रामदेव सिंह के बेटी का ब्याह है। दू फेरा से प्रधान हैं सरकारी इंजीनियर दामाद उतारे हैं । एकदम पैसा से बोझ दिए हैं। कौन एक नंबर के पैसा है, सब तो दू नंबर का सरकारी पैसा समेट के रखे थे, वही खर्च कर रहे हैं ।
पूरा चहल पहल है नाते रिश्तेदारों से भरा है घर दुआर।
नया धन हुआ है तो फुटानी थोड़ा ज्यादा ही है। लेकिन इन सब के बीच वह अलग ही चमक रही है । इतने नाते रिश्तेदारों के बीच भी रामदेव बाबू की जनानी हरदम उसको ही हाँक लगा रही है " हे मेदनीपुरवाली हेने आवअ , हे इ केना भेतैय। "
रामदेव सिंह भी उसका रूपगुण देखकर भौंचक थे लेकिन पहचान नहीं पाये , मौका देखकर पत्नी से पूछ ही लिए " इ मेहरारू के भेलैय ? "
बगल में बड़के समधी बैठे देख उसने अंचरा माथा लिया " नैय चिन्हलियै इ रमेसरा नाऊ के कनिया भेलैय, दोसरकी । आब त डेढ़ साल भैय गेलैय। धिया पुता छोट रहै त फेर बियाह क लेलकैय। बंगाली हैय, किन के ललकैय हन। लेकिन है बड़ी तेज, साले भर में सब सीख गेलैय हिंया के रीत नीत। देखै छियै नैई केना लुत्ती जेका फर फर करैय छैय। "
अमौर से फगुनहट बह के दुआरी तक मोजर के गंध फैला रहा था ऊपर से लगन में आयल कुटुम। समधी साहब भले बेटी के बाप होने के नाते यहाँ थे लेकिन ये बात तो रामदेव सिंह के परिवार के लिए थी। बाकि गाँव के लिए तो समधी थे, सम्मानीय आगंतुक ।
लोक संस्कृति में कहते हैं गरीब की जोरू सबकी भौजाई । उपर से फागुन चढ़ा हुआ था । फागुन में तो कहा ही जाता है भर फागुन बुढ़वा देउर लागे ।
बचाव के अस्त्र संभालते हुए समधी ने उस रूपकुमारी पर हमला बोला " हे नाउन तनी हमरो नह काट दी ,कबसे तेल लगाके बैठल हैंई नहाय जायके हैय । "
नाउन कमर पर दौरा टिकाते हुए छिटकी " तेल लगायल में नहन्नी छिहुल जाई त कुछ औरो न कटा जाई कहीं । "
समधी साहब पलटवार से हतप्रभ रामदेव की ओर मुड़े " अरे बाप रे इ त लौंगिया मिरचाई ह हो । "
रामदेव का हाथ अनायास ही मूंछों पर चला गया । गोया नाउन ने पलटवार कर अपना सम्मान ही नहीं बचाया बल्कि समधियाने में रामदेव का भी सम्मान बढ़ा दिया।
रामदेव ने हाथ से जाने का इशारा किया " जाउ हे दुलहिन जाउ बुढ़ारही में ऐन्ने ओन्ने छौ मार देवै त समधिन के भी हमरे रखे पड़तय। "
विदाई बेरा में भी नाउन नईका समधी और बरियात के बुढ़ पुरनिया सबको ललका पियरका धोती पहिरा के ही मानी। कुछेक शहरी बाबू थे, जो पैंट पहनते थे। उनके तो एकदम कमर में लटक गई, धोती कम से कम ऊपरो से लपेट लीं न त पैंट फाड़ देल जैत। इतनी सुंदर नारी का प्रेम भरा आग्रह और पीछे माइक से मिल रही फुआ बहिन के गारी से उकताकर बेचारे चुपचाप धोती लपेट लिये।
धोती पहिराने के बाद मेदिनीपुरवाली कटोरा में हल्दी घोर के ले लाई और का बराती का घराती सबके पीठ पर छापने लगी। बुढ़पुरनिया जो लोकसंस्कृति से वाकिफ थे वे तो हँसी खुशी थोड़े नखरे के बाद पीठ पर धप्पा लिए जा रहे थे लेकिन नयका शहरीबाबू सब भागने की कोशिश किये तब उ खहेट खहेट के छापने लगी।
बिटिया जब गाड़ी में चढ़ने लगी और कन्नारोहट मचा तो मेदिनीपुरवाली ने धीरे से गंगिया धनुकाइन को कोने में खींच लिया "इ सब त गरीब गुरबा में भैय छैय , इहाँ कथी लै कनै जाय छै सब, ऐतै लै दै के बियाह भैले हन। तब केना आब बबुनि के इ घर छूईट जैतैय । कार त देवे कलखिन हन बाबूजी, जखन मन भैतेय चलि ऐतै। "
गंगिया माथा ठोकी " बेटी एक बेर विदा भैय जायछैय त फेर आना जाना जोग संजोग के बात छैय। "
इतने में किसी ने आवाज लगाई " हे मेदनीपुरवाली हे समधी बोलबैय छथून जानू तोहरो संगे लै जाय लेल।"
न ईका समधी हाथ में नयका पचसटकिया का गड्डी पकड़े सब पौनीपसारी को नेग दे रहे थे । नाऊन के सामने आते ही रूप की चमक से सफेद मूंछों के पीछे का काला चेहरा खिल उठा " बोलू नाऊन अहाँ कि लेबैय। "
नाऊन कमर पर दोनों हाथ रखते हुए ठसक से बोली " हम त सोना सन के बबुनी देलौं अहाँ के आब अइसे बईढ़ के अहाँ किछ दै सकैय छी त लाऊ। "
समधी माया छोड़ने को तैयार न थे आखिरी दांव चला " हमरे लेल चलू नैय। "
नाउन हँसी "बूढ़वा बैल के खूंटा पर बान्ही , न हअर खींचत न जुआ थामत।"
समधी को समझ आ गया इससे पार पाना मुश्किल है हाथ की बची खुची गड्डी उसके आंचल में डाल चले गये।
विदाई के बाद सबकुछ समेटकर चलते हुए मेदनीपुर वाली के सामने रामदेव सिंह सपत्नीक आकर खड़े हो गए " हाँ दुलहिन तोहर की केन्ना हिसाब किताब हैई। "
माथा झांपते हुए नाउन फुसफुसाई "हम्मर त बिधे बिध नेग होइछैय अपने ऐथिन र तब दुन्नो के मिलतै रैय सब कुछ।"
रामदेव इस भूमिका का मतलब खूब समझते थे " अच्छा केतना चाही से बोलियौ। "
मेदिनीपुर वाली कुछ बोलती उससे पहले ही रामदेव की पत्नी बोल उठी " बेटी के बियाह कलियै हन तिलक न गिनअलय हन सोच समझ के बोलिअहो। "
हाथ जोड़ ली मेदिनीपुरवाली " लगन तिहार से पेट नैय चलै छैय मालिक उ दिन भर निंशा के फेराक में बौआयत रहै छैय। कनहु बैंक उंक से पचीसों हजार के लोन दिया दितियैं त हम इहैं एकटा ब्यूटी पार्लर खोइल लेतियै। एकदम कलकतिया फैशन के कलकत्ता ब्यूटी पार्लर। "
रामदेव फेंटा से दू गो पनसौईया निकाईल कैय ओकरा हाथ में धै देलन "अहाँ त बड़का हाथ मारैछि ऐखन इ राखू और हफ्ता दस दिन बाद आईव हम बिना ब्याज के पैसा व्यवस्था क देम। बैंक उंक में दलाल सभ नोईच लेत। "
रामदेव की पत्नी तो खुश हो गई " बढ़िया विचार अयैछ बबुनी सब यैतै त आब तनी तनी गो भौंआ आर बनवैय लेल भी दलसिंघसरैय दौरैय के नैय पड़तैय। पहले नईहर में काज कैने छिय ब्यूटी पार्लर बला सब। "
रामदेव हँसै लागलथिन " हिन्का देख के नैय बुझाइयै। "
Kumar Gourav