din raat - 3 in Hindi Moral Stories by Kishanlal Sharma books and stories PDF | विदा रात - 3

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विदा रात - 3

तब बरखा को एहसास होने लगा कि मात्र भावात्मक लगाव उसकी बने रहने में सहायक नही हो सकता।शारीरिक इच्छा की पूर्ति भी ज़रूरी है।इस इच्छा को पति ही पूरी कर सकता है।वह पुराने जमाने की उन औरतो में से नही थी।जो पति चाहे जैसा हो।उसके साथ सारी उम्र गुज़ार देती थी।बरखा आधुनिक ज़माने की शिक्षित औरत थी।
वह अपना सारा जीवन शेखर के पीछे तबाह नही कर सकती थी।इसलिए उसने दूसरे रास्ते के बारे में सोचना शुरू कर दिया।
हर दृष्टि से सोचकर,हर पहलू पर विचार करकेऔर भविष्य में किन बातों का सामना करना पड़ सकता है।उसने तलाक देने का निर्णय कर लिया था।इस निर्णय की सूचना देने के लिए वह जगकर पति का इन्तजार कर रही थी।
बरखा के इन्तज़ार की घड़ियां खत्म हुई।कार का हॉर्न पति के आने का संकेत थी।शेखर ने कमरे में आकर कपड़े बदले।फिर वह पलंग पर आ गया।बरखा को जागते देखकर बोला,"अभी तक सोई नही?"
"आज की रात मेरी,तुमहारे साथ आखिरी रात है।"पति के प्रश्न को उसने अनसुना कर दिया था।
"क्या कंही जा रही हो?"शेखर ने पलंग पर लेटी बरखा को देखा था।
"हॉ।"बरखा के गुलाबी होंठ खुले थे।
"कन्हा?"शेखर ने पूछा था।
"फिलहाल अपने मैके।अपने मम्मीपापा के पास।"पलंग पर लेटी बरखा बैडरूम की छत को निहार रही थी।
"अचानक क्यों?सुबह मेरे जाने तक तो तुम्हारा कोई ऐसा प्रोग्राम नही था।कोई फोन आया है?सब ठीक तो है?वापस कब आओगी?"शेखर ने एक साथ कई प्रश्न कर डाले थे।
"मै वापस आने के लिए नही जा रही।"बरखा द्रढ़ता से बोली।
"मतलब?"शेखर चोंकते हुए बोला,"पहेलियां मत बुझाओ।साफ साफ बताओ।तुम आखिर कहना क्या चाहती हो?"
"मैने बता तो दिया।आज की रात तुमहारे साथ मेरी आख़री रात है।कल मैं हमेशा के लिए इस घर से चली जाऊंगी।मैने तलाक लेने का निर्णय कर लिया है।"बरखा ने दो टूक शब्दों में अपनी बात कह दी थी।
"क्या?"बरखा की बात सुनकर शेखर चोंकते हुए बोला,"यंहा तुम्हे क्या कमी है?कार, बुंगला,नौकर, पैसा।हर सुख सुविधा का सामान यहाँ उपलब्ध है।"
"ये सुख सुविधा के साधन नही होते,तो भी मुझे कोई गम नही होता,"बरखा बेहद संयत स्वर में बोली,"इस बारे में मैने कभी तुमसे शिकायत नही की।"
"फिर मुझसे कोई भूल हो गई।गलती हो गईं, तो मुझे बताओ।"शेखर गिड़गिड़ाया था।
"शादी करना तुमहारी सबसे बड़ी गलती थी।"बरखा ने गर्दन घुमाकर शेखर को देखा था।
"कैसी बहकी बहकी बाते कर रही हों।"शेखर,बरखा को अपने आगोश में लेते हुए बोला।
"यह तुमहारे बस की बात नही है।"बरखा,शेखर के बंधन से मुक्त होते हुए बोली।
"क्या कमी है मुझ में?मैं तुम्हारा पति हूँ।समाज के सामने तुम्हारा हाथ पकड़कर अग्नि के सात फेरे लिए है।तुम्हारे तन मन पर मेरा पूरा अधिकार है"।बरखा की बात सुनकर शेखर उतेजित हो गया।
"तुम में क्या कमी है?इसे तुम अछी तरह जानते हो।"शेखर के उतेजित होने के बावजूद बरखा ने उसकी बात का जवाब बेहद ठंडेपन स दिया था।
"क्या कह रही हो डार्लिंग?"गिरगिट की तरह रंग बदलते हुए शेखर उसकी तरफ खिसकते हुए बोला।
"सच कह रही हूँ।अपनी कमी जानते हुए भी मुझे धोखा देने का प्रयास करते रहे।"
"यह झूंठ है।ज़रूर तुम्हे भृम हुआ है।"
"पहले मैने भी इसे भृम समझा था।लेकिन जल्दी ही मेरा भृम विश्वास में बदल गया।फिर भी मैं चुप रही।"
"तुम मुझ पर झूंठा इल्ज़ाम लगा रही हो।"बरखा की बात सुनकर शेखर बोला
(कृमशः)
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