ऐसा कहा जाता है कि धर्मराज युधिष्ठिर के रथ का पहिया कभी भी धरती की संपर्क में नहीं आता था। ऐसा इसलिए, क्योंकि धर्मराज हमेशा धर्म में प्रतिष्ठित रहते थे। उन्होंने कभी भी असत्य नहीं कहा था। फिर भी धर्मराज को नरक की यात्रा करनी पड़ी। आखिर ऐसा कौन सा अधर्म था जिस कारण धर्मराज को नरक की यात्रा करनी पड़ी? आइये देखते हैं।
महाभारत युद्ध खत्म होने के बाद पांडव बहुत दिनों तक राज करते रहे। जब कृष्ण के वंश का समूल नाश हो गया और कृष्ण, बलराम आदि मृत्यु को प्राप्त हो गए, तब पांडवों ने भी धरती को त्यागने का मन बनाया । युधिष्ठिर अपने राज्य को अभिमन्यु के पुत्र परीक्षित के हाथ सौंपकर अपने अन्य चार भाइयों भीम , अर्जुन , नकुल, सहदेव और पत्नी द्रौपदी के साथ स्वर्ग की यात्रा पर निकल पड़े। उनके साथ एक कुत्ता भी चलता रहा।
सारे के सारे पांडव और द्रौपदी हिमालय की तरफ लगातार बढ़ते रहे। रास्ते मे एक एक करके उनके चारो भाई भीम ,अर्जुन , नकुल, सहदेव और पत्नी द्रौपदी मृत्यु को प्राप्त हो गए। पर धर्मराज के साथ वो कुत्ता बराबर बना रहा। जब युधिष्ठिर स्वर्ग के दरवाजे पर पहुँचे तो देवताओं ने कहा, उनको कुत्ते का साथ छोड़कर अकेले हीं स्वर्ग जाना पड़ेगा। इस पर युधिष्ठिर ने कहा, जहाँ मेरे चारो भाई और पत्नी यहाँ तक आने में असफल हो गए, वहाँ पर यह कुत्ता स्वर्ग के दरवाजे तक आने में सक्षम रहा। यह भी स्वर्ग जाने के लिए वैसे हीं योग्य है , जैसा की मैं। मैं इसका साथ नहीं छोड़ सकता। उनका उत्तर सुनकर वो कुत्ता देवता के रुप मे परिवर्तित हो गया। आकाशवाणी हुई कि युधिष्ठिर परिक्षा में सफल हुए और वो सशरीर स्वर्ग जा सकते हैं।
जब युधिष्ठिर स्वर्ग पहुंचे तो वहाँ पर अपने भाइयों और पत्नी को नहीं देखा। वो बड़े आश्चर्यचकित हुए। आखिर वो सारे गए कहाँ ? ये प्रश्न उनके मन में बार बार आने लगा। युधिष्ठिर ने जब अपने भाइयों और पत्नी के बारे में पूछा तो देवता उन्हें नरकलोक ले गए। वहाँ पे युधिष्ठिर ने अपने चारों भाइयों के साथ पत्नी को भी पाया। भीम, अर्जुन, नकुल, सहदेव, कर्ण, द्रौपदी आदि सारे के सारे नरक में भीषण यंत्रणा सहते हुए मिले। उनलोगों ने युधिष्ठिर से विनती की , ताकि वो थोड़ी देर और नरक में रुकें, क्योंकि उनकी उपस्थिती से उनकी पीड़ा कम हो रही है। तब युधिष्ठिर ने देवताओं से कहा कि वो अपने भाइयों के साथ नरक में हीं रहना पसंद करेंगे। उसी समय नरक लोक का दृश्य गायब हो गया और युधिष्ठिर ने अपने आपको सारे भाइयों और पत्नी के साथ स्वयं को स्वर्ग लोग में पाया।
जब युधिष्ठिर ने देवताओं से स्वयं के नरक लोक जाने का कारण पूछा तो देवताओं ने बताया गया कि उन्होंने अपने गुरु द्रोणाचार्य से उनके पुत्र अश्वत्थामा की मृत्यु के संबंध में अर्ध सत्य कहा था। उसी कारण उन्हें नरक देखना पड़ा। दरअसल अश्वत्थामा नामक हाथी मृत्यु को प्राप्त हुआ था। पर कृष्ण की सलाह पर उन्होंने द्रोणाचार्य से कहा था कि अश्वत्थामा मरा है, नर या हाथी।द्रोणाचार्य जानते थे कि युधिष्ठिर कभी असत्य नहीं बोलते। युधिष्ठिर की बात को सत्य मानकर वो युद्ध में शस्त्र का त्यागकर बैठ गए। द्रोणाचार्य का इसी ध्यानमग्न निःशस्त्र अवस्था में दृष्टद्युम्न ने वध कर दिया। युधिष्ठिर द्वारा बोले गए इसी अर्धसत्य को उनके द्वारा किया गया सबसे बड़ा अधर्म माना गया , जिस कारण वो अल्प समय के लिए नरक गामी हुए।
सोचने वाली बात ये है कि जब माता कुंति अर्जुन द्वारा स्वयंवर में जीती गई राजकुमारी द्रौपदी को सारे भाइयों में बांट देने के लिए कहती हैं तो युधिष्ठिर राजी हों जाते हैं। क्या सारे भाइयों के पति बन जाने के निर्णय का विरोध न करना अधर्म नहीं था? क्या माता के अधार्मिक बात को चुप चाप मान लेना उचित था? क्या उस समय उनको धर्म की चिंता नहीं हुई? या कि वो भी द्रौपदी की सुन्दरता के प्रति आकर्षित होकर विरोध नहीं कर पाए?
युधिष्ठिर को जुए की बुरी लत थी। एक धर्मराज के लिए जुए का व्यसन पालना तो वैसे हीं अनुचित है। उसपे भी उन्होंने जुए की लत में अपनी पत्नी द्रौपदी को दाँव पे लगा दिया? जुए में अपनी पत्नी को दाँव लगा देना किस प्रकार का धर्म था ? किस अधिकार से युधिष्ठिर ने अपनी पत्नी को जुए में दाँव पर लगाया? क्या इससे भी कोई अधर्मिक कर्म हो सकता है भला? और तो और , जब दुःशासन द्रौपदी को भारी सभा मे नग्न करने का प्रयास कर रहा था, तब भी वो शांत बैठे रहे। क्या जुए की मर्यादा का पालन करना, अपनी पत्नी की मर्यादा के हनन होने से बचाने से ज्यादा जरुरी था? ये किस तरह की मर्यादा थी? ये किस तरह का धार्मिक क्रियाजलाप थी? किस तरह की व्यवस्था स्थापित करने की कोशिश कर रहे थे ?
अज्ञातवास में भी जब कीचक द्रौपदी पर बुरी नजर डालता है, तब भी युधिष्ठिर कुछ नहीं करते। शांत ही रहते है। उनके लिए अज्ञात वास का पालन करना श्रेयकर लगा ताकि अज्ञात वास खत्म होने पर अपने राज्य का दावा ठोक सके। क्या कीचक से पत्नी की रक्षा न करना अधर्म नहीं था? अति आश्चर्य जनक लगता है कि युधिष्ठिर अपनी पत्नी के साथ एक वस्तु की तरह व्यवहार करते रहे पर महाभारत के रचयिता व्यास की नजरों में ये धर्मराज द्वारा किया गया अकर्म अधर्म नहीं था।
समझ में नहीं आता कि महामुनि व्यास रचित महाभारत में देवों ने युधिष्ठिर द्वारा अपनी पत्नी को वस्तु की तरह व्यवहार करने को उतना अधर्मिक नहीं माना , जितना कि कृष्ण के उकसाने पे गुरु को अश्वत्थामा के संबंध में अर्ध सत्य कहना। आखिर देवों की नजर में धर्म और अधर्म की परिभाषा का आधार क्या था? मेरी नजर में युधिष्ठिर द्वारा अपनी पत्नी द्रौपदी के साथ हमेशा वस्तु की तरह व्यवहार करना, द्रौपदी को जुए में दाँव पर लगाना और भरी सभा मे नग्न होती द्रौपदी की रक्षा के लिए कोई प्रयत्न नहीं करना हीं सबसे बड़ा अधर्म था, न कि अपने गुरु द्रोणाचार्य को कृष्ण के बहकावे में आकर अर्ध सत्य कहना।