बस नमक ज़्यादा हो गया
- प्रदीप श्रीवास्तव
भाग 3
थाने की हर महिला एम्प्लॉई को वह अपनी रखैल समझता था। सबको उसने कोई ना कोई नाम दे रखा था। ऑरिषा को वह उसके गोरे रंग के कारण चुनौटी कहता था। हर समय लिमिट क्रॉस करने का प्रयास करता था। एक बार फिर से वह कॉलेज और प्रशिक्षण सेंटर की तरह यहां भी सभी लेडीज स्टॉफ की सिक्युरिटी सील्ड बन गई। इंस्पेक्टर उससे दोस्तों की तरह बात करता था। हंसी-मजाक के बहाने कभी-कभी बहुत ही आगे बढ़ने का प्रयास करता था। कहता, ‘तू मेरी चुनौटी, मैं तेरा सुर्ती, दोनों को रगडे़ंगे तो खूब मजा आएगा।’ ऐसे समय में वह यह भूल जाती थी कि वह उसका सीनियर है।
वह बिंदास होकर गाली बकती हुई कहती, ‘अबे घर वाली चुनौटी संभाल नहीं तो कोई दूसरा सुर्ती रगड़ के मजा ले लेगा।’ यह कहकर वह ठहाका लगाकर हंसती ज़रूर। उसके साथ बाकी लोग भी खूब मजा लेते। जल्दी ही दोनों चुनौटी सुर्ती के नाम से चर्चित भी हो गए। असल में ऑरिषा प्रशिक्षण के समय ही गाली-गलौज में पारंगत हो गई थी। उसकी झन्नाटेदार गालियां बड़े-बड़े गालीबाजों को भी झनझना कर रख देती थीं। मां-बहन की गालियां उसकी तकिया कलाम बन चुकी थीं।
उसने खुद भी ऐसी तमाम गालियां गढ़ी थीं, जो पुýष वर्ग को तीर सी चुभती थीं। आए दिन इसके चलते उसकी किसी ना किसी से बहस हो जाती थी। जब उसकी संगी-साथी कहतीं, ‘जिससे तू शादी करेगी उसके लिए तुझे खाना बनाने की जरूरत ही नहीं पड़ेगी। उसका पेट तेरी गालियों से ही हमेशा भरा रहेगा।’ तो वह हंसकर कहती, ‘घबराओ मत, मैं ऐसे से शादी करूंगी जिसे गाली देने की जरूरत ही नहीं रहेगी। उसका पेट मैं देसी हार्मलेस पिज्जा, चोखा-बाटी से ही भरे रहूंगी।’
उसकी मां ने प्रशिक्षण के समय ही उससे पूछ लिया था कि, ‘बेटा तू जैसा कॅरियर चाहती थी वह बना लिया है। शादी की उम्र हो गई है। तू कहे तो तेरे लिए कोई अच्छा सा लड़का देखना शुरू करूं।’ साथ ही मां ने बहुत स्पष्ट पूछा था, ‘अगर तुमने कहीं देख लिया है तो वह भी बता दो। मैं उसी से ही कर दूंगी। समय से सारा काम हो जाए तो बहुत अच्छा रहता है।’ उसने कभी सोचा ही नहीं था कि अम्मा ऐसे साफ-साफ, सीधे-सीधे पूछ लेगी। इसलिए कुछ देर तो उन्हें देखती ही रह गई। फिर उसने भी अम्मा के ही अंदाज में साफ-साफ कहा, ‘अम्मा सच-सच कहूं, ना मैंने कहीं देखा है, ना ही मैं कहीं देखूंगी। क्योंकि मैं मानती हूं कि ऐसे देखा-देखी के बाद होने वाली शादी का कोई चार्म ही नहीं रहता और मैं हर जगह चार्म ढू़ढ़ती हूं। इसलिए तुम ही ढूंढ़ो, जहां कहोगी वहीं करूंगी।’
अम्मा ने उससे थोड़े आश्चर्य के बाद कहा, ‘लेकिन बेटा कम से कम अपनी पसंद के बारे में तो बता ही दो। इससे मुझे ढूंढ़नें में बहुत आसानी होगी। सही मायने में वैसा लड़का ढूंढ़ पाऊंगी जैसा तुम चाहती हो। जिसमें तुम्हें तुम्हारी पसंद का चार्म मिल सके।’ उसने मुस्कुराते हुए बहुत साफ-साफ फिर कहा, ‘अम्मा मेरी पसंद-नापसंद सब समझती हो, जानती हो फिर भी कह रही हो तो ठीक है, सुनो।’ इसी के साथ उसने चंद शब्दों में अम्मा को अपनी पसंद-नापसंद सब बता दी। जिसे सुनकर वह कई बार हंसी, फिर बोलीं, ‘सच बेटा तू तो बहुत ही स्मार्ट है। मैं तो इतनी एज के बाद भी यह सब सोच ही नहीं पाई। तुम हमारी उम्मीदों से भी बहुत आगे हो बेटा। मैं एड़ी-चोटी का जोर लगा दूंगी। भगवान से प्रार्थना करूंगी कि तेरे मन का लड़का ढूंढ़नें में मैं जल्दी से जल्दी सफल हो जाऊं।’
सच में जब वह सफल हुईं तब तक ऑरिषा को नौकरी करते हुए डेढ़ साल ही बीता था। उसके अम्मा-पापा के पैर सातवें आसमान पर थे कि लड़की ने जैसा चाहा था वह बिल्कुल वैसा ही लड़का ढूंढ़नें में सफल रहे। भगवान को कृपा करने के लिए वह दिन भर में सैकड़ों बार धन्यवाद देते रहे। और तैयारियां करते रहे। शादी से चार दिन पहले ऑरिषा कार्ड लेकर थाने पहुंची कि लहगर इंस्पेक्टर को भी कार्ड देकर इंवाइट करे। उसे चिढ़ाएगी कि तेरी चुनौटी तो जा रही है। एक दमदार ख़ास सुर्ती के साथ शादी करके। अब तू अपनी सुर्ती के साथ चिल्ला चुनौटी-चुनौटी। लेकिन थाने पहुंचकर उसे निराशा हाथ लगी। इंस्पेक्टर छुट्टी पर था।
उसकी साथी ने उसे बताया कि उसके साले की शादी है, आज शाम वह ससुराल जा रहा है। तैयारियों के चलते आया ही नहीं। यह सुनकर उसे खुराफ़ात सूझी। उसने साथी से कहा, ‘चल उसको परेशान करते हैं। उसकी चुनौटी को देखते हैं। कार्ड देना ही है।’ साथी को लेकर वह स्कूटर से ही इंस्पेक्टर के घर पहुंची । वह तैयारियों में उलझा हुआ मिला। उसे देखते ही वह बोला, ‘अरे तुम यहां, क्या बात है? सब ठीक तो है ना?’ इंस्पेक्टर की शालीनता देखकर उसने एक बार अपनी साथी को देखा फिर पूरा प्रोटोकॉल मेंटेन करते हुए कहा, ‘यस सर। ठीक है। मैं आपको अपनी शादी में आने के लिए इंवाइट करने आई हूं।’
यह कहते हुए उसने कार्ड आगे कर दिया। उसकी बात सुनते ही इंस्पेक्टर ने कहा, ‘शादी!‘ फिर खुश होते हुए कार्ड लेकर उससे हाथ मिलाया, बधाई दी और कार्ड देखने लगा। तभी ऑरिषा ने कहा, ‘सर चुनौटी अपने सुर्ती के साथ चार दिन बाद चली जाएगी।’ उसकी बात सुनते ही वह ठहाका लगाकर हंस पड़ा। वह मौका चूकना नहीं चाहती थी। इसलिए तुरंत कहा, ‘सर अपनी चुनौटी से मेरा मतलब कि भाभी जी से नहीं मिलवाएंगे क्या?’ यह सुनते ही उसने एक नज़र उस पर डालकर कहा, ‘बैठो, अभी मिलवाता हूं।’ उसके जाते ही साथी ने उससे कहा, ‘यार यह तो लग ही नहीं रहा है कि वही लहगर इंस्पेक्टर है जो स्टॉफ की किसी भी महिला के साथ लफंगई करने से बाज नहीं आता। कितना जेंटलमैन बना हुआ है।’ तभी इंस्पेक्टर बीवी के साथ आ गया। दोनों ने एक साथ उनके सम्मान में उठकर उन्हें नमस्कार किया। वह भी उन दोनों को बहुत हंसमुख और मिलनसार लगीं।
ऑरिषा ने चाय-नाश्ते की फॉर्मेलिटी के लिए उन्हें यह कहते हुए मना कर दिया कि, ‘अभी कई जगह जाना है, देर हो जाएगी। आपको भी तैयारियां करनी हैं इसलिए चलती हूं।’ गेट पर चलते-चलते उसने कहा, ‘चलती हूं सर, चुनौटी की शादी में भाभी जी को लेकर जरूर आइएगा।’ वह हंसते हुए बोला, ‘जरूर आऊंगा लेकिन अकेले ही क्योंकि मिसेज एक हफ्ते के बाद आएंगी। मैं तो दूसरे दिन ही चला आऊंगा।’ ‘थैंक यू सर। यदि परमीशन हो तो एक बात पूछूं।’ ‘पूछो, ऐसी कौन सी बात है।’
‘सर ऑफ़िस में तो आप, आप नहीं रहते। यहां तो लग ही नहीं रहा कि आप वही हैं जो ऑफ़िस में दिनभर गाली से ही बात, काम सब करते हैं।’ इंस्पेक्टर ने गहरी सांस लेकर कहा, ‘देखो यही तो घर और ऑफ़िस का फ़र्क़ है। घर-घर ही बना रहे, इसलिए यह फ़र्क़ रखना मैं जरूरी समझता हूं। और सभी समझदार लोग यही करते हैं। तुम भी जिस तरह ड्यूटी ऑवर्स में विहैव करती हो क्या तुम्हारा वही विहैवियर घर पर भी रहता है? निश्चित ही नहीं। और तुम तो शादी चार्टर्ड अकाउंटेंट से कर रही हो। तुमने भी यदि यह डिफ़रेंस मेंटेन नहीं रखा तो अपने लिए प्रॉब्लम खड़ी कर लोगी।’ ऑरिषा इस मुद्दे पर उससे यह बहस करना चाहती थी कि यही डिफ़रेंस जनता के बीच पुलिस विभाग को बदनाम किए हुए है। जो विहैवियर अपने लिए चाहते हैं, जनता के साथ उसका उल्टा करते हैं। लेकिन समय को देखते हुए वह वापस चल दी। मगर यह तय कर लिया कि इस प्वाइंट पर वह इनसे बात तो जरूर करेगी।
रास्ते में उसकी साथी ने उससे कहा, ‘बड़ा घाघ है, ऑफ़िस में खासतौर से हम लोगों से बदतमीजी की कोई भी ऐसी हद नहीं होती जिसे यह पार न करता हो। आए दिन मेरे हिप पर धौल जमाते हुए कहता है, ‘‘सिक्योरिटी टाइट है।’’ तुम थोड़ी ढीली पैंट पहनती हो तो कहता है, ‘‘इसकी सिक्योरिटी कब टाइट होगी?’’ साथी की बात सुनकर ऑरिषा ने कहा, ‘एक बात बताऊं, जिस दिन इसने मेरे हिप को छू लिया ना उस दिन इसे सिखचों के पीछे पहुंचा दूंगी। सिक्योरिटी वाकई टाइट कर दूंगी। तुमको भी सख्ती से पेश आना चाहिए।’
‘क्या करूं, नौकरी करनी है। कब तक किस-किस से भिड़ूंगी। हम लोग तो बहुत निचली पोस्ट पर हैं। अपने यहां तो आईएएस ऑफ़िसर रूपन देओल बज़ाज और केपीएस गिल जैसे मामले तीसों साल पहले से होते आ रहे हैं। गिल सुप्रीम कोर्ट से ही कुछ सजा पाए थे। रूपन देओल बज़ाज जैसी तेज़तर्रार महिला ऑफ़िसर की तमाम कोशिशों के बाद यह हो पाया था। वह बंद तब भी नहीं हुए थे। किसी आम आदमी का मामला होता तो वह सालों जेल में होता। ऐसे में हम लोग क्या कर पाएंगे?’
‘बात निचली और ऊपरी पोस्ट की नहीं है। बात सिर्फ़ इतनी है कि हम अपने अधिकारों, अपने सम्मान को लेकर कितने अवेयर हैं, कितनी जोर से अपोज़ कर सकते हैं बस। मैं सच कहती हूं कि मेरे साथ हरकत हुई तो मैं उसका इतने एक्स्ट्रीम लेविल पर अपोज़ करूंगी कि दुनिया देखेगी। तुझसे भी कहती हूं कि तू उसकी बदतमीजियों का अपोज़ कर। मैं तेरे साथ हूं, हिला कर रख दूंगी साले को।’
‘ठीक है यार पहले तुम शादी करके आओ, तब सोचती हूं, इस बारे में। अच्छा एक बात बताओ, तू घर बाहर हर जगह ऐसे ही रहेगी तो सीए हस्बैंड को कैसे हैंडल करेगी।’ ‘उससे हमारा कोई डिफ़रेंस होगा ही नहीं तुम यह देख लेना। मैंने बहुत सोच-समझकर सेम प्रोफ़ेशन में शादी नहीं की। इससे हमारे बीच प्रोफ़ेशन को लेकर कोई कंपटीशन नहीं होगा। तुम देखना हम दोनों एक परफ़ेक्ट आयडल कपल होंगे। अच्छा तुम अब अपनी ड्यूटी देखो। शादी में आना जरूर।’ उसने साथी को थाने पर उतारते हुए कहा और घर आ गई। शादी के चार दिन बचे थे और काम बहुत था लेकिन ऑरिषा के दिमाग में रूपन देओल बज़ाज, केपीएस गिल और खुद उसको चुनौटी नाम देने वाला बॉस घूम रहा था। वह बार-बार यही सोच रही थी कि इसे लाइन पर लाऊंगी जरूर।
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