chupdi rotiya in Hindi Women Focused by Sneh Goswami books and stories PDF | चुपङी रोटियाँ

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चुपङी रोटियाँ

चुपड़ी रोटियां

रजनी ने सिम्मी आंटी का दरवाजा जोर से खटकाया । सिमरन ने दरवाजा खोला तो रजनी एकदम से फट ही पड़ी ।
आंटी जी ! इसे कहते हैं कलयुग । घोर कलयुग आ गया घोर ।
" पर हुआ क्या ? बता तो सही । क्यों बिना बात लाल सुर्ख हुई जा रही है “
" क्या बताऊँ ? बताते हुए भी शर्म आ रही है । कभी ऐसा अंधेर आपने कहीं देखा पढ़ा , कि बहुएं ससुर का परछन करें ।
“क्या बोल रही है रजनी ? “
सही कह रही हूँ आंटीजी । आपके ढिल्लो साहब शादी करने गए हैं कोर्ट में । आज माया को कह रहे थे हमें सुना कर - नीचे का पोर्शन अच्छे से साफ़ करके फर्श धो देना । चादर और परदे भी बदल देना । तीन बजे तक तुम्हारी नई मालकिन आ जायेगी । और बाकी सब सुन लें अगर किसी को ऐतराज है तो अपना सामान उठा के जा सकता है । नहीं तो चुप होकर बैठे ऊपर. ….। हम तो आंटी सुनके सुन्न ही हो गए । जब तक होश आया । पापा जा चुके थे ।
" तुम्हे गलत फहमी हुई होगी रजनी । गुस्से में कह गए होंगे वरना पैंसठ साल की उम्र में कोई शादी करवाता है ।"
रजनी चली गई तो मैं इस सारी घटना की समीक्षा में लग गई । मिस्टर ढिल्लों दस साल पहले हमारे पड़ोस में रहने आये थे । मिसेज ढिल्लो बड़ी प्यारी और मिलनसार महिला थी । सबसे हँस के मिलती । किट्टी पार्टियों की तो वे जान थी । दो बेटे थे दोनों अच्छी नौकरी में अच्छे पदों पर कार्य रत थे । सब ठीक चल रहा था कि मिसेज ढिल्लो को अचानक ऐसा हार्ट अटैक आयाकी साथ ही ले गया । पूरा घर ही बिखर गया । कहाँ तो वे हमेशा कहती दो साल बाद जब ढिल्लों साहब रिटायर हो जायेगे फिर हम लम्बे टूर पर जायेंगे पर इसकी नौबत कहाँ आई ।
पत्नी की मौत के दस महीने बीतते न बीतते ढिल्लों साहब ने दोनों बेटों की शादी कर दी । उसके सात महीने बाद ही ढिल्लों साहब रिटायर हो गए । कुछ दिन तक तो सब ठीक चला ।उसके बाद घर के काम को लेकर अक्सर लड़ाई झगडे होने लगे पर ये तो हर घर में होता ही रहता है जहाँ दो बहुएं हो काम के बंटवारे को लेकर अक्सर बहस हो ही जाती है ।
लेकिन चार बजते ही गली में ढोल की आवाज सुनाई दी । बाहर निकल कर देखा तो ढिल्लो साहब के साथ करीब चालीस पैंतालिस साल की औरत कार से उतर रही थी । मुझे देखते ही ढिल्लों साहब ने सफाई दी - भाभी जी मेरी रोटी इन सब को भारी पड़ रही थी । तीन चार दिन से मेरी दो रोटियों के लिए दोनों वक्त ये बहुएं लड़ना शुरू हो जाती थी । मैंने आज इनकी सारी समस्या ही दूर कर दी । ये प्रीती है । इसका कोई नहीं है । इसकी ससुराल वाले विधवा आश्रम छोड़ गए थे । मैंने आज कोर्ट मैरेज कर ली । इसकी भी प्राब्लम दूर हो गई मेरी भी ।
वे हाथ पकड के उसे अंदर ले गए थे । ऊपर अमर अपनी पत्नी से लड़ रहा था - और करो लड़ाई । तुम बड़ी थी तुम ही इज्जत से दो रोटी देती रहती तो ये नौबत तो नहीं आती ।
रजनी ने क्या कहा ये तो पता नहीं पर ढिल्लों साहब की जिन्दगी के साल अब बढ़ गए है ये पक्का है और प्रीती को भी एक सुरक्षित ठिकाना तो मिल ही गया ।
मिश्र जी के बेटे ने अपनी बीबी को कहा - सुन आज से पापा का ख़ास ख्याल रखना । कहीं इनका इरादा भी न बन जाए ।
ढिल्लों साहब के तो परोंठों का इंतजाम हो गया । बाकी मौहल्ले के बुजुर्गों की थाली की रोटियों पर भी चुपड़ी रोटियां दिखने लगी थी ।