प्रेम.... ढाई अक्षर का छोटा सा शब्द पर... अपने आप में न जाने कितने सपने, कितने अरमानों को समेटे हुए रहता है....
मोहित और मुग्धा का कॉलेज में आखिरी साल था। मुग्धा अपने नाम के अनुरूप थीं, चंचल, शोख,जिंदादिल , जिंदगी से भरपूर ....एक झलक में किसी को भी अपना दीवाना बना दे ।उसकी वह कजरारी गोल -गोल सी बड़ी- बड़ी आंखें सबके मन को मोह लेती। मोहित बांका- सजीला नौजवान कॉलेज की न जाने कितनी लड़कियां उस पर मरती थी और कहीं ना कहीं मन ही मन मुग्धा से जलती भी थी कि मोहित जैसा खूबसूरत लड़का उसे बेपनाह प्यार करता है। "मुग्धा अंदर आ जाओ भीग जाओगी, देखो बारिश शुरू हो गई है मोहित ने कहा।मुग्धा छोटे से बच्चे की तरह बारिश की बूंदों को चेहरे पर महसूस कर खुशी से पागल हो गई थी ,जब भी बारिश होती तो मिट्टी की सोंधी-सोंधी खुशबू के लिए मुग्धा ऐसे ही पागल हो उठती थी। बारिश में भीगना उसे बहुत पसंद था तितलियों की तरह इधर-उधर दौड़ती बारिश की बूंदों से भीगा हुआ उसका चेहरा उसके खूबसूरती में चार चांद लगा रहा था।.... क्या मोहित वहां क्या दुबक कर बैठे हो, देखो ना कितना अच्छा मौसम है और मुग्धा फिर से पानी में भीगने चली गईं ।
मोहित मंत्रमुग्ध सा उसे देखता रहा। कभी-कभी उसे अपनी किस्मत पर रश्क भी होता था। मुग्धा को न जाने क्या सूझा, वह अपनी नाजुक कलाइयों से बरगद के उस विशाल वृक्ष को बांधने का निरर्थक प्रयास करने लगी ,उसकी इस हरकत को देख कर मोहित के चेहरे पर मुस्कान आ गई। यह जगह मुग्धा को बहुत पसंद थी, इस जगह पर उन दोनों ने भविष्य के न जाने कितने सपने देखे थे ,साथ निभाने के सपने साथ जीवन बिताने के सपने । मुग्धा अब चलो तबीयत खराब हो जाएगी ,अभी एक पेपर और भी बचा है। मोहित परसो आखरी पेपर है न ,खूब मजे करेंगे ।पहले एक अच्छी सी पिक्चर, फिर बढिया सा खाना और उसके बाद एक लांग ड्राइव । मुग्धा ने अपनी बड़ी -बड़ी गोल आँखों को घुमा कर कहा ।"जैसा रानी साहिबा का हुकुम" मोहित की बात को सुनकर मुग्धा खिलखिला कर हंस पड़ी ,उसे बच्चों की तरह हंसता देखकर मोहित मुस्कुरा उठा। क्या सोच रहे हैं जनाब मुग्धा ने बड़े अदा से कहा। कुछ नहीं सोचता हूँ तुम्हारे नर्सिंग होम में तो मरीजों की लाइन लगी रहेगी। मुग्धा ने बड़े आश्चर्य से मोहित की तरफ देखा ऐसा क्यों भला?? तुम्हारे खूबसूरत चेहरे को देखकर सब बेहोश हो जाएंगे और क्या ....।मोहित की बात को सुनकर मुग्धा बहुत देर तक हस्ती रही। मोहित शादी के बाद तुम मोटे ना हो जाना मुझे मोटे लड़के बिल्कुल पसंद नहीं। अदरक की तरह किधर से भी फैल जाते हैं, अगर ऐसा हुआ ना मैं तुम्हें छोड़ कर चली जाऊंगी। मुग्धा और मोहित बहुत देर तक हंसते रहे ।मुग्धा और मोहित का M.B.B.S. का आखिरी साल था ,एक सुनहरा भविष्य उनका इंतजार कर रहा था ।फाइनली आखरी पेपर भी खत्म हो गया। मुग्धा बड़ी बेसब्री से मोहित का इंतजार कर रही थी, बार- बार उसकी निगाह कलाई में बंधी हुई घड़ी पर तरफ जाती। तभी सामने से मोहित आता दिखाई दिया ।"आने दो आज मोहित को अच्छे से खबर लूंगी। इतनी देर कर दी ।"क्या मोहित तुमने मेरी सारी प्लानिंग खराब कर दी।क्या-क्या सोचा था।मोहित के चेहरे पर एक अजीब सी नीरवता और तनाव फैला हुआ था। मोहित ने मुग्धा का हाथ अपने हाथों में लेकर बड़े ही संजीदा आवाज में कहना शुरू किया था मेरी बातों को ध्यान से सुनो मुग्धा ,हमारा सफर यहीं तक था ।आज से हमारे रास्ते यहीं से अलग होते हैं। मुग्धा मोहित की बातों को सुनकर स्तब्ध थी , यह कैसा मजाक है मोहित। तुम जानते हो मुझे इस तरह के मजाक बिल्कुल पसंद नहीं। मुग्धा मैं मजाक नहीं कर रहा, कल पापा के एक दोस्त आए थे वह बहुत बड़े व्यवसाई हैं । तुम तो मेरे घर की हालात जानती हो पापा ने ना जाने किन किन मुसीबतों से हम भाई-बहनों को पढ़ाया और आज हमें इस लायक बनाया आज मेरी बारी है उनके लिए कुछ करने की । पापा के दोस्त अपनी इकलौती बेटी की शादी मुझसे करना चाहते हैं उन्होंने पापा से वादा किया है कि M.S. करने में जितना भी खर्चा आएगा वह उठाएंगे और एक नर्सिंग होम भी बनवाने का वादा किया है पापा ने इस रिश्ते के लिए हां कर दी है। मैं कुछ नहीं कर पाया। मुग्धा को समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या जवाब दें ।मोहित मेरा क्या होगा एक बार भी तुमने सोचा तुम्हारे बिना मैं कैसे जिंदा रहूंगी। हमारे सपने ,हमारे उन सपनों का क्या ....जो हमने एक साथ देखे थे। मुग्धा बदहवास सी बोलती जा रहे थी।.... पर मोहित के पास उसकी किसी भी बात का कोई जवाब नहीं था और वह उसे वहीं छोड़ कर चला गया ।मुग्धा मोहित को जाते हुए देखती रहे ।धीरे-धीरे वह उसकी आँखों से ओझल हो गया।
समय अबाध गति से भागा जा रहा था। मुग्धा ने मोहित से सारे रिश्ते खत्म कर लिये ।उसका अब उस शहर में रहना भी दुश्वार होता जा रहा था। इम्तिहान खत्म होने के बाद मुग्धा वापस अपनी माँ के पास आ गई।पर मोहित की आँखे उसका वहाँ भी पीछा करती रही ।न जाने कितने अस्पतालों से उसके लिए नौकरी के प्रस्ताव आये पर ...पर मुग्धा इन सब से दूर कही दूर भाग जाना कहती थी। अंत में अपना सब कुछ बेचकर मुग्धा अपनी माँ के साथ एक छोटे से कस्बे में रहने लगी और गांववासियों की सेवा करने लगी। यहाँ रहते हुए उसे काफी वक्त हो गया था। माँ बहुत देर से कुछ कहने का प्रयास कर रही थी ....पर समझ नहीं आ रहा कि बात कहाँ से शुरू करें।तब मुग्धा ने ही कहा "माँ कुछ कहना चाहती हो...तो कह दो न। कहे बिना मानोगी नहीं ,तुम्हारे पेट मे दर्द होने लगेगा।मुग्धा आज मिसेज सिंघानिया आईं थीं।बहुत देर तक बैठे रहीं।उनकी छोटी बेटी आजकल लंदन में है, 2 बच्चे हो गये उसके तुमसे छोटी थी ना। पति का बहुत लंबा चौड़ा कारोबार है। मिसेज सिंघानिया तो अपने दामाद की तारीफ करते नहीं थक रही थी। "अच्छा", मुग्धा ने संक्षिप्त सा उत्तर दिया । "जानती हो मिसेज़ सिंघानिया बता रही थी कि उनकी बेटी नंदिता जब भी आती है तो उसके लिए बहुत महंगे महंगे उपहार लेकर आती है। उसके दोनों बच्चे दिनभर नानी -नानी कह करउससे लगे रहते हैं । "अच्छा", क्या अच्छा इतनी देर से मैं ही बोले जा रही हूं और तुम हो कि मेरी बात को ठीक से जवाब भी नहीं दे रही। सुन तो रही हूँ ना माँ ,बोलो क्या कहना चाहती हो।माँ धीरे से मुग्धा के निकट आ गई और उसके बालों पर अपनी उंगलियां फेरते हुए बोली मुग्धा कब तक ऐसी बैठी रहेगी, अपने बारे में तो सोचो, काम करने के लिए तो पूरी जिंदगी पड़ी है। एक बार उम्र निकल जाएगी तो शादी होना भी मुश्किल हो जाएगी आज मिसेज सिंघानिया तुम्हारे लिए अपने बड़े भाई की बेटे का रिश्ता लेकर आईं थीं। 13 -14 साल पहले उनके बड़े भाई के बेटे की शादी हुई थी ,पत्नी का रोड एक्सीडेंट में मृत्यु हो गई थीं, 10-12 साल की बेटी है। खाता कमाता परिवार है। लड़का भी देखने में ठीक-ठाक है, उन्हें तुम्हारी नौकरी करने से भी कोई दिक्कत नहीं है ।अगर तुम हाँ करो तो मैं बात आगे बढ़ाऊ। मुग्धा अपनी मां की बात को सुनकर ही झुंझला उठी और उसने चादर को अपने शरीर से अलग कर बिस्तर से नीचे उतर आईं। क्या माँ रोज- रोज वही कितनी बार समझा चुकी हूँ। मुझे शादी नहीं करनी है तो बस नहीं करनी है और ऐसा है मिसेज सिंघानिया से कह दो अपने भाई के बेटे के लिए कोई और लड़की ढूंढ ले, मेरा रास्ता ना देखें ।एक बार मिल तो लो बेटा बहुत अच्छा परिवार है तुम बहुत खुश रहोगी ।मेरा क्या है मैं आज हूँ, कल नहीं। न जाने भगवान कब अपने पास बुला ले। माँ ने झूठी नाराजगी दिखाते हुए कहा मुग्धा से कहा ।मुग्धा ने बड़े प्यार से माँ के गले में अपनी दोनों बाहें डाल कर कहा ,"तुम अभी इतनी जल्दी मुझे छोड़कर नहीं जा रही ,दुनिया की परवाह करना छोड़ दो उनका तो काम ही है कहना और बैठे- बैठे कुछ काम कर लिया करो ।दिन भर सास-बहू के सीरियल देखती रहती हो न इसीलिए ऐसी खुराफाती बाते दिमाग मे घूमती रहती है। घूम फिर आया करो।मैंने ट्रैवल एजेंसी से बात कर ली है ,बहुत अच्छा पैकेज आया था जाओ चारों धाम की यात्रा कर आओ ।कुछ पुण्य मिलेगा कहकर मुग्धा जोर से हंस पड़ी। मुग्धा अपनी मां का ध्यान भटकाने की भरसक कोशिश करती रही ।पर माँ का रिकॉर्ड जहाँ था वहीं आकर अटक गया था ।अब तू मुझे चारों धाम की यात्रा पर भेजेंगी । काश तेरा कोई भाई होता तो मुझे चारों धाम पर भेजता तो मुझे मरने के बाद स्वर्ग मिलता , पर ऊपर वाले ने न जाने मेरे लिए क्या-क्या सोच रखा है । अब बेटी मुझे चारों धाम पर भेजेगी, कहकर माँ आँचल में मुँह छुपाकर रोने का उपक्रम करने लगी।माँ की यह हमेशा की आदत थी ,जब वह मुग्धा से अपनी बात मनवा नहीं पाती थी तो इसी तरीके से अनर्गल बातें करना शुरू कर देती थी ।"क्या माँ , तुम भी किस तरह की बातों में पड़ जाती हो , तुम्हें जाने से मतलब है ना ।कितने दिन से सोच रही हो पर ...मेरी वजह से कहीं निकल नहीं पाती ,जाओ और मजे करो ।मुग्धा ने अपनी माँ के गालों को खींचकर बड़े ही शरारती लहजे में कहा। कभी- कभी मुग्धा इस उम्र में भी छोटी बच्ची की तरह लगने लगती। पर... अब तो मुग्धा के बालों में भी सफेद चाँदनी दिखने लगी थी छोटी बहन की भी शादी हो चुकी थी और वह अपने दो बच्चे और परिवार के साथ बहुत खुश थी। याद है आज भी उसे वह दिन जब मुग्धा ने जिद करके छोटी बहन की शादी करा दी थी ,माँ कहती रह गई बड़ी बहन के रहते छोटी की शादी करना कहाँ तक सही है ।समाज क्या कहेगा बड़ी बहन अभी कुंवारी बैठी है और छोटी बहन की शादी कर दी । जरूर बड़ी में कोई खोट है या किसी के साथ कोई चक्कर चल रहा पर मुग्धा अपनी माँ का कभी जवाब नहीं देती । मुग्धा की जिद के आगे किसी की एक न चली और छोटी भी ब्याह कर अपने घर चली गई। माँ को चारों धाम पर गए आज 15 दिन हो गए थे ।मुग्धा अस्पताल से लौटने के बाद देर रात तक टीवी देखती ,खाली घर उसे काटने को दौड़ता जब आंखें और शरीर थकान और नींद से बोझिल हो जाते ।तब वहीं सोफे पर लेट जाती ।समय पंख पसारे उड़ता चला जा रहा था ।एक दिन अचानक रात में दरवाजे पर किसी ने जोर -जोर से आवाज लगाई -"डॉक्टर साहब , डॉक्टर साहब दरवाजा खोलिए।" गहरी नींद में डूबी मुग्धा हड़बड़ा कर उठ बैठी, उसकी निगाह बगल में रखी घड़ी पर गई। रात के 1:00 बज रहे थे ।इस वक्त भला कौन हो सकता है चौकीदार भी कुछ दिनों से छुट्टी पर था गाँव में उसकी मां बीमार थी ।मुग्धा निर्णय नहीं ले पा रही थी कि इतनी रात को वो दरवाजा खोले कि नहीं ।उसने दरवाजे के पास आकर धीरे से पूछा- " कौन है?" "बेटा दरवाजा खोलो हम है रामू काका।" रामू काका इस वक्त मुग्धा ने सोचा ।आखिर ऐसी क्या बात हो गई। मुग्धा ने जल्दी से दरवाजा खोलो, क्या हुआ रामू काका आप इस वक्त। बेटा अस्पताल के थोड़ी दूर पर एक कार का एक्सीडेंट हो गया है ।16-17का लड़का है ,किसी अच्छे घर का लड़का लगता है काफी चोट आई है ,काफी खून बह गया है जरा जल्दी से चल कर देख लो ना जाने किस के घर का चिराग है ।रामू काका आप जल्दी से उसे अस्पताल लेकर चलिए, मैं अभी आती हूँ। मुग्धा का घर अस्पताल से सटा हुआ था ।मुग्धा ने जल्दी-जल्दी कपड़े बदले और अस्पताल की तरफ चल पड़ी। मुग्धा रास्ते भर यहीं सोंचती रहीं,16 -17 साल का लड़का अभी तो उसकी जिंदगी शुरू हुई है, अभी तो उसे बहुत कुछ देखना था। पूरा शरीर खून से लथपथ था मुग्धा ने तुरंत ऑपरेशन थिएटर में जाने का आदेश दिया। चोट बहुत गहरी तो नहीं थी पर ..खून काफी बह गया था ।नर्स ने जल्दी-जल्दी उस लड़के के चेहरे पर लगी चोटों को साफ किया । 1 घंटे के अथक प्रयास के बाद वह लड़का खतरे से बाहर था ।डॉक्टर साहब इस लड़के के पास से यह मोबाइल और पर्स मिला है, उसके घर वालों को भी इन्फॉर्म करना होगा, नर्स ने कहा। "हाँ यह बात तो है मुग्धा ने कहा ।"अपने चेंबर में आ गई और उसने वार्डबॉय से एक कप कॉफी लाने के लिए कहा वह बहुत थक चुकी थी ।उसने उस लड़के से मिले हुए मोबाइल की डिटेल्स को खंगालना शुरू किया। आखिरी कॉल पापा के नाम से थी, उसने उस पर फोन मिलाया । 4 -5 घंटी जाने के बाद किसी ने फोन उठाया," हेलो डॉक्टर मोहित हेयर।" मुग्धा आवाज़ सुनकर स्तब्ध थीं, नियति उसके साथ ऐसा क्रूर मजाक नहीं कर सकती ।क्या दुनिया में मोहित नाम का सिर्फ एक ही व्यक्ति है.... यह मेरी गलतफहमी भी तो हो सकती है ।यादों के किताबों के न जाने कितने पन्ने उसकी आंखों के सामने पलटते चले गए, हेलो- हेलो ।क्या आप मेरी आवाज सुन रही हैं। मुग्धा जैसे नींद से जागी ,हेलो मैं गौरीगंज से बोल रही। हमारे यहाँ एक्सीडेंट का एक केस आया है । 16-17 साल के लड़के के पास से एक मोबाइल और पर्स मिला है ।मयंक नाम है लड़के का, क्या आप उस लड़के को जानते हैं तो कृपया करके मरीज को ले जाएं । "क्या हुआ- क्या हुआ । मेरा मयंक ठीक तो है ना घबराने की कोई बात नहीं है। वह ठीक है खतरे से बाहर है ।आप जल्द से जल्द यहाँ आ जाएं। "जी"- मैं अभी निकलता हूँ। एक सवा घंटे में मैं आपके पास पहुँच जाऊँगा। तब तक आप उसका ध्यान रखें ।थैंक यू मैम मैं आपका एहसान जीवन भर नहीं भूलूंगा, वेलकम मुग्धा अब तक उस आवाज को पूरी तरीके से पहचान चुकी थी उसने किसी तरह से अपने आप इतनी देर तक संभाल रखा था ,इतने सालों बाद उसका अतीत उसे एक बार उसे पुकार रहा था ।वह अतीत जिसे वह न जाने कब का भूल चुकी थी। सच कहते हैं लोग इंसान कुछ भी कर ले पर अपने अतीत से नहीं भाग सकता। सोचते -सोचते न जाने कब मुग्धा की आंख लग गई, तभी नर्स की आहट की आवाज को सुनकर ममता की नींद खुल गई। डॉक्टर साहब वह जो एक्सीडेंट केस आया था उसके घर वाले आ गए हैं, आप से मिलना चाहते हैं। मुग्धा ने अपने आप को एकत्र किया और वार्ड की तरफ चल पड़ी आज इतने वर्षों बाद उसका अपना अतीत उसके सामने आकर खड़ा हो गया था। यादों के झरोखों पर आज फिर किसी ने दस्तक दे दी थी ना चाहते हुए भी मन उसकी तरफ खींचता चला गया यह वही आंखें थी जिसने मुग्धा को सालों साल सोने नहीं दिया ।सालों साल वह आंखें मुग्धा का पीछा करती रही पर... पर उन आंखों की वह कशिश चेहरे का वह नूर जिस पर न जाने कितनी लड़कियां मरती थी ...न जाने कहाँ गायब ही गया था।वक्त के थपेड़ों ने या फिर भी बेहिसाब जिम्मेदारियों ने उसको उम्र से पहले ही परिपक्व कर दिया था। आंखों की कशिश जिम्मेदारियों के बोझ तले और मोटी फ्रेम के पीछे कहीं दूर छुप गई थी और उस सजीले नौजवान को कहीं दूर पीछे धकेल.... बहुत आगे निकल आई थी। मुग्धा की आंखें मोहित को पहचानने में कभी गलती नहीं कर सकती थी।मोहित की आंखें मुग्धा को पहचानने की कोशिश कर रही थी। वही तो है ...हाँ बिल्कुल मुग्धा ही तो है ।आज भी वैसी ही सुंदर, सौम्य और सहज। रत्ती भर भी नहीं बदली... पर वो तो कभी ऐसे फीके रंग नहीं पहनती थीं। जीवन से भरपूर ,जिंदादिल किसी को भी पल भर में अपना दीवाना बना दे।मोहित ने अपने आप को समझाने का प्रयास किया । मुग्धा ने उसे देख कर भी अनदेखा कर दिया मोहित समझ नहीं पा रहा था कि वह बात की शुरुआत कैसे करें यह लड़के के पिता है,नर्स ने कहा। आपका बेटा ठीक है दवाइयां लिख रही हूँ। समय-समय पर देते रहिएगा, चिंता की कोई बात नहीं ।आपका बेटा दवा की वजह से आराम से सो रहा था। मुग्धा उसका चेक अप करने के लिए जैसे ही झुकी,मोहित ने धीरे से पूछा,कैसी हो मुग्धा।मुग्धा ने जलती हुई निगाहों से मोहित की ओर देखा।जैसे पूछना चाह रही हो, अब पूछ रहे हो कि कैसी हूँ मैं....। अब तक कहाँ थे।एक बार भी सोचा कि जिंदा हूँ या मर गई।विचारों के न जाने कितने तूफान उसके दिल में उठ रहे थे ।...पर उसने अपनी भावनाओं पर नियंत्रण करते हुए कहा "आप का बेटा अब ठीक है।आप चाहे तो कल इसे ले जा सकते हैं" और वो तेज़ तेज़ कदमों से चलते हुए और मरीजों को देखने के लिए आगे बढ़ गई। मोहित स्तब्ध और एकटक उसे जाता देखता रहा। क्या मुग्धा ने उसे पहचाना नहीं था ,क्या वह इतना बदल गया है ।सच भी तो है अब वह पहले जैसा कहा रहा। मुग्धा कहती थी ,मुझे अदरक की तरह यहाँ-वहाँ से फैले पुरुष बिल्कुल अच्छे नहीं लगते ।वह भी तो ऐसा ही हो गया था ।मोहित को बहुत कुछ कहना और सुनना था इन 20 सालों में जो कुछ हुआ वह कह और सुन लेना चाहता था।
मुग्धा अपने मरीजों को देखकर अपने घर की तरफ जाने को ततपर थी, रात बीतने को थी आसमान में हल्का अंधेरा ही था ।चिड़ियों की यदाकदा चहचाहट से आसमान गूंज रहा था।तभी मोहित ने पीछे से मुग्धा को आवाज दी।डॉ. मुग्धा एक मिनट आपसे बात करनी है, मुग्धा के पाँव वही जम गए। चाह कर भी वो एक कदम भी आगे नहीं बढ़ा पाई।मुग्धा पहचाना नहीं, मैं मोहित।क्या कहती मुग्धा ,शब्द उसके मुंह तक आते-आते अटक से गये।तुम को कैसे भूल सकती हूँ मोहित.....।मोहित लगातार बोलता जा रहा था,तुम यहाँ कैसे ?कॉलेज छोड़ने के बाद किसी को नहीं पता कि तुम कहाँ गई।तुमने अपना पुराना घर भी बेंच दिया ।आँटी कैसी है और तुम्हारी छोटी बहन....क्या नाम था उसका ।मोहित ने अपनी यादाश्त पर जोर डालते कहाँ।"निवेदिता"मुग्धा ने बड़ी गम्भीरता से कहाँ।"हाँ -हाँ वही।निवेदिता की शादी हो गई और माँ चारों धाम की यात्रा पर गई है। और तुम...तुम कैसी हो।मोहित ने मुग्धा की आंखों में आंखें डालकर पूछा। मुग्धा का सब्र अब जवाब दे चुका था,उसने जलती निगाहों से मोहित को देख तुम बताओ.... कैसी होना चाहिए।मुग्धा की आँखों में तैरते सूनेपन को मोहित झेल नहीं पाया। उसने अपनी निगाहे घुमा ली,मुग्धा जो कुछ भी हुआ उसके लिए मैं बहुत शर्मिंदा हूँ।...पर तुम समझो..... उस परिस्थिति में मैं कर भी क्या सकता था। समझा ही तो था ,मुग्धा ने व्यंग्य से मोहित को देखा।कुछ देर तक उन दोनों के बीच एक अजीब सा सन्नाटा पसरा रहा।मोहित ने दोनो के बीच फैले सन्नाटे को तोड़ते हुए कहा ,"तुम यहाँ कैसे ....और तुम्हारे पति और बच्चे "-मोहित ने बहुत हिम्मत जुटाकर मुग्धा से पूछा। मैंने शादी नहीं की मोहित।क्यो -क्यो मुग्धा।इतनी लम्बी जिंदगी है अकेले कैसे काटोगी।मोहित सोचा भी था और चाहा भी था...पर हर सोची और चाही हुईं चीज़ इंसान को मिल जाये ये जरूरी तो नहीं। मुग्धा मुझे माफ़ कर दो,मैंने तुम्हारा जीवन बर्बाद कर दिया ,मैं तुम्हारा गुनाहगार हूँ।मुझे माफ़ कर दो। तुमने सब कुछ जानने के बाद भी मेरे बेटे की जान बचाई। मोहित फूट-फूट कर रो पड़ा।मोहित आत्मग्लानि की आग में जल रहा था। मोहित को बच्चों की तरह रोता देखकर मुग्धा के दिल में वर्षों से जमा गुस्सा आँसुओ के रूप में पिघल कर आँखों से बह गया।मोहित जो होता है वह अच्छे के लिए ही होता है,इस गाँव में बहुत ही सीधे और सज्जन लोग हैं।यहाँ मैं किसी की दीदी, किसी की बेटी तो किसी की बुआ हूँ।खून का रिश्ता न होते हुए भी ये लोग मेरी एक आवाज पर खड़े हो जाते हैं।क्या हुआ जो एक रिश्ता नहीं जुड़ा.... उस एक रिश्ते के बदले मुझे न जाने कितने रिश्ते मिल गए। जहाँ तक तुम्हारे बेटे की बात है तो तुम शायद यह भूल गए कि डॉक्टर की पढ़ाई के समय हमें मानवता और इंसानियत का पाठ पढ़ाया जाता है। पहली बात तो यह है कि मुझे तो उस वक्त तक तो ये पता भी नहीं था कि वह तुम्हारा बेटा है और पता होता तो भी मैं तुम्हारे बेटे की जान बचाती। तुम अपने दिल पर कोई भी बोझ मत रखो।अब मैं चलती हूँ, मेरी सुबह की सैर का वक्त हो रहा।मोहित चुपचाप उसे जाते देखता रहा ।सूरज अपनी पूर्ण लालिमा के साथ एक नए सवेरे के स्वागत के लिए उदय हो रहा था और उस की किरणों से आत्मविश्वास से भरा हुआ मुग्धा का चेहरा और भी दमक रहा था।