Mahamaya - 22 in Hindi Moral Stories by Sunil Chaturvedi books and stories PDF | महामाया - 22

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महामाया - 22

महामाया

सुनील चतुर्वेदी

अध्याय – बाईस

संत निवास में गद्दे पर लंबे पैर कर दीवार से सिर टिकाये निर्मला माई बैठी थी। नीचे कालीन पर आलथी-पालथी लगाये जग्गा बैठा था। उसने दोनों हाथों से निर्मला माई के दोनों पंजों को पकड़ रखा था। उन दोनों के बीच बातचीत चल रही थी।

‘‘तुम मुझे अपनी सेवा में लगा लो’’

‘‘कौन, कब किसकी सेवा में रहेगा यह बाबाजी तय करते हैं’’ निर्मला माई ने जवाब दिया।

‘‘तो तुम बाबाजी से क्यों नहीं कहती?’’

‘‘हमारे कहने से क्या होगा। निर्णय तो बाबाजी को करना है’’

‘‘और बाबाजी तुम्हारी बात टाल नहीं सकते’’

‘‘यही सबको भ्रम है’’ निर्मला माई ने लम्बी साँस छोड़ते हुए कहा।

‘‘मुझे बेवकूफ मत बनाओ। सब जानते हैं कि तुम बाबाजी की खास हो।’’ जग्गा अपनी जिद पर अड़ा हुआ था।

‘‘कौन खास है यह सिर्फ बाबाजी ही जानते हैं। कोई दूसरा जान भी नहीं सकता।’’

‘‘बहाने मत बनाओ। सीधे-सीधे क्यों नहीं कहती कि तुम मुझे अपने साथ नहीं रखना चाहती।’’ जग्गा ने निर्मला माई के दोनों पंजों को छोड़कर अपने हाथ पीछे जमीन पर टिका दिये।

‘‘जग्गा तुम्हे अभी अंदर की बहुत सी बातें पता नहीं है। यह सही है कि राधा के आने के पहले मैं खास थी। मेरे पहले रोमा दीदी। कौन जाने राधा कितने दिन खास रहेगी।’’ निर्मला माई ने आगे की ओर झुकते हुए कहा।

जग्गा जवाब में कुछ कहने ही जा रहा था कि अखिल और अनुराधा ने कमरे में प्रवेश किया। दोनों को यूँ अप्रत्याशित रूप से कमरे में घुसते देख निर्मला माई सकपका गई। फिर तत्काल उन्होंने अपने आपको संभालते हुए जग्गा के सिर पर बड़े ही लाड़ से हाथ फिराया और कहने लगी -

‘‘निर्मला माई है न। फिर तुझे किसी भी बात की चिन्ता।’’

‘‘बस आपका आशीर्वाद बना रहे’’ जग्गा ने नाटकीयता से निर्मला माई के पैरों को छूते हुए कहा।

‘‘खूब मौज करो। शाम को मिलने आओ तो डेयरी मिल्क चाॅकलेट लेते आना’’ निर्मला माई अब पूरी तरह सहज हो चुकी थी।’’

‘‘जी जरूर’’ कहते हुए जग्गा कमरे से बाहर हो गया।’’

जग्गा के जाते ही अखिल ने उत्सुकता से पूछा

‘‘आपको चाॅकलेट पसंद है माई’’

‘‘सन्यासी की कोई पसंद या नापसंद नहीं होती।’’

‘‘पर माई आपको चाॅकलेट पसंद है। मैंने आपको कईं बार चाॅकलेट खाते देखा है।’’ अनुराधा ने मुस्कुराते हुए कहा।

भगवान को भी भक्त के वश में रहना पड़ता है। फिर सन्यासी की क्या बिसात। भक्त भी सन्यासियों को भी कोई न कोई लत लगवा ही देते हैं’’ कहते हुए निर्मला माई मुस्कुरा दी।

‘‘मतलब सन्यासी भक्त की लत छुड़वाते-छुड़वाते खुद ही लत लगा बैठता है’’ अखिल ने चुटकी ली।

अखिल की बात सुनकर निर्मला माई और अनुराधा दोनों हँस पड़ी। फिर निर्मला माई ने गंभीर होते हुए कहा-

‘‘भक्त की लत और सन्यासी की लत में अंतर होता है। सामान्य व्यक्ति को यदि एक बार सुख सुविधा वाला जीवन जीने की आदत हो जाय फिर उसे वो सुविधाएँ ना मिले तो वो दुखी हो जाता है। लेकिन सन्यासी दोनों ही स्थितियों में निस्पृह रहता है। मिला तो आनन्द और ना मिला तो भी आनन्द।’’

‘‘आपके अंदर कोई राग-द्वेष या ईच्छा पैदा नहीं होती?’’ अखिल ने जिज्ञासु की तरह पूछा।

‘‘शुरू-शुरू में परेशानी होती है। चित्त विचलित होता है। वासनाएँ ध्यान में जाने से रोकती है। लेकिन बाबाजी जैसा गुरु हो तो सब कुछ ठीक हो जाता है। मैं अपने अनुभव से कह सकती हूँ कि समाधि को उपलब्ध हो जाने के बाद राग-द्वेष, ईच्छा-अनिच्छा, वासनाएँ शेष नहीं रह जाती है’’ निर्मला माई ने जवाब दिया।

‘‘कुछ तो शेष रहता ही होगा माई’’ अनुराधा ने संदेह प्रकट किया।

‘‘हाँ रहता है.......आनन्द ......’’ कहते-कहते निर्मला माई के चेहरे पर दिव्य मुस्कान तैर गई।

अनुराधा मौन रही। अखिल की आँखों में श्रद्धा का भाव था।

‘‘माई आज आपसे मिलकर बहुत अच्छा लगा’’ अखिल ने दोनों हाथ प्रणाम की मुद्रा में जोड़ते हुए कहा।

‘‘आया कीजिए......आप तो हम लोगों से बात ही नहीं करते सिर्फ बाबाजी और अपनी दोस्त के साथ व्यस्त रहते हैं।’’ निर्मला माई ने अपनी अंतिम बात अनुराधा की ओर देखते हुए कही।

अनुराधा ने माई की इस बात पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी। वह मौन रही। अखिल ने सकुचाते हुए कहा -

‘‘नहीं माई ऐसा कुछ नहीं है। अब मैं आपसे रोज मिलने आया करूँगा.....।’’

अखिल अभी अपनी बात पूरी भी नहीं कर पाया था कि राधा माई ने कमरे में प्रवेश करते हुए कहा-

‘‘वाह माई, अखिल और अनुराधा आये हैं और आपने हमें बुलाया भी नहीं। हम तो समझ रहे थे कि जग्गा होगा। इसलिये अपने कमरे में बैठे रहे।’’

‘‘ये लोग अभी-अभी आये हैं...... मैं आपको बुलाने ही वाली थी’’ निर्मला माई ने थोड़ा झेंपते हुए कहा।

राधा माई भगवा लहंगा-चुन्नी पहने हुए थी। उन्होंने बालों को ऊपर की ओर लपेटकर जूड़ा बनाया था। हाथों और जुड़े में मोगरे की वेणी लिपटी हुई थी। निर्मला माई के पास गद्दे पर बैठते हुए राधा माई ने अखिल को संबोधित किया -

‘‘लेखक महोदय, बाबाजी आपकी इतनी तारीफ करते हैं कि हमें आपसे ईष्र्या होने लगी है’’

अखिल ने विनम्रता के साथ जवाब दिया-

‘‘ये तो बाबाजी का स्नेह है’’

‘‘कुछ बात तो है। वरना बाबाजी किसी की तारीफ नहीं करते हैं।’’

‘‘माताजी अब आप मुझे शर्मिन्दा कर रही हैं’’ अखिल को संकोच महसूस हो रहा था।

‘‘हाँ सच में राधा तुमसे बहुत इम्प्रेस है’’ निर्मला माई ने राधा माई के समर्थन में कहा।

‘‘बिलकुल हम हैं’’ कहते समय राधा माई सन्यासी नहीं बल्कि काॅलेज में पढ़ने वाली बोल्ड लड़की की तरह दिखायी पड़ रही थी। फिर उन्होंने अनुराधा की ओर देखते हुए कहा।

‘‘और अनुराधा तुम तो अपने इस नये दोस्त के साथ इतनी मशगूल हो कि हम लोगों को भूल ही गई।’’

‘‘नहीं ऐसा नहीं है आप गलत समझ रही हैं’’ अनुराधा असहज महसूस कर रही थी।

‘‘अनुराधा ये तो सही है। बाबाजी भी कल यही कह रहे थे’’ निर्मला माई ने भी चुटकी ली।

‘‘आप लोगों को पता नहीं क्या गलतफहमी हो रही है’’ अनुराधा के चेहरे पर झुंझलाहट थी।

‘‘गलतफहमी नहीं मेडम सहीफहमी है। अपने दोस्त से आपने हमें मिलवाया ही नहीं। इन्हें हम आपसे छिन तो नहीं लेती।’’ राधा माई मजाक के मूड में थी।

‘‘मैंने अखिल को मिलने से नहीं रोका’’ अनुराधा ने सपाट स्वर में कहा।

‘‘हमने कब कहा कि तुमने रोका। पर तुमने मिलवाया भी तो नहीं’’ राधा माई ने तपाक से जवाब दिया।

‘‘अरे अब यह लड़ाई-झगड़ा खतम करो। राधा माई आप जितना चाहो अखिल से मिल लो। अनुराधा आपको नहीं रोकेगी। इस बात की ग्यारंटी हम लेते हैं’’ निर्मला माई ने बात को दूसरी ओर मोड़ने की गरज से कहा।

‘‘आप बीच में ग्यारंटी क्यों लेंगी। मैं तो अनुराधा से ही ग्यारंटी लूँगी। अनुराधा मेरी दोस्त है माई’’ कहते हुए श्रद्धा माता गादी से उठी और नीचे कालीन पर अनुराधा के पास आकर बैठ गई।

चारों बहुत देर तक बातें करते रहे। माहौल अब हल्का हो चुका था।

इसी बीच वानखेड़े जी ने कमरे में प्रवेश किया। आप सब यहाँ हँसी-मजाक कर रहे हैं। वहाँ समाधि खुलने का वक्त हो रहा है। आप लोगों को इस समय समाधि स्थल पर होना चाहिए। बाबाजी को पता चलेगा तो वो नाराज होंगे’’ उनके स्वर में नाराजगी का भाव था।

‘‘बस समाधि स्थल पर ही जा रहे है’’ निर्मला माई कहते हुए उठ खड़ी हुई। उनके साथ राधा माई, अनुराधा और अखिल भी उठ खड़े हुए और चारों समाधि स्थल की ओर चल दिये।

समाधि स्थल पर संकीर्तन ध्यान शुरु हो गया था। ‘ऊँ नमः शिवाय’ की स्वर लहरियाँ समाधि स्थल के आस-पास गूंज रही थी। समाधि के बिल्कुल नजदीक फर्श पर, कुछ गद्दे डालकर उन्हे सफेद चादर से ढका गया था। इन गद्दों पर श्रीमाता के पास ही दोनों माताएँ, अखिल और अनुराधा बैठ गये। चारों ने हाथ जोड़कर आँखें बंद कर ली। समाधि के नजदीक खड़े नीलू महाराज एक हाथ में माइक थामें लगातार भक्तों को समाधि खुलने के समय की सूचना दे रहे थे। जग्गा फिल्म बनाने आये ग्रेगर और उसकी टीम के साथ कंधे पर विडियो कैमरा टांगे शूटिंग में व्यस्त था। कौशिक , जसविंदर बैरिकेट्स के नजदीक खड़े लोगों पर नजर रखे हुए थे.... तभी साध्वी कुसुम कंधे पर थैला टांगे भीड़ को चीरते हुए समाधि स्थल के नजदीक आ गई। साध्वी कुसुम बड़बड़ा रही थी।

‘‘इतनी भीड़ है। यहाँ क्या कोई तमाशा हो रहा है। अरे एक योगी ने समाधि ली है। उसे शांति से समाधि में रहने दो। नहीं.... लोगों को हर बात में रस चाहिए। अब देखो ना, इन लोगों ने समाधि को भी मनोरंजन बना लिया है। हाहा ऽऽ ही ही ऽऽ। हंसी ठट्ठा, ये सब हो रहा है यहाँ।

जो लोग समाधि स्थल के करीब बैठे थे। वह साध्वी कुसुम की ओर देख आनन्द लेने लगे। पीछे बैठे लोगों को समझ में नहीं आ रहा था कि आखिर चल क्या रहा है। साध्वी ने कौशिक की ओर देखते हुए कहा।

‘‘एईऽऽ कौशिक जी, जरा इधर आईये प्लीज‘‘

‘‘हाँ माई क्या प्राॅब्लम है‘‘ कौशिक ने साध्वी कुसुम के पास आते हुए कहा।

‘‘जरा हमारा थैला पकड़िये। कितने जंगली लोग हैं। निकलने भी नहीं देते‘‘ साध्वी कुसुम ने अपना थैला पीठ से उतारकर कौशिक को थमाते हुए कहा।

‘‘ज्यादा हल्ला-गुल्ला मत करो माई। चुपचाप निकल आओ।‘‘ कौशिक ने साध्वी कुसुम का थैला हाथों में लेते हुए कहा।

साध्वी कुसुम आगे आकर अनुराधा के पास बैठ गई। फिर थोड़ी ही देर में उसे अपने थैले का ध्यान आया।

‘‘एइऽऽ कौशिक जी‘‘

‘‘अब क्या है माई‘‘

‘‘मेरा थैला‘‘

‘‘यहीं रखा रहने दे कोई लेके नहीं भाग रहा।‘‘

‘‘एक बार विश्वास करके देख लिया...... अब मैं किसी पर विश्वास नहीं करती। लाइये मेरा थैला वापस दीजिये।‘‘

‘‘दे दे यार कौशिक जी जब तक इसका थैला इसको नही मिल जायेगा ये चुप ना बैठेगी‘‘ जग्गा ने कैमरा निर्मला माई पर फोकस करते हुए कहा।

कौशिक ने साध्वी कुसुम को थैला लौटा दिया। थैला लेकर साध्वी कुसुम फिर से अनुराधा के पास बैठ गई।

समाधि स्थल पर अब जोर-जोर से संकीर्तन ध्यान होने लगा। तीनों माताएँ, अखिल, अनुराधा, साध्वी कुसुम, खप्पर बाबा सभी उच्च स्वर में ‘ऊँ नमः शिवाय’ का जाप कर रहे थे। मैदान में बैठे लोग दोहरा रहे थे।

मैदान खचाखच भरा हुआ था। आज भी लोग छतों, छज्जों और-पेड़ों पर चढ़ कर समाधि खुलने का इंतजार कर रहे थे। संतु महाराज का स्वर माइक पर फिर सुनायी दिया-‘‘समाधि। खुलने में बस। आधा घंटा शेष बचा है।

इसी बीच बाबाजी ने वानखेड़े जी , सारिका, किशोरीलाल जी और अन्य तीन-चार लोगों के साथ समाधि स्थल पर प्रवेश किया। बाबाजी को देखते ही लोग महायोगी......महामंडलेश्वर की जय घोष करने लगे। बाबाजी ने एक हाथ आशिर्वाद की मुद्रा में ऊपर उठाया फिर चारों तरफ घूमकर वहाँ उपस्थित जन समुदाय को आशिर्वाद प्रदान किया।

क्रमश..