Teen Aurton ka Ghar - 3 in Hindi Fiction Stories by Rajni Gosain books and stories PDF | तीन औरतों का घर - 3

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तीन औरतों का घर - 3

तीन औरतों का घर - भाग 3

अभी तक साबिर पिछली मुलाक़ातों के गुणा भाग करके ही हामिदा के दिल का हाल समझने की कोशिश कर रहा था! हामिदा भी उसे चाहती हैं या नहीं?

इसी उधेड़बुन में दो तीन दिन निकल गए! साबिर के दिन बेचैनी में कटते और रातें हामिदा के ख्याल में!

"क्यों न मैं ही हामिदा के घर जाकर उसकी अम्मी और फूफी से निकाह की बात कर लूँ!" यह सोचकर ही उसे पसीना आ गया और पिछले दिनों की बात उसके दिमाग में कौंध गई!

दो महीने पहले ही वह हामिदा के घर कढ़ाई के कपडे देने गया था! तख़्त पर बैठकर वह कढ़ाई के कपडे गिनकर दे रहा था पर ये सब तो बहाना था असल में उसकी निग़ाहें हामिदा को ढूंढ रही थी तभी उसकी नजर बरामदे के कोने में दीवार से सटाकर रखे गए चार-पांच मोटे लोहे के सरियों पर पड़ी! उसने फरीदा से पूछ ही लिया "खाला ये लोहे के डंडे क्यों रखे हैं?" फरीदा ने एक नजर डंडो पर डाली और साबिर मियां की तरफ देखती हुई बोली "तुम तो जानते ही हो घर में कोई मर्द मानिस तो है नहीं! अब कही किसी को गलतफहमी न हो जाए अकेली औरतें है क्या बिगाड़ लेंगी! बस, कभी कोई चोर उचक्का, बदमाश घर में घुस गया तो उसी की मरम्मत करने के लिए रखे हैं मियां ये डंडे!"

तब साबिर उनकी ये बात सुनकर तुरत फुरत उनके घर से निकल गया था!

"दोनों बूढी बड़ी खूसट हैं! सीधा निकाह की बात अगर में करूँगा तो बात बिगड़ भी सकती हैं! यह तो खतरा मोल लेने जैसा हैं! क्यों न अम्मी को निकाह का पैगाम लेकर हामिदा के घर भेजूँ? यही ठीक रहेगा!

लेकिन एक बार मुझे हामिदा से भी पूछना चाहिए! क्या वह भी मुझे चाहती हैं! कभी उसके सामने अपनी महोब्बत का इजहार करने का मौका ही नहीं मिला! "क्या मालूम इधर मैं अम्मी को निकाह का पैगाम लेकर भेजू उधर हामिदा ही मना कर दें!" फिर दूसरे ही पल साबिर सोचता 'लेकिन उसकी नजरें तो उसके दिल का हाल बयान करती हैं!' साबिर की हालत एक दिल सौ अफ़साने जैसी हो गई थी! दिन भर तरह तरह के ख्याल उसके दिल में आते!

आखिर सारे बातों अफ़सानो का निचोड़ उसने यह निकाला कि हामिदा तक अपने दिल की बात पहुंचाई जाए! और उसके दिल का भी हाल जाना जाए ! लेकिन हामिदा तक महोब्बत का पैगाम कैसे पहुँचाया जाए? दोनों बुढ़िया हामिदा पर गिद्ध की तरह नजर रखती हैं! कभी चौकीदारी का इनाम मिले तो इन दोनों बुढ़िया को ही मिले!" साबिर अपने आप से बुदबुदाता हुआ बोला!

साबिर का मन काम में नहीं लग रहा था! वह स्टूल खींचकर बैठ गया! जेब से एक बीड़ी निकाली, सुलगाई और एक लंबा कश लेकर धुँआ ऊपर की और छोड़ दिया! उसका दिल भी तो इस बीड़ी की तरह ही सुलग रहा हैं! वह बैचैन था! बीड़ी दुकान के बाहर बहती नाली में फेंक वह कमर में हाथ रखकर खड़ा हो गया!

तभी उसे डंडे से साइकिल का पहिया चलाते हुए शफी दिखाई दिया! शफी १० साल का लड़का हैं! दूर के रिश्ते में वह साबिर का चचेरा भाई लगता हैं! शफी को देखकर साबिर ने उसे आवाज देकर अपने पास बुलाया!

"क्यों रे शफी चिप्स खायेगा?"

"हाँ भाईजान, नेकी और पूछ पूछ" शफी ने तपाक से कहा!

"कोई नेकी नहीं हैं! बदले में तुझे मेरा एक काम करना होगा!" २० रूपए का नोट शफी को पकड़ाते हुए साबिर बोला!

"कैसा काम"

"तू दुकान से चिप्स लेकर आ! उसके बाद बताऊंगा!"

शफी चिप्स लेने के लिए दौड़ पड़ा! साबिर ने कपड़ों के बिल काटने की डायरी में से एक पन्ना फाड़ा और हामिदा को खत लिखने लगा!

"पहला खत हैं! महोब्बत की खुशबु तो बिखरनी चाहिए!" यह सोचते हुए साबिर के होंठो पर हल्की मुस्कान आ गयी! उसने मेज की दराज से इत्र की शीशी निकाली और कुछ बूंदे खत के ऊपर छिडक दी! कागज का पन्ना खुश्बू से महक उठा! साबिर ने खत लिखना शुरू किया!

प्यारी हामिदा

इस कागज के महकते पन्ने की तरह अपना दिल तुम्हे नज्र किया हैं! अम्मी को निकाह के पैगाम के साथ तुम्हारे घर भेजू! पसंद हो तो कबूल करना! और खत का जवाब जरूर देना!

साबिर

तभी शफी चिप्स लेकर आ गया! पैकेट में से चिप्स निकालकर खाते हुए बोला! "क्या काम हैं भाईजान!"

"मेरी बात ध्यान से सुन......बस यह खत हामिदा तक पहुँचाना हैं! और किसी को कानोकान खबर नहीं होनी चाहिए!" शफी के कान में साबिर फुसफुसाता हुआ बोला!

"मैं नहीं जाऊँगा नीम वाले घर! दोनों बुढ़िया जंगी जहाज हैं! पकड़ा गया तो लात घूंसो के बम मुझ पर ही बरसेंगे! यह लो पकड़ो अपने चिप्स!" शफी आधा खाया चिप्स का पैकेट साबिर के हाथ में पकड़ाते हुए बोला!

"कैसे नहीं जाएगा? चची को बताऊँ स्कूल न जाकर तू पीपल वाली पुलिया के पास खेलता रहता हैं! तुझे मैंने कई बार वहां देखा हैं!" साबिर गुस्से से बोला! लेकिन दूसरे ही पल आवाज को थोड़ा नरम बनाते हुए बोला! "देख शफी तू अभी बच्चा हैं! दोनों औरते तुझ पर शक नहीं करेगी! सितारे टांकने के लिए यह दुपट्टे तू उनके घर दे आ! इसी बहाने से तू घर के अंदर जा सकता हैं! हामिदा दिखे तो मौका देखकर यह खत उसे पकड़ा देना!"

"अगर खत देखकर हामिदा ही चिल्ला उठी तो??"

"तो बात फिर मेरे सिर पर आएगी! इतना जोखिम तो मुझे उठाना पड़ेगा! अरे तुझे में चॉकलेट के पैसे दूंगा!" साबिर शफी को लालच देते हुए बोला!

थोड़ी मान मनोव्वल के बाद शफी दो चिप्स के पैकेट, दो चॉकलेट और एक कोल्डड्रिंक की बात पर मान गया! काम हो जाने पर साबिर शफी को यह सब चीजे दिलाएगा!

खत शफी के हाथ में था! खत को उलट पुलट कर देखते हुए शफी बोला! "भाईजान आप हामिदा से मोबाइल पर बात क्यों नहीं करते!"

"हामिदा के पास मोबाइल नहीं हैं! अब तू जाएगा या यही खड़े होकर सारी कोर्ट कचहरी करेगा!" आँखे तरेरता हुआ साबिर बोला! शफी दुपट्टे का थैला और खत लेकर हामिदा के घर की और चल पड़ा!

दरवाजा हामिदा की अम्मी ने खोल!

"सलाम, साबिर भाई ने ये दुपट्टे भेजे हैं!"

हामिदा की अम्मी ने दुपट्टे का थैला ले लिया! वह दरवाजा बंद करने ही वाली थी कि शफी एकदम से बोल पड़ा!

"खाला, आते वक्त पाजामे में कीचड लग गया! नल पे धो लूँ!"

हामिदा की अम्मी ने दरवाजा खोल दिया और बोली "जा जल्दी से धो ले!"

शफी आँगन में लगे हैंडपंप पर पाजामा धोने लगा! उसकी नजरें हामिदा को ढूंढ रही थी!

"खाला, बहुत जोर की प्यास लगी हैं! सुराही का ठंडा पानी मिल जाता......."

"हामिदा ओ हामिदा जरा इसे एक गिलास ठंडा पानी पिला दे!" कहते हुए हामिदा की अम्मी दुपट्टे का थैला लेकर कमरे में चली गयी! हामिदा पानी का गिलास लेकर बाहर आँगन में आयी! शफी ने फुर्ती से जेब में रखा खत निकाला और हामिदा को पकड़ाते हुए बोला! " साबिर भाई ने आपके लिए भेजा हैं!" हामिदा ने खत दुपट्टे में छुपा लिया! हामिदा के घर से शफी सीधा साबिर की दुकान पर पहुँचा!

"भाई जान आपका काम हो गया! निकालो पैसे"!

"अरे वाह, शफी तू तो बड़ा उस्ताद निकला! बड़ी होशियारी से तूने काम निपटा दिया! यह रख पचास रूपए!" सारी बात सुनकर साबिर बोला! शफी ने पचास रूपए पकडे और चिप्स की दुकान की और दौड़ पड़ा!

साबिर की बैचैनी अब और बढ़ गई थी! खत पढ़ कर हामिदा क्या सोचेगी! उसका जवाब 'हाँ' में आएगा या 'नहीं' में! अगर उसने खत चुपचाप पकड़ लिया हैं तो इसका मतलब वह भी उसे पसंद करती हैं! मन में उठते विचारों के समुन्दर में साबिर अपने आप ही गोते लगा रहा था! उस रात साबिर को एक पल भी नींद नहीं आयी! गर्मियों की रात में उसकी चारपाई छत पर ही लगी होती! गर्मियों में उसे खुली छत में सोना पसंद था! रात का एक पहर बीत चुका था! साबिर की आँखों से नींद कोसो दूर थी! दोनों हाथ सिर के नीचे रख कर वह चारपाई पर सीधा लेटा था! उसकी नजरें खुले आसमान में टिकी थी! असंख्य तारे काले आकाश में टिमटिमा रहे थे! दूध सा सफ़ेद चाँद भी अपने पूरे शबाब पर था! वह एक टक चाँद को निहार रहा था! हामिदा का चेहरा उसे चाँद में उभरता हुआ दिखता! गमलों में लगे फूलों की खुशबू जब हवा के साथ साथ छत पर बिखरती तो साबिर के शरीर में सिहरन पैदा कर जाती! पूरी रात हामिदा उसके दिलो दिमाग से एक पल के लिए भी दूर नहीं हुई थी!

दो दिन बाद साबिर ने शफी को हामिदा के घर से दुपट्टे लाने के लिए कहा! "ध्यान से सुन हो सकता हैं हामिदा तुझे आज खत दे! होशियारी से लाना!”

"ठीक हैं" शफी ने सिर हिलाते हुए कहा और हामिदा के घर की तरफ दौड़ पड़ा!

क्रमश :