Seeta - Ek naari - 7 - last part in Hindi Poems by Pratap Narayan Singh books and stories PDF | सीता: एक नारी - 7 - अंतिम भाग

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सीता: एक नारी - 7 - अंतिम भाग

सीता: एक नारी

॥ सप्तम सर्ग॥

निर्विघ्न सकुशल यज्ञ मर्यादा पुरुष का चल रहा
किस प्राप्ति का है स्वप्न उनके हृदयतल में पल रहा ?

अर्धांगिनी के स्थान पर अब तो सुशोभित मूर्ति है
यह लोक-भीरु राम के किस कामना की पूर्ति है?

अति प्रज्वलित बहु यज्ञ कुण्डों से लपट है उठ रही
समवेत पाठन से ऋचा के गूँजते अम्बर मही

स्वाहा स्वरों के साथ समिधाएँ निरंतर पड़ रहीं
पर ताप यह हिय-दग्धता के सामने कुछ भी नहीं

हैं पुत्र आनंदित बहुत ही अंक में निज तात के
विस्तार जैसे लग रहे वे राम के ही गात के

पाकर उन्हें परिजन सभी अत्यंत ही हर्षित हुए
अवधेश उनको निरखते अति नेह लोचन में लिए

वन मध्य वे अपने पराक्रम का प्रथम परिचय दिए
बंधक बनाकर अश्व, सेना को पराजित जब किए

संदेह उपजा था हृदय में जब मिली थी सूचना
प्रस्तुत हुआ है कौन करने को समर में सामना

गायन सुना ऋषि-काव्य का निज पुत्र से जब राम ने
संदेह कोई भी नहीं फिर टिक सका था सामने

फल पा लिया था यज्ञ का ज्यों पूर्णता के पूर्व ही
उनके हृदय-सर में खिला था सुख-सरोज अपूर्व ही

बाल्मीकि मेरी शुद्धता की घोषणा करने खड़े
ऋषि, मुनि तथा गन्धर्व सबके चक्षु हैं मुझ पर गड़े

राजा नहीं, ऋषि अपितु होता है नियंत्रक धर्म का
अधिकार में उनके विवेचन है सभी के कर्म का

हे मात! भर लो अंक में, अब लालसा मन में नहीं
इस जगत के सुख भोग की तो तनिक भी बाकी रही

है पूर्णतः निर्वाह अपने धर्म का मैंने किया
अवधेश की संतान को उनको समर्पित कर दिया

माता बिना संतान का जीना बहुत सामान्य है
पर पितु बिना उनका नहीं जीवन जगत में मान्य है

इतने दुःखो से पालकर उनको बड़ा मैंने किया
वे पुत्र होंगे राम के, जग में नहीं होगी सिया

विधिनाथ ने ही भाग्य में जो लिख दिया मेरे व्यथा
अस्तित्व मेरा रह गया बनकर यहाँ दारुण कथा

मैंने जनम भर आचरण बस शास्त्र सम्मत ही किया
इतना बड़ा क्यों दंड बस मृग-लोभ का मुझको दिया

मुझमें नहीं अब और जीने की बची है कामना
अपहृत हुई जब मैं, तभी थी चाहती जग त्यागना

चिंता मुझे है मात्र इस आदर्श कोशल राज्य की
निर्दोष को दण्डित करे उस क्रूर सभ्य समाज की

इतनी नहीं बस बात कि ‘दण्डित हुई है जानकी’
है प्रश्न यह अस्तित्व का इस सृष्टि के अर्धांग की

राजा बदल जाते, बदल जाती व्यवस्थाएँ यहाँ
नारी दशा लेकिन कभी इस लोक में बदली कहाँ

है पुरुष अत्याचार नारी युगों से सहती रही
इस राज्य ने भी दोहराया है कहानी फिर वही

हे राम! बनकर सिय कभी इस मेदिनी पर उतरना
तुम जान पाओगे तभी नारी हृदय की वेदना

*****