ही अवर्णनीय दृश्य था। चारों ओर बर्फ ही बर्फ थी ।यहाँ तक कि आकाश से भी बर्फबारी हो रही थी। जब वो सब वहाँ पहुँचे तो कुछ देर भी वहाँ खड़ा होना मुश्किल हो रहा था हाथ बिल्कुल सुन्न हो गये थे। आँखे पलकों पर बर्फ गिरने से बन्द हुई जा रही थी।
कुछ ही क्षणेां में उस बर्फबारी का सामना करना कठिन हो गया और एक-एक कर सभी लोग छत के साये की ओर भागने लगे। पर मन था कि तृप्त ही नहीं हो रहा था, उन्हे बाहर की ओर खींच रहा था। कुछ देर में फिर वो सब फिर बाहर थे। अनुभा वापस छत के नीचे बन्द हाल में आ गई, पर उसका मन वहाँ कहाँ लग रहा था, वह फिर बाहर चली गई । सच तो यह था कि बन्द में छत के नीचे जाने का मन किसी का नहीं हो रहा था । जब ठंडक सहनशक्ति से बाहर हो जाती तो लोग अंदर बंद में चले जाते, पर फिर हाथ रगड़ कर हाथों को सामान्य कर लेते तो फिर बाहर आ जाते और बर्फ में बैठ कर फोटो खिंचवाते और बर्फ के ढेर उठा कर फेंकते। क्या बच्चे क्या युवा और क्या बुजुर्ग सभी ने अपने मन के बच्चे को आज पूरी स्वतंत्रता दे दी थी मनमानी करने की । ठीक भी था यह दुर्लभ अवसर जीवन में दोबारा तो संभवतः कुछ ही भाग्यषाली लोगों को मिलता। बहुत देर बर्फ में रहने से अनुभा के हाथ नीले पड़ने लगे। एक दूसरे से रगड़ने के बाद भी वो सामान्य नहीं हो रहे थे। चंदन की दृष्टि पड़ी तो उसने विक्स देते हुये कहा ‘‘आंटी ये लगा लीजिये तो ठीक हो जाएगा।’’
अनुभा ने विक्स लगाया तो वास्तव में सुन्न और नीले हो गये हाथ, सामान्य हो गये, अनुभा बोली ‘‘मुझे पता होता कि विक्स से आराम मिलता है तो मैं भी ले आती।’’
‘‘इट्स ओके आंटी मैं हूं ’’न चंदन ने हँसते हुये कहा। अनुभा को चंदन पर ममता आ गई, उसने मन ही मन सोचा ‘कितने अच्छे हैं ये दोनो बच्चे सभी के काम आते हैं।’तभी रजत भी आ गये, उनके हाथ भी नीले हो रहे थे अनुभा ने चंदन से ले कर उन्हे भी विक्स लगाने को दी।
कुछ देर को यशील अंदर आ गया तभी वान्या भी आयी वह ठंड के कारण हाथ झटक रही थी, यशील चंदन से विक्स ले कर वान्या के हाथ में रगड़ने लगा। अनुभा ने मुड़ कर देखा यशील उसके हाथ मे विक्स रगड़ रहा था और वान्या मुग्ध भाव से उसे निहार रही थी, पर अचानक अनुभा को देखते पा कर उसने अपने हाथ वापस खींच लिये।
सच तो यह था कि अनुभा को अच्छा नहीं लगा क्यों वह तो यह माने बैठी थी कि यशील अर्चिता के प्रति आकर्षित है और संभवतः उत्तर भारत की होने के कारण अनचाहे ही उत्तर दक्षिण की गुटबाजी की शिकार हो गई थी और अपरोक्ष रूप से वह भी यही चाहती थी कि यशील अर्चिता से ही दोस्ती करे। उसकी दृष्टि अर्चिता को ढूँढने लगी, पता नहीं इस समय वह कहाँ होगी।
कुछ ही देर में यशील फिर से बाहर बर्फबारी का आनंद लेने चल दिया, वहाँ यशील और अर्चिता एक दूसरे पर बर्फ के गोले बना कर फेंक रहे थे।मिसेस चन्द्रा अपनी बेटी के खेल को देख कर आनन्दित हो रही थीं। तभी वान्या भी बाहर आ गयी । दूर तक बर्फ में दौड़ लगाती वान्या ने आवाज दी ’’ कम आन यशील एन्ड चन्दन इट्स आसम हेअर ।’’
यशील ने मुड़ कर देखा और वान्या को बर्फ में इतनी दूर जाते देख कर उसने कहा ‘‘अच्छा तो तुम इतनी दूर तक चली गई। रुको मैं तुमसे भी दूर जाकर दिखाता हूँ ।’’
अर्चिता को तो ये बाधा खल गई उसने यशील को रोकते हुये कहा ‘‘यशील उधर मत जाओ वहाँ रिस्क है ।’’
‘‘कम आन अर्चिता वान्या वहाँ जा सकती है तो मैं क्यों नहीं, मैं तो कहूँगा तुम भी आओ’’ पर अर्चिता वहाँ कैसे जाती वहाँ वान्या जो थी।
वान्या और यशील दूर दूर तक फैली बर्फ पर दौड़ते जा रहे थे, वान्या आगे आगे दौड़ती हुई चिल्ला रही थी ‘‘फालो मी ’’
यशील भला कैसे न मानता उसका चैलेंज, वह भी पूरा प्रयास कर रहा था उसे पकड़ने का, पर जब वह और आगे जाने लगी तो उसने कहा ‘‘ वान्या आगे मत जाओ’’
वान्या हँस कर बोली ‘‘तुम हार गये ।’’
तभी अचानक वान्या का पाँव फिसला और वह ढलान पर नीचे की ओर फिसलने लगी यशील चिल्लाने लगा ‘‘ हेल्प हेल्प’’।
पर अपनी-अपनी मस्ती में डूबे सब इतना शोर कर रहे थे कि उसकी आवाज कोई सुन नहीं पा रहा था।
तभी यशील ने देखा कि संकेत वान्या के पीछे बर्फ में पाँव जमाते हुए गया और इससे पहले कि वह आगे खाई तक फिसलती उसे थाम लिया। अब तक वहाँ बर्फ में खेल रहे सभी लोग इस दुर्घटना को देख कर वहाँ आ चुके थे और साँस रोके संकेत के इस साहस पूर्ण काम को देख रहे थे। एक बार वान्या का हाथ संकेत के हाथ में आया तो वान्या वहीं थम गई और थरथराते हुए संकेत का हाथ कस कर थाम कर उसके सहारे से खड़ी हो गयी । कुछ क्षण तो उसे सामान्य होने में लगा । संकेत ने उसकी पीठ थपथपा कर उसे सँभाला और सहारा दे कर ऊपर लाया।
जब वह सबके पास आया तो सबने उसे हाथों हाथ लिया। श्री मातोंडकर ने तो उसे गले लगा लिया ।लता जी जो अब तक वहाँ आ चुकी थीं और पूरी स्थिति जान चुकी थी, के तो आँसू ही नहीं रुक रहे थे इतनी देर में वह अपने सभी आराध्य से विनती कर चुकी थीं । वह आगे बढ़ीं और वान्या के बजाए संकेत को गले लगा कर रो पड़ीं ।
‘‘ थैंक्स बेटा आज तुम न होते तो पता नहीं मेरी बेटी का क्या होता’’लता जी ने कहा।
श्री मातोंडकर बोले ‘‘ आय एम प्राउड आफ यू माई ब्वाय ।’’
तब तक सुमित भी आ गये थे सब कुछ ठीक देख कर उनकी साँस में साँस आयी। उसने हाथ जोड़ कर कहा‘‘ प्लीज हमारी रिक्वेस्ट है आप लोग इतना एडवेंचर नहीं करें ’’ मैंने आप से कहा था कि आप लोग सावधान रहें’’ और एक बोर्ड दिखाते हुए कहा ‘‘ ये देखिये यहाँ साफ-साफ लिखा है कि इधर पास में ही रहें फिर भी आप लोग इतनी दूर चले गये।’’
श्री मातोंडकर ने यशील को देख कर कहा ‘‘ यू आर सो इरिसपांसेबल ।’’
यशील कहना चाहता था कि वान्या पहले गयी थी और वह तो उसके कहने पर आगे बढ़ा था बल्कि वह उसे इतना आगे जाने से रोक भी रहा था, पर इस परिस्थिति में उसने चुप ही रहना श्रेयस्कर समझा ।
वान्या को इससे पहले संकेत के प्रति किये गये अपने व्यवहार पर लज्जा आ रही थी, उसने उसके पास जा कर उसका हाथ थाम कर सच्चे मन से कहा ‘‘ संकेत आय एम रियली सारी, उस सब के लिये जो मैंने अब तक तुम्हारे साथ किया। ’’
संकेत ने उसका हाथ थपथपा कर कहा ‘‘ वो सब भूल जाओ, मैं भी भूल गया। ’’
वान्या ने कहा ‘‘ मैं तुम्हे थैंक्स कह कर तुम्हारे अहसान को कम नहीं करूँगी’’। वान्या अभी भी जो हो सकता था उसकी भयावहता से उबर नहीं पायी थी। आज संकेत सबकी प्रशंसा का पात्र बन गया था।
रामचन्द्रन ने कहा ‘‘चलो अंत भला तो सब भला ।’’
यशील अपराधी सा एक ओर खड़ा था, अर्चिता ने उसके पास आ कर कहा ‘‘ तुम क्यों गिल्टी फील कर रहे हो तुम तो उसे आगे जाने से रोक रहे थे। ’’
यशील ने उदास हो कर कहा ‘‘ हाँ पर सब तो मुझे ही दोषी समझ रहे हैं न ।’’
‘‘ नहीं मैं तो जानती हूँ कि इसमें तुम्हारा कोई दोष नहीं ’’अर्चिता ने कहा ।
‘‘ हम्म’’ कह कर यशील ने लम्बी सास भरी।
‘‘ मैंने पहले ही कहा था कि उधर रिस्क है ’’ फिर बोली ‘‘ तुम तो मुझे भी बुला रहे थे अच्छा हुआ मैं नहीं गयी नहीं तो मुझे कौन बचाता ।’’
यशील इस समय वान्या को बचाने न जाने और संकेत के चले जाने से अपराध बोध अनुभव कर रहा था अतः उसे अर्चिता का यह कहना कि ‘ उसे कौन बचाता’ चुभ गया, उसने कहा ‘‘मैं इतना स्वार्थी नहीं हूँ कि खड़ा रहता, वो तो संकेत पहले आ गया तो मैं रुक गया ।’’
अर्चिता ने इस उद्देश्य से नहीं कहा था, वह तो इस अपेक्षा से कह रही थी कि यशील कहे कि तुम्हें तो मैं बचाता ।उसने कहा‘‘ नहीं नहीं तुम क्यों जाते संकेत उनका पुराना बचपन का दोस्त है उसी को जाना चाहिये था, देखा नहीं उस दिन तुमसे कैसे लड़ा था। ’’
यशील चुप ही रहा ।
सचिन ने कहा ‘‘किसी को पता है समय क्या हो रहा है?’’
वहाँ उपस्थिति कई लोगो ने एक साथ घड़ी पर दृष्टि डाली और संजना तो लगभग चीख पड़ी ‘‘ओ माई गाड दो बज गया। ’’
निमिषा ने कहा ‘‘अभी तो हमे शाहरुख खान के साथ फोटो खिंचवानी है ।’’
‘‘क्या शाहरुख खान आया है क्या यहाँ ’’ मीना ने उत्साहित हो कर पूछा।
संजना हँस पड़ी ‘‘ अरे आपने देखा नहीं आइस पैलेस से पहले कुछ कट आउट लगे हैं उनके साथ खड़े हो कर फोटो खिंचवाने के लिये, उसी में शाहरुख खान का भी है, ये उसी की बात कर रहा है। ’’
निमिषा और सचिन भी हँस पड़े । मीना खिसिया गई। सब लोग नीचे उतर कर उस जगह पर गये जहाँ कई प्रसिद्ध लोगों के आदमकद कट आउट लगे थे । उनके साथ पोज बना बना कर फोटो खिंचवाने की होड़ लग गई।
अन्ततः सुमित को बुलाने आना ही पड़ा, अन्यथा कोई जाने के मूड में नहीं था। सबने जंगफ्रो स्टेशन पर बने रेस्ट्रां में शानदार भेाजन का आनंद उठाया । कुछ लोगों ने वहीं पर बनी एक दुकान से स्मृतिचिन्ह उपहार आदि लिये और जंगफ्रो को बाय-बाय कर लौट पड़े।
लौटते में एक सुंदर सा शहर इन्टरलेकेन पड़ा जो दो झीलों के मध्य बसा है, इसी लिये इसका नाम इन्टरलेकेन पड़ा। वहाँ का मौसम बहुत सुहावना था । इसके चारों ओर पहाड हरियाली है जहाँ पर ग्लाइडिंग स्कींग़ आदि होता है यह सुन कर यषील ने कहा ‘‘ क्या हम लोग ग्लाइडिंग भी करेंगे?’’
अर्चिता ने ताली बजाते हुए कहा ‘‘ वाउउउउ’’।
सुमित ने सबकी आकांक्षाओं पर पानी फेर दिया और कहा ‘‘ हम लोगों के पास इतना समय नहीं है बस हम आपको यहा की कुछ दुकाने दिखा देंगे जहा से आप चाहें तो कुछ शापिंग वगैरह कर सकते हैं।’’
इस बारे में सारे मतभेद भूल कर सभी महिलाएं आश्चर्यजनक रूप से एकमत थीं कि उन्हे अपने परिजनों के लिये बहुत सारी शापिंग करनी है।इन्टरलेकेन स्विस चाकुओं के लिये प्रसिद्ध है अतः यहाँ सभी ने स्विस चाकू नेलकटर आदि खरीदे। अनुभा और रजत की खरीदारी समाप्त हो गई थी अतः जहाँ पर सुमित ने सबसे मिलने के लिये कहा था वहाँ वो उधर टहल रहे थे कि अनुभा ने कहा ‘‘ रजत देखिये कितना सुंदर दृश्य है ’’।
रजत भी उस स्थान को देख कर प्रभावित हुए बिना न रह सके ।वह एक कुर्साल नामक कैसीनो था, जिसके बाहर सुन्दर फूलों की क्यारियां थीं और फव्वारा था जो निश्चय ही एक अत्यन्त सुन्दर स्थान था फोटो सेशन के लिये। फिर क्या था थोड़ी देर में एक-एक कर सभी लोग वहाँ आ जुटे और फिर एक बार कैमरे पर कैमरे क्लिक होने लगे।
क्रमशः----------
अलका प्रमोद
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