जो घर फूंके अपना
46
बड़ी कठिन थी डगर एयरपोर्ट की - 2
पता नहीं मेरा गिडगिडाना सुनकर उन्हें दया आ गई या उन्हें लगा कि वह दूधवाला हमें कुछ ज़्यादा ही परेशान कर रहा था. उन्होंने पहले तो भीड़ लगानेवालों को तेलगु में दांत लगाई, फिर दूधवाले को समझाया “ये लोग दो सौ रुपये दे रहे हैं, तेरा कम से कम सौ प्रतिशत मुनाफ़ा हो रहा है. रुपये पकड़ और चलता बन. ” उनकी बात में असर था. दूधवाले ने हमारे हाथों से नोट झपट लिये और भुनभुनाते हुए कार के सामने धराशायी साइकिल को उठाने लग गया. जैसे ही सामने से साइकिल हटी, हमारी कार सड़क पर बने क्षीरसागर को चीरती हुई, सफ़ेद रबड़ीनुमा कीचड उछालते हुए भागी.
मेरी एक नज़र कलाईघड़ी पर थी और दूसरी सामने सड़क पर किन्तु भाई साहेब से कार तेज़ चलाने के लिए कहने का साहस नहीं हुआ. एअरपोर्ट अभी लगभग पंद्रह मिनट दूर था. साढ़े सात से पहले क्या पहुंचूंगा. चालकदल के सदस्य अन्य साथियों से यह आशा तो थी कि फ्लाईट क्लियरेंस आदि लेने के लिए वे मेरी प्रतीक्षा न करेंगें और मेरे हिस्से का काम कर लेंगे. पर उसके बाद? आशा की एक क्षीण किरण बाकी थी कि राष्ट्रपति महोदय के पहुँचने के तुरंत पहले हम शायद पहुँच सकें. लेकिन जैसे जैसे एयर पोर्ट के निकट आते गए, सड़क के दोनों ओर राष्ट्रपति के काफिले को देखने के लिए आतुर लोगों की भीड़ बढ़ती गयी. पुलिस लोगों को सडक पर आने से रोकने में जुटी हुई थी. जल्दी ही हम एक चौराहे पर पहुँच गए जहाँ से जनता के वाहनों के आगे एअरपोर्ट की तरफ जाने पर प्रतिबन्ध लगा दिया गया था. दुपहिये, चौपहिये हर तरह के वाहन सड़क के किनारे रोक दिए गए थे. सडक पर पुलिस की इक्की दुक्की जीपें गश्त करती जा रही थीं. भाई साहेब ने प्रश्नवाचक निगाहों से मेरी तरफ देखा. मैंने निगाहों ही निगाहों में उत्तर दे दिया “लगे रहिये, रुकने की सोचियेगा भी मत. “ पर भाई साहेब ने फ़ौजी का जिगरा तो पाया नहीं था, न उन्हें थाने में बंद होने का शौक था. मोटरसाइकिल पर आरूढ़ एक पुलिसवाले ने ड्राइवर साइड की खिड़की से झांकते हुए जब उन्हें ललकारा तो उन बेचारों ने गाड़ी रोक ली. सुबह -सुबह अचानक मुझे लेकर आना पड़ गया था अतः उन्होंने न तो दाढ़ी बनाई थी न नहा धो पाए थे. खैरियत थी कि अपना धारीदार स्लीपिंग सूट उतारकर उन्होंने जल्दी -जल्दी एक पैन्ट शर्ट डाल ली थी. पुलिसवाले ने उन्हें ड्राइवर समझा और जोर से डांटकर कार एक तरफ लगा कर खडी करने का आदेश दिया.
अब मैं मैदाने जंग में कूद पड़ा. काश युनिफोर्म जहाज़ में ही छोड़ देने की गलती न की होती. फिर भी पूरा आत्मविश्वास अपनी आवाज़ में भरकर मैंने कहा” देखिये, इन्हें मैंने कहा था कि ये गाड़ी रोकें नहीं. बात ये है कि मैं राष्ट्रपति जी के विमान का चालक हूँ. मेरा एअरपोर्ट तुरंत पहुंचना बेहद ज़रूरी है इसलिए आप हमें रोकिये नहीं. ”
खैरियत थी कि यहाँ भाषा की समस्या नहीं उठी. अपनी दखनी हिंदी में उसने कहा “ आप लोकां बड़े ऊंचे हाकिमान हैं तो इस प्राइवेट कार में क्या करते मियाँ? पाइलट लोकां की गाड़ी तो इस रास्ते से तकरीबन एक घंटा पहले गुज़री. अब आप ज़रा तकलीफ करके गाड़ी से नीचे उतर आओ, फिर तुम्हाई पूरी दास्तान थाने में में बैठकर फुर्सत से सुनेंगें. ”
मैंने अपनी सारी कहानी उसे एक साँस में सुना डाली पर उस कंबख्त की बात इस मुद्दे पर अटकी रही कि मैं अपना आइडेंटिटी कार्ड तक नहीं दिखा पा रहा था और अपने को प्रेसिडेंट साहेब का पाईलट बता रहा था. फिर उसने साहेब से मुखातिब होकर पूछा “और हज़रत, आप तो ज़रूर प्राइम मिनिस्टर साहेब के खासुल-खास ड्राइवर होगे?” उसका संदेह अब विश्वास में बदल चुका था. प्रश्न थे कि ख़त्म होने का नाम ही नहीं ले रहे थे और मेरी घबराहट बढ़ती ही जा रही थी. प्यार से समझाने का कोई असर न होता देख मैंने आवाज़ ऊँची करके कहा “ देखिये, आप अपने सीनियर अफसर से अपनी वाकी-टाकी पर तुरंत बात कराइए, वरना मेरी नौकरी तो जायेगी ही, आपकी नौकरी भी बचेगी नहीं”
पर नतीजा उलटा निकला. त्योरियां चढ़ाकर वह बोला” अरे!, मेरे को धमकी देते? ज़रा जाने दो प्रेसिडेंट साहेब को, फिर मैं देखता मियाँ कि तुम फाख्ता उड़ाते कि हवाई जहाज़. ”
हमारी बहस अब जोर जोर से होने लगी थी जिसे देखकर गश्त पर निकली पुलिस की एक जीप हमारे पास आकर रुक गयी. ड्राइवर की बगल में बैठे अफसर के कन्धों पर पुलिस अधीक्षक के बैज लगे देखकर मेरी जान में जान आई. हमारे देश में असरदार बात करनी हो तो पहले अंग्रेज़ी में और अगर उससे भी काम न चले तो पैसों की भाषा में बात करनी होती है. मैंने उन्हें फर्राटेदार अंग्रेज़ी में बताया कि दुर्भाग्यवश मेरा आई डी कार्ड जहाज़ के अन्दर रह गया था अतः उन्हें मेरे ज़बानी परिचय पर ही विश्वास करना पडेगा. यह भी बताया कि राष्ट्रपति महोदय के प्रस्थान का समय होने में अब कुल पंद्रह ही मिनट बचे थे, अदि वे नहीं चाहते थे कि राष्ट्रपति महोदय वहाँ पहुँच कर मेरी प्रतीक्षा करें तो उन्हें क्षण भर का भी विलम्ब किये बिना मुझे अपनी जीप में बिठाकर राष्ट्रपति के जहाज़ तक पहुंचाना चाहिए. वहाँ पहुंचकर मेरी असलियत पर कोई शक बचा रह गया हो तो वे बेशक मुझे गिरफ्तार कर सकते हैं. आदमी समझदार निकला, शायद ईमानदार भी यद्यपि था पुलिस का अफसर! मुझे उसने अपनी जीप में बैठाया और इसके पहले कि मैं भाई साहेब से विदा के दो शब्द कह सकूँ जीप अपना साइरन लगातार पींपों – पींपों बजाती हुई हवा से बातें करने लगी. आठ बजने में दस मिनट बाकी थे जब हम एअरपोर्ट के विशिष्ट व्यक्तियों वाले गेट से अंदर घुसकर सीधे वायुसेना के विशेष विमान तक जा पहुंचे. हमारे कप्तान महाशय जहाज़ के बाहर लगी सीढ़ी के सामने पिंजरे में बंद भूखे शेर की तरह बेचैनी से टहलते हुए बार बार अपनी घड़ी देख रहे थे और खुशगवार मौसम के बावजूद माथे पर आ गयी पसीने की बूँदें पोंछते जा रहे थे. पुलिस जीप से मुझे उतरते देखकर उनके मुंह से जो आशीर्वचन निकलना चाहिए थे वे नहीं निकले क्योंकि सामने कतार लगाकर खड़े हुए कई सैन्य अधिकारी तथा आन्ध्र प्रदेश के उच्चतम नागरिक अधिकारी वहां राष्ट्रपति को विदाई देने के लिए खड़े थे.
मेरे सिविल ड्रेस में होने के कारण किसी को भनक नहीं लगने पाई कि मैं जहाज़ के चालक दलका सदस्य था. मेरे कप्तान साहेब ने अपनी मूंछों के नीचे से गुर्राते हुए होंठ भींचकर कहा “ गेट इन. वे शैल टाक लेटर” मेरे साथ लगे पुलिस अधीक्षक महोदय को किसी तरह की सफाई की अब ज़रूरत नहीं रह गयी थी. मैंने उनका हाथ क्षण भर के लिए पकड़कर कहा “थैंक यू वैरी मच “ और सीढ़ियों पर दौड़ते हुए जहाज़ के अंदर घुस लिया. कॉकपिट में चालाक दल के दो अन्य सदस्यों ने मुझे देखकर अचरज से कहा “यार, तूने तो आज हम सबको मरवाया था. क्या हो गया था तुझे?” मैं चुप रहा. वायुसेना की वी आई पी स्क्वाड्रन की अलिखित परम्परा थी कि चाहे भूचाल आ जाए पर वी आई पी उड़ान के क्र्यू समय पर उपस्थित रहेंगे ही रहेंगे. पर आज मैं उस असंभव को संभव कर दिखाने वाला था. मेरी जगह फ्लाईट इंजीनियर और कप्तान ने एयर ट्रैफिक कंट्रोल से फ्लाईट क्लियरेंस करा ली थी, पर जल्दबाजी में मौसम विभाग से उड़ान से सम्बंधित मौसम की जानकारी विस्तार में नहीं ली गई थी. पिछले दिन दिल्ली से हैदराबाद की उड़ान में मौसम पूरे समय बहुत अच्छा रहा था अतः उस तरफ से सब निश्चिन्त थे. मौसम विभाग से लिखित ब्रीफिंग लेने की कागज़ी कार्रवाई पूरी कर ली गई थी. यह सब काम मूलतः मेरे हिस्से का था अतः मेरे साथिओं ने मेरे सर पर ढेरों एहसान लादा होता. लेकिन उनके सवालों और लानत-मलामत का सिलसिला राष्ट्रपति महोदय के ठीक आठ बजने में एक मिनट पर जहाज़ के अन्दर प्रवेश करने से टूट गया.
क्रमशः ---------