Ek bund ishq - 9 in Hindi Love Stories by Chaya Agarwal books and stories PDF | एक बूँद इश्क - 9

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एक बूँद इश्क - 9

एक बूँद इश्क

(9)

परेश ने रिजार्ट के पार्किंग में गाड़ी लगा दी है। सफर लम्बा था और अकेले होने की बजह से ऊबाऊ भी। इतनी लम्बी ड्राइविंग के बाद वह बहुत खुद को थका हुआ महसूस कर रहा है। हलाकिं गलती उसकी ही है दिल्ली से कोसानी तक सिंगल हैंड गाड़ी चलाना कोई समझदारी की बात नही है। बड़ी बात तो यह है कि वह अपने विजनेस के बिजी शैडयूल को छोड़ कर यहाँ आया है। मगर यह फैसला भी उसी का है। व्यक्ति जो फैसले स्वयं लेता है उससे संतुष्ट भी रहता है और शिकायत भी नही करता।

रीमा दौड़ कर उससे लिपट गयी। अभी दो दिन ही हुये हैं उसे पर लग रहा है दो महीने गुजर गये। उसे परेश के आने से ज्यादा इस बात की खुशी है कि परेश के दिल में उसकी भी अहमियत है। वरना तो उसने उसे विजनेस, ऑफिस, मीटिंग इन सबमें उलझा हुआ ही देखा है। वह मन-ही-मन सोच रही है- 'काश! ये पल यूँ ही ठहर जायें, परेश तुम कभी मत बदलना..'

परेश ने उसको संभालते हुये अलग किया और माथे पर एक चुंबन अंकित कर दिया। उसने उसे प्यार से सोफे पर बिठा दिया । रीमा ने इण्टर कॉम पर कॉफी आर्डर करने के लिये फोन उठाया ही है कि परेश ने उसे रोक दिया-

"रहने दो रीमा, आते वक्त काउंटर पर मैंने आर्डर दे दिया है। अभी आती ही होगी।"

"तुम थक गये होगे जाओ फ्रेश हो जाओ तब तक कॉफी भी आ जायेगी" फिर वह थोड़ा शरमाते हुये बोली- "मैंने तुम्हें बहुत मिस किया परेश...यहाँ की खूबसूरती अकेले देखने में मजा कहाँ है ?"

"हमममम..पर जिन्दगी सिर्फ खूबसूरती से नही चलती रीमा, खैर जाने दो और यह बताओ अब तबियत कैसी है?"

"मुझे क्या हुआ है? आई एम फाइन परेश..और तुमसे किसने कहा कि मैं ठीक नही हूँ?"

"रिजार्ट के मैनेजर से बात हो गयी है मेरी..तुम ठीक कह रही हो कुछ नही हुआ है तुम्हे..बस यूँ ही पूछ लिया" कह कर मुस्कुराया और रीमा को लिपटा लिया।

वह उसकी बाँहों में लिपटी रही। वेटर ने दरवाजे को नॉक किया तो वह छिटक कर अलग हो गयी-

"कम इन.. आ जाइये अन्दर"

वेटर गणेश ही है। उसने परेश को गणेश से बहुत उत्साहित होकर मिलवाया-

"यह हैं गणेश दादा, बहुत बहुत बहुत अच्छे हैं। और यह हैं मेरे पति परेश!" कह कर वह मुस्कुरा दी।

गणेश ने औपचारिक अभिवादन किया और कहने लगा- "शाव, हम नही मेमशाव भी बहुत अच्छी हैं। एकदम नेक, सच्ची और मासूम। दो दिन में ही इन्होने अपना बना लिया है शबको। हमारे शंकर और उशकी पत्नी काबेरी तो बहुत प्यार करने लगे हैं मेमशाव को, शच में शाव, आज के जमाने में ऐसा इन्शान होना बहुत मुश्किल है।"

गणेश भावनाओं में बहता जा रहा है। उसे समझ नही आ रहा है कि रीमा की तारीफ में कौन से शब्दों का इस्तेमाल करुँ?

"हमममम..अच्छा, इतनी अच्छी लगी हमारी पत्नी आपको?" परेश ने मजाक में कहा। जिसे सुन कर सब हँस दिये।

दर असल गणेश से उसकी मुलाकात रिजार्ट के रिसैप्शन पर ही हो गयी थी। ये बात रीमा को नही पता थी।

जब परेश रिजार्ट में दाखिल हुआ तो गेणेश उस वक्त वहीं मौजूद था। उसने परेश और मैनेजर को बातें करते सुन लिया था और वह समझ गया था कि यही मेमशाव के पति हैं। चूंकि रीमा उसे कल बता ही चुकी थी कि उसके पति कल उसे लेने आ रहे हैं।

मैंनेजर से बातचीत के बाद जब परेश ऊपर कमरे की तरफ जाने लगा तो गणेश ने उसे अपना परिचय दिया और बताया कि उसे उनसे कुछ जरुरी बातें करना चाहता हैं। परेश को यह सब बड़ा ही अटपटा लगा। किसी अजनबी जगह पर जहाँ आप पहली बार आये हों और कोई आपको बेझिझक रोक ले-' कि कुछ जरुरी बात करनी है' तो थोड़ा अजीब तो लगेगा ही। फिर जब गणेश ने आग्रह किया कि कुछ खास है जो वह उसे अकेले में बताना चाहता है तो परेश मना नही कर पाया।

उसी रिजार्ट में एक छोटा सा रेस्तरां भी है। आम तौर पर कुछ खास भीड़ भाड़ नही रहती वहाँ, सो वही जगह बातचीत के लिये ठीक रहेगी। गणेश ने बगैर समय गवाँये एक-एक कर सारी घटनायें परेश को बतानी शुरु की- ' कैसे रीमा यहाँ के नजारों में घुलमिल गयी है? कैसे वह अचानक बेहोश हो गयी थी? कैसे वह यहाँ के चप्पे-चप्पे को पहचानती है। कैसे वह किसी बैजू नाम की रट लगाये हुये है? जिसे वह हर पत्थर, हर दरख्त के नीचे ढूँढ रही है। कैसे वह कल नदी के किनारे असामन्य व्यवहार करने लगी थी जो वास्तव में बहुत खतरनाक था? उसका अपने आप में खोया रहना, खुद से बातें करना बड़ा ही अदभुत है। उसने यह भी बताया कि मेमशाव उसके दोस्त शंकर और उसकी पत्नी काबेरी से बहुत जुड़ गयीं हैं यह जुड़ाव कोई साधारण नही है। और उससे भी उसकी आत्मियता कुछ अनोखी ही है। यहाँ हर साल हजारों पर्यटक आते हैं वह सबको घुमाता है देखभाल करता है परन्तु ऐसा जुड़ाव आज तक नही हुआ। मेमशाव कुछ अलग जरुर हैं पर उन जैसा दयालु और नेकदिल उसने आज तक नही देखा। उसने यह भी कहा कि वह मेमशाव के स्वास्थ्य को लेकर बहुत चिन्तित है।'

हर एक शब्द के साथ गणेश की ईमानदारी झलक रही थी। उसका लगाव उसकी परिभाषा खुद व्यान कर रहा था।

गणेश जैसे-जैसे बताता जा रहा है परेश की माथे की सिलवटें अपना आकार ले रही हैं। बेशक वह परेशान हो रहा था मगर जिन्दगी के आने वाले हर चैलेन्ज को वह हिम्मत से हैंडिल करता है। इसके अलावा और रास्ता भी क्या है? मानसिक कमजोरी हमेशा हार का कारण होती है और हार उसे हरगिज़ मंजूर नही चाहे वह विजनेस की हो या हालात की।

सोच के उतार चढ़ाव और समाधान का द्वंद्व उसके भीतर मचा हुआ है, जिसे गणेश भलिभांति देख रहा है। मगर वह असहाय है। फिर भी उसने सांतवना दी- ' वह जिस लायक भी है उनकी मद्द को हर समय तैयार है।'

परेश ने उसका दिल से शुक्रिया अदा किया और ये भी कहा- "वह उसका हमेशा ऋणि रहेगा और किसी भी तरह की जरुरत हो तो बेझिझक कह सकता है" यह बात गणेश को थोड़ा अखर गयी- शाव हम गरीब लोग हैं जिस को दिल शे अपना मान लिया उशको जिन्दगी भर निभाते हैं, अहसान नही करते।"

परेश ने बात की गम्भीरता को समझ कर उससे माफी भी माँगी। जिससे गणेश शर्मिंदा हो गया- 'न..न..शाव मेमशाव जैसे आपकी पत्नी हैं वैसे अब हमारी भी कुछ लगती हैं, हमारी बिटियाँ हैं वो।" कह कर भरी आँखों से गणेश उदास हो गया।

"ठीक है अगर आप रीमा के दादा हैं तो हमारे भी हुये न?? फिर तो आपको हमारी मदद करनी पड़ेगी।"

"जब चाहो आजमा लेना शाव" गणेश ने विश्वास से कहा।

कहने को तो परेश गणेश से बाते कर रहा था लेकिन उसकी मनोस्तिथी असंतुलित होती जा रही थी। वह गणेश को सुन कर भी नही सुन रहा था।

हजारों सवाल थे जो उसे परेशान कर रहे थे- ' क्या वास्तव में यह व्यक्ति सच बोल रहा है? मैं कैसे विश्वास कर लूँ इस पर? परन्तु झूठ भी बोलेगा तो क्यों? लगता तो नही इसकी बातें छल या कोई बनावट है? वैसे भी यह छोटा सा कस्बा है दिल्ली नही । धोखा देने की फितरत अभी इन छोटी जगहों में नही पहुँची है। प्रमाण के तौर पर देख लो अभी-अभी इनको मैंने भी दादा मान लिया और फिर भी अपने दिमाग का गणित लगा रहा हूँ। कभी तो दिल की सुननी ही चाहिये। शायद मुझे इनकी तरह ही सोचना होगा? महानगरों की लीपा-पोती यहाँ नही चलेगी?'

क्या हुआ होगा रीमा को? कहीं कोई मानसिक रोग तो नही? दिल्ली जाकर किसी न्योरोलाजिस्ट को दिखाना होगा। या फिर कहीं ऐसा तो नही कोई डरावना सपना देखा हो और वह डर गयी हो? लेकिन सपना होता तो उसकी पुनरावृति बार-बार न होती। कहीं रीमा पहले से तो बीमार नही और हमें पता ही नही लग पाया हो? नही.नही.अगर ऐसा होता तो कुछ तो पता लगता? फिर यह बैजू कौन है? क्या कोई ख्याली करैक्टर??? समझ में नही आ रहा आखिर क्या बजह हो सकती है? ओहहहह कहीं ये पिछले जन्म से संबंधित तो नही? ऐसा तो नही रीमा अपना पिछला जन्म याद कर रही हों? उसका शायद यहाँ से कुछ रिश्ता रहा हो? नही..नही....मैं नही मानता ये पुनर्जन्म की कहानियों को..सब दिल का बहम हैं और कुछ नही....कुछ नही होता ये जन्म-वनम...आज तो साइंस का युग है टैक्नोलौजी कितना डैवलैप है..बकवास है ये सोचना...कुछ नही होगा रीमा को..मैं कल ही दिल्ली पहुँच कर सबसे पहले डॉक्टर कुशाग्र से अपाइटमैंट लेता हूँ। जरुर कोई हल निकलेगा।

शायद रीमा को अकेले नही आने देना चाहिये था। रोकता भी क्यों? कोई बजह भी तो नही थी रोकने की? हर रिश्ते की अपनी स्वतंत्रता होनी चाहिये नही तो रिश्ता, रिश्ता न होकर कैद हो जाता है।

खैर, अब हर कदम फूँक के रखना होगा। रीमा को जरा भी अहसास न हो कि मुझे सब पता चल चुका है। वैसे भी वह कौन सा जानती है अपने वारे में उसे तो कल का कुछ भी याद नही?

शायद उसे किसी सहारे की जरूरत है? शायद मेरे स्नेह और प्यार की आकांक्षी है वो ? उसकी भावनायें टूटी होगीं जिन्हें अपनेपन के मरहम से भरना होगा। जीवन में रिश्तों की अपनी ही जगह है। मगर आज यकायक यह सारे अहसास क्यों होने लगे हैं मुझें? किसी का इतना ख्याल रखना कभी मेरी आदत ही नही रहा? यह सब तो समय की बर्बादी है? फिर क्यों इतना सोच रहा हूँ मैं? मेरा काम तो डॉक्टर को दिखाना है बस.....बाकि काम दवाइयाँ खुद करेगीं?

सोच और समाधान के सेतू बनाता परेश ऊपर कमरें की सीढियाँ चढ़ने लगा।

क्रमशः